Saturday, March 29, 2025

कब से है नवरात्रि और क्या उपाय करें

।। चैत्र नवरात्रि तिथि पूजन शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि ।।

चैत्र नवरात्रि 2025  तिथि पूजन शुभ मुहूर्त-
उदयातिथि के अनुसार, चैत्र नवरात्र रविवार, 30 मार्च रविवार 2025 से ही शुरू होने जा रहा है।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त-
चैत्र नवरात्रि के लिए कलश स्थापना के दो विशेष मुहूर्त निर्धारित किए गए हैं-


पहला मुहूर्त प्रतिपदा के एक तिहाई समय में कलश स्थापना करना अत्यंत शुभ माना जाता है, जो 30 मार्च 2025 को सुबह 06:14 से 10:21 बजे तक है।

दूसरा मुहूर्त, अभिजीत मुहूर्त, 30 मार्च 2025 को दोपहर 12:02 से 12:50 बजे तक है, जब कलश स्थापित किया जा सकता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, घटस्थापना का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल होता है, जिसे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दौरान किया जाता है। यदि इस समय चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग उपस्थित हो, तो घटस्थापना को टालने की सलाह दी जाती है।

घटस्थापना का महत्व-
कलश स्थापना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह देवताओं की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन भी है।

कलश के मुख पर- भगवान विष्णु
गले में- भगवान शिव
नीचे के भाग में- भगवान ब्रह्मा
मध्य में- मातृशक्ति (दुर्गा देवी की कृपा)
इसलिए, घटस्थापना का सही समय और विधि अपनाकर देवी की कृपा प्राप्त की जा सकती है।

घटस्थापना की सही विधि-
साफ-सफाई करें: जिस स्थान पर घटस्थापना करनी है, वहां गंगाजल का छिड़काव करें और उसे पवित्र करें।

मिट्टी का पात्र लें: इसमें जौ बोएं, जो समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं।

कलश की स्थापना करें: मिट्टी के घड़े में जल भरें, उसमें गंगाजल, सुपारी, अक्षत (चावल), दूर्वा, और पंचपल्लव डालें।

नारियल रखें: कलश के ऊपर लाल या पीले वस्त्र में लिपटा हुआ नारियल रखें।

मां दुर्गा का आह्वान करें: मंत्रों का जाप करें और कलश पर रोली और अक्षत अर्पित करें।

नवरात्रि के दौरान दीप जलाएं: घटस्थापना के साथ अखंड ज्योति प्रज्वलित करें, ताकि घर में सुख और शांति बनी रहे।

घटस्थापना के लाभ-
घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
देवी दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
मनोकामनाएं पूरी होने का विश्वास है।
घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।
इस शुभ महोत्सव में ही कलश की स्थापना कर अच्छा रहेगा। दुर्गा जी के नौ भक्तों में सबसे पहले शैलपुत्री की आराधना की जाती है।

चैत्र नवरात्रि 2025 के कार्यक्रम-
चैत्र नवरात्रि 2025 का 09 दिनों का पूजा कैलेंडर के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है।

प्रत्येक दिन एक देवी का पूजन किया जाता है, और हर देवी के स्वरूप में अलग-अलग प्रकार की शक्ति और आशीर्वाद समाहित होते हैं। 

इस बार नवरात्रि 08 दिन की होगी लेकिन ज्वारे विसर्जन नवम दिन 07 अप्रैल को ही होगा।

दिन              तिथि        वार       देवी पूजा
प्रतिपदा  30 मार्च 2025 रविवार मां शैलपुत्री।
द्वितीया  31 मार्च 2025 सोमवार  मां ब्रह्मचारिणी।
तृतीया  01 अप्रैल 2025 मंगलवार  मां चंद्रघंटा।
चतुर्थी- पंचमी 02 अप्रैल  2025बुधवार  मां कूष्मांडा- स्कंदमाता। 
षष्ठी 03 अप्रैल 2025 गुरुवार   मां कात्यायनी।
सप्तमी  04 अप्रैल 2025 शुक्रवार  मां कालरात्रि।
अष्टमी 05 अप्रैल 2025 शनिवार  मां महागौरी।
नवमी  06 अप्रैल 2025  रविवार  मां सिद्धिदात्री।

सावधानियां और उपाय,,
नवरात्रि का व्रत करने वाले साधक को भूलकर भी खाने में सफेद नमक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, इसके स्थान पर सेंधा नमक का इस्तेमाल करें। नवरात्र की अवधि में तामसिक भोजन, शराब, मांस आदि से दूरी बनानी चाहिए। साथ ही इस पूरी अवधि में माता रानी की कृपा के लिए तन और मन की स्वच्छता का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए।

नवरात्रि के नौ दिनों में हर रोज जलते हुए कपूर पर एक लौंग रख लें और फिर उसको पूरे घर में घुमाएं। ऐसा करने से घर में मौजूद सभी तरह के दोष दूर होते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है। घर में सकारात्मक ऊर्जा के रहने से मां दुर्गा का भी घर में वास होता है, जिससे मंगल ही मंगल बना रहता है। साथ ही परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम बना रहता है और समाज में सम्मान भी मिलता है।
राहु केतु के अशुभ प्रभाव से राहत पाने के लिए चैत्र नवरात्रि के नौ दिन शिवलिंग पर लौंग चढ़ाएं और शिव परिवार का पूजन करें। ऐसा करने से छाया ग्रह के अशुभ प्रभाव से मुक्ति मिलती है और आपके अटके हुए कार्य बनने लग जाते हैं।
धन संबंधित समस्याओं से मुक्ति के लिए एक पीले कपड़े में लौंग का जोड़ा, 5 सुपारी, 5 इलायची रखकर एक पोटली बना लें और 9 दिन तक उसको माता के सामने रखें और माता मां के साथ उसकी भी हर रोज पूजा करें। फिर नवरात्रि के अंतिम दिन पोटली को तिजोरी में रख दें, ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि बढ़ती है और परिवार के सदस्यों की उन्नति भी होती है।
लाख मेहनत करने के बाद भी करियर में अच्छी उन्नति नहीं हो रही है या सैलरी में बढ़ोतरी नहीं हो रही तो चैत्र नवरात्रि में हर रोज लौंग का जोड़ा लेकर उसको अपने सिर से लेकर पैर तक सात बार वार लें और माता दुर्गा के चरणों में अर्पित कर दें या फिर आपके घर पर अग्यारी होती है तो उसमें अर्पित कर दें। ऐसा करने से करियर में अच्छी बढ़ोतरी होगी और धन प्राप्ति के नए नए मार्ग भी बनेंगे।
अगर परिवार में कोई सदस्य लगातार बीमार रहता या फिर बच्चों को बहुत जल्दी नजर दोष लग जाता है तो उनके उपर से 11 लौंग उतारकर किस चौराहे पर फेंक आएं, लेकिन ध्यान रखें कि पीछे मुड़कर ना देखें। ऐसा करने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है तो बच्चों की नजर लगना भी बंद हो जाता है।
वैवाहिक जीवन में लड़ाई झगड़ा होता रहता है या बात तलाक पहुंच गई है तो चैत्र नवरात्रि की अष्टमी तिथि को 3 लौंग को लाल कपड़े में बांधकर मां दुर्गा के मंदिर में रख आएं। साथ ही महागौरी माता को गुलाब के फूल के साथ लौंग अर्पित करके पूजन करें और फिर गुलाब को अपने कमरे में रख लें और लौंग को चाय में डालकर पति पत्नी दोनों पी लें। ऐसा करने से दोनों के बीच आपसी प्रेम मजबूत होगा और सभी तरह के लड़ाई झगड़े बंद हो जाएंगे।
नवरात्रि में मां लक्ष्‍मी को प्रसन्‍न करने के लिए नवरात्रि के 9 दिन रोजाना एक गुलाब के साथ मां दुर्गा को लौंग का एक जोड़ा चढ़ाएं। नवरात्रि में धन प्राप्ति के लिए लौंग का यह टोटका बहुत ही असरदार माना जाता है। इस उपाय को करने से आपके घर में बरकत बढ़ती है और मन में सकारात्‍मक विचार आते हैं।
नवरात्रि का महापर्व मां दुर्गा का प्रसन्‍न करने के साथ ही अपनी शक्तियों को जागृत करने का भी पर्व है। नवरात्रि में बजरंगबली को प्रसन्‍न करने के लिए भी लौंग का टोटका किया जा सकता है। नवरात्रि में मंगलवार या शन‍िवार को हनुमानजी के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं और उस दीपक में लौंग का एक जोड़ा डाल दें। फिर हनुमान चालीसा का पाठ करें। उसके बाद हनुमानजी की मूर्ति से बात करने के लहजे में अपनी समस्‍या या फिर अपनी मनोकामना बताएं। ऐसा माना जाता है बजरंगबली के दरबार में आपकी सुनवाई जल्‍द होगी।
अगर आपके घर में भी अजीब सा नकारात्‍मकता का माहौल बना हुआ है और आपस में सभी लोगों के बीच में अच्‍छा तालमेल नहीं है। तो नवरात्रि में लौंग का उपाय आपकी समस्‍या को दूर कर सकता है। नवरात्रि के नौ दिन रोजाना सुबह लौंग और कपूर का धुंआ पूरे घर में करना चाहिए। ऐसा करने से आपके घर की नकारात्‍मकता दूर होती है और सकारात्‍मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।
मनोकामना पूर्ति के लिए उपाय
अगर आप भी किसी मनोकामना की पूर्ति करना चाहते हैं तो नवरात्रि में रोज अपने हाथ में एक लौंग लेकर मां का मंत्र जपकर उनको अर्पित करें.


बुरी नजर के उपाय
अगर आप बुरी से छुटकारा पाना चाहते हैं तो एक लौंग को काले कपड़े में बांध कर अपने पास रखें.
अगर आपके घर में पैसों को लेकर हमेशा किल्‍लत बनी रहती है तो नवरात्रि में लौंग का उपाय करना बहुत ही अच्‍छा माना जाता है। लौंग का एक जोड़ा छोटे से पीले रंग के कपड़े में बांधकर घर के किसी कोने में लटका दें। या फिर अपने घर के धन के स्‍थान पर रख दें। ऐसा करने से धीरे-धीरे आपकी कमाई बढ़ने लगेगी और पैसों की किल्‍लत कम होने लगेगी।
अगर आपको ऐसा लगता है कि आपके घर में हर सुख सुविधा है लेकिन आपके दांपत्‍य जीवन में प्रेम और सौहार्द नहीं है तो यह नवरात्रि में यह उपाय करने से आपको प्रेम की प्राप्ति हो सकती है। नवरात्रि में अष्‍टमी के दिन मां दुर्गा के किसी मंदिर में 3 लौंग लाल कपड़े में बांधकर किसी मंदिर में दान कर दें। आपके जीवन में प्रेम बढ़ेगा। इसके साथ ही मां महागौरी को गुलाब की पंखु‍ड़ियों के साथ लौंग का एक जोड़ा चढ़ाएं। उसके बाद इन पत्तियों को अपने कमरे में रख लें और लौंग का जोड़ा चाय में डालकर पति को चाय पिलाएं। मां दुर्गा आपके जीवन को प्‍यार और खुशियों से भर देंगी।
अगर कई जगहों पर इंटरव्‍यू देने के बाद भी आपकी नौकरी नहीं लग रही है तो नवरात्रि में लौंग का यह उपाय आजमाकर देखें। नवरात्रि के पहले दिन लौंग का एक जोड़ा अपने ऊपर से 7 बार घुमाएं और उसे मां दुर्गा के चरणों में अर्पित कर दें। उसके बाद नवमी के दिन फिर से यही उपाय करें। आपकी नौकरी में आ रही बाधाएं शीघ्र ही दूर होंगी
कर्ज से मुक्ति के उपाय
अगर आपने किसी से कर्ज ले रखा है और आप उसे चुका पाने में असमर्थ है तो आप चैत्र नवरात्रि के दौरान इस उपाय को  कर कर्ज से मुक्ति पा सकते हैं. नवरात्रि के दौरान हर दिन एक लौंग को जलाकर उसकी राख को मां दुर्गा को अर्पित करें.
घर से नकारात्मकता दूर करने के उपाय
चैत्र नवरात्रि के दौरान घर में पॉजीटिव एनर्जी के लिए घर के मेन गेट पर रोजना 9 दिन तक 2 लौंग जलाएं. ऐसा करने से घर से नकारात्मकता दूर होती है.
नवरात्रि व्रत की कथा-
एक समय बृहस्पति जी ब्रह्माजी से बोले- हे ब्रह्मन श्रेष्ठ! चैत्र व आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? इस व्रत का क्या फल है, इसे किस प्रकार करना उचित है? पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहिये। बृहस्पतिजी का ऐसा प्रश्न सुन ब्रह्माजी ने कहा- हे बृहस्पते! प्राणियों के हित की इच्छा से तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेव, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं।

यह नवरात्र व्रत संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसके करने से पुत्र की कामना वाले को पुत्र, धन की लालसा वाले को धन, विद्या की चाहना वाले को विद्या और सुख की इच्छा वाले को सुख मिलता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है। मनुष्य की संपूर्ण विपत्तियां दूर हो जाती हैं और घर में समृद्धि की वृद्धि होती है, बन्ध्या को पुत्र प्राप्त होता है। समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है और मन का मनोरथ सिद्ध हो जाता है। जो मनुष्य इस नवरात्र व्रत को नहीं करता वह अनेक दुखों को भोगता है और कष्ट व रोग से पीड़ित हो अंगहीनता को प्राप्त होता है, उसके संतान नहीं होती और वह धन-धान्य से रहित हो, भूख और प्यास से व्याकूल घूमता-फिरता है तथा संज्ञाहीन हो जाता है।

जो सधवा स्त्री इस व्रत को नहीं करती वह पति सुख से वंचित हो नाना दुखों को भोगती है। यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन करे और दस दिन बान्धवों सहित नवरात्र व्रत की कथा का श्रवण करे। हे बृहस्पते! जिसने पहले इस महाव्रत को किया है वह कथा मैं तुम्हें सुनाता हूं तुम सावधान होकर सुनो। इस प्रकार ब्रह्मा जी का वचन सुनकर बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्माण मनुष्यों का कल्याम करने वाले इस व्रत के इतिहास को मेरे लिए कहो मैं सावधान होकर सुन रहा हूं। आपकी शरण में आए हुए मुझ पर कृपा करो।

ब्रह्माजी बोले- प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था, वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके संपूर्ण सद्गुणों से युक्त सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई। वह कन्या सुमति अपने पिता के घर बाल्यकाल में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन जब दुर्गा की पूजा करके होम किया करता, वह उस समय नियम से वहां उपस्थित रहती। एक दिन सुमति अपनी सखियों के साथ खेल में लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और वह पुत्री से कहने लगा अरी दुष्ट पुत्री! आज तूने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ट रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूंगा।

पिता का ऐसा वचन सुन सुमति को बड़ा दुख हुआ और पिता से कहने लगी- हे पिता! मैं आपकी कन्या हूं तथा सब तरह आपके आधीन हूं जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा से, कुष्टी से, दरिद्र से अथवा जिसके साथ चाहो मेरा विवाह कर दो पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है, मेरा तो अटल विश्वास है जो जैसा कर्म करता है उसको कर्मों के अनुसार वैसा ही फल प्राप्त होता है क्योंकि कर्म करना मनुष्य के आधीन है पर फल देना ईश्वर के आधीन है।

जैसे अग्नि में पड़ने से तृणादि उसको अधिक प्रदीप्त कर देते हैं। इस प्रकार कन्या के निर्भयता से कहे हुए वचन सुन उस ब्राह्मण ने क्रोधित हो अपनी कन्या का विवाह एक कुष्टी के साथ कर दिया और अत्यन्त क्रोधित हो पुत्री से कहने लगा-हे पुत्री! अपने कर्म का फल भोगो, देखें भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती हो? पिता के ऐसे कटु वचनों को सुन सुमति मन में विचार करने लगी- अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। इस तरह अपने दुख का विचार करती हुई वह कन्या अपने पति के साथ वन में चली गई और डरावने कुशायुक्त उस निर्जन वन में उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की।

उस गरीब बालिका की ऐसी दशा देख देवी भगवती ने पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रगट हो सुमति से कहा- हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुझसे प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो सो वरदान मांग सकती हो। भगवती दुर्गा का यह वचन सुन ब्राह्मणी ने कहा- आप कौन हैं वह सब मुझसे कहो? ब्राह्मणी का ऐसा वचन सुन देवी ने कहा कि मैं आदि शक्ति भगवती हूं और मैं ही ब्रह्मविद्या व सरस्वती हूं। प्रसन्न होने पर मैं प्राणियों का दुख दूर कर उनको सुख प्रदान करती हूं। हे ब्राह्मणी! मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं।

तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतांत सुनाती हूं सुनो! तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की। चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलखाने में कैद कर दिया। उन लोगों ने तुझको और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न जल ही पिया इस प्रकार नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ, इस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुझे मनोवांछित वर देती हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो सो मांगो।

इस प्रकार दुर्गा के वचन सुन ब्राह्मणी बोली अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हे दुर्गे। मैं आपको प्रणाम करती हूं कृपा करके मेरे पति का कोढ़ दूर करो। देवी ने कहा- उन दिनों तुमने जो व्रत किया था उस व्रत का एक दिन का पुण्य पति का कोढ़ दूर करने के लिए अर्पण करो, उस पुण्य के प्रभाव से तेरा पति कोढ़ से मुक्त हो जाएगा।ब्रह्मा जी बोले- इस प्रकार देवी के वचन सुन वह ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से जब उसने तथास्तु (ठीक है) ऐसा वचन कहा, तब उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ट रोग से रहित हो अति कान्तिवान हो गया। वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देख देवी की स्तुति करने लगी- हे दुर्गे! आप दुर्गति को दूर करने वाली, तीनों लोकों का सन्ताप हरने वाली, समस्त दु:खों को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, प्रसन्न हो मनोवांछित वर देने वाली और दुष्टों का नाश करने वाली जगत की माता हो। हे अम्बे! मुझ निरपराध अबला को मेरे पिता ने कुष्टी मनुष्य के साथ विवाह कर घर से निकाल दिया। पिता से तिरस्कृत निर्जन वन में विचर रही हूं, आपने मेरा इस विपदा से उद्धार किया है, हे देवी। आपको प्रणाम करती हूं। मेरी रक्षा करो।

ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! उस ब्राह्मणी की ऐसी स्तुति सुन देवी बहुत प्रसन्न हुई और ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी! तेरे उदालय नामक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीध्र उत्पन्न होगा। ऐसा वर प्रदान कर देवी ने ब्राह्मणी से फिर कहा कि हे ब्राह्मणी! और जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मांग ले। भगवती दुर्गा का ऐसा वचन सुन सुमति ने कहा कि हे भगवती दुर्गे! अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्र व्रत की विधि और उसके फल का विस्तार से वर्णन करें।

महातम्य-
इस प्रकार ब्राह्मणी के वचन सुन दुर्गा ने कहा- हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हें संपूर्ण पापों को दूर करने वाले नवरात्र व्रत की विधि बतलाती हूं जिसको सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है- आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत करें यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करें। विद्वान ब्राह्मणों से पूछकर घट स्थापन करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवी की मूर्तियां स्थापित कर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अर्घ्य दें। बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से अर्घ्य देने से कीर्ति, दाख से अर्घ्य देने से कार्य की सिद्धि होती है, आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति और केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती है। इस प्रकार पुष्पों व फलों से अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होने पर नवें दिन यथा विधि हवन करें।

खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, बिल्व (बेल), नारियल, दाख और कदम्ब आदि से हवन करें। गेहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, खीर एवं चम्पा के पुष्पों से धन की और बेल पत्तों से तेज व सुख की प्राप्ति होती है। आंवले से कीर्ति की और केले से पुत्र की, कमल से राज सम्मान की और दाखों से संपदा की प्राप्ति होती है। खांड, घी, नारियल, शहद, जौ और तिल तथा फलों से होम करने से मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला मनुष्य इस विधि विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस प्रकार बताई हुई विधि के अनुसार जो व्यक्ति व्रत करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना फल मिलता है। इस नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी! इस संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ, मंदिर अथवा घर में विधि के अनुसार करें।

ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अर्न्तध्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्तिपूवर्क करता है वह इस लोक में सुख प्राप्त कर अन्त में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होता है। हे बृहस्पते! यह इस दुर्लभ व्रत का महात्म्य है जो मैंने तुम्हें बतलाया है। यह सुन बृहस्पति जी आनन्द से प्रफुल्लित हो ब्राह्माजी से कहने लगे कि हे ब्रह्मन! आपने मुझ पर अति कृपा की जो मुझे इस नवरात्र व्रत का महात्6य सुनाया। ब्रह्मा जी बोले कि हे बृहस्पते! यह देवी भगवती शरक्ति संपूर्ण लोकों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है? बोलो देवी भगवती की जय।

दुर्गा माता की आरती-

ॐ जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री।।टेक।।

मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको।।जय।।

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै।।जय।।

केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी।।जय।।

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति।।जय।।

शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती।।जय।।

चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू।।जय।।

भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी।।जय।।

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति।।जय।।

श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै।।जय।।

जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻🌹🙏🏻

Monday, January 13, 2025

मकर संक्रांति को कौन सा मुहुर्त है और क्या दान करें ??

आप सभी सम्मानित धर्म प्रेमियों और देशवासियों को
        पावनपर्व मकरसंक्रांति- १४ जनवरी २०२५
                 की असीम एवं हार्दिक शुभकामनाएं....... !


मकर संक्रांति का पर्व सनातनी हिन्दुओं का प्रमुख एवं प्रसिद्ध त्यौहार है जो भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से भगवान सूर्य को समर्पित होता है। मकर संक्रांति के दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व होता है। शास्त्रों के अनुसार, यदि इस संक्रांति के शुरूआती छह घंटे के भीतर दान-पुण्य किया जाए तो वो फलदायी होता है। इसके अतिरिक्त शास्त्रों में वर्णित है कि दान सदैव अपनी कमाई से ही करना चाहिए, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि दूसरों को सताकर या दुख देकर कमाए गए धन से दान करने पर कभी भी फल की प्राप्ति नहीं होती है। मकर संक्रांति का त्यौहार किसानों के लिए भी विशेष होता है। 

मकर संक्रांति 2025 शुभ मुहूर्त नक्षत्र मंत्र इत्यादि,,
ब्रह्म मुहूर्त: 05:27 ए एम से 06:21 ए एम
अभिजीत मुहूर्त: 12:09 पी एम से 12:51 पी एम
अमृत काल: 07:55 ए एम से 09:29 ए एम
विजय मुहूर्त: 02:15 पी एम से 02:57 पी एम

नया साल आने में अब कुछ ही दिन बाकी हैं। नए साल के साथ लोगों को आने वाले त्योहारों का भी बेसब्री से इंतजार रहता है। ऐसे में मकर संक्रांति के त्योहार को लोग खूब हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इसे हिंदू धर्म के खास त्योहार में से एक माना जाता है, जो नए साल का पहला पर्व होता है। सूर्यदेव जब शनि की राशि मकर में गोचर करते हैं, उसी दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।

यूं तो हर महीने में संक्रांति तिथि आती है, लेकिन मकर संक्रांति को सबसे ज्यादा विशेषता दी जाती है। यह पर्व देशभर में अलग- अलग अंदाज में मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन दान करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। साल २०२५ में मकर संक्रांति की तिथि को लेकर लोगों के मन में दुविधा है। आइए जानते हैं कि साल २०२५ में मकर संक्रांति १४ जनवरी को मनाई जायेगी या १५ जनवरी को-

मकर संक्रांति २०२५ गंगा स्नान शुभ मुहूर्त-
आमतौर पर मकर संक्रांति का त्योहार १४ जनवरी को ही मनाया जाता है, लेकिन कई बार १४ या १५ तारीख को लेकर दुविधा हो जाती है। हालांकि इस साल यानी २०२५ में मकर संक्रांति का पर्व १४ जनवरी २०२५ को ही मनाया जाएगा।

इस दिन गंगा स्नान और दान का शुभ मुहूर्त सुबह ०९:०३ बजे से लेकर शाम ०५:४६ बजे तक रहने वाला है। इस शुभ मुहूर्त में गंगा स्नान और दान करने से विशेष लाभ मिलते हैं। इस पुण्य काल की अवधि ०८ घंटे ४२ मिनट रहने वाली है।

मकर संक्रांति २०२५ का महा पुण्य काल-
साल २०२५ में मकर संक्रांति के दिन १४ जनवरी को सुबह ०९:०३ बजे से लेकर सुबह १०:४८ बजे तक महा पुण्य काल रहेगा। इस मुहूर्त में पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है।

मकर संक्रांति का महत्व-
हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का त्योहार खास महत्व रखता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन ग्रहों के राजकुमार सूर्य देव शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं और इस दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं। मकर संक्रांति के दिन तिल का दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है।

श्रीमद्भगवद्गीता में उत्तरायण के समय को सकारात्मकता का प्रतीक बताया गया है। जिन लोगों का देह त्याग उत्तरायण के समय में होता है उनको ब्रह्म गति की प्राप्ति होती है।

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व-
धार्मिक दृष्टि से भी मकर संक्रांति का अत्यधिक महत्व है। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार, इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। जैसाकि शनि ग्रह मकर और कुंभ राशि के स्वामी है इसलिए मकर संक्रांति का पर्व पिता-पुत्र के मिलन से भी सम्बंधित है। मकर संक्रांति के दिन तीर्थ स्थानों पर पवित्र स्नान करने का काफी महत्व होता है।

शास्त्रों में दक्षिणायन को नकारात्मकता और उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। श्रीभगवद्गीता के अध्याय ८ में भगवान कृष्ण ने कहा हैं कि उत्तरायण के छह माह के दौरान देह त्यागने से ब्रह्मगति प्राप्त होती हैं जबकि दक्षिणायन के छह महीने में देह त्यागने वाले मनुष्य को संसार में पुनः जन्म-मृत्यु के चक्र की प्राप्ति होती हैं।

मकर संक्रांति का ज्योतिषीय महत्व-
मकर संक्रांति का पर्व सामान्यतः १४ जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन जब पौष माह में सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है या दक्षिणायन से उत्तरायण होता है, तब मकर संक्रांति का पर्व मनाते है। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि मे प्रवेश करने को संक्रांति कहते है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार, जनवरी महीने में प्रायः १४ तारीख को जब सूर्य धनु राशि से (दक्षिणायन) मकर राशि में प्रवेश कर उत्तरायण होता है तो मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।

हिंदू त्यौहारों की गणना अधिकतर चंद्र आधारित पंचांग के आधार पर होती है लेकिन मकर संक्रांति को सूर्य पर आधारित पंचांग की गणना द्वारा मनाया जाता है। इस दिन से ही ऋतु में परिवर्तन होना शुरू हो जाता है। शरद ऋतु धीरे-धीरे कम होने लगती है और बसंत ऋतु का आरम्भ हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप दिन लंबे होने लगते हैं और रातें छोटी हो जाती है।

देश के विभिन्न प्रांतों में मकर संक्रांति का त्यौहार मनाने का प्रकार- 
मकर संक्रांति के त्यौहार को नई ऋतु और नई फसल के आगमन के रूप में भी किसानों द्वारा उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन देश के कई राज्यों जैसे यूपी, पंजाब, बिहार सहित तमिलनाडु में नई फसल की कटाई की जाती है, इसलिए किसान द्वारा मकर संक्रांति के पर्व को आभार दिवस के रूप में मनाते हैं। 

खेतों में धान की लहलहाती फसल किसानों को उनकी मेहनत के परिणामस्वरूप प्राप्त होती है जो ईश्वर और प्रकृति के आशीर्वाद से ही संभव होता है। मकर संक्रांति पंजाब और जम्मू-कश्मीर में ’लोहड़ी’ के नाम से प्रसिद्ध है। तमिलनाडु में मकर संक्रांति को ’पोंगल’ के रूप में मनाया जाता है, वहीं यह पर्व उत्तर प्रदेश और बिहार में ’खिचड़ी’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन मकर संक्रांति पर कहीं-कहीं खिचड़ी बनाते है तो कहीं दही चूड़ा और तिल के लड्डू बनाये जाते हैं।

लोहड़ी-
मकर संक्रांति के दिन सहित उत्तर भारत पंजाब में लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है जो फसलों की कटाई करने के बाद १३ जनवरी को मनाई जाती है। संध्याकाल पर अलाव जलाकर अग्नि को तिल, गुड़ और मक्का का भोग लगाया जाता है।

पोंगल-
दक्षिण भारत का प्रमुख हिन्दू त्यौहार है पोंगल जो मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से किसानों का होता है। इस अवसर पर धान की कटाई करने के बाद लोग अपनी खुशी प्रकट करने के लिए पोंगल मनाते हैं। पोंगल को ’तइ’ नामक तमिल माह की पहली तारीख अर्थात जनवरी की १४ तारीख को मनाया जाता है। तीन दिनों तक निरंतर चलने वाला पर्व सूर्य देव और इंद्र देव को समर्पित होता है। पोंगल के त्यौहार द्वारा समस्त किसान उपजाऊ भूमि, अच्छी बारिश एवं फसल के लिए ईश्वर का धन्यवाद प्रकट करते हैं। 

उत्तरायण-
गुजरात में उत्तरायण को विशेष रूप से मनाया जाता है। नई फसल और ऋतु के आगमन की ख़ुशी में इस पर्व को १४ और १५ जनवरी को मनाया जाता है। मकर संक्रांति के अवसर पर गुजरात में पतंग उड़ाने की परंपरा है और इस दिन यहाँ पर पतंग महोत्सव का आयोजन भी होता है। उत्तरायण के दिन व्रत भी किया जाता है और तिल व मूंगफली दाने की चक्की बनाने की परंपरा है।

बिहू-
माघ माह की संक्रांति के प्रथम दिन से माघ बिहू अर्थात भोगाली बिहू का त्यौहार मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से फसल की कटाई का पर्व है। बिहू के अवसर पर कई तरह के पकवान बनाकर खाये और खिलाये जाते हैं। भोगाली बिहू के दिन अलाव जलाकर तिल और नरियल से बने व्यंजन से अग्नि देवता को भोग लगाए जाते हैं। 

मकर संक्रांति से जुड़ें रीति-रिवाज़-
मकर संक्रांति के दिन आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है। इस दिन विशेष रूप से पतंग महोत्सव आयोजित किये जाते है।

अग्नि के आसपास लोक गीत पर नृत्य किया जाता है जिसे आंध्र प्रदेश में "भोगी", पंजाब में "लोहड़ी" और असम में "मेजी" केहते है। इस दिन धान और गन्ना आदि फसलों की कटाई की जाती है।

मकर संक्रांति पर पवित्र नदियों, विशेष रूप से गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी में स्नान करना शुभ होता हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन स्नान से पूर्व जन्मों के पापों का नाश होता है।

इस दिन सफलता और समृद्धि के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है जिन्हें ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। मकर संक्रांति पर "कुंभ मेला", "गंगासागर मेला" और "मकर मेला" आदि आयोजित किए जाते हैं।

मकर संक्रांति के दिन किया जाने वाला दान-
मकर संक्रांति के दिन ब्राह्माणों को तिल से बनी चीजों का दान करना पुण्यकारी माना गया है। इस दिन किसी जरूरतमंद व्यक्ति को कंबल का दान करना बेहद शुभ होता है। मकर संक्रांति पर खिचड़ी दान का विशेष महत्व होता है। इस दिन खिचड़ी के दान से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

घी: मकर संक्रांति के दिन शुद्ध घी का दान करने से करियर में लाभ और भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। इस दिन गुड़ के दान से नवग्रह से जुड़ें दोष दूर हो जाते है।

मकर संक्रांति शुभकामनाओं का महत्व-
मकर संक्रांति केवल पतंगबाजी और तिल-गुड़ की मिठास तक सीमित नहीं है। यह दिन सकारात्मकता, धन्यवाद और खुशी फैलाने का है। दिल से दी गई शुभकामनाएं अपनों के साथ संबंधों को और मजबूत करती हैं और त्योहार की असली भावना को दर्शाती हैं।

अंत में भगवान सूरज की किरणें आपके जीवन में शांति, समृद्धि और सकारात्मकता लाएं। यह मकर संक्रांति आपके जीवन को अपार खुशी, प्रेम और सुख से भर दे।
भौम पुष्य योग में मकर संक्रांति 2025

मकर संक्रांति पर 19 साल बाद दुर्लभ भौम पुष्य योग बन रहा है. जिस मंगलवार के दिन पुष्य नक्षत्र होता है, उस दिन भौम पुष्य नक्षत्र होता है. मंगल को भौम भी कहा जाता है. मकर संक्रांति के अवसर पर भौम पुष्य योग सुबह 10 बजकर 17 मिनट से पूरे दिन रहेगा.
मकर संक्रांति 2025 पूजा सामग्री

1. काले तिल, गुड़ या काले तिल के लड्डू2. दान देने के लिए अन्न में चावल, दाल, सब्जी या खिचड़ी, तिल, तिल के लड्डू, गुड़ आदि.3. गाय का घी, सप्तधान्य यानी 7 प्रकार के अनाज या फिर गेहूं4. तांबे का लोटा, लाल चंदन, लाल कपड़ा, लाल फूल और फल5. एक दीप, धूप, कपूर, नैवेद्य, गंध आदि6. सूर्य चालीसा, सूर्य आरती और आदित्य हृदय स्तोत्र की पुस्तक इत्यादि,

मकर संक्रांति 2025 सूर्य पूजा मंत्र
1. ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः

2. ओम ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते,अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:.

मकर संक्रांति का स्नान और दान कब करें?
14 जनवरी को मकर संक्रांति का स्नान और दान आपको महा पुण्य काल में सुबह 9:03 बजे से सुबह 10:48 बजे के बीच कर लेना चाहिए. यदि किसी कारणवश आप इस समय में स्नान और दान नहीं कर पा रहे हैं तो आप पुण्य काल में सुबह 9:03 बजे से शाम 5:46 बजे के बीच कभी भी कर लें.

।। आप सभी धर्म प्रेमियों और स्नेहीजनों को पावनपर्व मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं ।।
🙏🏻आपका दिन मंगलमय हो 🙏🏻
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जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻🌹🙏🏻


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