Friday, September 10, 2021

गणेश चतुर्थी पर जाने प्रभु गणेश जी के पांच मंत्र

गणेश चतुर्थी पर जाने प्रभु गणेश जी के पांच मंत्र

गणेश चतुर्थी पर आपसभी को हार्दिक शुभकामनायें,,,,,

ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐश्री गणेशाय नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐश्री गणेशाय नमः
ॐ रिद्धि सिद्धि देवाये नमः
ॐ सर्वसिद्धि देवाये नमः
ॐ सर्वविध्न नाशाय नमः
ॐ गणनायकाय नमः
ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ 🌹🙏🏻🌹
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ अर्थ सहित जानिए प्रभु 

गणेश जी के 5 महामंत्र


वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ, यानि घुमावदार सूंड वाले जिनका विशालकाय शरीर है और जो करोड़ों सूर्यों के प्रकाश के समान दिखते हैं। ऐसे गणेश जी की पूजा करने के लिए कुछ महामंत्र बताए गए हैं। जो आसान है और हर संस्कृत नहीं जानने वाले लोग भी इन मंत्रों को पढ़ सकते हैं। इन मंत्रों को बोलने से पूजा पूर्ण होती है और गणेश जी भी  जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। अर्थ सहित जानिए गणपति जी के ऐसे ही खास मंत्र -

1- वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

अर्थ - घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर काय, करोड़ सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली।
मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें (करने की कृपा करें)॥

2- विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाथ श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

अर्थ - विघ्नेश्वर, वर देनेवाले, देवताओं को प्रिय, लम्बोदर, कलाओंसे परिपूर्ण, जगत् का हित करनेवाले, गजके समान मुखवाले और वेद तथा यज्ञ से विभूषित पार्वतीपुत्र को नमस्कार है ; हे गणनाथ ! आपको नमस्कार है ।

3- अमेयाय च हेरम्ब परशुधारकाय ते ।
मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः ॥

अर्थ - हे हेरम्ब ! आपको किन्ही प्रमाणों द्वारा मापा नहीं जा सकता, आप परशु धारण करने वाले हैं, आपका वाहन मूषक है । आप विश्वेश्वर को बारम्बार नमस्कार है ।

4- एकदन्ताय शुद्घाय सुमुखाय नमो नमः ।
प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने ॥

अर्थ - जिनके एक दाँत और सुन्दर मुख है, जो शरणागत भक्तजनों के रक्षक तथा प्रणतजनों की पीड़ा का नाश करनेवाले हैं, उन शुद्धस्वरूप आप गणपति को बारम्बार नमस्कार है ।

5- एकदंताय विद्‍महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।।

अर्थ - एक दंत को हम जानते हैं। वक्रतुण्ड का हम ध्यान करते हैं। वह दन्ती (गजानन) हमें प्रेरणा प्रदान करें।

विघ्हनहरता रिद्धि सिद्धि के दाता प्रभु श्री गणेशजी को दण्डवत नमन और प्रभु हम सभी की मनो कामना पूर्ण करें, यही हमारी प्रभु से प्रार्थना है और एक बार फिर से आप सभी को गणेश चतुर्थी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं और हार्दिक बधाई ,जय मां बाबा की 🌹🙏🏻
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹🙏🏻🌹

Thursday, September 9, 2021

शारदीय नवरात्रि कब से है और क्या करना चाहिए??????

शारदीय नवरात्रि कब से है और क्या करना चाहिए??????




मित्रों जैसा हमने कई बार नवरात्रि के बारे में जानकारी दें चूके है कि हिंदी पंचाग के अनुसार साल में नवरात्रि 4 बार मनाई जाती है. दो बार गुप्त नवरात्रि और दो नवरात्रि को मुख्य रूप से मनाया जाता है. इसमें चैत्र और शारदीय मुख्य नवरात्रि हैं, जिसे देशभर में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. नवरात्रि का मतलब है नौ रातें. नौ दिन तक चलने वाले शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. इतना ही नहीं, नवरात्रि के दिनों को काफी पवित्र माना जाता है. इन दिनों में कोई भी शुभ काम बिना पंडित से सुझाए किए जा सकते हैं. लेकिन अगर सभी मुर्हत से ज्योतिषचार्य या किसी जानकार से सलाह लेकर किया जाये तो बहुत अच्छा है ,इस साल 2021 में शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 7 अक्टूबर 2021, गुरुवार से होकर 15 अक्टूबर, 2021 शुक्रवार तक है. बता दें कि शारदीय नवरात्रि की शुरुआत अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है. पुराणों में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व बताया गया है. तभी पुरा भारत वर्ष और विदेशों बसे साधक संत या सनातनियों को  हर नवरात्रि का इंतजार बेसब्री से रहता है ,नवरात्रि मां दूर्गा की उपासना का त्योहार है, इसमें आप अपने आराध्य देव या देवी की पुजा अर्चना साधना सिद्धि भी कर सकते हैं पर इनको देवी मां महादुर्गो ,यानि नवदुर्गा, सिद्ध विधा और अष्टलक्ष्मी यानि देवी स्वरूप की पुजा की जाती है जहां सनातन धर्म में इसे नवरात्रि कहा जाता है, वहीं बंगाली धर्म में ये नौ दिन दूर्गा जी की पूजा की जाती है. प्रथम दिन उनकी स्थापना और समापन पर विसर्जन किया जाता है. हर साल पितृर श्राद्ध के बाद ही नवरात्रि की शुरुआत होती है. सब जगह वातावरण भक्तिमय हो जाता है. नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में हर दिन अलग-अलग देवी को समर्पित है. शुरुआत के तीन दिनों में मां दुर्गा की शक्ति और ऊर्जा की पूजा की जाती है. इसके बाद के तीन दिन यानी चौथा, पांचवा और छठे दिन जीवन में शांति देने वाली माता लक्ष्मी जी को पूजा जाती है. सातवें दिन कला और ज्ञान की देवी मां महासरस्वती की पूजा की जाती है. वहीं आठवां दिन देवी महागौरी को समर्पित होता है. इस दिन महागौरी की पूजा की जाती है. आखिरी दिन यानी नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री देवी की पूजा की जाती है. मित्रों प्राचीन  मान्यता के अनुसार नवरात्रि में 9 दिनों तक माता दुर्गा के 9 स्वरूपों की आराधना करने से जीवन में ऋद्धि-सिद्धि ,सुख- शांति, मान-सम्मान, यश और समृद्धि की प्राप्ति शीघ्र ही होती है। माता दुर्गा सनातन धर्म में आदिशक्ति  के रूप में सुप्रतिष्ठित है तथा माता शीघ्र फल प्रदान करनेवाली देवी के रूप में लोक में प्रसिद्ध है। देवीभागवत पुराण के अनुसार आश्विन मास में माता की पूजा-अर्चना वा नवरात्र व्रत करने से मनुष्य पर देवी दुर्गा की कृपा सम्पूर्ण वर्ष बनी रहती है और मनुष्य का कल्याण होता है,
कलश स्थापना का महत्व का महत्व  शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि का पहला दिन बहुत महत्वपूर्ण है. प्रतिपदा तिथि यानी नवरात्रि के पहले दिन ही कलश की स्थापना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि कलश को भगवान विष्णु का और रूद का रूप माना जाता है. इसलिए नवरात्रि पूजा से पहले घटस्थापना यानी कलश की स्थापना की जाती है. ताकि पुजा साधना सिद्धि सफलता पुर्वक की जा सके ,जो नये साधक है या जो‌ अनजान हैं उनके लिए कलश स्थापना की विधि ,कलश स्थापित करने के लिए सवेरे उठकर स्नान करके साफ कपड़ें पहन लें. मंदिर की साफ-सफाई करके एक सफेद या लाल कपड़ा बिछाएं. इसके बाद उसके ऊपर एक चावल की ढेरी बनाएं. एक मिट्टी के बर्तन में थोड़े से जौ बोएं और इसका ऊपर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें. कलश पर रोली से स्वास्तिक बनाएं, कलावा बांधे. एक नारियल लेकर उसके ऊपर चुन्नी लपेटें और कलावे से बांधकर कलश के ऊपर स्थापित करें. कलश के अंदर एक साबूत सुपारी, अक्षत और सिक्का डालें. अशोक के पत्ते कलश के ऊपर रखकर नारियल रख दें. नारियल रखते हुए मां दुर्गा का आवाह्न करना न भूलें. अब दीप जलाकर कलश की पूजा करें. स्थापना के समय आप सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी किसी भी कलश का इस्तेमाल कर सकते हैं जैसा आपने पास उपलब्ध हो मित्रों यथा शक्ति यथा भक्ति हमेशा ध्यान रखें, और ध्यान रहे मित्रों इस बार मां की सवारी इस
नवरात्रि के पर्व में माता की सवारी का विशेष महत्व बताया गया है. माता की सवारी नवरात्रि के प्रथम दिन से ज्ञात की जाती है. इस बारे में शास्त्रों में भी वर्णन मिलता है. माता की सवारी के बारे में देवीभाग्वत पुराण में बताया गया है.
शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे। 
गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥
देवी भाग्वत पुराण के अनुसार नवरात्रि की शुरुआत सोमवार या रविवार को हो तो इसका अर्थ है कि माता हाथी पर सवार होकर आएंगी. शनिवार और मंगलवार को माता अश्व यानी घोड़े पर सवार होकर आती हैं. इसके साथ जब गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्रि का पर्व आरंभ हो तो इसका अर्थ ये है कि माता डोली पर सवार होकर आएंगी. इस बार शरद नवरात्रि का पर्व गुरुवार से आरंभ हो रहा है. इसका अर्थ ये है कि इस बार माता 'डोली' पर सवार होकर आएंगी.
नवरात्रि 2021 
नवरात्रि प्रारंभ- 7 अक्टूबर 2021, गुरुवार
नवरात्रि नवमी तिथि- 14 अक्टूबर 2021, गुरुवार
नवरात्रि दशमी तिथि- 15 अक्टूबर 2021, शुक्रवार
घटस्थापना तिथि- 7 अक्टूबर 2021, गुरुवार
कलश स्थापना या घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त क्या है? 
वो भी जान लिजिए, नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी जय मां बाबा की, 
सुबह 6.17 से लेकर 7.07 तक है. घट स्थापना के शुभ मुहूर्त की कुल अवधि 50 मिनट हैं. अभिजीत मुहूर्त 11.45 ए एम से 12.32 पी एम तक रहेगा.
पूजा कलश (घट)स्थापना  2021

घटस्थापना तिथि: - 7 अक्टूबर 2021, गुरुवार को जैसा ऊपर बताया गया है 
शरद नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा होती है जो चंद्रमा का प्रतीक हैं मां शैलपुत्री की पूजा करने से सभी बुरे प्रभाव और शगुन दूर होते हैं। इस दिन भक्तों को पीले रंग के कपड़े पहनने चाहिए
द्वितीया तिथि: - 8 अक्टूबर 2021, शुक्रवार
मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी है और शरद नवरात्रि के दूसरे दिन इनकी पूजा का विधान है। मां ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को प्रदर्शित करती हैं और जो भक्त मां ब्रह्मचारिणी की पूजा सच्चे दिल से करता है उसके सभी दुख, दर्द और तकलीफें दूर हो जाती हैं। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय हरे रंग के कपड़े पहनें
तृतीया तिथि: - 9 अक्टूबर 2021, शनिवार
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है जो शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं। इनकी पूजा करने से शक्ति का संचार होता है तथा हर तरह के भय दूर हो जाते हैं। मां चंद्रघंटा की पूजा में ग्रे रंग का कपड़ा पहनें
चतुर्थी तिथि: - 9 अक्टूबर 2021, शनिवार
शरद नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा का विधान है जो सूर्य देव को प्रदर्शित करती हैं। चतुर्थी तिथि पर संतरे रंग का कपड़ा पहनना शुभ माना जाता है। मां कुष्मांडा की पूजा करने से भविष्य में आने वाली सभी विपत्तियां दूर होती हैं।
पंचमी तिथि: - 10 अक्टूबर 2021, रविवार
बुध ग्रह को नियंत्रित करने वाली माता मां स्कंदमाता की पूजा शरद नवरात्रि के पांचवें दिन होती है। जो भक्त मां स्कंदमाता की पूजा करता है उसके ऊपर मां की विशेष कृपा बरसती है। पंचमी तिथि पर सफेद रंग का कपड़ा पहना अनुकूल माना जाता है।
षष्ठी तिथि: - 11 अक्टूबर 2021, सोमवार
शरद नवरात्रि की षष्ठी तिथि मां कात्यायनी को समर्पित है। इस दिन लाल कपड़े पहनकर मां कात्यायनी की पूजा करें जो बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं। मां कात्यायनी की पूजा करने से हिम्मत और शक्ति में वृद्धि होती है।
सप्तमी तिथि: - 12 अक्टूबर 2021, मंगलवार
इस दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है जो शनि ग्रह का प्रतीक हैं। मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों में वीरता का संचार होता है। सप्तमी तिथि पर आपको रॉयल ब्लू रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
अष्टमी तिथि: - 13 अक्टूबर 2021, बुधवार
अष्टमी तिथि पर महागौरी की पूजा करने का विधान है। इस दिन गुलाबी रंग का कपड़ा पहनना मंगलमय माना जाता है। माता महागौरी राहु ग्रह को नियंत्रित करती हैं और अपने भक्तों के जीवन से सभी नकारात्मक शक्तियों को दूर करती हैं।
नवमी तिथि: - 14 अक्टूबर 2021, गुरुवार
मां सिद्धिदात्री राहु ग्रह को प्रदर्शित करते हैं जिनकी पूजा करने से बुद्धिमता और ज्ञान का संचार होता है। नवमी तिथि पर आपको पर्पल रंग का कपड़ा पहनना चाहिए।
दशमी तिथि: - 15 अक्टूबर 2021, शुक्रवार
इस दिन शरद नवरात्रि का पारण होगा और मां दुर्गा को विसर्जित किया जाएगा। शरद दशमी तिथि को विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है, नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी जय मां बाबा की मित्रों,,🌹🙏🏻🌹
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹🙏🏻🌹

आइये जानते हैं कब है धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि विधान साधना???

* धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि*  *29 और 31 तारीख 2024*  *धनतेरस ओर दिपावली पूजा और अनुष्ठान की विधि* *धनतेरस महोत्सव* *(अध्यात्म शास्त्र एवं ...

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