Sunday, December 12, 2021

मां कालिका रूद्रयामल तन्त्रोक्तं कवच

यह मां कालिका तन्त्रोक्तं कवच है जो रूद्रयामल तंत्र से लिया गया है


विनियोग
ॐ अस्य श्री कालिका कवचस्य भैरव ऋषिः,

अनुष्टुप छंदः, श्री कालिका देवता,

शत्रुसंहारार्थ जपे विनियोगः ।

ध्यानम्

ध्यायेत् कालीं महामायां त्रिनेत्रां बहुरूपिणीं।

चतुर्भुजां ललज्जिह्वां पूर्णचन्द्रनिभाननां।।

नीलोत्पलदलश्यामां शत्रुसंघविदारिणीं।

नरमुण्डं तथा खड्गं कमलं च वरं तथा।।

निर्भयां रक्तवदनां दंष्ट्रालीघोररूपिणीं।

साट्टहासाननां देवी सर्वदा च दिगम्बरीम्।।

शवासनस्थितां कालीं मुण्डमालाविभूषिताम्।

इति ध्यात्वा महाकालीं ततस्तु कवचं पठेत्।।

कवच पाठ प्रारम्भ

ऊँ कालिका घोररूपा सर्वकामप्रदा शुभा ।

सर्वदेवस्तुता देवी शत्रुनाशं करोतु मे ।।

ॐ ह्रीं ह्रीं रूपिणीं चैव ह्रां ह्रीं ह्रां रूपिणीं तथा ।

ह्रां ह्रीं क्षों क्षौं स्वरूपा सा सदा शत्रून विदारयेत् ।।

श्रीं ह्रीं ऐंरूपिणी देवी भवबन्धविमोचिनी।

हुँरूपिणी महाकाली रक्षास्मान् देवि सर्वदा ।।

यया शुम्भो हतो दैत्यो निशुम्भश्च महासुरः।

वैरिनाशाय वंदे तां कालिकां शंकरप्रियाम ।।

ब्राह्मी शैवी वैष्णवी च वाराही नारसिंहिका।

कौमार्यैर्न्द्री च चामुण्डा खादन्तु मम विदिवषः।।

सुरेश्वरी घोर रूपा चण्ड मुण्ड विनाशिनी।

मुण्डमालावृतांगी च सर्वतः पातु मां सदा।।

ह्रीं ह्रीं ह्रीं कालिके घोरे दंष्ट्र व रुधिरप्रिये ।

रुधिरापूर्णवक्त्रे च रुधिरेणावृतस्तनी ।।

“ मम शत्रून् खादय खादय हिंस हिंस मारय मारय

भिन्धि भिन्धि छिन्धि छिन्धि उच्चाटय उच्चाटय

द्रावय द्रावय शोषय शोषय स्वाहा ।

ह्रां ह्रीं कालीकायै मदीय शत्रून् समर्पयामि स्वाहा ।

ऊँ जय जय किरि किरि किटी किटी कट कट मदं

मदं मोहयय मोहय हर हर मम रिपून् ध्वंस ध्वंस भक्षय

भक्षय त्रोटय त्रोटय यातुधानान् चामुण्डे सर्वजनान् राज्ञो

राजपुरुषान् स्त्रियो मम वश्यान् कुरु कुरु तनु तनु धान्यं

धनं मेsश्वान गजान् रत्नानि दिव्यकामिनी: पुत्रान्

राजश्रियं देहि यच्छ क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः स्वाहा ।”

इत्येतत् कवचं दिव्यं कथितं शम्भुना पुरा ।

ये पठन्ति सदा तेषां ध्रुवं नश्यन्ति शत्रव: ।।

वैरणि: प्रलयं यान्ति व्याधिता वा भवन्ति हि ।

बलहीना: पुत्रहीना: शत्रवस्तस्य सर्वदा ।।

सह्रस्त्रपठनात् सिद्धि: कवचस्य भवेत्तदा ।

तत् कार्याणि च सिद्धयन्ति यथा शंकरभाषितम् ।।

श्मशानांग-र्-मादाय चूर्ण कृत्वा प्रयत्नत: ।

पादोदकेन पिष्ट्वा तल्लिखेल्लोहशलाकया ।।

भूमौ शत्रून् हीनरूपानुत्तराशिरसस्तथा ।

हस्तं दत्तवा तु हृदये कवचं तुं स्वयं पठेत् ।।

शत्रो: प्राणप्रतिष्ठां तु कुर्यान् मन्त्रेण मन्त्रवित् ।

हन्यादस्त्रं प्रहारेण शत्रो ! गच्छ यमक्षयम् ।।

ज्वलदंग-र्-तापेन भवन्ति ज्वरिता भृशम् ।

प्रोञ्छनैर्वामपादेन दरिद्रो भवति ध्रुवम् ।।

वैरिनाश करं प्रोक्तं कवचं वश्यकारकम् ।

परमैश्वर्यदं चैव पुत्र-पुत्रादिवृद्धिदम् ।।

प्रभातसमये चैव पूजाकाले च यत्नत: ।

सायंकाले तथा पाठात् सर्वसिद्धिर्भवेद् ध्रुवम् ।।

शत्रूरूच्चाटनं याति देशाद वा विच्यतो भवेत् ।

प्रश्चात् किं-ग्-करतामेति सत्यं-सत्यं न संशय: ।।

शत्रुनाशकरे देवि सर्वसम्पत्करे शुभे ।

सर्वदेवस्तुते देवि कालिके त्वां नमाम्यहम् ।। 

।। रूद्रयामल तन्त्रोक्तं कालिका कवचं समाप्त:।।

Friday, December 3, 2021

कल है सुर्य ग्रहण और बन रहा है दुर्लभ संयोग

मित्रों जैसा आप जानते हैं कि 4 दिसम्बर को सुर्य ग्रहण है लेकिन इस दिन दुर्लभ संयोग शनिचर अमावस्या का बन रहा है यह ग्रहण साल का अंतिम ग्रहण है ,बीते 15 दिनों के भीतर ये दूसरा ग्रहण है इससे पूर्व वृषभ राशि में कार्तिक पूर्णिमा यानि 19 नवंबर 2021 को लगा था. इसके बाद अब 4 दिसंबर को सूर्य ग्रहण लग रहा है, जिसका भारत में कोई प्रभाव नहीं ,सूर्य ग्रहण के दौरान सूतक काल प्रभावी नहीं होगा, 4 दिसंबर 2021 को लगने वाले सूर्य ग्रहण को उपछाया ग्रहण कहा जा सकता है

या उपछाया ग्रहण ही है ,ये पूर्ण ग्रहण नहीं है, सूतक काल पूर्ण ग्रहण की स्थिति में ही मान्य होता है, पर ग्रहण के दिन शनिवार पड़ रहा है यही दुर्लभ संयोग है, मित्रों मार्गशीर्ष महीने की यह अमावस्या तिथि 3 दिसंबर की दोपहर 04:55 बजे से 4 दिसंबर की दोपहर 01:12 बजे तक रहेगी ,वहीं 4 दिसंबर को लग रहे सूर्य ग्रहण का भारतीय समयानुसार लगभग  सुबह 10:59 से दोपहर के 03:07 बजे तक रहेगा ,और 4 दिसंबर को सूर्य ग्रहण पर शनि अमावस्‍या का दुर्लभ संयोग है , बस मित्रों कुछ बातों का ध्यान रखें  अगर सुतक काल भारत में हो तो सूतक काल ग्रहण से 12 घंटे पूर्व और 12 घंटे बाद के समय को सूतक काल कहा जाता है,जैसे भारत दिखाई नहीं देगा इसलिए यहां पर सूतक काल भी नहीं माना जाएगा, 
हिन्दी पंचांग के मुताबिक मार्गशीर्ष (अगहन) मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि का आरंभ 03 दिसंबर की शाम 04 बजकर 55 मिनट से होगा। अमावस्या तिथि 04 दिसंबर 2021 को दोपहर 01 बजकर 12 मिनट तक रहेगी ,
सूर्य ग्रहण के दौरान क्या करें ,
ग्रहण शुरू होने से पहले खुद को शुद्ध कर लें। ग्रहण शुरू होने से पहले स्नान आदि कर लेना शुभ माना जाता है ,
ग्रहण काल में अपने इष्ट देव या देवी की पूजा अर्चना करना शुभ होता है,
सूर्य ग्रहण में दान करना बेहद शुभ माना जाता है। ग्रहण समाप्त होने के बाद घर में गंगा जल का छिड़काव करना चाहिए,
ग्रहण खत्म होने के बाद एक बार फिर स्नान करना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा शुभ फलों की प्राप्ति होती है,
ग्रहण काल के दौरान खाने-पीने की चीजों में तुलसी का पत्ता डालना चाहिए,
सनातनी मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण के दौरान भोजन या पानी का सेवन नहीं करना चाहिए, कहते हैं कि ऐसा करने से व्यक्ति की पाचन क्षमता कमजोर होती है,जिसके कारण व्यक्ति के बीमार होने की ज्यादा संभावना रहती है, मित्रों कहा जाता है कि ग्रहण के दौरान कोई भी नया काम या मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए, ऐसा करने से उस काम में असफलता मिलती है, नादान बालक की कलम से आज बस। इतना ही बाकी फिर कभी ग्रहण के दौरान नाखून कांटना, बालों में कंघी करना और दांतों की सफाई करना अशुभ माना जाता है। कहते हैं कि ग्रहण के समय सोना भी नहीं चाहिए,
कहा जाता है कि ग्रहण के दौरान चाकू या धारदार चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, कहते हैं कि ऐसा करने से अशुभ फलों की प्राप्ति होती है,
शनि अमावस्या के दिन इस बार सूर्य ग्रहण लग रहा है 4 दिसंबर को शनि अमावस्या है इस दिन शनि देव की विशेष पूजा का संयोग बना है,
जिन लोगों पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है उन्हें सरसों के तेल में अपनी परछाईं देखकर दान करना चाहिए, दरवाजे पर काले घोड़े की नाल लगाएं और कुत्ते को रोटी खिलाएं ये आप रोज करे तो अच्छा है (कुत्ते को रोटी खिलाने का कार्य ) और शाम को पश्चिम की ओर तेल का दीपक जलाएं ‘ऊं शं शनैश्चराय नम: मंत्र पढ़ते हुए परिक्रमा करने से लाभ होता है, और मित्रों इस साल 2021 का आखिरी सूर्य ग्रहण अंटार्कटिका, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका में दिखाई पड़ेगा और अगला सुर्य ग्रहण भी यानि साल 2022 का पहला सूर्य ग्रहण भी 30 अप्रैल को लगेगा, ये भी आंशिक ग्रहण होगा, जिसका असर भी  दक्षिणी-पश्चिमी अमेरिका, पेसिफिक अटलांटिक और अंटार्कटिका में देखने को मिलेगा, साल का आखिरी सूर्य ग्रहण वृश्चिक राशि में लग रहा है. इस दौरान वृश्विक राशि वालों को विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है चाहे भारत में सुतक हो या ना हो,, मित्रों इस सुर्य ग्रहण से होने वाली पीड़ा , राजनीतिक उथल-पुथल बिमारियों का फैलना कई जगह भुखमरी और प्राकृतिक अपादाओ का आना और कई देशो की सीमाओं पर तनाव और युद्ध की स्थिति हो सकती है इसलिए अपना और अपनो का ख्याल रखे क्योंकि मोसमी बिमारियों के साथ करोना का भी खतरा रहेगा मां बाबा हम सभी को सुरक्षित, निरोगी और और पुणे स्वास्थ्य रखे यही मां बाबा से हमारी प्रार्थना है नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी🙏🏻🌹
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख जगाने🙏🏻🌹

Saturday, November 27, 2021

भेरव अष्टमी के दिन क्या करें और कैसे सावधानियों बरते

मित्रों आप सभी को बाबा काल भैरव अवतरण दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं और हार्दिक मां बाबा आप सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करे यही हमारी मां बाबा से प्रार्थना है और मित्रों पहले तो हम आप सभी से क्षमा चाहते हैं हमारे परिवार में भतीजी और भाणेजी की शादियां थे आप सभी से उनके लिए आशीर्वाद की हम कामना करते हैं और क्षमा चाहते हैं पोस्ट लेट देन के लिए और मित्रों क्योंकि आज पोस्ट कि बहुत लम्बी होने वाली है आज सिर्फ एक ही पोस्ट में उपाय जप नियम कथा और सावधानियों दे रहे हैं ,, 
कालभैरव अवतरण दिवस  

काल भैरव अष्टमी शनिवार, नवम्बर 27, 2021 को
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 27, 2021 को 05:43 ए एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – नवम्बर 28, 2021 को 06:00 ए एम बजे
कहां जाता है कि एक बार ब्रह्मा तथा विष्णु में यह विवाद छिड़ गया किविश्व का तारणहार तथा परम तत्व कौन है। इस विवाद को हल करने के लिए महर्षियों को बुलाया गया। महर्षियों ने निर्णय किया किपरम तत्व कोई अव्यक्त सत्ता है। ब्रह्मा तथा विष्णु उसी विभूति से बने हैं। विष्णुजी ने ऋषियों की बात मान ली किंतु ब्रह्माजी ने यह स्वीकार नहीं किया। वे अपने को ही परम तत्व मानते थे। यह परम तत्व की अवज्ञा बहुत बड़ा अपमान था। शिवजी ने तत्काल भैरव के रूप में उग्र रूप धारण करके ब्रह्मा का गर्व चूर-चूर कर दिया। यह दिन अष्टमी का दिन था। इसलिए इस दिन को भैरव अष्टमी कहा जाता है कहा यह भी जाता है कि पहले ब्रह्मा जी पंचमुख थे तो पंचमुखी ब्रह्मा जी के एक मुख ने बाबा भोलेनाथ की निंदा की तो बाबा भोलेनाथ के क्रोध से बाबा काल भैरव का अवतरण हुआ और अपनी तर्जनी उंगली के नाखुन से वो पांचवें मुख को अलग कर दिया तो भोलेनाथ ने उनको कहां कि ये बह्महत्या का दोष इसका प्रायश्चित करो धरती पर जितनी पवित्र नदियां हैं इस मस्तक को स्नान करा लाओ और जहां ये मस्तक तूम्हारे हाथ से उतर जाये वो ही तूम्हारा बह्महत्या का पाप उतर जायेगा और वही आप अपना आसन जमा लेना तो सिर मां गंगा में काशी मे नदी में उनके हाथ से निकल गया और बाबा ने वोही मां गंगा के किनारे अपना आसन जमा लिया था इनको काल भैरव और क्रोध भेरव भी कहां जाता है काशी वंश, वाराणसी में आज भी इनको मदिरा का भोग दिया जाता है ताकि वो शांत रहे उग्र ना हो , बाकी मित्रों पौराणिक कथाओं के अनुसार, माना जाता है कि काल भैरव जी भगवान शिव के क्रोध के कारण उत्पन्न हुए थे. मान्‍यता है कि एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश में इस बात को लेकर स्‍वयं को श्रेष्‍ठ साबित करने को लेकर बहस हुई. तब इस बहस के बीच ब्रह्मा जी ने भगवान शिव की निंदा की, इससे भोले शिव शंकर क्रोधित हो गए. उनके रौद्र रूप के कारण ही काल भैरव जी की उत्पत्ति हुई. काल भैरव ने वहीं सिर काट दिया था. (ब्रह्मा जी की जब उत्पति हुई तब उनके पांच मुख थे और शिव के भी पांच मुख थे. चार दिशाओं में चार और एक ऊपर आकाश की ओर उसके बाद ब्रह्मा के चार मुंह रह गए और शिवजी के आज भी पंच मुख होने के कारण पांच वक्त्र कहे जाते हैं. इससे उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लग गया जिससे बचने के लिए भगवान शिव ने एक उपाय सुझाया. उन्होंने काल भैरव को पृथ्वी लोक पर भेजा और कहा कि जहां भी यह सिर खुद हाथ से गिर जाएगा वहीं उन पर चढ़ा यह पाप मिट जाएगा. जहां वो सिर हाथ से गिरा था वो जगह काशी थी जो शिव की स्थली मानी जाती है. यही कारण है कि आज भी काशी जाने वाला हर श्रद्धालु या पर्यटक काशी विश्वनाथ के साथ साथ काल भैरव के दर्शन भी अवश्य रूप से करता है. और उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है. भय, संकट को दूर करने, राजकोप व लांछन से बचने के लिए श्रद्धालु काल भैरव अष्ठमी का व्रत रखेंगे। अगहन कृष्ण पक्ष अष्ठमी काल भैरव की जयंती के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भैरव की सबसे विशिष्ट पूजा की जाती है मित्रों बाबा काल भैरव को रुद्रावतार माना जाता है और भैरव को शिव का द्वारपाल भी कहा जाता है और श्मशान निवासी श्मशान के राजा भी कहां जाता है और बटूक भैरव को श्मशान का द्वारपाल कहा जाता है और मां महाकाली को श्मशानवासिनी भी कहां जाता है जब भगवान शंकर का अपमान हुआ था, तब सती ने यज्ञ कुंड में कूद कर देह का दहन कर लिया था। इससे कुपित भगवान ने भैरव को यज्ञ ध्वंस के लिए भेजा था। साक्षात काल बनकर भैरव ने तांडव किया था। जानकारों के अनुसार काल भैरव की महत्ता इससे ही समझी जा सकती है कि जहां-जहां ज्योर्तिलिंग और शक्तिपीठ हैं, वहां-वहां काल भैरव को स्थान मिला है। वैष्णो देवी, उज्जैन के महाकालेश्वर, विश्वनाथ मंदिर आदि में काल भैरव मौजूद हैं। शनिवार 27 नवंबर को मनाए जाने वाले काल भैरव अष्टमी के दिन भैरव मंत्र से काल भैरव की उपासना का विधान है। इस दिन श्रद्धालु उपवास करते हैं कई श्रद्धालु सूर्यास्त के बाद कुत्तो भोजन कराकर हुं उपवास तोड़ देते हैं इस दिन भैरव मंत्र ,भैरव नामवली, भैरव चालीसा, का कई बार जप करना चाहिए यानि कम से कम एक हो आठ बार, बाकि जितना किया जाये उतना कम ही है,
परिचय    भैरव,
कालभैरव (शाब्दिक अर्थ- 'जो देखने में भयंकर हो' या जो भय से रक्षा करता है ; भीषण ; भयानक) हिन्दू धर्म में शिव के अवतार माने जाते हैं,
कालभैरव
शिव रुप, श्मशान के राजा , तंत्र उत्पत्ति देवता तंत्र साधना में भक्तों पर प्रसन्न रहने वाले देवता ,इतर योनि यानि, अप्सराओं, यक्षिणीयों की साधना इनके बिना अधुरी है ,
अन्य नाम         दण्डपाणी , स्वस्वा , भैरवीवल्लभ, दंडधारि, भैरवनाथ , बटुकनाथ आदि।
देवनागरी कालभेरव
संस्कृत लिप्यंतरण कालभेरव
संबंध         शिव, रुद्र
मंत्र           ॐ काल भैरवाय नमः
अस्त्र          डंडा, त्रिशूल, डमरू, चँवर, ब्रह्मा का पांचवा शीश और तलवार
दिवस         मंगलवार, बधुवार और गुरूवार, शुक्रवार और रविवार
जीवनसाथी          भैरवी , श्मशान वासनी महाकाली
सवारी           काला कुत्ता
बाबा कालभेरव पूरे भारत के अलावा, श्रीलंका इंण्डोनोसियां और नेपाल के साथ-साथ तिब्बत चीन और कई और देशों में भी अनेक नामों से भेरव बाबा की पुजा की जाती है सनातन धर्म के कई पंथ समुदाय जैसे जैन बौद्ध सिख और भी कई पंथ समुदाय प्रचिलत है जिनमें बाबा कालभैरव की पूजा करते हैं उपासना की दृष्टि से कालभैरव एक दयालु और शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं, तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है। वे इस प्रकार हैं- 
1. असितांग भैरव, 
2. चंड भैरव, 
3. रूरू भैरव,
4. क्रोध भैरव, 
5. उन्मत्त भैरव, 
6. कपाल भैरव, 
7. भीषण भैरव 
8. संहार भैरव। 
 रविवार, शुक्रवार, गुरूवार  बुधवार, मंगलवार या भैरव अष्टमी पर इन 8 नामों का उच्चारण करने से मनचाहा वरदान मिलता है  भैरव बाबा शीघ्र प्रसन्न होते हैं और हर तरह की सिद्धि प्रदान करते हैं क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है, इस दिन सुबह उठकर जल्दी स्नान करें। 
इस दिन काले कपड़े धारण करें। 
भगवान काल भैरव की पूजा करें। 
आसन पर काला कपड़ा बिछाएं,
पूजा में अक्षत, चंदन, काले तिल, काली उड़द, काले कपड़े, धतुरे के फूल का प्रयोग करें,
काल भैरव भगवान को नीले फूल अर्पित करना चाहिए,
पूजा करते समय काल भैरव मंत्र और आरती भी पढ़नी चाहिए, काल भैरव मंत्र
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!काल भैरव आरती
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा।
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।
तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक।
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।
वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी।
महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे।
चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी।
कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।
पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।।
बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें।
कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।।
काल भेरव मंत्र
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!
और मित्रों काल भेरव अष्टमी के पावन दिन मेष से लेकर मीन राशि तक के जातकों को श्री भैरव स्तुती का पाठ करना चाहिए। श्री भैरव स्तुती का पाठ करने से भगवान भैरव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आगे पढ़ें श्री भैरव स्तुति…
श्री भैरव स्तुती
यं यं यं यक्ष रुपं दशदिशिवदनं भूमिकम्पायमानं ।
सं सं सं संहारमूर्ती शुभ मुकुट जटाशेखरम् चन्द्रबिम्बम् ।।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुखं चौर्ध्वरोयं करालं ।
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।1।।
रं रं रं रक्तवर्ण कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्राविशालम् ।
घं घं घं घोर घोष घ घ घ घ घर्घरा घोर नादम् ।।
कं कं कं काल रूपं घगघग घगितं ज्वालितं कामदेहं ।
दं दं दं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।2।।

लं लं लं लम्बदंतं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वकरालं ।
धूं धूं धूं धूम्र वर्ण स्फुट विकृत मुखं मासुरं भीमरूपम् ।।
रूं रूं रूं रुण्डमालं रूधिरमय मुखं ताम्रनेत्रं विशालम् ।
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।3।।

वं वं वं वायुवेगम प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपम् ।
खं खं खं खड्ग हस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करम् भीमरूपम्
चं चं चं चालयन्तं चलचल चलितं चालितं भूत चक्रम् ।
मं मं मं मायाकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।4।।

खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालांधकारम् ।
क्षि क्षि क्षि क्षिप्रवेग दहदह दहन नेत्र संदिप्यमानम् ।।
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहनगर्जित भूमिकम्पं ।
बं बं बं बाललील प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।5।।
मान्‍यता है कि भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की पूजा उपासन करने से भय और अवसाद का अंत होता है और किसी भी कार्य में आ रही बाधा समाप्‍त होती है। कहते हैं कि भगवान शिव के किसी भी मंदिर में पूजा करने के बाद भैरव मंदिर में जाना अनिवार्य होता है। वरना भगवान शिव का दर्शन अधूरा माना जाता है। मान्‍यता है कि मार्गशीर्ष मास के कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी को भगवान शिव ने काल भैरव का रौद्र अवतार लिया था। इसलिए इस दिन को काल भैरव अष्‍टमी के रूप में मनाया जाता है भगवान काल भैरव के बारे में ऐसा कहा जाता है मनुष्‍य के अच्‍छे बुरे कर्मों का हिसाब काल भैरव ही रखते हैं। जीवों का परोपकार करने वालों पर काल भैरव की विशेष कृपा रहती है तो वहीं बुरे कर्म करने वाले और अनैतिक आचरण करने वालों को वह दंड भी देते हैं। मान्‍यता है कि काल भैरव अष्‍टमी के दिन काले कुत्‍ते को भोजन जरूर कराना चाहिए। ऐसा करने से काल भैरव के साथ ही शनि देव की भी कृपा प्राप्‍त होती है और राहु भी अशुभ प्रभाव को दूर करते हैं। काल भैरव की पूजा करने से मन का भय समाप्‍त होता है और किसी भी प्रकार की बुरी नजर का असर समाप्‍त होता है काल भैरव अष्‍टमी के दिन सुबह जल्‍दी उठकर स्‍नान कर लें और सुबह स्‍वच्‍छ वस्‍त्र पहनकर भगवान के शिव के सामने तिल के तेल का दीपक जलाएं। मान्‍यताओं के अनुसार काल भैरव की पूजा रात में की जाती है। काल भैरव अष्‍टमी के दिन शाम के वक्‍त काल भैरव के मंदिर में जाकर पूजा करें और प्रसाद में जलेबी, इमरती, उड़द की दाल, पान और नारियल अर्पित करें और अपनी सभी गलतियों के लिए क्षमा प्रार्थना करें। प्रसाद का कुछ हिस्‍सा काले कुत्‍ते को जरूर डालें  इस दिन पीपल के पेड़ के तले सरसों के तेल का दीपक जरूर जलाएं। कहते हैं ऐसा करने आपके ऊपर से ग्रह बाधा भी समाप्‍त होती है और साथ ही काल भैरव भी प्रसन्‍न होते हैं।
इस दिन भगवान शिव की पूजा करने के लिए 21 बेलपत्रों पर चंदन से ऊं नम: शिवाय लिखें। उसके बाद मन ही मन ऊं जप करते हुए भगवान शिव को एक-एक करके अर्पित करते जाएं। कहते हैं ऐसा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं इस दिन काली वस्‍तुओं का दान करना भी शुभ माना गया है। किसी जरूरमंद को काले जूते या काले वस्‍त्र दान कर सकते हैं 
मित्रों इस दिन क्या करें क्या ना करें आईये कुछ विधान जान लेते हैं
भगवान कालभैरव को तंत्र का देवता माना गया है। तंत्र शास्त्र के अनुसार, किसी भी सिद्धि के लिए भैरव की पूजा अनिवार्य है। इनकी कृपा के बिना तंत्र साधना अधूरी रहती है। इनके 52 रूप माने जाते हैं। लेकिन मनोकामना पूर्ति के लिए 8 प्रमुख रूपों की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं कौन से हैं ये रूप…
कपाल भैरव
इस रूप में भगवान का शरीर चमकीला है, उनकी सवारी हाथी है। कपाल भैरव एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे में तलवार तीसरे में शस्त्र और चौथे में पात्र पकड़े हैं। भैरव के इस रूप की पूजा अर्चना करने से कानूनी मामलों में सफलता मिलती है और फालतू की मुकदमेबाजी से छुटकारा मिलता है। अटके हुए कार्य पूर्ण होते हैं।

क्रोध भैरव

क्रोध भैरव गहरे नीले रंग के शरीर वाले हैं और उनकी तीन आंखें हैं। भगवान के इस रूप का वाहन गरूड़ हैं और ये दक्षिण-पश्चिम दिशा के स्वामी माने जाते हैं। क्रोध भैरव की पूजा-अर्चना करने से सभी परेशानियों और बुरे वक्त से लड़ने की क्षमता बढ़ती है
असितांग भैरव

असितांग भैरव ने गले में सफेद कपालों की माला पहन रखी है और हाथ में भी एक कपाल धारण किए हैं। तीन आंखों वाले असितांग भैरव की सवारी हंस है। भगवान भैरव के इस रूप की पूजा करने से मनुष्य में कलात्मक क्षमताएं बढ़ती है
चंद भैरव

इस रूप में भगवान की तीन आंखें हैं और सवारी मोर है। चंद भैरव एक हाथ में तलवार और दूसरे में पात्र, तीसरे में तीर और चौथे हाथ में धनुष लिए हुए हैं। चंद भैरव की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्‍त होती है। हर बुरी परिस्थिति से लड़ने की क्षमता मिलती है।

गुरु भैरव
गुरु भैरव हाथ में कपाल, कुल्हाड़ी, और तलवार पकड़े हुए हैं। यह भगवान का नग्न रूप है और उनकी सवारी बैल है। गुरु भैरव के शरीर पर सांप लिपटा हुआ है। गुरु भैरव की पूजा करने से अच्छी विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
संहार भैरव

संहार भैरव नग्न रूप में हैं, और उनके सिर पर कपाल स्थापित है। इनकी तीन आंखें हैं और वाहन कुत्ता है। संहार भैरव की आठ भुजाएं हैं और शरीर पर सांप लिपटा हुआ है। इसकी पूजा करने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते हैं।

उन्मत भैरव

उन्मत भैरव शांत स्वभाव का प्रतीक है। इनकी पूजा करने से मनुष्य की सारी नकारात्मकता और बुराइयां खत्म हो जाती हैं। भैरव के इस रूप का स्वरूप भी शांत और सुखद है। उन्मत भैरव के शरीर का रंग हल्का पीला है और उनका वाहन घोड़ा है।

भीषण भैरव

भीषण भैरव की पूजा करने से बुरी आत्माओं और भूत प्रेत के प्रभाव से छुटकारा मिलता है। भीषण भैरव अपने एक हाथ में कमल, दूसरे में त्रिशूल, तीसरे हाथ में तलवार और चौथे में एक पात्र पकड़े हुए हैं। भीषण भैरव का वाहन शेर है
मित्रों सामान्य गृहस्थों को भैरव की पूजा मंदिरों में ही करना चाहिए भैरव का वाहन श्वान है इसलिए भैरव अष्टमी के दिन श्वान का भी पूजन किया जाता है इस दिन श्वानों को भोजन करवाने से भैरव प्रसन्न होते हैं। भैरव अष्टमी के दिन शिव-पार्वती की कथा सुनना चाहिए। भैरव का मुख्य हथियार दंड है। इस कारण इन्हें दंडपति (दण्डपाणि) भी कहते है प्रचलन में बाबा काल भेरव और श्मशान भैरव की पुजा के सातो दिन होते हैं मुख्यत बाबा भैरव का दिन मंगलवार , बुधवार , गुरूवार शुक्रवार और रविवार है इनमें सभी दिन अष्ट भैरव के हिसाब से दिये गये है बाकी भेरव बाबा भोलेनाथ के उग्र अवतार है और बटूक बाबा सौम्य अवतार तो सोमवार और शनिवार को भी इनका दिन माना जा सकता है इन दोनों दिन इनकी पूजा करने से भूत-प्रेम बाधाएं समाप्त होती हैं। सकारात्मक ऊर्जा और शक्ति का संचार होता है
भगवान शिव का रूद्र रूप होने के कारण भैरव अष्टमी के दिन भगवान शिव का पूजन, अभिषेक करने से भैरव की भी कृपा प्राप्त होती है।
भैरव की पूजा करने से शत्रु परास्त होते हैं, संकट दूर होते हैं। भैरव के सच्चे भक्तों को सताने वालों को संसार में कहीं जगह नहीं मिलती।
सारी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भैरव अष्टमी के दिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ऊं नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करने से मनोरथ साकार होते हैं।
भैरव अष्टमी के दिन भगवान भैरव को नारियल और जलेबी का भोग अर्पित करने से धन से जुड़ी परेशानियां दूर होती हैं।
भैरव अष्टमी पर भगवान भैरव को मदिर का भोग लगाने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
इस दिन काले श्वान को ताजी बनी रोटी को घी से चुपड़कर उस पर गुड़ रखकर खिलाने से भैरव प्रसन्न होते हैं।
इस बार भैरव जयंती के दिन शनिवार भी है। इसलिए भैरव पूजन से शनि की पीड़ा भी शांत होती है
कालभैरव अष्टमी के दिन शाम के समय किसी मंदिर में जाकर भगवान भैरव की प्रतिमा के सामने चौमुखा दीपक जलाएं और उनकी पूजा सच्चे मन से करें. भगवान को फूल, इमरती, जलेबी, उड़द, पान, नारियल वगैरह चीजें अर्पित करें. इसके बाद, भगवान के सामने आसन पर बैठकर कालभैरव चालीसा का पाठ जरूर करें. पूजन पूर्ण होने के बाद आरती गान अवश्य करें. साथ ही जानें-अनजाने कोई गलतियों हुई है तो उसकी क्षमा याचना मांगें. और हां मित्रों अगर आपके आस पास अगर कोई भैरव मंदिर ना हो तो पास मे किसी भी शिवमन्दिर में यह पुजा सम्पूर्ण कर सकते हैं
तंत्र साधक का मुख्य कालभैरव भाव से अपने को आत्मसात करना होता है। कोलतार से भी गहरा काला रंग, विशाल प्रलंब, स्थूल शरीर, अंगारकाय त्रिनेत्र, काले डरावने चोगेनुमा वस्त्र, रूद्राक्ष की कण्ठमाला, हाथों में लोहे का भयानक दण्ड , डमरू त्रिशूल और तलवार, गले में नाग , ब्रह्मा का पांचवां सिर , चंवर और काले कुत्ते की सवारी - यह है कालभैरव के रूप की कल्पना
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!
भैरव अष्टमी के दिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से 'ॐ नम: शिवाय' लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं।
भगवान भैरव को प्रसन्न करने के लिए काले कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं। 
भैरव देव के मंदिर में जाकर सिंदूर, सरसों का तेल, नारियल, चना, चिरौंजी, पुए और जलेबी चढ़ाकर भक्ति भाव से पूजन करें
मार्गशीर्ष माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को महाभैरव अष्टमी कहा जाता है. महाभैरव अष्टमी के दिन किसी भैरव मंदिर में जाकर सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए.
प्रसाद पान सुपारी दक्षिणा अर्पित करके भगवान से अपनी रक्षा और सुरक्षा की प्रार्थना करना चाहिए.
यदि कोई व्यक्ति पुलिस और प्रशासनिक मामलों में उलझा हुआ है तो इस दिन से लगातार बटुक भैरव मंत्र का जप और उनका पूजन करने से समस्या शीघ्र समाप्त हो जाती है.
यदि किसी व्यक्ति को शत्रुओं ने परेशान कर रखा है वह व्यक्ति भैरव मंदिर में जाकर पूजन अर्चन करें और बटुक भैरव मंत्र का जप अनुष्ठान करवाएं इससे उसके शत्रुओं का विनाश होता है आप स्वयं भी कर सकते हैं मंत्र जाप ,
ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा
ऊँ श्री बम बम बटुक भैरवाय नमः
यदि कोई व्यक्ति आर्थिक रूप से बहुत परेशान है तो किसी भी भैरव मंदिर में जाकर स्वर्ण आकर्षण भैरव स्त्रोत्र का पाठ करने से उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और कर्ज समाप्त हो जाते हैं यदि लगातार 1 वर्षं तक इस स्त्रोत्र का प्रतिदिन पाठ किया जाए तो बहुत आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त होते हैं.
महा भैरव अष्टमी के दिन किसी भैरव मंदिर से हवन की भस्म लेकर किसी ताबीज में भरकर धारण करने से तंत्र मंत्र आदि की समस्या नहीं होती है.
यदि आपके पास कोई भैरव मंदिर नहीं है तो किसी शिवालय में जाकर पूजन पाठ कर सकते हैं.
कालभैरव अष्टमी को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद कुश (एक प्रकार की घास) के आसन पर बैठ जाएं। सामने भगवान कालभैरव की तस्वीर स्थापित करें व पंचोपचार से विधिवत पूजा करें। इसके बाद रूद्राक्ष की माला से नीचे लिखे मंत्र की कम से कम पांच माला जाप करें तथा भैरव महाराज से सुख-संपत्ति के लिए प्रार्थना करें।
मंत्र- ‘ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:‘
कालभैरव अष्टमी पर किसी ऐसे भैरव मंदिर में जाएं, जहां कम ही लोग जाते हों। वहां जाकर सिंदूर व तेल से भैरव प्रतिमा को चोला चढ़ाएं। इसके बाद नारियल, पुए, जलेबी आदि का भोग लगाएं। मन लगाकर पूजा करें। बाद में जलेबी आदि का प्रसाद बांट दें। याद रखिए अपूज्य भैरव की पूजा से भैरवनाथ विशेष प्रसन्न होते हैं।
कालभैरव अष्टमी को भगवान कालभैरव की विधि-विधान से पूजा करें और नीचे लिखे किसी भी एक मंत्र का जाप करें। कम से कम 11 माला जाप अवश्य करें।
ॐ कालभैरवाय नम:
ॐ भयहरणं च भैरव:
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।
ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्मां
कालभैरव अष्टमी की सुबह भगवान कालभैरव की उपासना करें और शाम के समय सरसों के तेल का दीपक लगाकर समस्याओं से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें।
कालभैरव अष्टमी पर 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ॐ नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। साथ ही, एकमुखी रुद्राक्ष भी अर्पण करें। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।
 कालभैरव अष्टमी को एक रोटी लें। इस रोटी पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली से तेल में डुबोकर लाइन खींचें। यह रोटी किसी भी दो रंग वाले कुत्ते को खाने को दीजिए। इस क्रम को जारी रखें, लेकिन सिर्फ हफ्ते के चार दिन (रविवार, बुधवार व गुरुवार, शुक्रवार)। यही चार दिन भैरवनाथ के माने गए हैं।
अगर आप कर्ज से परेशान हैं तो कालभैरव अष्टमी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद भगवान शिव की पूजा करें। उन्हें बिल्व पत्र अर्पित करें। भगवान शिव के सामने आसन लगाकर रुद्राक्ष की माला लेकर इस मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ॐ ऋणमुक्तेश्वराय नम:
कालभैरव अष्टमी के एक दिन पहले उड़द की दाल के पकौड़े सरसों के तेल में बनाएं और रात भर उन्हें ढंककर रखें। सुबह जल्दी उठकर सुबह 6 से 7 बजे के बीच बिना किसी से कुछ बोलें घर से निकलें और कुत्तों को खिला दें।
 सवा किलो जलेबी भगवान भैरवनाथ को चढ़ाएं और बाद में गरीबों को प्रसाद के रूप में बांट दें। पांच नींबू भैरवजी को चढ़ाएं। किसी कोढ़ी, भिखारी को काला कंबल दान करें।
कालभैरव अष्टमी पर सरसो के तेल में पापड़, पकौड़े, पुए जैसे पकवान तलें और गरीब बस्ती में जाकर बांट दें। घर के पास स्थित किसी भैरव मंदिर में गुलाब, चंदन और गुगल की खुशबूदार 33 अगरबत्ती जलाएं।
सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर भैरवनाथ के मंदिर में कालभैरव अष्टमी पर चढ़ाएं।
कालभैरव अष्टमी की सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान कालभैरव के मंदिर जाएं और इमरती का भोग लगाएं। बाद में यह इमरती दान कर दें। ऐसा करने से भगवान कालभैरव प्रसन्न होते हैं।
कालभैरव अष्टमी को समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाएं और भगवान शिव का जल से अभिषेक करें और उन्हें काले तिल अर्पण करें। इसके बाद मंदिर में कुछ देर बैठकर मन ही मन में ॐ नम: शिवाय मंत्र का जप करें
घर में यदि रसोई में उपयोग होने वाली कोई भी काली सामग्री जैसे तिल, दाल या फिर चाय की पत्ती बेकार हो चुकी है तो उस दिन उसे घर से बाहर फेंकने से बचाव करना चाहिए।
परिवार के सदस्यों को मूंग की दाल का सेवन करने से बचाव करना चाहिए। ध्यान रहे मूंग की दाल से बने हुए पकवान को काल भैरव को अर्पित किया जा सकता है।
भेरव अष्टमी के दिन महिलाओं को घर की सफाई का किसी भी तरह का सामान खरीदने से बचाव करना चाहिए। इन सामानों में झाड़ू पोछा फिनाइल सहित अन्य सामग्रियां शामिल है। ऐसा करने से घर में बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है।
भैरव अष्टमी पर रात को घर में पूरी तरह से अंधेरा नहीं किया जाना चाहिए। खास तौर पर घर का ईशान कोण यानी कि उत्तरी पूर्वी कोना यदि उस रात अंधेरे में रहता है तो घर में वास्तु संबंधी समस्याएं सामने आने लगती हैं।
भैरव अष्टमी के दिन लोगों को और खास तौर से युवाओं को अपने बाल काटने से बचना चाहिए। यदि वे ऐसा करते हैं तो 41 दिन के भीतर उन्हें गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से घिरने की वजह से पूरा परिवार आर्थिक रूप से प्रभावित भी हो सकता है।
भैरव पूजन के दौरान हरे रंग का प्रयोग पूरी तरह से वर्जित माना गया है। वैसे तो हरे रंग का कपड़ा किसी देवताओं के लिए मान्य नहीं है पर ख्याल रखे भैरव अष्टमी के दिन हरे रंग के कपड़ों को पहनकर सूर्य की रोशनी में ना जाए।कल के दिन तो हारगिज नहीं ऐसा करने से नौकरी एवं रोजगार संबंधी क्षेत्र में विवाद उत्पन्न हो सकते हैं।
घरों में खाना खाने के बाद यदि बर्तनों को साफ नहीं किया गया तो उस दिन भैरव जी को जातक नाराज कर सकते हैं। इसलिए यह ख्याल रखें रोज रात को भोजन किए हुए बर्तनों को तुरंत साफ करके रसोई में रखना चाहिए।
मान्यता है कि भैरव अष्टमी के दिन उधार दिया हुआ धन वापस नहीं आता। ऐसे में यदि कुंडली में शुक्र और बुध ग्रह कमजोर है तो उधार देने से बचना चाहिए।
अगर आप अपने आर्थिक रूप से लाभ को और अधिक बढ़ाना चाहते हैं तो आज आपको सुबह स्नान आदि के बाद भैरव जी की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए और उन्हें जलेबी का भोग लगाना चाहिए। साथ ही उनके मंत्र का जाप करना चाहिए। आज ऐसा करने से आपको मिलने वाले आर्थिक लाभ में तेजी से बढ़ोतरी होगी।
अगर आपको जीवन में कोई परेशानी है तो उसे अपने जीवन से दूर करने के लिये आज आपको एक सरसों के तेल में चुपड़ी हुई रोटी लेकर काले कुत्ते को डालनी चाहिए। रोटी पर तेल चुपड़ते समय भैरव का ध्यान करते हुए 5 बार मंत्र का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से आपके जीवन में जो भी परेशानी हैं, वो जल्द ही दूर हो जायेंगी।
अगर आपको अपने बिजनेस पार्टनर से पूरी तरह सहयोग नहीं मिल पा रहा है, जिससे आपके काम पूरे नहीं हो पा रहे हैं तो आज आपको रोटी में शक्कर मिलाकर उसका चूरमा बनाना चाहिए और उससे भैरव बाबा को भोग लगाना चाहिए। साथ ही भैरव मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र जाप के बाद थोड़ा-सा चूरमा प्रसाद के रूप में स्वयं खा लें और बाकी प्रसाद को दूसरे लोगों में बांट दें। आज ऐसा करने से आपको पार्टनर से सहयोग मिलेगा और आपके काम भी जल्द ही पूरे होंगे।
अगर आप अपने बिजनेस को दूर शहरों या विदेशों में फैलाना चाहते हैं तो उसके लिये आज किसी भैरव मन्दिर में जाकर भैरव जी को सवा सौ ग्राम साबुत उड़द चढ़ाएं और चढ़ाने के बाद उसमें से 11 उड़द के दाने गिनकर अलग निकाल लें और उन्हें एक काले कपड़े में बांधकर अपने कार्यस्थल पर तिजोरी में रख दें। साथ ही ध्यान रखें कि दानों को कपड़े में रखते समय हर दाने के साथ ये मंत्र पढ़ें। आज ऐसा करने से आपका बिजनेस दूर शहरों और विदेशों तक फैलेगा।
अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे के ऊपर किसी ने जादू-टोना करवा रखा है, जिसके असर के चलते आपका बच्चा तरक्की नहीं कर पा रहा है तो आज एक मुट्ठी काले तिल लेकर, भैरव बाबा का ध्यान करते हुए अपने बच्चे के सिर से सात बार वार दें। ध्यान रहे छ बार क्लॉक वाइज़ और एक बार एंटी क्लॉक वाइज़ वारना है। वारने के बाद उन तिलों को किसी बहते पानी के स्रोत में प्रवाहित कर दें और तिल प्रवाहित करते समय मंत्र का जाप करें। आज ऐसा करने से आपके बच्चे के सिर से जादू-टोने का असर खत्म होगा और वह तरक्की की ओर कदम बढ़ायेगा।
अगर आपको किसी प्रकार का भय बना रहता है, तो उस भय से छुटकारा पाने के लिये आज आपको भैरव जी के चरणों में एक काले रंग का धागा रखना चाहिए। उस धागे को 5 मिनट के लिये वहीं पर रखा रहने दीजिये और इस दौरान मंत्र का जाप कीजिये। 5 मिनट बाद उस धागे को वहां से उठाकर अपने दायें पैर में बांध लीजिये। आज ये उपाय करने से आपको जल्द ही भय से छुटकारा मिलेगा।     
अगर आपको लगता है कि आपके घर में निगेटिविटी बहुत अधिक हो गई है, जिसकी वजह से आपके परिवार के लोगों का किसी काम में अच्छे से मन नहीं लगता, तो आज आपको मौली से एक लंबा-सा धागा निकालकर, उसमें सात गांठे लगाकर अपने घर के मेन गेट पर बांधना चाहिए। एक-एक गांठ लगाते समय मंत्र का जाप भी करें। आज ऐसा करने से आपके घर से निगेटिविटी दूर होगी और आपके परिवार के लोगों का काम में मन लगने लगेगा।
आप अपने सुख-साधनों में बढ़ोतरी करना चाहते हैं तो आज भैरव जी के आगे मिट्टी के दीपक में सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। साथ ही भैरव जी से अपने सुख-साधनों में बढ़ोतरी के लिये प्रार्थना करनी चाहिए। आज ऐसा करने से आपके सुख-साधनों में बढ़ोतरी होगी।.  
अगर आप जीवन में खुशहाली पाना चाहते हैं तो इसके लिये आज आपको किसी नदी या तालाब में स्नान करना चाहिए और उसके बाद पितरों का तर्पण करना चाहिए। अगर आप किसी नदी या तालाब में न जा सकें तो घर पर ही स्नान के पानी में थोड़ा-सा गंगाजल मिलाकर गंगा नदी का ध्यान करते हुए स्नान कर लें और उसके बाद पितरों के निमित्त तर्पण करें। आज ऐसा करने से आपके जीवन में खुशहाली बनी रहेगी।
अगर आप अपने जीवन में स्थिरता बनाये रखना चाहते हैं तो आज आपको सुबह स्नान के बाद भैरव बाबा को काले तिल अर्पित करने चाहिए। साथ ही घंटी बजाकर भैरव मंत्र बोलते हुए भगवान की पूजा करनी चाहिए। आज ऐसा करने से आपके जीवन में स्थिरता बनी रहेगी और आपके काम भी समय रहते पूरे हो जायेंगे।
अगर आप किसी बात को लेकर दुविधा में पड़े हुए हैं और आप उस दुविधा से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं तो आज आप सात बिल्व पत्र लें और उन्हें साफ पानी से धोकर, उन पर चंदन से ‘ऊं’ लिखें। इसके बाद उन बेल पत्रों को शिवलिंग पर चढ़ा दें और हाथ जोड़कर भगवान शिव को प्रणाम करें। इसके बाद भैरव जी का ध्यान करके उनके मंत्र का जाप करें। आज के करने से आपको अपनी दुविधा से निकलने में आसानी होगी,
अगर आपके जीवनसाथी को किसी प्रकार की परेशानी बनी हुई है, जिसके कारण आप भी परेशान हैं तो आज आपको सुबह उठकर स्नान के बाद शिव जी की प्रतिमा के आगे आसन बिछाकर बैठना चाहिए और शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए। आज ऐसा करने से आपके जीवनसाथी और आपकी परेशानी का हल निकलेगा।
काला कुत्ता भैरव जी की सवारी है अत: इसदिन भैरव अष्टमी के दिन इसे प्रसन्न अवश्य ही करें। भैरव अष्टमी के दिन काले कुत्ते को कच्चा दूध पिलाएं, तथा जलेबी या इमरती भी अवश्य खिलाएं। यह अत्यंत चमत्कारी उपाय है इससे भैरव नाथ अति शीघ्र ही प्रसन्न होते है।
बाबा कालभैरव कुत्ते पर सवार होते हैं और बुरे कार्य करने वाले को दंडित करने के लिए एक छड़ी भी रखते हैं। भक्त बाबा कालभेरव अष्टमी की शुभ संध्या पर भगवान कालभैरव की पूजा करते हैं ताकि सफलता और अच्छे स्वास्थ्य के साथ-साथ सभी अतीत और वर्तमान के पापों से छुटकारा पा सकें। यह भी माना जाता है कि, बाबा कालभैरव की पूजा करने से, भक्त अपने सभी ‘शनि’ और ‘राहु’ दोषों को समाप्त कर सकते हैं।

काल भैरव सिद्धि मंत्र
"ह्रीं बटुकाय अपुधरायणं कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं।"
"ओम ह्रीं वम वटुकरसा आपुद्दुर्धका वतुकाया ह्रीं"
"ओम ह्रीं ह्रीं ह्रौं ह्रीं ह्रौं क्षाम क्षिप्रपलाय काल भैरवाय नमः"
मित्रों यदि आप धन संबंधित समस्या से त्रस्त है तो कालाष्टमी के दिन किसी भी भैरव मंदिर में जाएं, भैरव बाबा को चमेली का तेल चढ़ाएं और सिंदूर भी अर्पित करें. इससे धन आगमन के विभिन्न रास्ते खुलेंगे और सुख-समृद्धि का वास भी घर में वास होगा. इसके अलावा मनोवांछित फल की प्राप्ति हेतु आप नींबू की माला भी उन्हें अर्पित कर सकते हैं.
और मित्रों यदि आप किसी प्रकार की नकारात्मक शक्ति से आप परेशान है तो कालाष्टमी के दिन 11 रूपए या क्षमता अनुसार पैसे चढ़ाएं और काले तिल, काले उड़द व काले कपड़े मंदिर जाकर भगवान भैरव को अर्पित करें. इससे नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती है.
काल-भैरव का उपवास करने वालों को सुबह नहा-धोकर पितरों को श्राद्ध व तर्पण देने के बाद भगवान काल भैरव की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
व्रती को पूरे दिन उपवास करना चाहिए और रात्रि के समय धूप, दीप, धूप,काले तिल,उड़द, सरसों के तेल का दिया बनाकर भगवान काल भैरव की आरती गानी चाहिए।
मान्यता के अनुसार, भगवान काल भैरव का वाहन कुत्ता है इसलिए जब व्रती व्रत खोलें तो उसे अपने हाथ से कुछ पकवान बनाकर सबसे पहले कुत्ते को भोग लगाना चाहिए।
ऐसा करने से भगवान काल भैरव की कृपा आती है. पूरे मन से काल भैरव भगवान के पूजा करने पर भूत, पिचाश, प्रेत और जीवन में आने वाली सभी बाधाएं अपने आप ही दूर हो जाती हैं।
कालाष्टमी को कालभैरव जयंती के रूप में भी जाना जाता है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव भैरव के रूप में प्रकट हुए थे। भक्त इस दिन शिव की पूजा करने के साथ ही उनके लिए उपवास रखते हैं। यह शिव भक्तों के लिए सचमुच ही बड़ा दिन है।
मित्रों ये उपाय ऊपर भी पहले दिये जा चूके पोस्ट लम्बी होने की वजह से दुबारा दे रहे हैं ।रविवार, बुधवार या गुरुवार , शुक्रवार के दिन एक रोटी लें। इस रोटी पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली से तेल में डुबोकर लाइन खींचें। यह रोटी किसी भी दो रंग वाले कुत्ते को खाने को दीजिए। अगर कुत्ता यह रोटी खा लें तो समझिए आपको भैरव नाथ का आशीर्वाद मिल गया। अगर कुत्ता रोटी सूंघ कर आगे बढ़ जाए तो इस क्रम को जारी रखें लेकिन सिर्फ हफ्ते के इन्हीं चार दिनों में (रविवार, बुधवार या गुरुवार , शुक्रवार)। यही चार दिन भैरव नाथ के माने गए हैं। 
 उड़द के पकौड़े शनिवार की रात को कड़वे तेल में बनाएं और रात भर उन्हें ढंककर रखें। सुबह जल्दी उठकर प्रात: 6 से 7 के बीच बिना किसी से कुछ बोलें घर से निकले और रास्ते में मिलने वाले पहले कुत्ते को खिलाएं। याद रखें पकौड़े डालने के बाद कुत्ते को पलट कर ना देखें। यह प्रयोग सिर्फ रविवार के लिए हैं।
शनिवार के दिन शहर के किसी भी ऐसे भैरव नाथ जी का मंदिर खोजें जिन्हें लोगों ने पूजना लगभग छोड़ दिया हो। रविवार की सुबह सिंदूर, तेल, नारियल, पुए और जलेबी लेकर पहुंच जाएं। मन लगाकर उनकी पूजन करें। बाद में 5 से लेकर 7 साल तक के बटुकों यानी लड़कों को चने-चिरौंजी का प्रसाद बांट दें। साथ लाए जलेबी, नारियल, पुए आदि भी उन्हें बांटे। याद रखिए कि अपूज्य भैरव की पूजा से भैरवनाथ विशेष प्रसन्न होते हैं।
प्रति गुरुवार शुक्रवार को कुत्ते को गुड़ खिलाएं। 
 रेलवे स्टेशन पर जाकर किसी कोढ़ी, भिखारी को मदिरा की बोतल दान करें। 
 सवा किलो जलेबी बुधवार के दिन भैरव नाथ को चढ़ाएं और कुत्तों को खिलाएं। 
  शनिवार के दिन कड़वे तेल में पापड़, पकौड़े, पुए जैसे विविध पकवान तलें और रविवार को गरीब बस्ती में जाकर बांट दें। 
 रविवार या शुक्रवार को किसी भी भैरव मं‍दिर में गुलाब, चंदन और गुगल की खुशबूदार 33 अगरबत्ती जलाएं। 
 पांच नींबू, पांच गुरुवार तक भैरव जी को चढ़ाएं। 
 सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर भैरव नाथ के मंदिर में बुधवार के दिन चढ़ाएं।
काल भैरव : काल भैरव का आविर्भाव मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था। यह भगवान का साहसिक युवा रूप है। उक्त रूप की आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय की प्राप्ति होती है। व्यक्ति में साहस का संचार होता है। सभी तरह के भय से मुक्ति मिलती है। काल भैरव को शंकर का रुद्रावतार माना जाता है।
 
काल भैरव की आराधना के लिए मंत्र है- ।। ॐ भैरवाय नम:।।

बटुक भैरव : 'बटुकाख्यस्य देवस्य भैरवस्य महात्मन:। ब्रह्मा विष्णु, महेशाधैर्वन्दित दयानिधे।।'
- अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, महेशादि देवों द्वारा वंदित बटुक नाम से प्रसिद्ध इन भैरव देव की उपासना कल्पवृक्ष के समान फलदायी है। बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है। इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं। उक्त सौम्य स्वरूप की आराधना शीघ्र फलदायी है। यह कार्य में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। 
 
उक्त आराधना के लिए मंत्र है- ।।ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ।।
 
भैरव तंत्र : योग में जिसे समाधि पद कहा गया है, भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने देवी के समक्ष 112 विधियों का उल्लेख किया है जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है।
भैरव आराधना से शनि शांत : एकमात्र भैरव की आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत होता है। आराधना का दिन रविवार और मंगलवार नियुक्त है। पुराणों के अनुसार भाद्रपद माह को भैरव पूजा के लिए अति उत्तम माना गया है। उक्त माह के रविवार को बड़ा रविवार मानते हुए व्रत रखते हैं। आराधना से पूर्व जान लें कि कुत्ते को कभी दुत्कारे नहीं बल्कि उसे भरपेट भोजन कराएं। जुआ, सट्टा, शराब, ब्याजखोरी, अनैतिक कृत्य आदि आदतों से दूर रहें। दांत और आंत साफ रखें। पवित्र होकर ही सात्विक आराधना करें। अपवि‍त्रता वर्जित है।
भैरव चरित्र : भैरव के चरित्र का भयावह चित्रण कर तथा घिनौनी तांत्रिक क्रियाएं कर लोगों में उनके प्रति एक डर और उपेक्षा का भाव भरने वाले तांत्रिकों और अन्य पूजकों को भगवान भैरव माफ करें। दरअसल भैरव वैसे नहीं है जैसा कि उनका चित्रण किया गया है। वे मांस और मदिरा से दूर रहने वाले शिव और दुर्गा के भक्त हैं। उनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक है नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभीउनका कार्य है शिव की नगरी काशी की सुरक्षा करना और समाज के अपराधियों को पकड़कर दंड के लिए प्रस्तुत करना। जैसे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जिसके पास जासूसी कुत्ता होता है। उक्त अधिकारी का जो कार्य होता है वही भगवान भैरव का कार्य है नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी,जय मां बाबा की 🌹🙏🏻
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹🙏🏻

Monday, November 1, 2021

दीपावली पर क्या करें क्या ना करें

दीपावली पर क्या करें क्या ना करें

मित्रों जैसा आप जानते हैं कि धनतेरस ,रुप चुतर्दशी और दिपावली पर कई साधानाएं और तांत्रिक टोटको द्वारा भी पुजा विधान किया जाता है कई साधक भक्त अपनी या गुरूओ के वचनों अनुसार पुजा और साधना कर्म करते हैं तो सरलीकरण विधी से आम ग्रहस्थ और साधारण इंसान भी सौम्य साधनाएं और टोटके कर सकते हैं मित्रों धनतेरस से भाई दूज तक करीब 5 दिनों तक चलने वाला दिवाली का त्यौहार कार्तिक माह की अमावस्या को आाता है अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार यह त्योहार 4 नबंबर 2021 गुरुवार को मनाया जाएगा और इसके एक दिन पहले धनतेरस और एक दिन बाद भाईदूज का त्योहार रहेगा ,
मित्रों रात को 12 बजे दीपावली पूजन के बाद चूने या गेरू में रुई भिगोकर चक्की, चूल्हा, सिल तथा छाज (सूप) पर तिलक करें.
पूजा जप तप के दौरान दीपको से काजलो जरूर ले और दीपकों का काजल स्त्री और पुरुष अपनी आंखों पर जरूर लगाएं अपने घरो के मुख्य दरवाजो पर बाहर ॐ या स्वास्तिक जरूर बनाएं,
दीपावली के दूसरे दिन सुबह 4 बजे उठकर पुराने छाज में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाते समय ‘लक्ष्मी-लक्ष्मी आओ, दरिद्र-दरिद्र जाओ’ कहने की मान्यता है. इससे घर की दरिद्रता दूर होती है ,दिवाली में पूजा के लिए सबसे पहले पूजा का संकल्प लें,
दिवाली के दिन भगवान कुबेर, भगवान गणेश, माता लक्ष्मी, माता सरस्वती की पूजा मुख्य रूप से करें
एक लकड़ी की चौकी लेकर उसमे लाल कपड़ा बिछाएं
फिर 1 मुट्ठी अनाज चौकी पर रखें और उसके ऊपर जल से भरा एक कलश रखें,
कलश में एक सुपारी, एक चांदी का सिक्का और एक फूल डालें।
आम के पत्ते कलश पर डाल कर उसके ऊपर लाल कपड़े में लपेट कर एक जटा नारियल स्थापित कर दें और उनकी प्रतिमा के समक्ष 7,11 या 21 दीपक जलाएं,
ॐ श्री श्री नमः का 11 बार या एक माला जाप करें,
श्री यंत्र की पूजा करें और इसे उत्तर पूर्व दिशा में रखें इस दिन देवी सूक्त का पाठ अवश्य करें पूजा के अंत में गणेश जी की और मां लक्ष्मी (मां लक्ष्मी को इन चीज़ों का लगाएं भोग) की आरती करें दीपावली के दिन देवी लक्ष्मी को सिंघाड़ा और अनार का भोग लगाना शुभ माना जाता है।
कुछ लोग पूजा के दौरान सीताफल को रखना भी शुभ मानते है इस दिन आप पूजा में गन्ना भी रख सकते हैं। भोग के रूप में देवी लक्ष्मी को हलवा और खीर और गणेश जी को लड्डुओं का भोग लगाया जाता है, मित्रों कुछ बातों का विशेष ख्याल रखें जैसे, चटका या टूटा हुआ कांच घर में रखना अशुभ माना जाता है। कहा जाता है कि कांच की टूटी हुई चीजों से घर में निगेटिव एनर्जी आती है ऐसे में अगर आपके घर में भी कहीं खिड़की, बल्ब या फेस मिरर का कांच टूटा हुआ या चटका भी हो तो उसे इस बार दिपावाली की सफाई में बदलवा दें,दीवार पर टांगने वाली घड़ी हो या कलाई में पहनने वाली, इसका बंद होना अशुभ माना जाता है। घड़ी को सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है कहा जाता है कि घड़ी के बंद होने से किस्मत भी बंद हो जाती है। अगर आपके घर में भी बंद घड़ी पड़ी हुई है तो उसे दिवाली से पहले बाहर फेंक दें, घर में कभी भी देवी देवताओं की टूटी मूर्ति नहीं रखनी चाहिए,माना जाता है कि ऐसी मूर्तियां घर में दुर्भाग्य लाती हैं ऐसे में अगर आपके घर में भी टूटी या पूरानी मूर्तियां हैं तो इस दिवाली सफाई करने के साथ ही भगवान की नई मूर्ति घर के मंदिर में स्थापित करें और पुरानी मूर्ति को कहीं विसर्जित कर दें, अगर आपने घर में फटे-पुराने जूते चप्पल को अभी तक रखा है तो दिवाली की सफाई करते समय उन्हें बाहर निकाल दें कहा जाता है कि फटे जूते और चप्पल घर में नकारात्मकता और दुर्भाग्य लाते हैं, ऐसा माना जाता है कि रसोई में कभी भी टूटे हुए बर्तन नहीं रखने चाहिए और न ही किसी को टूटे बर्तन में खाना परोसना चाहिए टूटे बर्तनों को घर में रखना अशुभ माना जाता है ऐसे बर्तनों में खाना खाने से घर में दरिद्रता बढ़ती है। तो इस दिवाली सफाई के दौरान अपने घर से टूटे या चटके हुए बर्तनों को बाहर निकाल दें नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी, इस दिन मां लक्ष्मी जी और बाबा गणेश जी की पुजा विधी के बाद आप निशाकाल को अपने आराध्य देव या देवी का जाप हवन कर सकते हैं और अपने जपे हुये मंत्रो और गुरू मंत्र का पुनश्चरण कर सकते हैं हवन जप के साथ अपनी गुरू क्रिया को भी दुहरा सकते हैं ,, अपने आस पास कोई दिव्य स्थान हो तो वहां भी इन पांच दिनों तक रोज दीपक जलाये इनके अलावा पीपल , आंवला,समी, वटवृक्ष, के जड़ों में दीपक जलाये और अपने परिवार के लिए खुशहाली की कामना करे ध्यान रहे यह सभी क्रियाएं निशाकाल में हो 🌹🙏🏻
जय मां जय हो बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹🙏🏻

दिपावली पूजन का सरल विधान और समाग्री , कैसे करें पुजा,

मित्रों दिपावली सनातन धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार है आईये जानते हैं इसकी पुजा विधी और मुर्हुत और पुजा कैसे करें और क्या समाग्री चाहिए,,

मित्रों कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दीपों का पर्व दिपावाली मनाया जाता है. मित्रों इस वर्ष गुरुवार 4 नवंबर 2021 को ये त्योहार मनाया जाएगा. दिपावाली पर मां लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन करने का विधान है. इस साल एक ही राशि में चार ग्रहों के होने से दिपावाली पर दुर्लभ संयोग भी बन रहा है. आईये मित्रों वो क्या दुर्लभ सयोग है कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या 4 नंवबर 2021 दिन गुरुवार को दिवाली मनाई जाएगी है. इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी और भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है. इस साल दिवाली पर दुर्लभ संयोग बन रहा है.  सनातनी पंचांग और ज्योतिषाचार्या के अुनसार चार ग्रह एक ही राशि में हैं, यानि एक ही राशि में इन चारों ग्रहों की युति है. इस वजह से ये दिपावाली लोगों के लिए अत्यंत शुभ रहेगी. देवु मां लक्ष्मी और बाबा गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होगा और जातकों को लाभ ही लाभ होगा.तुला राशि के स्वामी शुक्र हैं. लक्ष्मी जी की पूजा से शुक्र ग्रह की शुभता में वृद्धि होती है. ज्योतिषचार्यो के और हिन्दू शास्त्रों के अनुसार शुक्र को लग्जरी लाइफ, सुख-सुविधाओं आदि का कारक माना गया है. वहीं सूर्य को ग्रहों का राजा, मंगल को ग्रहों का सेनापति और बुध को ग्रहों का राजकुमार कहा गया है. इसके साथ ही चंद्रमा को मन का कारक माना गया है. वहीं सूर्य पिता तो चंद्रमा को माता कारक माना गया है , दिवाली का पर्व आने वाला है, इस पर्व में अब कुछ ही तीन चार दिन ही शेष है और हम पोस्ट लेट करने के लिए क्षमा चाहते हैं, दिपावाली की तैयारियां सभी घरों में आरंभ हो चुकी है. दिपावाली का पर्व कार्तिक मास का प्रमुख पर्व है. दिपावाली पर लक्ष्मी जी की विशेष पूजा की जाती है. दिपावाली पर लक्ष्मी पूजन को महत्वपूर्ण माना गया है. ये पर्व लक्ष्मी जी को समर्पित है. इस दिन शुभ मुहूर्त में विधि पूर्वक लक्ष्मी जी की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है. इस वर्ष दिपावाली के दिन लक्ष्मी पूजन का शुभ योग में किया जाएगा. दिवाली पूजन का महत्व दिवाली पर लक्ष्मी पूजन जीवन में आने वाली आर्थिक परेशानियों को दूर करना वाला माना गया है. शास्त्रों में लक्ष्मी जी को वैभव की देवी माना गया है. लक्ष्मी जी की कृपा से जीवन में संपन्नता आती है. कष्टों से मुक्ति मिलती है. मान्यता है कि दिवाली की रात शुभ मुहूर्त में पूजा करने से लक्ष्मी जी की विशेष कृपा प्राप्तत होती है. यही कारण है दिपावाली की पूजा का लोगों को इंतजार रहता है. 
पंचांग के अनुसार दिवाली का पर्व कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है. 
सनातनी हिंदू कैंलेडर के अनुसार इस वर्ष कार्तिक अमावस्या 4 नवंबर 2021 को है. इस दिन चंद्रमा का गोचर तुला राशि में होगा.
दिपावाली 2021, शुभ मुहूर्त (Dipawali 2021)
दिपावाली पर्व: 4 नवंबर, 2021, गुरुवार
अमावस्या तिथि का प्रारम्भ: 4 नवंबर 2021 को प्रात: 06:03 बजे से.
अमावस्या तिथि का समापन: 5 नवंबर 2021 को प्रात: 02:44 बजे तक.
मां लक्ष्मी पूजन मुहूर्त (maa Lakshmi Puja 2021 Date)
4 नवंबर 2021, गुरुवार, शाम 06 बजकर 09 मिनट से रात्रि 08 बजकर 20 मिनट
अवधि: 1 घंटे 55 मिनट
प्रदोष काल: 17:34:09 से 20:10:27 तक
वृषभ काल: 18:10:29 से 20:06:20 तक
भारतीय या जगह स्थान काल दिशा के अनुसार कुछ समय आगे पीछे हो सकता है,
दीपावली 2021 शुभ मुहूर्त
दीपावली 04 नवंबर 2021, दिन गुरूवार को है।
लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त
शाम 06:10 बजे से रात्रि 08:06 बजे तक
पूजा की अवधि
01 घंटा 54 मिनट
प्रदोष काल मुहूर्त
शाम 05:34 बजे से रात्रि 08:10 बजे तक
अमावस्या तिथि प्रारंभ
04 नवबंर 2021, सुबह 06:03 बजे से
अमावस्या तिथि समाप्त
05 नवबंर 2021, 02:44 बजे
दिपावली पुजा की समाग्री और सरलीकरण पुजा विधान, समाग्री और पुजा विधान सही से पढ़कर समाग्री की व्यवस्था कर सकते हैं 
एक लकड़ी की चौकी.
चौकी को ढकने के लिए लाल या पीला कपड़ा.
देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्तियां/चित्र.
कुमकुम
चंदन
हल्दी
रोली
अक्षत
पान और सुपारी
साबुत नारियल अपनी भूसी के साथ
अगरबत्ती
दीपक के लिए घी
पीतल का दीपक या मिट्टी का दीपक
कपास की बत्ती
पंचामृत
गंगाजल
पुष्प
फल
कलश
जल
आम के पत्ते
कपूर
कलाव
साबुत गेहूं के दाने
दूर्वा घास
जनेऊ
धूप
एक छोटी झाड़ू
दक्षिणा (नोट और सिक्के)
आरती थाली
मित्रों दिपावाली की सफाई बहुत जरूरी है. अपने घर के हर कोने को साफ करने के बाद गंगाजल गोमुत्र जरूर छिड़कें हो सके तो इनके साथ बाबा हनुमान जी का चरणामृत भी मिला सकते हैं या किसी तीर्थ स्थान का या किसी सिद्ध पीठ का चरणामृत भी मिला सकते हैं नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी,
लकड़ी की चौकी पर लाल सूती कपड़ा बिछाएं. बीच में मुट्ठी भर अनाज रखें,
कलश (चांदी/कांस्य का बर्तन) को अनाज के बीच में रखें.
कलश में 75% पानी भरकर एक सुपारी (सुपारी), गेंदे का फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने डाल दें.
कलश पर 5 आम के पत्ते गोलाकार आकार में रखें.
केंद्र में देवी लक्ष्मी की मूर्ति और कलश के दाहिनी ओर (दक्षिण-पश्चिम दिशा) में भगवान गणेश की मूर्ति रखें.
एक छोटी थाली लें और चावल के दानों का एक छोटा सा पहाड़ बनाएं,
हल्दी से कमल का फूल बनाएं, कुछ सिक्के डालें और मूर्ति के सामने रखें.
अब अपने व्यापार/लेखा पुस्तक और अन्य धन/व्यवसाय से संबंधित वस्तुओं को मूर्ति के सामने रखें साधक या भक्त अपने माला कवच कडे भी रख सकते हैं ,
अब देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश को तिलक करें और दीपक जलाएं. कलश पर भी तिलक लगाएं.
अब भगवान गणेश और लक्ष्मी को फूल चढ़ाएं. पूजा के लिए अपनी हथेली में कुछ फूल रखें.
अपनी आंखें बंद करें और दिवाली पूजा मंत्र का पाठ करें.
हथेली में रखे फूल को भगवान गणेश और लक्ष्मी जी को चढ़ा दें.
लक्ष्मीजी की मूर्ति लें और उसे पानी से स्नान कराएं और उसके बाद पंचामृत से स्नान कराएं.
इसे फिर से पानी से स्नान कराएं, एक साफ कपड़े से पोछें और वापस रख दें.
मूर्ति पर हल्दी, कुमकुम और चावल डालें. माला को देवी के गले में लगाएं. अगरबत्ती जलाएं.
नारियल, सुपारी, पान का पत्ता माता को अर्पित करें.
देवी की मूर्ति के सामने कुछ फूल और सिक्के रखें.
थाली में दीया लें, पूजा की घंटी बजाएं और लक्ष्मी जी की आरती करें.
#विशेष,,
दिपावाली पर ध्यान रखें ये खास बातें
लक्ष्मी पूजन की सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए.
मां लक्ष्मी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय हैं. फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं. इनका भोग जरूर लगाएं सुगंध में केवड़ा गुलाब, चंदन के इत्र का इस्तेमाल महालक्ष्मी पूजन में जरूर करें. अनाज में चावल और मिठाई में घर में शुद्ध घी से बनी केसर की मिठाई या हलवा नैवेद्य में जरूर रखें. व्यावसायिक प्रतिष्ठान और गद्दी की भी विधि पूर्वक पूजा करें. लक्ष्मी पूजन रात के 12 बजे करने का विशेष महत्व होता है. धन की देवी लक्ष्मी जी को प्रसन्न करना है तो दीयों के प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल के तेल का इस्तेमाल करें. देरे के लिए क्षमा मित्रों नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर,,
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹🙏🏻

धनतेरस पर सरल टोटके और उपाय कैसे करें,

मित्रों धनतेरस पर क्या करें क्या ना करें उपाय और टोटके,
मित्रों इस धनतेरस के दिन त्रिपुष्कर योग बन रहा है ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि इस योग में जो भी कार्य करते हैं, उसका तिगुना फल प्राप्त होता है इसलिए इस दिन कोई भी बुरा कार्य करने से बचना चाहिए वहीं इस दिन यदि शुभ कार्य करते हैं तो उसका भी तीन गुना फल प्राप्त होगा इसलिए इस दिन आप धन का निवेश करके लाभ कमा सकते है  शेयर बाजार में निवेश करके भी इस दौरान लाभ अर्जित कर पाएंगे स्वर्ण और चांदी धातु में निवेश करना भी शुभ होगा, इस धनतेरस के दिन एक अन्य शुभ संयोग 3 ग्रहों ने मिलकर बनाया है सूर्य, मंगल और बुध ग्रह धनतेरस के दिन तुला राशि में गोचर करेंगे  बुध और मंगल मिलकर एक धन योग का निर्माण करते हैं, वहीं सूर्य-बुध की युति से बुधादित्य योग का निर्माण होगा इस योग को राजयोग की श्रेणी में भी रखा गया है। वहीं यह योग तुला राशि में बन रहा है, जो व्यापार की कारक राशि मानी जाती है मंगल-बुध की युति को व्यापार के लिए बहुत शुभ माना जाता है इसलिए कारोबारी इस दिन निवेश करके या नयी योजनाओं को लागू करके आने वाले समय में आर्थिक रूप से सशक्त बन सकते हैं, मित्रों इस धनतेरस पर भौम प्रदोष व्रत भी है, इस दिन भगवान शिव और हनुमानजी की पूजा आराधना करना भी बहुत शुभ माना जाता है भौम प्रदोष व्रत के साथ धनतेरस के दिन 11 बजकर 31 मिनट के बाद चतुर्दशी तिथि है माना जाता है कि चतुर्दशी तिथि को ही हनुमान जी का जन्म हुआ था, इसलिए धनतेरस पर इसे भी शुभ संयोग माना जा रहा है हालांकि हनुमान जयंती 3 तारीख को मनाई जाएगी क्योंकि 3 तारीख को 9 बजे के बाद से चतुर्दशी तिथि लग रही है हालांकि सूर्योदय काल में चतुर्दशी तिथि नहीं होने के कारण इस बार चतुर्दशी तिथि का क्षय हो गया है धनतेरस पर बुध संक्रांति
धनतेरस के दिन बुध ग्रह का गोचर तुला राशि में होने वाला है, इसलिए इस दिन को बुध संक्रांति के रूप में भी जाना जा रहा है। बुध को ज्योतिष विज्ञान में व्यापार और बुद्धि का कारक ग्रह माना जाता है वहीं तुला राशि व्यापार और कारोबार से संबंधित राशि मानी गई हैं इसलिए धनतेरस के दिन बुध के गोचर को कारोबारियों के लिए बहुत शुभ माना जा रहा है,
इस दिन क्या करे क्या ना करें

नहीं तो हो सकता है नुकसान
धनतेरस पर बन रहे इन शुभ संयोगों में अगर निवेश करें या नई योजनाएं बनाएंगे तो फायदा मिल सकता है इसके साथ ही इस दिन दान पुण्य करने से भी सकारात्मक फल मिल सकते हैं लेकिन गलती से भी आर्थिक मामलों में कोई गलत निर्णय न लें नहीं तो नुकसान भी हो सकता है
मित्रों इस दिन उपवास रहकर यमराज की कथा का श्रवण भी करते हैं। आज से ही तीन दिन तक चलने वाला गो-त्रिरात्र व्रत भी शुरू होता है,
1 ,इस दिन धन्वंतरि जी का पूजन करें,
 2, नवीन झाडू एवं सूपड़ा खरीदकर उनका पूजन करें,
3,सायंकाल दीपक प्रज्वलित कर घर, दुकान आदि को श्रृंगारित करें,
 4,मंदिर, गौशाला, नदी के घाट, कुओं, तालाब, बगीचों में भी दीपक लगाएं,
5, यथाशक्ति तांबे, पीतल, चांदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण क्रय करते हैं
 6, हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर तीन बार अपने शरीर पर फेरें
 7, कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, बावड़ी, कुआं, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाएं,
 8,कुबेर पूजन करें। शुभ मुहूर्त में अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान में नई गादी बिछाएं अथवा पुरानी गादी को ही साफ कर पुनः स्थापित करें। पश्चात नवीन वस्त्र बिछाएं,
 9,सायंकाल पश्चात तेरह दीपक प्रज्वलित कर तिजोरी में कुबेर का पूजन करें,
 10,निम्न ध्यान मंत्र बोलकर भगवान कुबेर पर फूल चढ़ाएं -
 श्रेष्ठ विमान पर विराजमान, गरुड़मणि के समान आभावाले, दोनों हाथों में गदा एवं वर धारण करने वाले, सिर पर श्रेष्ठ मुकुट से अलंकृत तुंदिल शरीर वाले, भगवान शिव के प्रिय मित्र निधीश्वर कुबेर का मैं ध्यान करता हूं,
 इसके पश्चात निम्न मंत्र द्वारा चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें -
 'यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये 
धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।' 
 इसके पश्चात कपूर से आरती उतारकर मंत्र पुष्पांजलि अर्पित करें,
 11,यम के निमित्त दीपदान करें,
 12,तेरस के सायंकाल किसी पात्र में तिल के तेल से युक्त दीपक प्रज्वलित करें
 13,पश्चात गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन कर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके यम से निम्न प्रार्थना करें-
 'मृत्युना दंडपाशाभ्याम्‌ कालेन श्यामया सह। 
त्रयोदश्यां दीपदानात्‌ सूर्यजः प्रयतां मम। 
 अब उन दीपकों से यम की प्रसन्नता के लिए सार्वजनिक स्थलों को प्रकाशित करें
14,धनतेरस या दीपावली की शाम को मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करें और उसके बाद मां लक्ष्मी के चरणों में सात लक्ष्मीकारक कौडिय़ां रखें, आधी रात के बाद इन कौडिय़ों को घर के किसी कोने में गाड़ दें इस प्रयोग से शीघ्र ही आर्थिक उन्नति होने के योग बनेंगे
14, धन लाभ चाहने वाले लोगों के लिए कुबेर यंत्र मंत्र अत्यन्त सफलतादायक है, एक बार फिर से देख लिजिए धनतेरस या दीपावली के दिन बिल्व-वृक्ष के नीचे बैठकर इस यंत्र को सामने रखकर कुबेर मंत्र को शुद्धता पूर्वक जाप करने से यंत्र सिद्ध होता है तथा यंत्र सिद्ध होने के पश्चात इसे गल्ले या तिजोरी में स्थापित किया जाता है। इसके स्थापना के पश्चात् दरिद्रता का नाश होकर, प्रचुर धन व यश की प्राप्ति होती हैमंत्रऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन्य धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि में देहित दापय स्वाहा
16, धनतेरस या दीपावली पर महालक्ष्मी यंत्र का पूजन कर विधि-विधान पूर्वक इसकी स्थापना करें यह यंत्र धन वृद्धि के लिए अधिक उपयोगी माना गया है। कम समय में ज्यादा धन वृद्धि के लिए यह यंत्र अत्यन्त उपयोगी है इस यंत्र का प्रयोग दरिद्रता का नाश करता है यह स्वर्ण वर्षा करने वाला यंत्र कहा गया है इसकी कृपा से गरीब व्यक्ति भी एकाएक अमीर बन सकता है
17, पुराने चांदी के सिक्के और रुपयों के साथ कौड़ी रखकर उनका लक्ष्मी पूजन के समय केसर और हल्दी से पूजन करें पूजा के बाद इन्हे तिजोरी में रख दें इस उपाय से बरकत बढ़ती है,
18, धनतेरस या दीपावली की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कामों से निपट कर किसी लक्ष्मी मंदिर में जाएं और मां लक्ष्मी को कमल के फूल अर्पित करें और सफेद रंग की मिठाई का भोग लगाएं मां लक्ष्मी से धन संबंधी समस्याओं के निवारण के लिए प्रार्थना करें। कुछ ही समय में आपकी समस्या का समाधान हो सकता है,
19,धनतेरस या दीपावली की शाम को घर के ईशान कोण में गाय के घी का दीपक लगाएं बत्ती में रुई के स्थान पर लाल रंग के धागे का उपयोग करें, साथ ही दीए में थोड़ी सी केसर भी डाल दें, इस उपाय से भी धन का आगमन होने लगता है,
21, धनतेरस या दीपावली को विधिवत पूजा के बाद चांदी से निर्मित लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति को घर के पूजा स्थल पर रखना चाहिए, इसके बाद प्रतिदिन इनकी पूजा करने से घर में कभी धन की कमी नहीं होती और घर में सुख-शांति भी बनी रहती है,
21, श्रीकनकधारा धन प्राप्ति व दरिद्रता दूर करने के लिए अचूक यंत्र है इसकी पूजा से हर मनचाहा काम हो जाता है यह यंत्र अष्टसिद्धि व नवनिधियों को देने वाला है इसका पूजन व स्थापना भी धनतेरस या दीपावली के दिन करें,और 
नमक : धनतेरस पर नमक का नया पैकेट खरीदें। खाना बनाने में नया नमक ही प्रयोग करें। इससे धन की आवक में वृद्धि होगी। घर के उत्तर पूर्व कोने में थोड़ा सा नमक कटोरी अथवा छोटी डिब्बी में डालकर रख सकते हैं। इससे घर की नकारात्मकता खत्म होगी और धनागमन के साधन बनने लगेंगे।
साबुत धनिया : धनतेरस के दिन साबुत धनिया खरीदें। पूरी रात लक्ष्मी जी के सामने साबुत धनिया रखा रहने दें। अगले दिन प्रातः साबुत धनिए को गमले में बो दें। यह जब उगेगा तो हमारी आर्थिक स्थिति का संकेत देगा। अगर धनिए से हरा-भरा स्वस्थ पौधा निकले तो आर्थिक स्थिति सुदृढ़ रहती है। अगर धनिए का पौधा पतला है तो सामान्य आय होती है। पीला व बीमार पौधा निकले या पौधा नहीं निकले तो आर्थिक परेशानियां आती हैं।  
कौड़ी : धनतेरस के दिन कौड़ी खरीद कर घर लाएं और अपार धन प्राप्ति हेतु धनतेरस की रात्रि उनका षडोषोपचार पूजन कर केसर से रंगकर कौड़ियां पीले कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखें। आश्चर्यजनक रूप से घर में धन का आगमन होगा, कमल गट्टे : घी में कमल गट्टे मिलाकर लक्ष्मी को प्रसाद चढ़ाने से व्यक्ति राजा जैसा जीवन जीता है। इसके अतिरिक्त 108 कमल गट्टों की माला लक्ष्मी जी पर चढ़ाने से व्यक्ति को स्थिर लक्ष्मी प्राप्त होती है। धन और बरकत के लिए कमल गट्टे की माला घर में रखें।गांठ वाली पीली हल्दी :  धनतेरस के दिन शुभ मुहूर्त देखकर बाजार से गांठ वाली पीली हल्दी अथवा काली हल्दी को घर लाएं। इस हल्दी को कोरे कपड़े पर रखकर स्थापित करें तथा षडोशपचार से पूजन करें।मिट्टी के तीन बड़े दीपक भी जरूर खरीदें. इन्हीं के प्रयोग से दिवाली की पूजा होगी. एक बड़ा मुख्य दीपक होगा जो मां लक्ष्मी को समर्पित होगा. दूसरा बड़ा सरसों के तेल का दीपक मां काली के लिए होगा. जबकि तीसरा दीपक तिरछा करके सरसों के तेल वाले दीपक के ऊपर रखा जाएगा, ताकि उसमें रात भर काजल बन सके.गोमती चक्र एक विशेष प्रकार का पत्थर है, जिसके एक तरफ चक्र की तरह आकृति बनी होती है. यह कई रंगों का होता है. इसमें सफेद रंग का गोमती चक्र सबसे महत्वपूर्ण है. यह रत्न की तरह अंगूठी में भी पहना जाता है. धनतेरस पर कम से कम पांच गोमती चक्र खरीदें. दिवाली के दिन गोमती चक्र मां लक्ष्मी को अर्पित किया जाएगा. इसके बाद अगले दिन उसे धन के स्थान पर रख दें.कौड़ी एक समुद्री जीव का एक खोल है. धन प्राप्ति के लिए और धन के रूप में इसका प्रयोग प्राचीन काल से होता रहा है. धनतेरस पर कम से कम पांच कौड़ी जरूर खरीदें. दिवाली के दिन इन कौड़ियों से विशेष पूजा करें. इससे अविवाहितों का विवाह होगा और कर्ज की समस्या से मुक्ति मिलेगी.झाड़ू को मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है. धनतेरस पर दो झाड़ू जरूर खरीदें. इनका प्रयोग दिवाली की पूजा के बाद अगले दिन से करें. पुरानी झाड़ू को दिवाली के अगले दिन घर से बाहर कर दें. धनतेरस पर झाड़ू खरीदने से वर्ष भर स्वास्थ्य अच्छा बना रहेगा. घर से पुरानी झाड़ू निकाल देने से नकारात्मक ऊर्जा निकल जाएगी.इस दिन धनिया के बीज खरीदने की भी परंपरा होती है. धनतेरस पर धनिया खरीदना बहुत शुभ माना जाता है. इसे समृद्धि का प्रतीक बताया गया है. लक्ष्मी पूजा के समय धनिया के बीज लक्ष्मी मां को चढ़ाएं और पूजा के बाद किसी बर्तन या बगीचे में धनिया के बीज बो दें. कुछ बीज गोमती चक्र के साथ अपनी तिजोरी में रखें.धनतेरस के दिन विवाहित महिलाओं को सोलह श्रृंगार का तोहफा देना शुभ माना जाता है. इसके अलावा लाल रंग की साड़ी और सिंदूर देना भी अच्छा माना जाता है. इससे भी लक्ष्मी मां प्रसन्न होती हैं.
और अब इस दिन क्या नहीं करना चाहिए,
सनातन धर्म शास्त्र के और सनातन धर्म के जानकारो के अनुसार,जो नहीं करना चाहिए,
स्टील से बनी चीजें- धनतेरस के दिन बहुत से लोग स्टील के बर्तन घर ले आते हैं, जबकि इन्हें खरीदने से बचना चाहिए. स्टील शुद्ध धातु नहीं है. इस पर राहु का प्रभाव भी ज्यादा होता है. आपको सिर्फ प्राकृतिक धातुओं की ही खरीदारी करनी चाहिए. मानव निर्मित धातु में से केवल पीतल खरीदा जा सकता है.
एल्यूमिनियम का सामान- धनतेरस पर कुछ लोग एल्यूमिनियम के बर्तन या सामान भी खरीद लेते हैं. इस धातु पर भी राहु का प्रभाव अधिक होता है. एल्यूमिनियम को दुर्भाग्य का सूचक माना गया है. त्योहार पर एल्यूमिनियम की कोई भी नई चीज घर में लाने से बचें.
लोहे की वस्तुएं-  मित्रों ज्योतिष शास्त्र अनुसार, लोहे को शनिदेव का कारक माना जाता है. इसलिए लोहे से बनी चीजों को धनतेरस पर भूलकर भी खरीदने की गलती न करें. ऐसा करने से त्योहार पर धन कुबेर की कृपा नहीं होती है. नुकीली या धारदार चीजें- धनतेरस के दिन धारदार वस्तुएं खरीदने से बचें. इस दिन चाकू, कैंची, पिन, सूई या कोई धारदार सामान खरीदने से सख्त परहेज करना चाहिए. धनतेरस पर इन चीजों को खरीदना शुभ नहीं माना जाता है. प्लास्टिक का सामान- धनतेरस पर कुछ लोग प्लास्टिक की बनी चीजें घर ले आते हैं. बता दें कि प्लास्टिक बरकत नहीं देता है. इसलिए धनतेरस पर प्लास्टिक से बना किसी भी तरह का सामान घर न लेकर आएं. चीनी मिट्टी के बर्तन- धनतेरस पर सेरामिक (चीनी मिट्टी) से बने बर्तन या गुलदस्ता आदि खरीदना से बचना चाहिए. इन चीजों में स्थायित्व नहीं रहता है, जिससे घर में बरकत की कमी रहती है. इसलिए सेरामिक से बनी चीजें बिल्कुल न खरीदें. कांच के बर्तन- धनतेरस पर कुछ लोग कांच के बर्तन या दूसरी चीजें खरीदते हैं. कांच का संबंध राहु से माना जाता है, इसलिए धनतेरस के दिन इसे खरीदने से बचना चाहिए. इस दिन कांच की चीजों का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए. काले रंग की चीजें- धनतेरस के दिन काले रंग की चीजों को घर लाने से बचना चाहिए. धनतेरस एक बहुत ही शुभ दिन है, जबकि काला रंग हमेशा से दुर्भाग्य का प्रतीक माना गया है. इसलिए धनतेरस पर काले रंग की चीजें खरीदने से बचें. खाली बर्तन घर ना लाएं- धनतेरस के दिन यदि आप कोई बर्तन या इस्तेमाल करने का सामान खरीदने की योजना बना रहे हैं तो ध्यान रखें कि उसे घर में खाली न लेकर आएं. घर में बर्तन लाने से पहले इसे पानी, चावल या किसी दूसरी सामग्री से भर लें.
मिलावटी चीजें- धनतेरस के दिन यदि आप तेल या घी जैसी चीजें खरीदने जा रहे हैं तो थोड़ा सतर्क रहिए. ऐसी चीजों में मिलावट हो सकती है और इस दिन अशुद्ध चीजें खरीदने से बचना चाहिए. धनतेरस पर अशुद्ध तेल या घी के दीपक ना जलाएं. नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी,,
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻🌹

कब है धनतेरस और कैसे करें पुजा

जय मां बाबा की मित्रों इस बार कुछ लेट पोस्ट कर रहे हैं सनातन धर्म में दिपावली का बहुत बड़ा महत्व होता है पर इस से दो दिन में पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में धनतेरस और दीपावली दोनों ही आती है इस बार धनतेरस मंगलवार 2 नवंबर 2021 को मनाया जाएगा,

मित्रों सनातन धर्म की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब प्रभु धन्वंतरि प्रकट हुए थे तब उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करना बेहद शुभ माना  जाता है इस तिथि को धन्वंतरि जयंती या धन त्रयोदशी के नाम से भी जानते हैं इस दिन बर्तन (पीतल चांदी सोना और ताम्बे के)और गहने आदि की खरीदारी करना बेहद शुभ होता है मित्रों इस दिन भी क्यों होती है महालक्ष्मी की पूजा- कहते हैं कि धनतेरस के दिन प्रभु धन्वंतरि जी और मां लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में कभी धन की कमी नहीं रहती है इस दिन प्रभु कुबेर जी की पूजा की भी विधान है और इसी दिन से आप छतीस यक्षिणीयों में से किसी भी यक्षिणी की साधना शुरू कर सकते हैं क्योंकि प्रभु कुबेर जी को यक्षराज भी कहां जाता है यानि अधिपति देवता,
मित्रों आईये जानते हैं धनतेरस 2021 शुभ मुहूर्त- और पुजा विधान
धनतेरस तिथि 2021- 2 नवंबर, मंगलवार
धन त्रयोदशी पूजा का शुभ मुहूर्त- शाम 5 बजकर 25 मिनट से शाम 6 बजे तक।
प्रदोष काल- शाम 05:39 से  20:14 बजे तक।
वृषभ काल- शाम 06:51 से 20:47 तक।
धनतेरस पूजा विधि-
1. सबसे पहले चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं
2. अब गंगाजल छिड़कर भगवान धन्वंतरि, माता महालक्ष्मी और भगवान कुबेर की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें
3. भगवान के सामने देसी घी का दीपक, धूप और अगरबत्ती जलाएं
4. अब देवी-देवताओं को लाल फूल अर्पित करें
5. अब आपने इस दिन जिस भी धातु या फिर बर्तन अथवा ज्वेलरी की खरीदारी की है, उसे चौकी पर रखें
6. लक्ष्मी स्तोत्र, लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी यंत्र, कुबेर यंत्र और कुबेर स्तोत्र का पाठ करें
7. धनतेरस की पूजा के दौरान लक्ष्मी माता के मंत्रों का जाप करें और मिठाई का भोग भी लगाएं
धनतेरस की शाम के समय उत्तर दिशा में कुबेर, धन्वंतरि भगवान और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. पूजा के समय घी का दीपक जलाएं. कुबेर को सफेद मिठाई और भगवान धन्वंतरि को पीली मिठाई चढ़ाएं. पूजा करते समय “ॐ ह्रीं कुबेराय नमः” मंत्र का जाप करें. फिर धन्वंतरि स्तोत्र का पाठ करें. इसके बाद भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा करें. और मिट्टी का दीपक जलाएं. माता लक्ष्मी और भगवान गणेश को भोग लगाएं और फूल चढ़ाएं,
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹🙏🏻

Friday, September 10, 2021

गणेश चतुर्थी पर जाने प्रभु गणेश जी के पांच मंत्र

गणेश चतुर्थी पर जाने प्रभु गणेश जी के पांच मंत्र

गणेश चतुर्थी पर आपसभी को हार्दिक शुभकामनायें,,,,,

ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐश्री गणेशाय नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐश्री गणेशाय नमः
ॐ रिद्धि सिद्धि देवाये नमः
ॐ सर्वसिद्धि देवाये नमः
ॐ सर्वविध्न नाशाय नमः
ॐ गणनायकाय नमः
ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ 🌹🙏🏻🌹
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ अर्थ सहित जानिए प्रभु 

गणेश जी के 5 महामंत्र


वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ, यानि घुमावदार सूंड वाले जिनका विशालकाय शरीर है और जो करोड़ों सूर्यों के प्रकाश के समान दिखते हैं। ऐसे गणेश जी की पूजा करने के लिए कुछ महामंत्र बताए गए हैं। जो आसान है और हर संस्कृत नहीं जानने वाले लोग भी इन मंत्रों को पढ़ सकते हैं। इन मंत्रों को बोलने से पूजा पूर्ण होती है और गणेश जी भी  जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। अर्थ सहित जानिए गणपति जी के ऐसे ही खास मंत्र -

1- वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

अर्थ - घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर काय, करोड़ सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली।
मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें (करने की कृपा करें)॥

2- विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाथ श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

अर्थ - विघ्नेश्वर, वर देनेवाले, देवताओं को प्रिय, लम्बोदर, कलाओंसे परिपूर्ण, जगत् का हित करनेवाले, गजके समान मुखवाले और वेद तथा यज्ञ से विभूषित पार्वतीपुत्र को नमस्कार है ; हे गणनाथ ! आपको नमस्कार है ।

3- अमेयाय च हेरम्ब परशुधारकाय ते ।
मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः ॥

अर्थ - हे हेरम्ब ! आपको किन्ही प्रमाणों द्वारा मापा नहीं जा सकता, आप परशु धारण करने वाले हैं, आपका वाहन मूषक है । आप विश्वेश्वर को बारम्बार नमस्कार है ।

4- एकदन्ताय शुद्घाय सुमुखाय नमो नमः ।
प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने ॥

अर्थ - जिनके एक दाँत और सुन्दर मुख है, जो शरणागत भक्तजनों के रक्षक तथा प्रणतजनों की पीड़ा का नाश करनेवाले हैं, उन शुद्धस्वरूप आप गणपति को बारम्बार नमस्कार है ।

5- एकदंताय विद्‍महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।।

अर्थ - एक दंत को हम जानते हैं। वक्रतुण्ड का हम ध्यान करते हैं। वह दन्ती (गजानन) हमें प्रेरणा प्रदान करें।

विघ्हनहरता रिद्धि सिद्धि के दाता प्रभु श्री गणेशजी को दण्डवत नमन और प्रभु हम सभी की मनो कामना पूर्ण करें, यही हमारी प्रभु से प्रार्थना है और एक बार फिर से आप सभी को गणेश चतुर्थी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं और हार्दिक बधाई ,जय मां बाबा की 🌹🙏🏻
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹🙏🏻🌹

Thursday, September 9, 2021

शारदीय नवरात्रि कब से है और क्या करना चाहिए??????

शारदीय नवरात्रि कब से है और क्या करना चाहिए??????




मित्रों जैसा हमने कई बार नवरात्रि के बारे में जानकारी दें चूके है कि हिंदी पंचाग के अनुसार साल में नवरात्रि 4 बार मनाई जाती है. दो बार गुप्त नवरात्रि और दो नवरात्रि को मुख्य रूप से मनाया जाता है. इसमें चैत्र और शारदीय मुख्य नवरात्रि हैं, जिसे देशभर में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. नवरात्रि का मतलब है नौ रातें. नौ दिन तक चलने वाले शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. इतना ही नहीं, नवरात्रि के दिनों को काफी पवित्र माना जाता है. इन दिनों में कोई भी शुभ काम बिना पंडित से सुझाए किए जा सकते हैं. लेकिन अगर सभी मुर्हत से ज्योतिषचार्य या किसी जानकार से सलाह लेकर किया जाये तो बहुत अच्छा है ,इस साल 2021 में शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 7 अक्टूबर 2021, गुरुवार से होकर 15 अक्टूबर, 2021 शुक्रवार तक है. बता दें कि शारदीय नवरात्रि की शुरुआत अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है. पुराणों में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व बताया गया है. तभी पुरा भारत वर्ष और विदेशों बसे साधक संत या सनातनियों को  हर नवरात्रि का इंतजार बेसब्री से रहता है ,नवरात्रि मां दूर्गा की उपासना का त्योहार है, इसमें आप अपने आराध्य देव या देवी की पुजा अर्चना साधना सिद्धि भी कर सकते हैं पर इनको देवी मां महादुर्गो ,यानि नवदुर्गा, सिद्ध विधा और अष्टलक्ष्मी यानि देवी स्वरूप की पुजा की जाती है जहां सनातन धर्म में इसे नवरात्रि कहा जाता है, वहीं बंगाली धर्म में ये नौ दिन दूर्गा जी की पूजा की जाती है. प्रथम दिन उनकी स्थापना और समापन पर विसर्जन किया जाता है. हर साल पितृर श्राद्ध के बाद ही नवरात्रि की शुरुआत होती है. सब जगह वातावरण भक्तिमय हो जाता है. नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में हर दिन अलग-अलग देवी को समर्पित है. शुरुआत के तीन दिनों में मां दुर्गा की शक्ति और ऊर्जा की पूजा की जाती है. इसके बाद के तीन दिन यानी चौथा, पांचवा और छठे दिन जीवन में शांति देने वाली माता लक्ष्मी जी को पूजा जाती है. सातवें दिन कला और ज्ञान की देवी मां महासरस्वती की पूजा की जाती है. वहीं आठवां दिन देवी महागौरी को समर्पित होता है. इस दिन महागौरी की पूजा की जाती है. आखिरी दिन यानी नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री देवी की पूजा की जाती है. मित्रों प्राचीन  मान्यता के अनुसार नवरात्रि में 9 दिनों तक माता दुर्गा के 9 स्वरूपों की आराधना करने से जीवन में ऋद्धि-सिद्धि ,सुख- शांति, मान-सम्मान, यश और समृद्धि की प्राप्ति शीघ्र ही होती है। माता दुर्गा सनातन धर्म में आदिशक्ति  के रूप में सुप्रतिष्ठित है तथा माता शीघ्र फल प्रदान करनेवाली देवी के रूप में लोक में प्रसिद्ध है। देवीभागवत पुराण के अनुसार आश्विन मास में माता की पूजा-अर्चना वा नवरात्र व्रत करने से मनुष्य पर देवी दुर्गा की कृपा सम्पूर्ण वर्ष बनी रहती है और मनुष्य का कल्याण होता है,
कलश स्थापना का महत्व का महत्व  शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि का पहला दिन बहुत महत्वपूर्ण है. प्रतिपदा तिथि यानी नवरात्रि के पहले दिन ही कलश की स्थापना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि कलश को भगवान विष्णु का और रूद का रूप माना जाता है. इसलिए नवरात्रि पूजा से पहले घटस्थापना यानी कलश की स्थापना की जाती है. ताकि पुजा साधना सिद्धि सफलता पुर्वक की जा सके ,जो नये साधक है या जो‌ अनजान हैं उनके लिए कलश स्थापना की विधि ,कलश स्थापित करने के लिए सवेरे उठकर स्नान करके साफ कपड़ें पहन लें. मंदिर की साफ-सफाई करके एक सफेद या लाल कपड़ा बिछाएं. इसके बाद उसके ऊपर एक चावल की ढेरी बनाएं. एक मिट्टी के बर्तन में थोड़े से जौ बोएं और इसका ऊपर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें. कलश पर रोली से स्वास्तिक बनाएं, कलावा बांधे. एक नारियल लेकर उसके ऊपर चुन्नी लपेटें और कलावे से बांधकर कलश के ऊपर स्थापित करें. कलश के अंदर एक साबूत सुपारी, अक्षत और सिक्का डालें. अशोक के पत्ते कलश के ऊपर रखकर नारियल रख दें. नारियल रखते हुए मां दुर्गा का आवाह्न करना न भूलें. अब दीप जलाकर कलश की पूजा करें. स्थापना के समय आप सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी किसी भी कलश का इस्तेमाल कर सकते हैं जैसा आपने पास उपलब्ध हो मित्रों यथा शक्ति यथा भक्ति हमेशा ध्यान रखें, और ध्यान रहे मित्रों इस बार मां की सवारी इस
नवरात्रि के पर्व में माता की सवारी का विशेष महत्व बताया गया है. माता की सवारी नवरात्रि के प्रथम दिन से ज्ञात की जाती है. इस बारे में शास्त्रों में भी वर्णन मिलता है. माता की सवारी के बारे में देवीभाग्वत पुराण में बताया गया है.
शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे। 
गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥
देवी भाग्वत पुराण के अनुसार नवरात्रि की शुरुआत सोमवार या रविवार को हो तो इसका अर्थ है कि माता हाथी पर सवार होकर आएंगी. शनिवार और मंगलवार को माता अश्व यानी घोड़े पर सवार होकर आती हैं. इसके साथ जब गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्रि का पर्व आरंभ हो तो इसका अर्थ ये है कि माता डोली पर सवार होकर आएंगी. इस बार शरद नवरात्रि का पर्व गुरुवार से आरंभ हो रहा है. इसका अर्थ ये है कि इस बार माता 'डोली' पर सवार होकर आएंगी.
नवरात्रि 2021 
नवरात्रि प्रारंभ- 7 अक्टूबर 2021, गुरुवार
नवरात्रि नवमी तिथि- 14 अक्टूबर 2021, गुरुवार
नवरात्रि दशमी तिथि- 15 अक्टूबर 2021, शुक्रवार
घटस्थापना तिथि- 7 अक्टूबर 2021, गुरुवार
कलश स्थापना या घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त क्या है? 
वो भी जान लिजिए, नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी जय मां बाबा की, 
सुबह 6.17 से लेकर 7.07 तक है. घट स्थापना के शुभ मुहूर्त की कुल अवधि 50 मिनट हैं. अभिजीत मुहूर्त 11.45 ए एम से 12.32 पी एम तक रहेगा.
पूजा कलश (घट)स्थापना  2021

घटस्थापना तिथि: - 7 अक्टूबर 2021, गुरुवार को जैसा ऊपर बताया गया है 
शरद नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा होती है जो चंद्रमा का प्रतीक हैं मां शैलपुत्री की पूजा करने से सभी बुरे प्रभाव और शगुन दूर होते हैं। इस दिन भक्तों को पीले रंग के कपड़े पहनने चाहिए
द्वितीया तिथि: - 8 अक्टूबर 2021, शुक्रवार
मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी है और शरद नवरात्रि के दूसरे दिन इनकी पूजा का विधान है। मां ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को प्रदर्शित करती हैं और जो भक्त मां ब्रह्मचारिणी की पूजा सच्चे दिल से करता है उसके सभी दुख, दर्द और तकलीफें दूर हो जाती हैं। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय हरे रंग के कपड़े पहनें
तृतीया तिथि: - 9 अक्टूबर 2021, शनिवार
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है जो शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं। इनकी पूजा करने से शक्ति का संचार होता है तथा हर तरह के भय दूर हो जाते हैं। मां चंद्रघंटा की पूजा में ग्रे रंग का कपड़ा पहनें
चतुर्थी तिथि: - 9 अक्टूबर 2021, शनिवार
शरद नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा का विधान है जो सूर्य देव को प्रदर्शित करती हैं। चतुर्थी तिथि पर संतरे रंग का कपड़ा पहनना शुभ माना जाता है। मां कुष्मांडा की पूजा करने से भविष्य में आने वाली सभी विपत्तियां दूर होती हैं।
पंचमी तिथि: - 10 अक्टूबर 2021, रविवार
बुध ग्रह को नियंत्रित करने वाली माता मां स्कंदमाता की पूजा शरद नवरात्रि के पांचवें दिन होती है। जो भक्त मां स्कंदमाता की पूजा करता है उसके ऊपर मां की विशेष कृपा बरसती है। पंचमी तिथि पर सफेद रंग का कपड़ा पहना अनुकूल माना जाता है।
षष्ठी तिथि: - 11 अक्टूबर 2021, सोमवार
शरद नवरात्रि की षष्ठी तिथि मां कात्यायनी को समर्पित है। इस दिन लाल कपड़े पहनकर मां कात्यायनी की पूजा करें जो बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं। मां कात्यायनी की पूजा करने से हिम्मत और शक्ति में वृद्धि होती है।
सप्तमी तिथि: - 12 अक्टूबर 2021, मंगलवार
इस दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है जो शनि ग्रह का प्रतीक हैं। मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों में वीरता का संचार होता है। सप्तमी तिथि पर आपको रॉयल ब्लू रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
अष्टमी तिथि: - 13 अक्टूबर 2021, बुधवार
अष्टमी तिथि पर महागौरी की पूजा करने का विधान है। इस दिन गुलाबी रंग का कपड़ा पहनना मंगलमय माना जाता है। माता महागौरी राहु ग्रह को नियंत्रित करती हैं और अपने भक्तों के जीवन से सभी नकारात्मक शक्तियों को दूर करती हैं।
नवमी तिथि: - 14 अक्टूबर 2021, गुरुवार
मां सिद्धिदात्री राहु ग्रह को प्रदर्शित करते हैं जिनकी पूजा करने से बुद्धिमता और ज्ञान का संचार होता है। नवमी तिथि पर आपको पर्पल रंग का कपड़ा पहनना चाहिए।
दशमी तिथि: - 15 अक्टूबर 2021, शुक्रवार
इस दिन शरद नवरात्रि का पारण होगा और मां दुर्गा को विसर्जित किया जाएगा। शरद दशमी तिथि को विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है, नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी जय मां बाबा की मित्रों,,🌹🙏🏻🌹
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹🙏🏻🌹

Tuesday, July 13, 2021

भैरव शाबर मन्त्र 2





“आद भैरों, जुगाद भैरों, भैरों हैं सब भाई । भैरों ब्रह्मा, भैरों विष्णु भैरों ही भोला साईं । भैरों देवी, भैरों सब देवता, भैरों सिद्ध भैरों नाथ, गुरु, भैरों पीर, भैरों ज्ञान, भैरों ध्यान । भैरों योग-वैराग । भैरों बिन होय ना रक्षा । भैरों बिन बजे ना नाद । काल भैरों, विकराल भैरों । घोर भैरों, अघोर भैरों । भैरों की कोई ना जाने सार । भैरों की महिमा अपरम्पार । श्वेत वस्त्र, श्वेत जटाधारी । हत्थ में मुदगर, श्वान की सवारी । सार की जंजीर, लोहे का कड़ा । जहां सिमरुं, भैरों बाबा हाजिर खड़ा । चले मन्त्र, फुरे वाचा । देखा आद भैरों । तेरे इल्म चोट का तमाशा ॥”

 प्रयोग -->41 दिनों तक किसी शिव मंदिर या भैरव मंदिर में भैरव की पंचोपचार पूजा करने के बाद उड़द के बड़े और मद्य का भोग लगाएं । भैरव देव प्रसन्न होकर भक्त की सब मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं ।

भैरव शाबर मन्त्र




“ॐ रिं रिक्तिमा भैरो दर्शय स्वाहा । ॐ क्रं क्रं-काल प्रकटय प्रकटय स्वाहा । रिं रिक्तिमा भैरऊ रक्त जहां दर्शे । वर्षे रक्त घटा आदि शक्ति । सत मन्त्र-मन्त्र-तंत्र सिद्धि परायणा रह-रह । रूद्र, रह-रह, विष्णु रह-रह, ब्रह्म रह-रह । बेताल रह-रह, कंकाल रह-रह, रं रण-रण रिक्तिमा सब भक्षण हुँ, फुरो मन्त्र । महेश वाचा की आज्ञा फट कंकाल माई को आज्ञा । ॐ हुं चौहरिया वीर-पाह्ये, शत्रु ताह्ये भक्ष्य मैदि आतू चुरि फारि तो क्रोधाश भैरव फारि तोरि डारे । फुरो मन्त्र, कंकाल चण्डी का आज्ञा । रिं रिक्तिमा संहार कर्म कर्ता महा संहार पुत्र । ‘अमुंक’ गृहण-गृहण, मक्ष-भक्ष हूं । मोहिनी-मोहिनी बोलसि, माई मोहिनी । मेरे चउआन के डारनु माई । मोहुँ सगरों गाउ । राजा मोहु, प्रजा मोहु, मोहु मन्द गहिरा । मोहिनी चाहिनी चाहि, माथ नवइ । पाहि सिद्ध गुरु के वन्द पाइ जस दे कालि का माई ॥”

इसकी सिद्धि से साधक की सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा श्री भैरवजी की कृपा बनी रहती है । इस मन्त्र से झाड़ने पर सभी व्याधियों का नाश होता है ।

Monday, July 5, 2021

गुप्त नवरात्रि कब से और क्या करे जानये

मित्रों जैसा कि आप सभी को पता है कि आषाढ़ी गुप्त नवरात्रि आने वाली है मित्रों यू तो हम हर नवरात्रि पर कुछ ना कुछ लिखते हैं बस मां बाबा इतनी कृपा प्रदान करे कि हम उतना सरलकरणी से लिख सके कि आम इंसान भी उतने ही सरलीकरण से देवी मां नवदुर्गा की आराधना कर सके, मित्रों आप सभी अपने अपने आराध्य देव या देवी के जप तप पुजा हवन या गुप्त ऊर्जा को पाने के लिए और अपने अपने गुरूओ अनुसार या अपने विवेकनुसार कार्य करेंगे , मित्रों गुप्त नवरात्रि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपद से आषाढ़ गुप्त नवरात्रि शुरू होंगे इस साल गुप्त नवरात्रि 11 जुलाई से शुरू होंगे और 18 जुलाई को समाप्त होंगे, चैत्र और शारदीय नवरात्रि की तरह ही गुप्त नवरात्रि में भी देवी मां नवदुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा की जाती है और गुप्त नवरात्रि में गुप्त नवरात्रि में देवी मां कालिका, देवी मां तारा देवी, देवी मां राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी, देवी मां भुवनेश्वरी, देवी मां चित्रमस्ता, देवी मां त्रिपुर भैरवी, देवी मां धूम्रवती, देवी मां बगलामुखी, देवी मां मातंगी और देवी मां कमला देवी की पूजा भी की जाती है जो‌ हर तरह से गुप्त ही होती है, 

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि प्रारंभ तिथि: - 11 जुलाई 2021,
प्रतिपदा तिथि 10 जुलाई को सुबह 07 बजकर 47 मिनट से शुरू होगी, जो कि 11 जुलाई की सुबह 07 बजकर 47 मिनट तक रहेगी,
 तिथि प्रारंभ: - 10 जुलाई 2021 सुबह 06:46
प्रतिपदा तिथि समाप्त: - 11 जुलाई 2021 के समय 07:47
अभिजीत मुहूर्त: - 11 जुलाई, दोपहर 12:05 से 11 जुलाई दोपहर 12:59 तक
घट स्थापना मुहूर्त: - 11 जुलाई सुबह 05:52 से 07:47 तक ,दिन रविवार को घटस्थापना की जाएगी। घटस्थापना के लिए सुबह 05 बजकर 31 मिनट से सुबह 07 बजकर 47 मिनट तक का समय शुभ है, इस वर्ष घटस्थापना की कुल अवधि 02 घंटे 16 मिनट की है फिर दिन में घटस्थापना का अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 54 मिनट तक है, काफी बार सुना गया कि कि गुप्त नवरात्रि के दौरान तांत्रिक और अघोरी साधक संत सन्यासी देवी मां दुर्गा की आधी रात में पूजा करते हैं, ये पुजा साधना साधारण ग्रहस्थ या बालक बालिका भी कर सकते हैं पुणे श्रद्धा और आस्था रखते हुये बस उग्र साधना ना करें बिना गुरू के सबसे पहले देवी मां दुर्गा की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित कर लाल रंग का सिंदूर और सुनहरे गोटे वाली चुनरी अर्पित करें उसके बाद देवी मां के चरणों में पानी वाला नारियल, या सिम्पल नारियल ,केले, सेब, खील, बताशे और श्रृंगार का सामान अर्पित करें देवी मां दुर्गा को लाल पुष्प यानि रक्त पुष्प चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है ,और भी कई तरह की समाग्री होती है ध्यान रहे मित्रों जैसी शक्ति हो वैसी ही भक्ति करे जबरदस्ती कोई नहीं बस जो श्रद्धा और भक्ति करे वो ही सर्वश्रेष्ठ है ,अन्य समाग्री देवी मां दुर्गा की प्रतिमा या चित्र, सिंदूर, केसर, कपूर, जौ, धूप,वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, सुगंधित तेल, बंदनवार आम के पत्तों का, लाल पुष्प, दूर्वा, मेंहदी, बिंदी, सुपारी साबुत, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, पटरा, आसन, चौकी, रोली, मौली, पुष्पहार, बेलपत्र, कमलगट्टा, जौ, बंदनवार, दीपक, दीपबत्ती, नैवेद्य, मधु, शक्कर, पंचमेवा, जायफल, जावित्री, नारियल, आसन, रेत, मिट्टी, पान, लौंग, इलायची, कलश मिट्टी या पीतल का, हवन सामग्री, पूजन के लिए थाली, श्वेत वस्त्र, दूध, दही, ऋतुफल, सरसों सफेद और पीली, गंगाजल इत्यादि , यहां हम कुछ नवरात्रि के उपाय या पुजा पद्धति दे रहे हैं जो साधारण जनमानुस भी कर सकते हैं 
कुछ साधारण उपाय जो हर नवरात्रि में हो सकते हैं ,
सुबह-शाम दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्‍तशती का पाठ करें, दोनों वक्त की पूजा में लौंग और बताशे का भोग लगाएं, देवी मां दुर्गा को सदैव लाल ,रक्त पुष्प रंग का पुष्प ही चढ़ाएं,देवी मां दुर्गा के विशिष्ट मंत्र 'ऊं ऐं ह्रूीं क्लीं चामुंडाय विच्चे' का सुबह-शाम 108 बार जप करें,  गुप्त नवरात्रि में अपनी पूजा के बारे में किसी को न बताएं, ऐसा करने से आपकी पूजा और जप तप निष्फल हो जाते हैं या फल बराबर नहीं मिलता , रोग निवारण के लिए सरसों के तेल से दीपक जलाकर 'ॐ दुं दुर्गायै नमः' मंत्र का जाप करना चाहिए, देवी मां कालिका का कोई भी मंत्र हो जाप करना चाहिए,या जिसमें में आपका मन लगे उस मंत्र का जाप करना चाहिए, नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी मित्रों कुछ विस्तार से भी समझ लिजिए अच्छा है जो‌ नये साधक है कोई और करना चाहिए नवरात्रि तो छोटी सी पूजा अल्प विधि , सुबह सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें , ग्रहस्थ के लिए लाल कलर हो कपड़े का तो अच्छा है बाकी साधक गुरु आज्ञानुसार कपड़े पहने,, नवरात्रि की सभी पूजन सामग्री को एकत्रित करें जो हमने ऊपर बता रखी है, उसके बाद पूजा की थाल सजाएं ,देवी मां दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर को लाल रंग के वस्त्र से सजाएं , कोई बाबा हनुमान जी पुजा करता हो बाबा का सिन्दूर जरुर लगाये, मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोएं (गुप्त नवरात्रि में जरूरी नहीं इच्छा हो तो बो सकते हैं ) और नवमी तक प्रतिदिन पानी जरूर दे, पूर्ण विधि के अनुसार शुभ मुहूर्त में कलश को स्थापित करें इसमें पहले कलश को गंगा जल से भरें, (गंगाजल ना हो तो आप उसमे शुद्ध कुऐ या बोरिंग का पानी भर सकते हैं कुछ बुन्दू गंगाजल की डाल सकते हैं )उसके मुख पर आम की पत्तियां लगाएं या अशोक की पत्तियों लगा सकते हैं, और उस पर नारियल रखें दिजिए, कलश को लाल कपड़े से लपेटें और कलावा (मोली, लच्छा)के माध्यम से उसे बांधें और कलश की स्थापना कर लिजिए, फिर फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत के साथ पंचोपचार पूजा करें , नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी मां दुर्गा से संबंधित मंत्र या अपने इष्ट या गुरु आज्ञानुसार मंत्रों का जाप और हवन करें ,और मां का स्वागत कर उनसे सुख-समृद्धि की कामना करें जगत कल्याण आरोग्य के लिए प्रार्थना करें, मित्रों अष्टमी या नवमी को दुर्गा पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें और उन्हें तरह-तरह के व्यंजनों (पूड़ी, चना,खीर, हलवा) का भोग लगाएं यह सब आप श्रद्धानुसार करें हमने पहले ही कहां है कि जैसी शक्ति हो वैसी ही भक्ति करे सच्चे मन से जो अर्पण करे मां बाबा को सब स्वीकार है , आखिरी दिन या अष्टमी नवमी को कन्या भोज कराया अगर अपनी शक्ति कन्या भोज की नहीं है तो कोई बात नहीं कुछ मीठा बनाकर मां को भोग लगाकर देवी मां दुर्गा के पूजा के बाद कन्याओं को कुछ मीठा खिलाकर उनका पुजन करके आशीर्वाद प्राप्त करें और बाद घट विसर्जन करें, देवी मां की आरती गाएं, उन्हें फल फूल, चावल चढ़ाएं और बेदी से कलश को उठाएं , 
आईये जानते हैं कब कोन सी नवरात्रि कब है,
प्रतिपदा तिथि (11 जुलाई 2021
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आषाढ़ गुप्त नवरात्रि प्रारंभ हो रही है, प्रतिपदा तिथि पर घट स्थापित किया जाता है तथा देवी मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है,
द्वितीय तिथि (12 जुलाई 2021)
प्रतिपदा तिथि के बाद आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि प्रारंभ होगी जिस दिन देवी मां ब्रह्माचारिणी की पूजा करने का विधान है,
तृतीया तिथि (13 जुलाई 2021)
नवरात्रि की तृतीया तिथि पर देवी मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है जो मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप हैं, देवी मां चंद्रघंटा अपने भक्तों को सुख व समृद्धि का वरदान देती हैं, चतुर्थी तिथि (14 जुलाई 2021)
14 जुलाई 2021 के दिन आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है और इस दिन देवी मां कुष्मांडा की पूजा होगी,देवी मां कुष्मांडा की पूजा करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है,
पंचमी तिथि (15 जुलाई 2021)
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की पंचमी तिथि पर देवी मां स्कंदमाता की पूजा और आराधना का विधान है,देवी मां स्कंदमाता अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करती हैं और उनकी रक्षा करती हैं,
षष्ठी तिथि (16 जुलाई 2021)
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के षष्ठी तिथि पर देवी मां कात्यायनी तथा देवी मां कालरात्रि की पूजा की जाएगी ,देवी मां कात्यायनी की पूजा करने से विवाह बाधा दूर होते हैं तथा भय से मुक्ति मिलती है वही देवी मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली माता कही गई हैं,
अष्टमी (17 जुलाई 2021)
17 जुलाई 2021 पर मां दुर्गा अष्टमी का पर्व है और इस दिन देवी मां महागौरी की पूजा की जाती है देवी मां महागौरी की सवारी गाय है और वह सफेद वस्त्र धारण करती हैं देवी मां महागौरी को देवी मां अन्नपूर्णा स्वरूप भी कहा जाता है,
नवमी (18 जुलाई 2021)
अष्टमी तिथि पर देवी मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है, इस वर्ष 18 जुलाई पर नवमी तिथि है, देवी मां सिद्धिदात्री , देवी मां दुर्गा का नवा स्वरूप मानी गई हैं इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं,
दशमी तिथि (19 जुलाई 2021)
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर विजयदशमी या बाबा भेरव जी पूजा होती है इस दिन साधक तांत्रिक पुणे आहुति के लिए एंकात या उजाड़ या श्मशान या जहां शांति प्रतित हो वहां जाकर अपनी अपनी नो दिन की पुणोहुति भी देते हैं सभी की अपनी अपनी क्रिया और फल होता है , यह नवरात्रि मुख्यात सिद्ध विधि के लिए भी मानी गयी जिनका विवरण हमने ऊपर दे रखा है आशा करते हैं आप हमारे द्वारा दी गयी जानकारी से सन्तुष्ट होंगे ,

नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी मित्रों अच्छी लगे पोस्ट तो शेयर करें धन्यवाद जय मां बाबा की 🌹🙏🏻🌹
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹🙏🏻🌹

आइये जानते हैं कब है धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि विधान साधना???

* धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि*  *29 और 31 तारीख 2024*  *धनतेरस ओर दिपावली पूजा और अनुष्ठान की विधि* *धनतेरस महोत्सव* *(अध्यात्म शास्त्र एवं ...

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