Wednesday, January 18, 2023

गुप्त नवरात्रि कब से है और क्या करें

मित्रों जय मां बाबा की आप सभी को आप सभी सनातनधर्म प्रेमियों को ज्ञात तो होगा ही कि वर्ष चार नवरात्रि होती है दो गुप्त नवरात्रि के नाम से और दो उत्सव स्वरूप में मनायी जाती है गुप्त नवरात्रि में सब कुछ गुप्त तरीके से होता है जो अति फलदाई होता है कहने को तो गुप्त नवरात्रि तंत्र साधना के लिए अति उत्तम है पर मां बाबा के भक्तो के लिए तो सब कुछ ये सभी नवरात्रि सम्मान होनी चाहिए आईये पुणे विस्तार से जानते हैं 2023 जनवरी 22  इस माघ महीने की नवरात्रि के बारे में मित्रों माघ महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से गुप्त नवरात्रि की शुरुआत होती है, जो कि नवमी तक चलती है। इस साल माघ गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 22 जनवरी 2023 से होगी। वहीं इसका समापन 30 जनवरी 2023 की होगा।

तांत्रिको के लिए हैं ख़ास
तांत्रिको के लिए तंत्र साधना साथना करने वाले करते हैं गुप्त नवरात्रि का इन्तिज़ार , इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं।

तांत्रिक अपनी तांत्रिक शक्ति बढ़ाने के लिए कर सकता है यह प्रयोग

केवल साल में दो ही बार कोई भी तांत्रिक अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए तांत्रिक साधना में लीन सकता हैं क्योकि साल में दो बार गुप्त नवरात्रि आती है। पहली माघ मास के शुक्ल पक्ष में और दूसरी आषाढ़ शुक्ल पक्ष में। कम ही लोगों को इसका ज्ञान होने के कारण या इसके छिपे हुए होने के कारण इन्हें गुप्त नवरात्र कहते हैं। इनमें विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती हैं पर आजकल आम इंसान भी इन नवरात्रों के बारे में जानने लगे हैं 
गुप्त नवरात्रि को विशेष कामनापूर्ति और सिद्धि के लिए विशेष
गुप्त नवरात्रि को विशेष कामनापूर्ति और सिद्धि के लिए विशेष माना जाता है. मान्यता है कि गुप्त नवरात्रों के साधनाकाल में मां शक्ति का जप, तप, ध्यान करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं नष्ट होने लगती हैं. इस दौरान साधक तंत्र मंत्र और विशेष पाठ गुप्त रूप से करते हैं, तभी उनकी कामना फलित होती है ,अगर कोई साधक साधना में बैठ कर बिना कोई नियम तोड़े साधना पूरी कर लेता हैं और जिस कार्य के लिए वह साधना बैठाता हैं वह कार्य बहुत जल्दी सम्पूर्ण हो जाता है  
पर मित्रों पौराणिक ग्रंथाें के अनुसार चैत्र और शारदीय नवरात्रि में सात्विक और तांत्रिक दोनों प्रकार की पूजा की जाती है, लेकिन गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा भी गुप्त तरीके से की जाती है. इसका सीधा मतलब है कि, इस दौरान तांत्रिक क्रिया कलापों पर ही ध्यान दिया जाता है. इसमें मां दुर्गा के भक्त आसपास के लोगों को इसकी भनक नहीं लगने देते कि वे कोई साधना कर रहे हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दौरान जितनी गोपनीयता बरती जाए उतनी ही अच्छी सफलता मिलेगी.
मित्रों इस साल 22 जनवरी को माघ गुप्त नवरा​त्रि का प्रारंभ सिद्धि योग में होगा. इस दिन सुबह 10:06 बजे तक वज्र योग है औा उसके बाद से सिद्धि योग है, जो अलगे दिन सुबह 05:41 बजे तक है. ऐसे में माघ गुप्त नवरात्रि का कलश स्थापना सिद्धि योग में होगा. कलश स्थापना के समय अभिजीत मुहूर्त में सिद्धि योग के होने से कार्य की सिद्धि होती है.
घटस्थापना मुहूर्त – 2023 में माघ माह की गुप्त नवरात्री के लिए घटस्थापना का मुहर्त सुबह 10 बजकर 04 मिनट से सुबह 10 बजकर 51 मिनट तक होगा।
घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12 बजकर 17 मिनट से दोपहर 01 बजे तक मुहूर्त स्थान दिशा काल के अनुसार समय आगे पीछे हो सकता है,,।
नवरात्रि में माता को पुष्प चढ़ाये, फल चढ़ाये, धुप-दीप जलायें और माँ को भोग लगायें। विधि-विधान से माँ की पूजा-अर्चना करें। नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी मित्रों बात का विशेष ध्यान रखें कि माँ दुर्गा की पूजा में लाल फूल का ही प्रयोग करें,, सावधानी, मित्रों गलती से भी देवी मां को तुलसी, आक, मदार व दूब अर्पित न करें।
गुप्त नवरात्रि में पूजे जाने वाली 10 महाविद्याएं
मां काली
ऐसी कथा प्रचलित है कि महिषासुर से युद्ध के समय माता का क्रोध अपनी चरम सीमा को पार कर गया था। उनका क्रोध उनके मस्तक से 10 भुजाओं वाली काली के रूप में प्रकट हुआ। दुर्गा के क्रोध से जन्मी काया का रंग काला होने के कारण, उन्हें काली नाम दिया गया।
मां काली की पूजा का मंत्र – ॐ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा.
मां काली की पूजा का मंत्र – ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्री हुं हुं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्री हुं हुं स्वाहा.
तारा देवी
माता तारादेवी को तांत्रिक शक्तियों की देवी माना जाता है। सभी कष्टों से तारने वाली देवी के रूप में देवी तारा की पूजा की जाती है। जब देवी सती के मृतदेह को श्री नारायण ने अपने चक्र से भंग किया था, उनके नेत्र पश्चिम बंगाल के जहां गिरे थे, आज वहां तारापीठ है। तारापीठ को नयनतारा के नाम से भी जाना जाता है और वहां माता की पूजा देवी तारा के रूप में होती है।
मां तारा की पूजा का मंत्र – ॐ ह्रीं स्त्रीं हूं फट.
त्रिपुर सुंदरी
देवासुर संग्राम के समय त्रिपुर सुंदरी ने अपनी सुंदरता से सभी असुरों को अपने वश में कर लिया था। कहते हैं कि इनके आराधना से अलौकिक शक्तियां भक्तों को प्राप्त होती है। त्रिपुर सुंदरी की शक्ति के बारे में देवी पुराण में काफी व्याख्या मिलती है।
मां त्रिपुरसुंदरी की पूजा का मंत्र – ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीये नम:
भुवनेश्वरी
मां भुवनेश्वरी की साधना से शक्ति, लक्ष्मी, वैभव और उत्तम विद्याएं प्राप्त होती हैं। तीनों लोकों को तारने वाली मां भुवनेश्वरी के तीन नेत्र हैं, जिसके तेज से सम्पूर्ण सृष्टि कीर्तिमान है ऐसा माना जाता है। मां भुवनेश्वरी की साधना के लिए कालरात्रि, ग्रहण, होली, दीपावली, महाशिवरात्रि, कृष्ण पक्ष की अष्टमी अथवा चतुर्दशी का समय शुभ माना गया है।
मां भुवनेश्वरी की पूजा का मंत्र – ह्रीं भुवनेश्वरीय ह्रीं नम:.
माता छिन्नमस्ता
दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ झारखण्ड में स्थित देवी छिन्नमस्ता का मंदिर है। देवी ने अपने लोगों की भूख शांत करने के लिए अपनी मस्तक काट दिया था, इसलिए इन्हें माता छिन्नमस्ता के नाम से जाना जाता है।
मां छिन्नमस्ता की पूजा का मंत्र – श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैररोचनिए हूं हूं फट स्वाहा.
त्रिपुर भैरवी
माता त्रिपुर भैरवी के चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। इनकी भक्ति से युक्ति और मुक्ति दोनों की प्राप्ति होती है। त्रिपुर भैरवी देवी की साधना से काम, आजीविका, सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
मां त्रिपुर भैरवी पूजा का मंत्र – ॐ ह्रीं भैरवी क्लौं ह्रीं स्वाहा.
मां धूमावती
माता पार्वती ने एक बार क्रोध में भगवान शिव को निगल लिया था। तब से उनका विधवा रूप प्रचलित हुआ जिसका नाम मां धूमावती है। मां धूमावती मानव जाति में बसे इच्छा और कामनाओं का प्रतीक है जो कभी भी खतम नहीं होता है।
मां धूमावती पूजा का मंत्र – धूं धूं धूमावती दैव्ये स्वाहा.
माता बगलामुखी
संस्कृत शब्द वल्गा, जिसका अर्थ दुल्हन होता है को दूसरे शब्दों में बगला कहा गया है। माता के अलौकिक रूप के कारण उन्हें बगलामुखी का नाम प्राप्त हुआ है। इनकी उत्पत्ति गुजरात के सौराष्ट्र में हल्दी के जल से हुई थी। इसलिए इन्हें पीताम्बरा देवी के नाम से भी जाना जाता है।
मां बगलामुखी की पूजा का मंत्र – ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं, पदम् स्तम्भय जिव्हा कीलय, शत्रु बुद्धिं विनाशाय ह्रलीं ऊँ स्वाहा.
मातंगी
देवी मातंगी, मातंग तंत्र की देवी मानी जाती हैं। इन्हें जूठन का भोग लगाया जाता है। जब माता पार्वती को कोई स्त्री अपने जूठन का भोग लगा रही थी तब शिवजी और गणों ने माना किया, परन्तु उन स्त्रियों की भक्ति को मान देने के लिए माता ने मातंगी का रूप धारण कर लिया।
मां मतांगी की पूजा का मंत्र – क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा.
कमला देवी
माता कमला देवी, मां लक्ष्मी का ही स्वरुप हैं। जो भक्त सच्चे मन से मां को याद करते हैं उन्हें धन- धान्य, ऐश्वर्य की कोई कमी नहीं होती है। लक्ष्मी हमेशा कमल के पुष्प पर आसीन रहती है। इसी कारण उनका नाम कमला पड़ा।
मां कमला की पूजा का मंत्र – क्रीं ह्रीं कमला ह्रीं क्रीं स्वाहा ।
मित्रों इनके अलावा आप नवदुर्गा रुप में भी इनकी पूजा कर सकते हैं,,
प्रतिपदा तिथि- घटस्थापना और मां शैलपुत्री की पूजा
द्वितीया तिथि - मां ब्रह्मचारिणी पूजा
तृतीया तिथि - मां चंद्रघंटा की पूजा
चतुर्थी तिथि - मां कूष्मांडा की पूजा
पंचमी तिथि - मां स्कंदमाता की पूजा
षष्ठी तिथि - मां कात्यायनी की पूजा
सप्तमी तिथि - मां कालरात्रि की पूजा
अष्टमी तिथि - मां महागौरी की पूजा
नवमी तिथि - मां सिद्धिदात्री की पूजा
दशमी- नवरात्रि का पारण या भैरव पुजा,,
अब इनके भोग और समाधान,,।।
प्रतिपदा- रोगमुक्त रहने के लिए प्रतिपदा तिथि के दिन मां शैलपुत्री को गाय के घी से बनी सफेद चीजों का भोग लगाएं. 

द्वितीया- लंबी उम्र के लिए द्वितीया तिथि को मां ब्रह्मचारिणी को मिश्री, चीनी और पंचामृत का भोग लगाएं. 

तृतीया- दुख से मुक्ति के लिए तृतीया तिथि पर मां चंद्रघंटा को दूध और उससे बनी चीजों का भोग लगाएं. 

चतुर्थी- तेज बुद्धि और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाने के लिए चतुर्थी तिथि पर मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं.

पंचमी- स्वस्थ शरीर के लिए मां स्कंदमाता को केले का भोग लगाएं.

षष्ठी- आकर्षक व्यक्तित्व और सुंदरता पाने के लिए षष्ठी तिथि के दिन मां कात्यायनी को शहद का भोग लगाएं. 

सप्तमी- संकटों से बचने के लिए सप्तमी के दिन मां कालरात्रि की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करें.

अष्टमी- संतान संबंधी समस्या से छुटकारा पाने के लिए अष्टमी तिथि पर मां महागौरी को नारियल का भोग लगाएं. 

नवमी- सुख-समृद्धि के लिए नवमी पर मां सिद्धिदात्री को हलवा, चना-पूरी, खीर आदि का भोग लगाएं,
इनके अलावा अगर आप कुछ नहीं कर सकते तो आप गुप्त नवरात्रि में मां दूर्गा की पूजा के साथ -साथ श्री दुर्गा सप्तशती के अर्गला स्तोत्र दुर्गा चालीसा, हनुमान चालीसा का पाठ भी करना चाहिए। इसके पाठ से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं 
मंत्र 
1, ‘ॐ दुं दुर्गायै नमः’ 
मंत्र: 
2 ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाय विच्चे,,
मित्रों ज्यादा कुछ नहीं आता हो तो सुबह शाम नहा धोकर 108 बार इन दोनों मंत्रों का जाप करें ध्यान रहे ऊपर भी जो सिद्ध विधा मंत्र दिए गये है उनका भी जाप रोज सुबह शाम 108 होना चाहिए,, नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी,,
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹 🌹 🙏🌹🌹

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