Monday, April 20, 2020

दीक्षा के भेद पार्ट ३ तीन

दीक्षा के भेद पार्ट ३, तीन,
जैसा की मित्रो हमने दुसरे पार्ट मे आपको चार भेदो का वर्णन विस्तार पुर्वक समझाया था कि कैसे दीक्षा ओर उनके कितने भेद होते है हालिक यह सब हमारे गुरूजनो की देने है, हमारी जन्म देने वाली परम पुजनीये माता जी से हमे आध्यात्मिक मिला है उनकी कृपा से हमे गुरूओ की कृपा मिलती रही है इसी क्रम मे हर गुरूजनो से हमे कुछ ना कुछ मिला है,, हमारे प्रथम सद्गुरू परमपुजनीये नरेश जी शर्मा ,मेजा  (भीलवाड़ा ) ओर परम पुजनीये गुरूदेव ओघडबाबा श्री बरदा बाबा गागेड़ा (भीलवाड़ा ) ओर परम पुजनीये गुरूदेव आत्मविकासानन्द जी गिरी ,प्रयागराज, (उ,प्र) ओर परम पुजनीये गुरू योगी रामनाथ जी धर्मपंत, गुरूगद्धी, अस्तलपुर बनारस, (उ, प्र) इनके अलावा भी कई गुरूजनो मे हमे कृपा प्राप्त हुयी है मित्रो दीक्षा के भेद जो हम यहाँ बता रहे वो तो ठीक है पर इनके अलावा भी गुरूजनो की कृपा कई तरह से हो सकती है,, यही सत्य है कई ओघड अघोरी कई पीर फकीर संतो से कुछ ना कुछ मिला है पर लास्ट मे यही ग्यान मिला है की गुरू ओर इष्ट कृपा के आगे सभी साधना सिद्धि सब बेकार है नादान बालक की कलम से आज बस इतना बाकी फिर कभी तो मित्रो गुरू संयोग ओर कर्मो से मिलते है इसके अलावा ग्यान ओर ध्यान कभी भी किसी से भी लिया जा सकता है पर गुरू तत्व तो फिर भी जन्मो जन्मो से वो ही चलता रहता है, तो मित्रो आगे है दीक्षा के भेद,,  अब आगे भेद नं पांच,,
५,,, वर्ण दीक्षा, यानी शरीर के देवतत्व को जागृत करना,,
वर्णदीक्षा त्रिधा प्रोक्ता द्विचत्वारिंशदक्षरैः । पंच्चशद्ववर्णकैर्देवि! द्विषष्टिलिपभिस्तु वै, ।।

यानि शिष्य के शरीर मे मातकारूपिणी भगवती के ४२ वर्णो से या ५० अक्षरों से या ६२ भूत लिपियाें से न्यास द्वारा उसमे देवता का भाव यानी देवत्व को पैदा या जागृत किया जाता है यानी मातृकान्यास ओर इष्टमंत्रन्यास द्वारा शिष्यशरीर मे देवत्व का अवतरण कराया जाता है,, जिसने शिष्य को काफी कुछ त्याग करना पड़ता है क्योकि ये समय वो है जिसमे सबसे ज्यादा सयंम की जरूरत पडती है कई चीजो का त्याग करना पडता है माया के लोभ को त्यागना पड़ता है यही देवत्व जागृत दीक्षा यानी वर्ण दीक्षा है,
६,, कला दीक्षा, यानी पंचभुतो का शरीर मे सोमवेश अथवा जागृति संस्कार या कलाशक्ति का संस्कार,,
कला दीक्षा च विग्रेया कर्तव्या विधिवत् प्रिये, । निवृत्तिर्जानुपर्यन्त तलादारभ्य संस्थिता, ।।
इयं प्रोक्ता कुलेशनि, दिव्यभावप्रदायिनी,,
मित्रो इसमे कलाओ के न्यायपूर्वक यह दीक्षा दी जाती है इसलिए कलान्यास हम यहाँ उजागर कर रहे है जो इस प्रकार रहेगी नादान बालक की कलम से गुरूजनो की ओर इष्टकृपा से कलान्यास यहाँ प्रकट कर रहे है बाबा काशीविश्वनाथ, राधा माधव बाबा दण्डप्रणि ,मणिकणिका बाबा त्रयंबकराज कालभैरव संकटमोचन सर्वदा हमारे सतत रहे,,
कलान्यास,
पादतलात् जानुपर्यन्तं ॐ निवृत्त्यै नमः ।जान्वोर्नाभिपर्यन्तं, ॐ प्रतिष्ठायै नमः ।नाभेः कण्ठपर्यन्त, ॐ विधायै नमः। कण्ठाल्ल्लाटान्तं, ॐ शान्त्यै नमः, । ललाटाद् ब्रह्मरन्ध्रपर्यन्त, ॐ शान्तयतीतायै नमः, ब्रह्मरन्ध्रात् आललांट ,ॐ शान्त्यतीतायै नमः ।, ललाटात् कण्ठपर्यन्त, ॐ शान्त्यै नमः। कण्ठात् नाभिपर्यन्तं,  ॐ विधायै नमः । नाभेर्जानुपर्यन्त, ॐ प्रतिष्ठायै नमः । जान्वोः पादपर्यन्तं ,ॐ निवृत्त्यै नमः, ।।
मित्रो इस न्यास मे प्रत्येक नाम के पीछे,, कलायै नमः  ,,,लगेगा यानि निवृत्तिकलायै नमः या निवृत्त्यै कलायै नमः लगेगा ऐसे ही कलादीक्षा होगी, यह कला दीक्षा साधक को दिव्यभाव प्रदान करती है इससे पांच महाभूतो यानि कलाशक्ति को बेध द्वारा शिष्य के शरीर मे प्रवेश कराया जाता है, यह कला पांच ५ ओर अट्ठाइस २८ भेदो द्वारा दो प्रकार की मानी जाती है, मित्रो यह दीक्षा महासिद्धविधा मे एक तरह से मील का पत्थर साबित होती है जो जानता है वो कर सकता है पर इन सभी साधनाओ मे कुछ गुप्त संचार है जो किसी कारणो से हम यहाँ उजागर नही कर सकते धन्यवाद आप सभी का,, ,नादान बालक की कलम से आज बस इतना बाकी फिर कभी मित्रो अगला भाग बहुत जल्द प्रकाशित होगा,,
आगे है शाम्भवी दीक्षा, वाग्दीक्षा, शक्ताभिषेक, पूणोभेषिक, मेधा, महामेधा सामाज्या दीक्षा ओर मंत्र शोधन मंत्र जागृत दीक्षा संस्कार  मित्रो ये पार्ट काफी लम्बा होने वाला है तो आप सभी का सहयोग बना रहे ओर कोई कोपी करता है ओर छेडछाड करता है तो उसका सम्पुणे उतरदायी का जनाबदेही उनकी स्वयंम की होगी,, आगे जैसी माँ बाबा की इच्छा ओर कृपा,, 🙏🏻🌹🌹
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹🙏🏻🌹

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