Thursday, April 23, 2020

दीक्षा के भेद ४ चार

दीक्षा के भेद ४ चार
जैसा मित्रो हमने हमारे गुरू कृपा ओर इष्टकृपा के माध्यम से आप सभी को यहाँ गुरू दीक्षा के छः ६ भेद बता चूके है हालाकि सभी दीक्षा भेद इनमे से ही निकले है पर ये आठ ८ भेद प्रमुख है बाकी सभी प्रकार इनसे ही निकले है,
७, सातः, शाम्भवी दीक्षा ,ये सिर्फ मात्र विचार या स्पर्श से ही सब कुछ संभव हो जाता है या स्मरण मात्र से ही,
गुरोरालोकमोत्रण भाषणात् स्पर्शनादिप ध्यानम , ,, सघः संजायते ग्यानं सा दीक्षा शाम्भवी मता ,।।
मित्रो इन सभी का मतलब यही है कि आपका अगर गुरूदेव पर पुणे विश्वास है तो उनका ध्यान करने से ही आपको गति मिल सकती है साधना श्रेत्र अथवा सांसरिक सागर को पार करने मे, ये गुरूदेव पर निर्भर है की वो आपकी ओर कृपापूर्वक कब देखते है या कब बात करते है (संभाषण, वार्तालाप )से या स्पर्श ( प्रेमपूर्वक शिष्य को छुने से या मस्तक पर हाथ पिरोने से या आग्या चक्र मे अपनी ऊर्जा के संचार करने से मात्र ही ) शिष्य मे शक्तियों का संचार हो जाता है ओर अगर शिष्य गुरू भक्त हो तो छुने मात्र से ही उनके ह्रदय मे एकदम यानी तत्काल ही ग्यान उत्पन्न हो जाता है पर इसमे गुरूशिष्य के साथ आपका रिश्ता दर्शाता है कि आप कैसे है ओर इष्ट से मिलाती है यही कृपा गुरू की सारी शक्तियां शिष्यो को जागृत आवस्था मे ले आती है अगर समझदार या समझने वाला शिष्य हुआ तो वो गुरू भी सौ या हजार कदम आगे रह सकता है ओर अपना ओर अपने गुरू का नाम अमर कर सकता है, ये दीक्षा मात्र नही ये माँ  आदि शक्ति का ही एक रुप है
८,आठवी दीक्षा, वाग्दीक्षा, यानी वाणी द्वारा दी जानी वाली दीक्षा कर्णदीक्षा भी इसका का अंग है,, यानी मंत्रोद्वारा या अपनी श्रीवाणी से दीक्षित करना,,
मित्रो इसमे आदिनाथ द्वारा स्वयंम माता को शाम्भवी नाम देकर इस दीक्षा के बारे मे पुणे विस्तार से बताया गया है,, है शाम्भवी, वाणी द्वारा जो दीक्षा दी जाती है उसको वाग्दीक्षा कहाँ जाता है जैसे मंत्र स्वर्ण करना कान मे या एंकात मे गुरू द्वारा शिष्यो को मंत्रो का उपदेश प्रदान करना, इसमे मे भी तीव्रा ओर तीव्रतमा नामक दो भेद है, जिस समय षडध्वग्यानी गुरू शिष्य के जानु, नाभि, ह्रदय ओर सभी षट् स्थानो मे भुवन, तत्व, कला, वर्ण, पद, ओर मन्त्राध्व को चिन्हित कर गुरूपदिष्ट मार्ग से बेध कर उसको मंत्र प्रदान करता है तो उसी समय शिष्य सभी पापो से मुक्त होकर तथा पाशरहित होकर भूमि पर लेटता है ओर उसको दिव्यभाव प्राप्त होता है, मित्रो नादान बालक की कलंम से आज बस इतना बाकी फिर कभी ये सारी दीक्षाये शिष्यो के लिए है पर यह सब शिष्य की योग्यता पर भी निर्भर है की गुरू से क्या ले ओर क्या दे गुरू अगर निर्धन है तो गुरू के भरण पोषण की जिम्मेदारी सभी शिष्यो की रहती है चाहे गुरू मांगे या ना मांगे, क्योंकि पिता वह जो पुत्रो को खिलाये यहाँ भी शिष्यो को पुत्र ओर गुरू को पिता समझा जाता है,, ओर गुरू का पिता समझा जाता है जब तक शिष्य आध्यात्मिक मे परिपक्व नही हो जाता जब तक गुरू यानी पिता की जिम्मेदारी बनती है कि वो उसको आगे बढाये या उसका आध्यात्मिक पुण्य आगे ले जाये,, इसी प्रकार सभी दीक्षा कर्मपुर्वक प्राप्त करके, आप अपने अलग अलग आदिनाथ या आदिशक्ति, मतलब रूद्र रुप या रुद्र रूपायै की या अलग अलग महाविधाओ की उनकी अाम्नाय दीक्षा लेकर फिर, शाक्ताभिषेक दीक्षा के बाद पुर्णोभिषेक दीक्षा प्राप्त करे, उसके बाद, क्रमानुसार या गुरू कृपानुसार मेधा दीक्षा महामेधा दीक्षा, बाद मे समााज्या दीक्षा प्राप्त करे,,
बाकी कल पोस्ट करते है,, आगे क्या है देखते है 😍
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻🌹🙏🏻

Monday, April 20, 2020

दीक्षा के भेद पार्ट ३ तीन

दीक्षा के भेद पार्ट ३, तीन,
जैसा की मित्रो हमने दुसरे पार्ट मे आपको चार भेदो का वर्णन विस्तार पुर्वक समझाया था कि कैसे दीक्षा ओर उनके कितने भेद होते है हालिक यह सब हमारे गुरूजनो की देने है, हमारी जन्म देने वाली परम पुजनीये माता जी से हमे आध्यात्मिक मिला है उनकी कृपा से हमे गुरूओ की कृपा मिलती रही है इसी क्रम मे हर गुरूजनो से हमे कुछ ना कुछ मिला है,, हमारे प्रथम सद्गुरू परमपुजनीये नरेश जी शर्मा ,मेजा  (भीलवाड़ा ) ओर परम पुजनीये गुरूदेव ओघडबाबा श्री बरदा बाबा गागेड़ा (भीलवाड़ा ) ओर परम पुजनीये गुरूदेव आत्मविकासानन्द जी गिरी ,प्रयागराज, (उ,प्र) ओर परम पुजनीये गुरू योगी रामनाथ जी धर्मपंत, गुरूगद्धी, अस्तलपुर बनारस, (उ, प्र) इनके अलावा भी कई गुरूजनो मे हमे कृपा प्राप्त हुयी है मित्रो दीक्षा के भेद जो हम यहाँ बता रहे वो तो ठीक है पर इनके अलावा भी गुरूजनो की कृपा कई तरह से हो सकती है,, यही सत्य है कई ओघड अघोरी कई पीर फकीर संतो से कुछ ना कुछ मिला है पर लास्ट मे यही ग्यान मिला है की गुरू ओर इष्ट कृपा के आगे सभी साधना सिद्धि सब बेकार है नादान बालक की कलम से आज बस इतना बाकी फिर कभी तो मित्रो गुरू संयोग ओर कर्मो से मिलते है इसके अलावा ग्यान ओर ध्यान कभी भी किसी से भी लिया जा सकता है पर गुरू तत्व तो फिर भी जन्मो जन्मो से वो ही चलता रहता है, तो मित्रो आगे है दीक्षा के भेद,,  अब आगे भेद नं पांच,,
५,,, वर्ण दीक्षा, यानी शरीर के देवतत्व को जागृत करना,,
वर्णदीक्षा त्रिधा प्रोक्ता द्विचत्वारिंशदक्षरैः । पंच्चशद्ववर्णकैर्देवि! द्विषष्टिलिपभिस्तु वै, ।।

यानि शिष्य के शरीर मे मातकारूपिणी भगवती के ४२ वर्णो से या ५० अक्षरों से या ६२ भूत लिपियाें से न्यास द्वारा उसमे देवता का भाव यानी देवत्व को पैदा या जागृत किया जाता है यानी मातृकान्यास ओर इष्टमंत्रन्यास द्वारा शिष्यशरीर मे देवत्व का अवतरण कराया जाता है,, जिसने शिष्य को काफी कुछ त्याग करना पड़ता है क्योकि ये समय वो है जिसमे सबसे ज्यादा सयंम की जरूरत पडती है कई चीजो का त्याग करना पडता है माया के लोभ को त्यागना पड़ता है यही देवत्व जागृत दीक्षा यानी वर्ण दीक्षा है,
६,, कला दीक्षा, यानी पंचभुतो का शरीर मे सोमवेश अथवा जागृति संस्कार या कलाशक्ति का संस्कार,,
कला दीक्षा च विग्रेया कर्तव्या विधिवत् प्रिये, । निवृत्तिर्जानुपर्यन्त तलादारभ्य संस्थिता, ।।
इयं प्रोक्ता कुलेशनि, दिव्यभावप्रदायिनी,,
मित्रो इसमे कलाओ के न्यायपूर्वक यह दीक्षा दी जाती है इसलिए कलान्यास हम यहाँ उजागर कर रहे है जो इस प्रकार रहेगी नादान बालक की कलम से गुरूजनो की ओर इष्टकृपा से कलान्यास यहाँ प्रकट कर रहे है बाबा काशीविश्वनाथ, राधा माधव बाबा दण्डप्रणि ,मणिकणिका बाबा त्रयंबकराज कालभैरव संकटमोचन सर्वदा हमारे सतत रहे,,
कलान्यास,
पादतलात् जानुपर्यन्तं ॐ निवृत्त्यै नमः ।जान्वोर्नाभिपर्यन्तं, ॐ प्रतिष्ठायै नमः ।नाभेः कण्ठपर्यन्त, ॐ विधायै नमः। कण्ठाल्ल्लाटान्तं, ॐ शान्त्यै नमः, । ललाटाद् ब्रह्मरन्ध्रपर्यन्त, ॐ शान्तयतीतायै नमः, ब्रह्मरन्ध्रात् आललांट ,ॐ शान्त्यतीतायै नमः ।, ललाटात् कण्ठपर्यन्त, ॐ शान्त्यै नमः। कण्ठात् नाभिपर्यन्तं,  ॐ विधायै नमः । नाभेर्जानुपर्यन्त, ॐ प्रतिष्ठायै नमः । जान्वोः पादपर्यन्तं ,ॐ निवृत्त्यै नमः, ।।
मित्रो इस न्यास मे प्रत्येक नाम के पीछे,, कलायै नमः  ,,,लगेगा यानि निवृत्तिकलायै नमः या निवृत्त्यै कलायै नमः लगेगा ऐसे ही कलादीक्षा होगी, यह कला दीक्षा साधक को दिव्यभाव प्रदान करती है इससे पांच महाभूतो यानि कलाशक्ति को बेध द्वारा शिष्य के शरीर मे प्रवेश कराया जाता है, यह कला पांच ५ ओर अट्ठाइस २८ भेदो द्वारा दो प्रकार की मानी जाती है, मित्रो यह दीक्षा महासिद्धविधा मे एक तरह से मील का पत्थर साबित होती है जो जानता है वो कर सकता है पर इन सभी साधनाओ मे कुछ गुप्त संचार है जो किसी कारणो से हम यहाँ उजागर नही कर सकते धन्यवाद आप सभी का,, ,नादान बालक की कलम से आज बस इतना बाकी फिर कभी मित्रो अगला भाग बहुत जल्द प्रकाशित होगा,,
आगे है शाम्भवी दीक्षा, वाग्दीक्षा, शक्ताभिषेक, पूणोभेषिक, मेधा, महामेधा सामाज्या दीक्षा ओर मंत्र शोधन मंत्र जागृत दीक्षा संस्कार  मित्रो ये पार्ट काफी लम्बा होने वाला है तो आप सभी का सहयोग बना रहे ओर कोई कोपी करता है ओर छेडछाड करता है तो उसका सम्पुणे उतरदायी का जनाबदेही उनकी स्वयंम की होगी,, आगे जैसी माँ बाबा की इच्छा ओर कृपा,, 🙏🏻🌹🌹
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹🙏🏻🌹

Saturday, April 18, 2020

दीक्षा के भेद पार्ट २ टू

दीक्षा के भेद ,
मित्रो यह सब दीक्षा प्रकार का वर्णन बाबा भोलेनाथ ओर  महाविधा देवी माँ महाकाली के बीच जो वार्तालाप है वो ही यहाँ हम पस्तुत कर रहे जो देवी महासिद्धविधा माँ राजराजेश्वरी त्रिपुरासुंदरी ललितेम्बीका के परम शिष्य हमारे परम पुजनीये श्री श्री श्री 1008 आत्माविकासानन्द जी गिरी द्वारा कहाँ गया वर्णन हम यहाँ पस्तुत कर रहे है जिनकी जीवित समाधि हमारे आसीन्द मे है तपोस्थली प्रतापगढ गुप्त गंगा ओर बांसवाड़ा, देवी महासिद्धविधा त्रिपुरासुंदरी का मंदिर, इसके अलावा देवी माँ कालिका मंदिर हरिद्वार, प्रयागराज, हिमाचल उतराखंड आदि रहा है उन तक जाना या पहुच पाना हमारे बस मे नही है बस हम तो उनका दिया हुआ ग्यान आगे बढा सकते है नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी,, मित्रो आप यहाँ से कांपी कर सकते हो पर शब्दो से छेड़छाड़ करना मतलब आपको पाप का भागी बना सकती है क्योंकि यह पुरा ब्लाक हमारे पंचगुरूओ को समर्पित है,, ओर माँ बाबा की सेवा मे है आगे जैसी आपकी इच्छा ओर माँ बाबा की कृपा
मित्रो दीक्षा आठ प्रकार की कही गयी है ये सब हम हमारे गुरूओ को समर्पित करते है यहाँ भी लेखनी है वो नादान बालक अपने माँ बाबा के चरणो मे अर्पित करता है, किसी दिन समय मिला या कोई योग्य हुआ तो माँ बाबा का भेद भी उन पर उजागर किया जायेगा ये जो आठ प्रकार की दीक्षा के जो भेद है हमारे गुरूजनो के श्री चरणो मे हमारी ओर श्रद्धा के फुलो की तरह पुणेयता समर्पित है,
पहली दीक्षा स्पर्श दीक्षा, दुसरी दृग् दीक्षा, तीसरी, वेधदीक्षा, चौथी ,क्रिया दीक्षा, पांचवी, वर्ण दीक्षा, छठी, कला दीक्षा, सातंवी, शाम्भवी दीक्षा, आठंवी वाग् दीक्षा, ।सम्पूर्ण जानकारी सविस्तार से कहे नादान सुने आप सभी,,
१, स्पर्श दीक्षा,
यथा पक्षी स्वपक्षाभ्यां शिशृन् उध्दरते शनैः ,। स्पर्शदीक्षापदेशच्श तादृशः कथितः प्रियै, ।।
यानि ,है प्रिये, जैसे मादा पक्षी अपने पंखो से अपने बच्चो की रक्षा करती है ओर उनको बड़ा करती है इसी प्रकार,, गुरूदेव,,, अपना वरदहस्त शिष्य के मस्तक पर रखकर उसकी रक्षा करते ओर उसके ग्यान की वृद्धि करते है यह स्पर्श दीक्षा कही जाती है,,, इसलिए कहाँ जाता है कि उतने ही बच्चो को अपनाओ या जन्म देओ जहाँ तक तूम पाल पोस सको वरना अपने साथ शिष्यो का भी तूम बेडा गर्क कर सकते हो, आध्यात्मिक की पहली सीढी जब तक आध्यात्मिक उर्जा शिष्य को नही मिलती तब तक गुरू की अपनी ऊर्जा शिष्य को देनी पडती है यानी जब तक बेटा कमाने लायक ना हो तब तक बाप को ही बेटे को खिलाना पडता है, ओर बेटा कमा रहो हो तो बाप को खिलाये यह भी सत्य है,,
२,,,, दृग् दीक्षा,,, (दृष्टिशक्तिपात )
स्वापत्यानि यथा मत्स्यो वाक्षणेनैव पोषयेत्, । दृग्भयां दीक्षोपदेशच्श्र तादृशः परमेश्वरी, ।
यानि, है परमेश्वरी, जिस प्रकार मछली अपने बच्चो ( )से दुर रहकर भी अपने बच्चो का लालन पोषण ओर संरक्षण करती है ओर अपनी दृष्टि बच्चो पर बनाये रखती है उसी तरह सद्गुरू भी अपने शिष्य यानी बच्चो को अपने पास बैठकर अपनी दिव्य दिृष्ट से (यानी शिष्य की आंखो मे आंखे मिलाकर )शिष्य मे ग्यान का संचार कर देते है यानि शिष्य की ओर देखने से ओर आग्या चक्र पर ध्यान केन्द्रित करने से ही शिष्य मे शक्तिपात हो जाता है,,यह एक पिता पुत्र का रिश्ते जैसा होता है या जैसी गुरू परम्पराओं मे या गुरू क्रिया होती है वो सारी शक्तियां स्वयंम शिष्यो के साथ हो जाती है पर यहाँ शिष्यो को अपना अभिमान घमण्ड का त्याग करना पडता है वरना यही शक्तियों शिष्यो के पतन का कारण बन सकती है इसलिए ध्यान रहे शक्तिपात के बाद गुरू की सारी शक्तियां आपके साथ बनी रहती है वो आपका स्वभाव को ज्यादा उग्र बना देती है यहाँ संभलना जरूरी है,,
३,,, वेध दीक्षा,, यानि स्मरण, याद, ध्यानम, समर्पण दीक्षा,,
यथा कर्मः स्वतनयान् ध्यानमात्रेण पोषयेत्, । वेधदीक्षाेपदेशच्श्र मानुषस्य तथा विधीः ।।
यानि,, जैसे कछुवे के बच्चो की माता अपने बच्चो का केवल ध्यान रखने से ही लालन पोषण करती है ,यानि सक्ष्म गुरूदेव मात्र अपने ध्यान करने मात्र से ही शिष्य मे शक्तिपात कर सकते है यानी शक्ति का संचार कर सकते मतलब शिष्य का कल्याण कर देते है,, पर यहाँ शिष्यो का अपने गुरू पर भी विश्वास होना जरूरी है अगर विश्वास है तो सब कुछ है, यानि उतने ही बच्चे पालने चाहिए जिनका तूम भरण पोषण कर सको ओर शिष्य अपने गुरू का ध्यान रख सके यही भेद शिष्यो को समर्पित ओर समर्पण की भावना को जागृत कर सकता है,,
४,,, क्रिया दीक्षा,,
क्रियादीक्षाअ्ष्टधा प्रोक्ता कुलमण्डपपूर्विका, । कलशादिसमायुक्ता कर्तव्या गुरूणा वहिः।।
मित्रो क्रिया दीक्षा भी आठ तरह की बताई गयी है संक्षिप्त रुप मे जाने तो पहले विधिपूर्वक षडध्वशोधन किया जाता है बाद मे गुरूदेव अपने शरीर से यानि आंतरिक उर्जा यानि चितशक्ति को क्रमपुर्वक निकालकर अपने शिष्य के भीतर हृदय मे प्रवेश कराते है या उसके मस्तक के ऊपर आग्या चक्र को उन्नत करते हुये अपने हाथो के अंगुठे से दबाव डालकर अपनी उर्जा ओर गुरूओ ओर इष्ट के प्रति समर्पित होकर अपनी उर्जा का प्रवेश शिष्य के अंदर किया जाता है पर सभी मे उग्रता आना स्वाभाविक है इसलिए यहाँ शिष्य को अपने मन ओर चित को शांत रखना जरूरी है वरना वो सारी आत्मसात की हुयी शक्तियों बुरा परिणाम भी दे सकती है,
बाकी कल वर्ण, कला, शाम्भवी वाग्दीक्षा के प्रकार अगली पोस्ट मे कही जायेगी नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी,,
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻🌹🌹🌹🙏🏻

दीक्षा के भेद पार्ट १ वन, ़

आजकल दीक्षा के चार प्रकार चल रहे है जबकि दीक्षा आठ प्रकार होती है उनमे से ही कई रुप दीक्षा के निकले हुये है,, आज आज हम यहाँ बताने जा रहे है जो हमारे ब्लाँक के माध्यम से उसका लिंक दिया जायेगा उसमे दीक्षा के आठ प्रकार ओर उनमे क्या भेद है इन आठ दीक्षा मे भी रई भेद होते है जैसे सिद्ध विधा साधक मे अलग अलग महाविधाओ की दीक्षा लेकर शाक्ताभिषेक दीक्षा फिर पुणोभिषेक दीक्षा, फिर मेधा, महामेधा, सामाज्या, ओर भी कई भेद की दीक्षाये होती है पर प्रमुख दीक्षा के भेद यही बाकी इनकी शाखाये है,, वो पुणे रुप से ब्लाक के लिंक बताये जायेगे हाल की तीन या चार साल पहले भी हमने दीक्षा भेद पोस्ट किये थे,, बाकी गुरूकृपा तो नजर भर से ही मिल जाती है,, यही सत्य है
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻🌹🙏🏻

आइये जानते हैं कब है धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि विधान साधना???

* धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि*  *29 और 31 तारीख 2024*  *धनतेरस ओर दिपावली पूजा और अनुष्ठान की विधि* *धनतेरस महोत्सव* *(अध्यात्म शास्त्र एवं ...

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