Tuesday, January 26, 2021

गुप्त नवरात्रि कब से है ओर आईये जानते है इसके बारे मे

गुप्त नवरात्रि के दौरान गुप्त रूप से देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों को ‘शक्ति’ के रूप में जाना जाता है। गुप्त नवरात्रि के पीछे मुख्य  कारण क्या है जानते है आईये,।
कि देवी की पूजा गुप्त रूप से की जाती है, जो बाकी दुनिया से छिपी होती है। 
यह मुख्य रूप से साधुओं और तांत्रिकों द्वारा शक्ति की देवी को प्रसन्न करने के लिए व तंत्र साधना के लिए मनाया जाता है जो हमेशा से गलत सोच है ओर कारण भी गुप्त नवरात्रि हो या नवरात्रि हमेशा साधक या सिद्ध संत  ,तांत्रिक हमेशा जो साधनाये करते है उनको गुप्त रखा जाता है यही सत्य है उनको उजागर ना करके गोपनियता बनाये रखता है । जिनकी चर्चा केवल गुरू शिष्य मे हो सकती है यह आम आदमी भी कर सकते है, । जिनमे सेवा ओर परोपकार की दृष्टिकोण हो पर हमेशा ध्यान रहे सिद्धियो के पीछे भागने से सिद्धियाँ नही मिलती बस आप कर्म करते रहे उनकी कृपा मिल ही जाती है, ।

मित्रो गुप्त नवरात्रि के दौरान गुप्त अनुष्ठान किए जाते हैं जहां देवी दुर्गा की पूजा इस समय के दौरान देवी दुर्गा के नव रूपो या सिद्ध दसमहाविधा के रूपों को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। इनके अलावा ग्रहण, तीज त्योहार, पर्व मे भी साधनाये होती है जो अति गुप्त रहती है जिनको उजागर नही किया जाता यही सत्य है नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर,,।
ओर मित्रो ऐसा माना जाता है कि इस त्यौहार के दौरान भक्त देवी की पूजा करके अपनी सभी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं लेकिन अनुष्ठानों को गुप्त रखने की आवश्यकता होती है क्योंकि पूजा की सफलता इसके पीछे गोपनीयता की मात्रा पर निर्भर करती है।


गुप्त नवरात्रि के दौरान पूजी जाने वाली देवी दुर्गा के विभिन्न रूप हैं-

माँ कालिके
तारा देवी
त्रिपुर सुंदरी
भुवनेश्वरी
माता चित्रमस्ता
त्रिपुर भैरवी
माँ धूम्रवती
माता बगलामुखी
मातंगी
कमला देवी
इस शुभ अवसर के दौरान मंत्रों का जाप, देवी दुर्गा की उत्पत्ति का वर्णन करते हैं और राक्षस महिषासुर का मुकाबला करने के लिए कैसे सभी देवताओं की शक्तियां देवी में समाहित हुईं ताकि वह उसका वध कर सकें, और दुनिया की बुरी शक्तियों पर उनकी जीत हो।

पूजा के दौरान प्रथाऐं - गुप्त नवरात्रि
गुप्त नवरात्रि के दौरान, तंत्र मंत्र साधना में विश्वास करने वाले, अपने गुप्त तांत्रिक क्रियाकलापों के साथ-साथ सामान्य नवरात्रि की तरह ही उपवास करते हैं और अन्य अनुष्ठान करते हैं।

9 दिनों तक अखंड ज्योति जलाई जाती है।
कलश स्थापन
देवी दुर्गा के सामने दुर्गा सप्तशती मार्ग और मार्खदेव पुराण का पाठ किया जाता है।
नवरात्रि के सभी दिनों में उपवास या सात्विक आहार का सेवन किया जाता है।
गुप्त नवरात्रि व्रत का पालन करने के लाभ
गुप्त नवरात्रि, जिसे गायत्री नवरात्रि के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू कैलेंडर के आषाढ़ महीने के दौरान मनाया जाता है जो आमतौर पर जून-जुलाई के बीच आता है। इस 9-दिवसीय धार्मिक क्रिया के दौरान देवी दुर्गा को प्रसन्न करने का मुख्य तरीका तंत्र विद्या के मंत्रों के साथ देवी के शक्तिशाली आह्वान को मंत्रमुग्ध करना है।

गुप्त नवरात्रि के दौरान पूजा की सबसे प्रसिद्ध विधि तांत्रिक विद्या है जिसमें धन, बुद्धि और समृद्धि प्राप्त करने के लिए देवी दुर्गा की आराधना शामिल है।

गुप्त नवरात्रि की पूजा शैतानी ताकतों के प्रभाव को खत्म करने के लिए की जाती है? जिसे भक्तों के दिलों से बुराई के डर को दूर करने के लिए शक्तिशाली माना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि गुप्त नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा को शक्तिशाली मंत्र और गुप्त तंत्र विद्या व तांत्रिक साधनाओं के रूप में गुप्त पूजा की पेशकश की जाती है, जो भक्तों को सभी इच्छाओं और आशाओं को पूरा करने के लिए विशेष शक्तियां प्राप्त करने में मदद करती हैं।
ओर दसवे दिन भैरव बाबा की पुजा होती है यह केवल जानकार या गुरू गाम्य शिष्य करते है,।
कुछ पुजा अर्चना के संबंध मे जानकारी, ओर मुर्हत,।
नवरात्रि के लिए पूजा सामग्री

●  माँ दुर्गा की प्रतिमा अथवा चित्र
●  लाल चुनरी
●  आम की पत्तियाँ
●  चावल
●  दुर्गा सप्तशती की किताब
●  लाल कलावा
●  गंगा जल
●  चंदन
●  नारियल
●  कपूर
●  जौ के बीच
●  मिट्टी का बर्तन
●  गुलाल
●  सुपारी
●  पान के पत्ते
●  लौंग
●  इलायची
नवरात्रि पूजा विधि
●  सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें
●  ऊपर दी गई पूजा सामग्री को एकत्रित करें
●  पूजा की थाल सजाएँ
●  माँ दर्गा की प्रतिमा को लाल रंग के वस्त्र में रखें
●  मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोयें और नवमी तक प्रति दिन पानी का छिड़काव करें
●  पूर्ण विधि के अनुसार शुभ मुहूर्त में कलश को स्थापित करें। इसमें पहले कलश को गंगा जल से भरें, उसके मुख पर आम की पत्तियाँ लगाएं और उपर नारियल रखें। कलश को लाल कपड़े से लपेंटे और कलावा के माध्यम से उसे बाँधें। अब इसे मिट्टी के बर्तन के पास रख दें
●  फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत के साथ पंचोपचार पूजा करें
●  नौ दिनों तक माँ दुर्गा से संबंधित मंत्र का जाप करें और माता का स्वागत कर उनसे सुख-समृद्धि की कामना करें
●  अष्टमी या नवमी को दुर्गा पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें और उन्हें तरह-तरह के व्यंजनों (पूड़ी, चना, हलवा) का भोग लगाएं
●  आखिरी दिन दुर्गा के पूजा के बाद घट विसर्जन करें इसमें माँ की आरती गाएं, उन्हें फूल, चावल चढ़ाएं और बेदी से कलश को उठाएं,। नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी 🌹🙏🏻🌹
अब मुहूर्त के बारे मे जानते है,,।

नवरात्रि शुरू : 12 फरवरी 2021, दिन शुक्रवार

नवरात्रि समाप्त : 21 फरवरी 2021, दिन रविवार

कलश स्थापना मुहूर्त सुबह : 08:34 AM से 09:59 AM

अभिजीत मुहूर्त दिन में : 12:13 PM से 12:58 PM

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश🙏🌹🙏

Wednesday, January 20, 2021

शाकंभरी नवरात्रि पर करे ये मंत्र साधना

🌹🌹 *।। शाकंभरी नवरात्रि 2021* 🌹🌹
आठ दिन होगी इन देवी मां जी की साधना, 
28 जनवरी 2021  को मनेगी शाकंभरी जयंती ।।


शाकंभरी नवरात्रि पौष माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक मानी जाती है। मकर संक्रांति से माता शाकंभरी का पावन समय आरंभ हो गया है। यह नवरात्र पर्व  पौष शुक्ल अष्टमी 21 जनवरी 2021 से शुरू होकर  पौष पूर्णिमा 28 जनवरी 2021 तक मनाया जाएगा ।
*पूर्णिमा को गुरुवार एवं पुष्य नक्षत्र एवं सर्वार्द्ध सिद्धि* के साथ अमृत सिद्धि योग  होने से पूजन , तीर्थ अथवा संगम स्थल स्न्नान , दान का अक्षय फल लाभ प्राप्त होता है । 

 धार्मिक शास्त्रों के अनुसार गुप्त नवरात्रि की भांति शाकंभरी नवरात्रि का भी बड़ा महत्व है। माता शाकंभरी (शाकम्भरी) देवी दुर्गा के अवतारों में एक हैं। नवरात्रि के इन दिनों में पौराणिक कर्म किए जाते हैं, विशेषकर माता अन्नपूर्णा की साधना की जाती है। तंत्र-मंत्र के साधकों को अपनी सिद्धि के लिए खास माने जाने वाली शाकंभरी नवरात्रि के इन दिनों में साधक वनस्पति की देवी मां शाकंभरी की आराधना करेंगे।
शाकंभरी नवरात्रि पर जपें यह मंत्र, मिलेगी अन्नपूर्णा की कृपा
 
शाकंभरी नवरात्रि के ८ दिनों में नीचे लिखे मंत्रों का जाप करके मां दुर्गा की आराधना करके कोई भी साधक पूरा जीवन सुख से बिता सकता है। जीवन में धन और धान्य से परिपूर्ण रहने के लिए नवरात्रि के दिनों में इन मंत्रों का प्रयोग अवश्‍य करना चाहिए।

शाकम्भरी लक्ष्मी और उनके मूल बीज मंत्र इस प्रकार है-

श्री शाकम्भरी धान्य लक्ष्मी – ये जीवन में धन और धान्य को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है –
- ॐ श्रीं क्लीं।।

3. श्री शाकम्भरी धैर्य लक्ष्मी – ये जीवन में आत्मबल और धैर्य को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है – 
-ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं।।

4. श्री शाकम्भरी गज लक्ष्मी – ये जीवन में स्वास्थ और बल को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है – 
-ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं।।

5. श्री शाकम्भरी संतान लक्ष्मी – ये जीवन में परिवार और संतान को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है – 
-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं।।

6. श्री शाकम्भरी विजय लक्ष्मी यां वीर लक्ष्मी – ये जीवन में जीत और वर्चस्व को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है – 
-ॐ क्लीं ॐ।।

7. श्री शाकम्भरी विद्या लक्ष्मी – ये जीवन में बुद्धि और ज्ञान को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है – 
-ॐ ऐं ॐ।।

8. श्री शाकम्भरी ऐश्वर्य लक्ष्मी – ये जीवन में प्रणय और भोग को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है – 
-ॐ श्रीं श्रीं।।
अष्ट शाकम्भरी लक्ष्मी साधना का उद्देश जीवन में धन के अभाव को मिटा देना है। इस साधना से भक्त कर्जे के चक्रव्यूह से बहार आ जाता है। आयु में वृद्धि होती है। बुद्धि कुशाग्र होती है। परिवार में खुशाली आती है। समाज में सम्मान प्राप्त होता है। प्रणय और भोग का सुख मिलता है। व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा होता है और जीवन में वैभव आता है।
अष्ट शाकम्भरी लक्ष्मी साधना विधि: गुरूवार की रात तकरीबन 09:00 बजे से 10:30 बजे के बीच गुलाबी कपड़े पहने और गुलाबी आसान का प्रयोग करें। गुलाबी कपड़े पर श्रीयंत्र और शाकम्भरी का चित्र स्थापित करें। (माँ शाकंभरी का चित्र ना हो तो माँ नवदुर्गा का चित्र रख सकते है गुलाबी आसान ना हो तो लाल, या कुशा आसान काम मे ले सकते है ) किसी भी थाली में गाय के घी के 8 दीपक जलाएं। गुलाब की अगरबत्ती जलाएं। आठ प्रकार के फल-सब्जियों की माला एवं लाल फूलो की माला चढ़ाएं। हरी सब्जियों का प्रसाद लगाये ।
हरी सब्जियां का गरीबो को दान दे ओर किसी भी माँ के मंदिर मे वनस्पतियो या सब्जियों को अर्पण करे । अष्टगंध से श्रीयंत्र और अष्ट लक्ष्मी के चित्र पर तिलक करें और कमलगट्टे हाथ में लेकर इस मंत्र का यथासंभव जाप करें।
मंत्र: ऐं ह्रीं श्रीं अष्टलक्ष्मीयै ह्रीं सिद्धये मम गृहे आगच्छागच्छ नमः स्वाहा।।

जाप पूरा होने के बाद आठों दीपक घर की आठ दिशाओं में लगा दें तथा कमलगट्टे घर की तिजोरी में स्थापित करें। एवं चढ़ाये गए सब्जियों को बनाकर पुरे घर वाले सेवन करे इस उपाय से जीवन के आठों वर्गों में सफलता प्राप्त होगी।

पढ़ें देवी माँ के यह मंत्र- 
अगर समय नही मिल पाये तो आठ दिन तक इन मंत्रो का जाप कर सकते है ओर पुणिमा को सप्तशती का पाठ करे या रोज पाठ कर सकते है ।
 
* 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा।।'

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति अन्नपूर्णे नम:।।'

ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्य: सुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।'
 
इन मंत्रों को बतौर अनुष्ठान 10 हजार, 1.25 लाख जप कर दशांस हवन, तर्पण, मार्जन व ब्राह्मण भोजन कराएं या बच्चो को यथाशक्ति भोजन करा सकते है पर जितना हो उतना जाप करे यथाशक्ति वैसी ही भक्ति होनी चाहिए आगे जैसी माँ बाबा की कृपा ओर इच्छा, नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी ।
या फिर नित्य 1 माला जपें। हवन सामग्री में तिल, जौ, अक्षत, घृत, मधु, ईख, बिल्वपत्र, शकर, पंचमेवा, इलायची आदि लें। समिधा, आम, बेल या जो उपलब्ध हो, उनसे हवन पूर्ण करके आप सुखदायी जीवन का लाभ उठा सकते हैं।
 मां शाकंभरी ने अपने शरीर से उत्पन्न शाक-सब्जियों, फल-मूल आदि से संसार का भरण-पोषण किया था। इसी कारण माता 'शाकंभरी' नाम से विख्यात हुईं। तंत्र-मंत्र के जानकारों की नजर में इस नवरात्रि को तंत्र-मंत्र की साधना के लिए अतिउपयुक्त माना गया है। इस नवरात्रि का समापन 28 जनवरी, बृहस्पतिवार को पौष शुक्ल पूर्णिमा के दिन होगा। इसी दिन मां शाकंभरी प्रकाटय दिवस या अवतरण दिवस के रुप मे मनाई जाएगी।
पुराणों में यह उल्लेख है कि देवी ने यह अवतार तब लिया, जब दानवों के उत्पात से सृष्टि में अकाल पड़ गया। तब देवी शाकंभरी रूप में प्रकट हुईं। इस रूप में उनकी 1,000 आंखें थीं। जब उन्होंने अपने भक्तों का बहुत ही दयनीय रूप देखा तो लगातार 9 दिनों तक वे रोती रहीं। रोते समय उनकी आंखों से जो आंसू निकले उससे अकाल दूर हुआ और चारों ओर हरियाली छा गई। देवी दुर्गा का रूप हैं 'शाकंभरी', जिनकी हजार आंखें थीं इसलिए माता को 'शताक्षी' भी कहते हैं।
मान्यता है कि इस दिनों गरीबों को अन्न-शाक यानी कच्ची सब्जी, भाजी, फल व जल का दान करने से अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती है एवं मां उन पर प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करती हैं। शाकंभरी नवरात्रि का आरंभ पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होता है, जो पौष पूर्णिमा पर समाप्त होता है।
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश ।🙏🏻🌹🙏🏻

आइये जानते हैं कब है धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि विधान साधना???

* धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि*  *29 और 31 तारीख 2024*  *धनतेरस ओर दिपावली पूजा और अनुष्ठान की विधि* *धनतेरस महोत्सव* *(अध्यात्म शास्त्र एवं ...

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