सम्पूर्ण तन्त्र शास्त्रों के प्रणेता भगवान शंकर ही माने जाते हैं। शाबर तंत्र का उद्भव भी उन्हीं भोले नाथ के मुख से ही हुआ है। ये मंत्र अंचलीय अथवा ग्रामीण भाषा में होते हैं। प्रायः देखने में आता है कि इनका कोई अर्थ उद्भाषित नहीं होता है, लेकिन इनका प्रभाव बहुत सटीक होता है।
वैदिक मंत्रों की भांति इनमें बहुत लम्बा अनुष्ठान करने की आवश्यकता नहीं होती है। इन्हें किसी विशिष्ट काल में थोड़े ही संख्या में जप करने से कार्य पूर्ण हो जाता है। इनकी साधना हेतु साधक को अल्प अवधि में, थोडे़ से परिश्रम से सिद्धि प्राप्त हो जाती है। मंत्रों की सरलता और सुगमता होने के साथ-साथ ही इनमें परम चमत्कारी गुण भी विद्यमान हैं। इनमें विभिन्न प्रांतों के क्षेत्रीय भाषाओं में षट्कर्मो, जैसे- शांतिकरण , वशीकरण, आकर्षण, उच्चाटन, विद्वेषण तथा मारण कर्मों के विधानों का उल्लेख आता है, जो साधकों के लिए वरदान स्वरूप प्रतीत होते हैं।
शाबर मंत्रों की साधना में गुरू का महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसके अतिरिक्त इसमें सम्बन्धित साधक अथवा देवी-देवता को सौगंध देकर कार्य पूर्ण कराने का भी विधान है। इसी लिए मंत्रों के अन्त में ‘मेरी भक्ति गुरू की शक्ति अथवा ‘लोनी चमारी की आन’ जैसे वाक्य जुड़े होते हैं।
कुछ साधक पुस्तकों अथवा किन्हीं अन्य श्रोतों से मंत्र प्राप्त करके सीधे जप आरम्भ कर देते हैं, यह उचित नहीं है। कुछ मंत्र इतने प्रभावशाली होते हैं, जो साधक के लिए जी का जंजाल बन जाते हैं। अतः मेरा परामर्श है कि जब भी इन मंत्रों की साधना करें अपने गुरू से परामर्श अवश्य लें और उनके निर्देषानुसार ही साधना आरम्भ करें।
1॰ “ॐनमो रुद्राय, कपिलाय, भैरवाय, त्रिलोक-नाथाय, ॐ ह्रीं फट् स्वाहा।”
विधिः- -: सर्व-प्रथम किसी रविवार को दीपक, गुग्गुल, धूप सहित उपर्युक्त मन्त्र का पन्द्रह हजार जप कर उसे सिद्ध करे। फिर आवश्यकतानुसार इस मन्त्र का 108, 108 बार जप कर एक लौंग को अभिमन्त्रित लौंग को, साध्य को खिलाए
2॰ “ॐ नमो काला गोरा भैरुं वीर, पर-नारी सूँ देही सीर। गुड़ परिदीयी गोरख जाणी, गुद्दी पकड़ दे भैंरु आणी, गुड़, रक्त काधरि ग्रास, कदे न छोड़े मेरा पाश। जीवत सवै देवरो, मूआ सेवै मसाण। पकड़ पलना ल्यावे। काला भैंरु न लावै, तो अक्षर देवीकालिका की आण। फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा।”
विधिः- 21,000 जप। आवश्यकता पड़ने पर 21 बार गुड़ को अभिमन्त्रितकर, जिसे वशीभूत करना हो, उसे खिलाए।
3॰ “ॐ भ्रां भ्रां भूँ भैरवाय स्वाहा। ॐ भं भं भं अमुक-मोहनाय स्वाहा।”
विधिः-:- उक्त मन्त्र को सात बार पढ़कर पीपल के पत्ते को अभिमन्त्रित करे। फिर मन्त्र को उस पत्ते पर लिखकर, जिसका वशीकरण करना हो, घर के पिछवाड़े गाड़ दे। या उसके घर में फेंक देवे।यही क्रिया ‘फुरहठ’ या ‘छितवन’ के पत्ते द्वारा भी हो सकती है।
4-: “बारा राखौ, बरैनी, मूँह म राखौं कालिका। चण्डी म राखौं मोहिनी, भुजा म राखौं जोहनी। आगू मराखौं सिलेमान, पाछे म राखौं जमादार। जाँघे म राखौं लोहा के झार, पिण्डरी म राखौं सोखन वीर। उल्टन काया, पुल्टन वीर,हाँक देत हनुमन्ता छुटे। राजा राम के परे दोहाई, हनुमान के पीड़ा चौकी। कीर करे बीट बिरा करे, मोहिनी-जोहिनी सातोंबहिनी। मोह देबे जोह देबे, चलत म परिहारिन मोहों। मोहों बन के हाथी, बत्तीस मन्दिर के दरबार मोहों। हाँक परे भिरहामोहिनी के जाय, चेत सम्हार के। सत गुरु साहेब।”
विधि- यह मन्त्र स्वयं सिद्ध है तथा एक गुरु के द्वारा अनुभूत प्रयोग में दिया गया है। कभी भी समय में 108 बार जप करने से विशेष फल मिलता है । गुड़, नींबू, , सिन्दूर, अगर-बत्ती और नारियल का भोग लगाकर 108 बार मन्त्र का जप करो । यहे जप रुद्राक्ष की माला पैर होने से परिणाम और बी अचे आते है ..
फायदे: मुकदमा-विवाद, कोर्ट-कचहरी, शत्रु-वशीकरण, आपसी कलह, इण्टरव्यू, नौकरी- उच्च अधीकारियों सेसम्पर्क करते समय करे। मन्त्र का जप इस प्रकार करते हुए जाय की मन्त्र की पूर्णता ठीक इच्छित व्यक्ति के एक दम सामने हो।
वैदिक मंत्रों की भांति इनमें बहुत लम्बा अनुष्ठान करने की आवश्यकता नहीं होती है। इन्हें किसी विशिष्ट काल में थोड़े ही संख्या में जप करने से कार्य पूर्ण हो जाता है। इनकी साधना हेतु साधक को अल्प अवधि में, थोडे़ से परिश्रम से सिद्धि प्राप्त हो जाती है। मंत्रों की सरलता और सुगमता होने के साथ-साथ ही इनमें परम चमत्कारी गुण भी विद्यमान हैं। इनमें विभिन्न प्रांतों के क्षेत्रीय भाषाओं में षट्कर्मो, जैसे- शांतिकरण , वशीकरण, आकर्षण, उच्चाटन, विद्वेषण तथा मारण कर्मों के विधानों का उल्लेख आता है, जो साधकों के लिए वरदान स्वरूप प्रतीत होते हैं।
शाबर मंत्रों की साधना में गुरू का महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसके अतिरिक्त इसमें सम्बन्धित साधक अथवा देवी-देवता को सौगंध देकर कार्य पूर्ण कराने का भी विधान है। इसी लिए मंत्रों के अन्त में ‘मेरी भक्ति गुरू की शक्ति अथवा ‘लोनी चमारी की आन’ जैसे वाक्य जुड़े होते हैं।
कुछ साधक पुस्तकों अथवा किन्हीं अन्य श्रोतों से मंत्र प्राप्त करके सीधे जप आरम्भ कर देते हैं, यह उचित नहीं है। कुछ मंत्र इतने प्रभावशाली होते हैं, जो साधक के लिए जी का जंजाल बन जाते हैं। अतः मेरा परामर्श है कि जब भी इन मंत्रों की साधना करें अपने गुरू से परामर्श अवश्य लें और उनके निर्देषानुसार ही साधना आरम्भ करें।
1॰ “ॐनमो रुद्राय, कपिलाय, भैरवाय, त्रिलोक-नाथाय, ॐ ह्रीं फट् स्वाहा।”
विधिः- -: सर्व-प्रथम किसी रविवार को दीपक, गुग्गुल, धूप सहित उपर्युक्त मन्त्र का पन्द्रह हजार जप कर उसे सिद्ध करे। फिर आवश्यकतानुसार इस मन्त्र का 108, 108 बार जप कर एक लौंग को अभिमन्त्रित लौंग को, साध्य को खिलाए
2॰ “ॐ नमो काला गोरा भैरुं वीर, पर-नारी सूँ देही सीर। गुड़ परिदीयी गोरख जाणी, गुद्दी पकड़ दे भैंरु आणी, गुड़, रक्त काधरि ग्रास, कदे न छोड़े मेरा पाश। जीवत सवै देवरो, मूआ सेवै मसाण। पकड़ पलना ल्यावे। काला भैंरु न लावै, तो अक्षर देवीकालिका की आण। फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा।”
विधिः- 21,000 जप। आवश्यकता पड़ने पर 21 बार गुड़ को अभिमन्त्रितकर, जिसे वशीभूत करना हो, उसे खिलाए।
3॰ “ॐ भ्रां भ्रां भूँ भैरवाय स्वाहा। ॐ भं भं भं अमुक-मोहनाय स्वाहा।”
विधिः-:- उक्त मन्त्र को सात बार पढ़कर पीपल के पत्ते को अभिमन्त्रित करे। फिर मन्त्र को उस पत्ते पर लिखकर, जिसका वशीकरण करना हो, घर के पिछवाड़े गाड़ दे। या उसके घर में फेंक देवे।यही क्रिया ‘फुरहठ’ या ‘छितवन’ के पत्ते द्वारा भी हो सकती है।
4-: “बारा राखौ, बरैनी, मूँह म राखौं कालिका। चण्डी म राखौं मोहिनी, भुजा म राखौं जोहनी। आगू मराखौं सिलेमान, पाछे म राखौं जमादार। जाँघे म राखौं लोहा के झार, पिण्डरी म राखौं सोखन वीर। उल्टन काया, पुल्टन वीर,हाँक देत हनुमन्ता छुटे। राजा राम के परे दोहाई, हनुमान के पीड़ा चौकी। कीर करे बीट बिरा करे, मोहिनी-जोहिनी सातोंबहिनी। मोह देबे जोह देबे, चलत म परिहारिन मोहों। मोहों बन के हाथी, बत्तीस मन्दिर के दरबार मोहों। हाँक परे भिरहामोहिनी के जाय, चेत सम्हार के। सत गुरु साहेब।”
विधि- यह मन्त्र स्वयं सिद्ध है तथा एक गुरु के द्वारा अनुभूत प्रयोग में दिया गया है। कभी भी समय में 108 बार जप करने से विशेष फल मिलता है । गुड़, नींबू, , सिन्दूर, अगर-बत्ती और नारियल का भोग लगाकर 108 बार मन्त्र का जप करो । यहे जप रुद्राक्ष की माला पैर होने से परिणाम और बी अचे आते है ..
फायदे: मुकदमा-विवाद, कोर्ट-कचहरी, शत्रु-वशीकरण, आपसी कलह, इण्टरव्यू, नौकरी- उच्च अधीकारियों सेसम्पर्क करते समय करे। मन्त्र का जप इस प्रकार करते हुए जाय की मन्त्र की पूर्णता ठीक इच्छित व्यक्ति के एक दम सामने हो।
5-सम्भोग सुख वशीकरण
ऐं सहवल्लरी क्लीं कर क्लीं कर पिसाच
अमुकीं काम ग्राहा, स्वपने मम रूपे नखै
विदारय विदारय, द्रावय, द्रावय रद महेन
बन्धय बन्धय श्रीं फट्
विधि : मध्य रात्रि के समय सारे कपडे उतार कर, उत्तर दिशा कि तरफ मुख कर के इस मंत्र का पाठ करना है। जप करते समय अमुकी के स्थान पर अभिलाषित लड़की और स्त्री का नाम लें।
ध्यान रखें: इस जप को जपते समय आपको अपने आप को पूर्ण रूप से कामुक कर लेना है तभी ये सफल होगा। इस क्रिया से आपको जल्दी ही मनचाही स्त्री प्राप्त होगी।
अवधि : इस को कुल 21 दिनों तक करना है। और सूर्यादय से पहले ये करना है। प्रतिदिन 3 माला जपना है। सफलता आपके हाथ में होगी।
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