Friday, January 28, 2022

कब से है गुप्त नवरात्रि और क्या करे

मित्रों जैसा की आप सभी जानते हैं कि 2 फरवरी से गुप्त नवरात्रि शुरू होने वाली है जो कि 2 फरवरी से लेकर 10 फरवरी तक है ये माँ के गुप्त नवरात्रि माघ माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ  होते है माघ माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 1 फरवरी दिन मंगलवार से आरंभ होगी ,परंतु प्रतिपदा का उदया तिथि 2 फरवरी दिन बुधवार पड़ रही है ,इसलिए पहले नवरात्र का व्रत 2 फरवरी दिन बुधवार को रखा जाएगा ,जो भक्त घट स्थापना करेंगे उनके लिए घट स्थापना करने का शुभ समय 2 फरवरी दिन बुधवार को सुबह 7 बजकर 9 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 31 मिनट तक शुभ है बाकी आप सभी को ज्ञात है कि वर्ष में एक शाकंभरी नवरात्रि और  वर्ष में चार नवरात्रि होती है दो प्रत्यक्ष और दो‌ गुप्त मित्रों इन चार नवरात्री में से दो को प्रत्यक्ष नवरात्र कहा गया है ,क्योंकि इनमें गृहस्थ और संन्यासी और साधक जीवन वाले साधना पूजन करते हैं  लेकिन जो दो गुप्त नवरात्रि होते हैं, उनमें

आमतौर पर साधक सन्यासी, सिद्धि प्राप्त करने वाले, तांत्रिक-मांत्रिक और कुछ ग्रहस्थ साधक जो अपनी मर्यादा में रहते हैं वो देवी या अपने आराध्य देवी देवताओं की साधना उपासना करते हैं, हालांकि चारों नवरात्रि में देवी और आराध्य देव या देवी सिद्धि प्रदान करने वाली होती हैं लेकिन गुप्त नवरात्रि के दिनों में देवी की दस महासिद्धविधाएं की पूजा विशेष रुप से की जाती है, जिनका तंत्र शक्तियों और सिद्धियों में विशेष महत्व है जबकि प्रत्यक्ष नवरात्रि में सांसारिक जीवन से जुड़ी हुई चीजों को प्रदान करने वाली देवी देवताओं और मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है हालांकि इसमें भी महासिद्धविधा और भैरव बाबा की कृपा प्राप्त की जा सकती है गुप्त नवरात्रि में अगर आमजन चाहें तो किसी विशेष इच्छा की पूर्ति या सिद्धि के लिए गुप्त नवरात्रि में साधना करके मनोरथ की पूर्ण कर सकते हैं और जो गुप्त नवरात्रि को गुप्त रहकर भी करते हैं मर्यादा पुर्वक तो उसको जन्म मरण से भी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है और मित्रों गुप्त नवरात्रि के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि के जीवन में अपने आराध्य और सिद्ध विधा के जो कडे नियमों का पालन करते हैं उनको दुर्लभ सिद्धियां और अपने आराध्य की कृपा प्राप्त के प्रबल योग बन जाते हैं , मित्रों गुप्त नवरात्रि के दौरान, तंत्र मंत्र साधना में विश्वास करने वाले, अपने गुप्त तांत्रिक क्रियाकलापों के साथ-साथ सामान्य नवरात्रि की तरह ही उपवास करते हैं और अन्य अनुष्ठान करते हैं, 9 दिनों तक अखंड ज्योति जलाई जाती है, कलश स्थापन या घट स्थापना करके देवी मां दुर्गा के सामने दुर्गा सप्तशती मार्ग और मार्खदेव पुराण का पाठ किया जाता है ,नवरात्रि के सभी दिनों में उपवास या सात्विक आहार  या अल्पाहार का सेवन किया जाता है, इसलिए मित्रों ,,
1, नौ दिनों तक ब्रह्मचर्य नियम का पालन करें
2, तामसिक भोजन का परित्याग करें
3, कुश की चटाई पर शैया करें
4, पीले या लाल वस्त्र धारण करें या जैसी आप पुजा या कामना करते हैं या जैसी आप साधना या मंत्र जपते हैं उसी तरह के वस्त्र जैसे दिगम्बर ,काले ,भगवे वस्त्र धारण कर सकते हैं यह सब समय स्थिति काल दिशा पर भी संभव है ,
5, निर्जला अथवा फलाहार उपवास रखें जैसी शक्ति हो वैसी क्रिया कर सकते हैं ,
6, देवी मां की पूजा-उपासना करें
7, लहसुन-प्याज का सेवन न करें छल कपट झुठ से बचे अनावश्यक अपना स्थान ना छोड़ ,
8, माता-पिता गुरू की सेवा और आदर सत्कार करें अपने बड़ों का और सम्माननीय के सामने अपशब्दों का प्रयोग ना करें किसी को अपने शब्दों से भटकाये नहीं  के निंदक ना बने अगर इनमें से आप कुछ करते हैं तो आपका आध्यात्मिक में होना ना होना बराबर है ,
वैसे मित्रों इन दिनों सभी देवी देवताओं की साधनाएं की जाती है पर प्रमुख ये है 
मां महि दुर्गा के नौ रूप शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री माता हैं, जिनकी नवरात्रि में पूजा की जाती है और गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्या देवियां तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुनेश्वरी, छिन्नमस्ता, काली, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी हैं, जिनकी गुप्त नवरात्रि में गुप्त तरीके से पूजा-उपासना की जाती है और हां इनमें भेरव बाबा और बाबा हनुमानजी की भी पूजा आराधना उपासना की जाती है इनके अलावा इतरयोनि साधना और श्मशानिक साधनाओं का समय रहता है निशाकाल में, हां मित्रों,
गुप्त नवरात्रि के दौरान  इन सभी का विशेष ध्यान रखें  घट स्थापना उसी तरह की जाती है जिस तरह से चैत्र और शारदीय नवरात्रि में होती है. सुबह-शाम की पूजा में मां को लौंग और बताशे का भोग लगाना आवश्यक होता है. नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी मित्रों इसके बाद मां को शृंगार का सामान जरूर अर्पित करें. सुबह और शाम दोनों समय पर दुर्गा सप्तशती का पाठ जरूर करें. 'ॐ दुं दुर्गायै नमः' मंत्र का जाप करें. इससे आपके जीवन की सारी समस्याएं दूर हो सकती हैं ,इन बातों का भी रखें विशेष ध्यान ,
गुप्त नवरात्रि के दौरान पूजा करते समय विशेष बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए ,नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी
सुबह और शाम नियमित रूप से मां दुर्गा की पूजा करें और किसी को बिना बताए गुप्त रूप से मां की पूजा की जानी चाहिए जो भी आपके गुरु द्वारा दिए गये निर्देशानुसार मित्रों गुप्त नवरात्रों में गुप्त रूप से मां दुर्गा और सिद्ध विधा, अष्टलक्ष्मी और उनके रूपों की पूजा की जाती है, 
माघ गुप्त नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त
2 फरवरी 2022 दिन बुधवार
घट स्थापना शुभ मुहूर्त- सुबह 7 बजकर 10 मिनट से सुबह 8 बजकर 02 मिनट तक
ध्यान रहे नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी मित्रों किसी की पुजा या साधना करें बस पुरे मनोयोग से और विश्वास से करे आप सफल जररूर होंगे किसी को राह दिखा सके तो हम अपने कर्म में सफल होंगे बाकी आना जाना तो लगा ही रहेगा ,आप सभी सभी से हमारा एक निवेदन है की रोज कुत्ते की रोटी दे कबुतरो चिड़िया के रोज दाने खिलाये मां बाबा आपको भला करे जय मां बाबा की 🙏🏻🌹
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश🌹🙏🏻🌹

Thursday, January 13, 2022

मकरसंक्रांति कब है और क्या उपाय करें,

मित्रों जैसा कि आप सभी जानते हैं कि मकरसंक्रांति चौदह 14 तारीख को ही मनाया जाता है पर इस बार 14 और 15 जनवरी दोनों को मनायी जायेगी क्योंकि पंचांगों में सुर्य की राशि परिवर्तन 14 जनवरी को रात्रि आठ बजे बाद का दिखा रही है पंचांग अनुसार 15 जनवरी को मकरसंक्रांति मनायी जायेगी और मित्रों सुर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही मांगलिक कार्य जैसे ग्रहपवेश यज्ञोपवीत, मुंडन शादी विवाह आदि मांगलिक कार्यों का शुभारम्भ हो जायेगा एक नयी ऊर्जा का शुभारम्भ होगा और ईश्वर अपने भक्तों और साधकों साधु संतों को खरमास में की गयी पुजा हवन या कर है उनको यथोचित या अधिक फल प्राप्ति शुरू हो जायेगी ।
आधिकारिक नाम खिचड़ी, पोंगल
अनुयायी , मनाने वाले हिन्दू,नेपाली

भारतीय, प्रवासी भारतीय व नेपाली
प्रकार सनातनी हिन्दू
तिथि पौष मास में सूर्य के मकर राशि में आने पर 
तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं, यह भ्रान्ति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति उत्तरायण से भिन्न है।
इस वर्ष निम्न राशियों में होगा बदलाव, वृषभ राशि, तुला राशि,धनु राशि, मीन राशि, इन राशि वाले व्यक्ति सूर्य देव को काले तिल में गुड़ मिलाकर हृदय देने से कमजोर और वृद्ध आदमी की सेवा करने से इसके अलावा किसी  को धार्मिक पुस्तक और पंचांग भेंट करने से श्री सूक्ति का पाठ करने से कुबेर देव की पूजा करने से इन 4 राशियों पर मां महालक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी पूरे साल और साथ ही ये उपाय जरूर करें , इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर लें और फिर सूर्यदेव को तांबे के लोटे में जल, लाल फूल, तिल आदि डालकर अर्पित करें। जल अर्घ्य देते समय ‘ओम घृणि सूर्याय नमः’ मंत्र का जप करते रहें और ध्यान रहे कि आपकी नजर गिरते हुए जल में दिख रहीं सूर्य की किरणों पर होना चाहिए। साथ ही इस दिन सूर्य से संबंधित चीजें तांबा, गेहूं, गुड़, केसर, खस-खस, घी, गुलाबी रंग के वस्त्र, नमक, रूई, ऊनी वस्त्र आदि का दान करें। ऐसा करने से कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है और व्यक्ति को समस्त व्याधियों से मुक्ति मिलती है ,इसी दिन जल में गंगाजल, तिल व सप्तमृतिका मिला लें और फिर गंगा मैय्या का ध्यान करते हुए उत्तर दिशा की तरफ ध्यान करते हुए स्नान करें। साथ ही स्नान करते समय ‘गंगे, च यमुने, चैव गोदावरी, सरस्वति, नर्मदे, सिंधु, कावेरि, जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।’ मंत्र का जप करें। ऐसा करने से आपको पवित्र नदियों में स्नान का पुण्य फल प्राप्त होता है और इसी दिन तिल, खिचड़ी व धार्मिक पुस्तकों का दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। गरीब व जरूरतमंद लोगों में खिचड़ी बनाकर खिलाएं और तिल व धार्मिक पुस्तक का दान करें। आप भगवान विष्णु को भी तिल अर्पित करें। ऐसा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और धन-धान्य में वृद्धि होती है। इस दिन शनि उपासना करने और काले तिल व गुड़ के लड्डू बनाकर खाने से भी सूर्य व शनि दोनों की कृपा प्राप्त होती है नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी मित्रों इसी दिन एक मुट्ठी काले तिल लें और उसको परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर सात बार वार कर घर की उत्तर दिशा की तरफ फेंक दें। ऐसा करने से घर में धन की बरकत होगी और आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। इसके साथ ही आप काले तिल के लड्डू, ऊनी कपड़े, काले तिल, गुड़ व रेवड़ी का दान करना पुण्यदायी माना गया है क्योंकि यह सूर्य और शनि से संबंधित चीजें हैं, इसी दिन सुबह 14 कौड़ियां लें और उनको दूध में केसर मिलाकर स्नान करवाएं, फिर गंगाजल से साफ करके एक लाल कपड़े में महालक्ष्मी के सामने रख दें। फिर दो दीपक जलाएं, एक दीपक घी का और दूसरा तिल के तेल का। घी के दीपक को मां लक्ष्मी के राइट साइड और तिल के तेल वाला दीपक लेफ्ट साइड में रख दें। इसके बाद कौड़ियों को हाथ में लेकर ॐ संक्रात्याय नमः मंत्र 14 बार बोलकर सिद्ध कर लें। उसके बाद दोपहर 12 बजे कौड़ियों को उठाकर धन वाले स्थान जैसे पर्स, अलमारी, भंडार घर आदि पर रख दें। फिर दीपक के स्थान भी बदल दें, राइट वाला लेफ्ट और लेफ्ट वाला राइट स्थान पर रख दें और दीपक लगातार जलते रहने दें। शाम के समय घी के दीपक को तुलसी पर और तिल के तेल का दीपक घर की दहलीज पर रखें। ऐसा करने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और घर में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती, इस दिन गायों की सेवा करनी चाहिए और हरा चारा खिलाना चाहिए। साथ ही पक्षियों को भी दाना डालें। ऐसा करने से चंद्र और शुक्र दोष दूर होता है और कुंडली में भी इनकी स्थिति मजबूत होती है। साथ ही इस दिन पितरों की शांति के लिए जलयुक्त अर्पण करना चाहिए। पितरों को जल देने से घर में आरोग्य सुख व समृद्धि आती है और पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। वहीं सुख-सौभाग्य में वृद्धि के लिए किसी भी चीज की चौदह (14)की संख्या में सुहागन महिलाओं का दान करना चाहिए ,
इस दिन जैसा ऊपर बताया था हमने दान पुण्य के बारे में इसी दिन ऊनी कंबल, जरूरतमंदों को वस्त्र विद्यार्थियों को पुस्तकें पंडितों को पंचांग आदि का दान भी किया जाता है। अन्य खाद्य पदार्थ जैसे फल, सब्जी, चावल, दाल, आटा, नमक आदि जो भी यथा शक्ति संभव हो उसे दान करके संक्राति का पूर्ण फल प्राप्त किया जा सकता है पुराणों के अनुसार जो प्राणी ऐसा करता है उसे विष्णु और श्रीलक्ष्मी दोनों की कृपा प्राप्त होती है , और मित्रों मकर संक्रांति पर तीर्थपतियों का प्रयाग आगमन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश और माघमाह के संयोग से बनने वाला यह पर्व सभी देवों के दिन का शुभारंभ होता है। इसी दिन से तीनों लोकों में प्रतिष्ठित तीर्थराज प्रयाग और गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन संगमतट पर साठ हजार तीर्थ, नदियां, सभी देवी-देवता, यक्ष, गन्धर्व, नाग, किन्नर आदि एकत्रित होकर स्नान, जप-तप, और दान-पुण्य करके अपना जीवन धन्य करते हैं। तभी इस पर्व को तीर्थों और देवताओं का महाकुंभ पर्व कहा जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार यहां की एक माह की तपस्या परलोक में एक कल्प (आठ अरब चौसठ करोड़ वर्ष) तक निवास का अवसर देती है इसीलिए साधक यहां कल्पवास भी करते हैं,
भगवान शिव जी  द्वारा सूर्य देव की महिमा का वर्णन,
मरणोंपरांत जीव की गति बताने वाले महानग्रंथ 'कर्मविपाक' संहिता में सूर्य महिमा का वर्णन करते हुए भगवान शिव माँ पार्वती से कहते हैं कि देवि ! ब्रह्मा विष्णुः शिवः शक्तिः देव देवो मुनीश्वरा, ध्यायन्ति भास्करं देवं शाक्षीभूतं जगत्त्रये। अर्थात- ब्रह्मा, विष्णु, शिव, शक्ति, देवता, योगी ऋषि-मुनि आदि तीनों लोकों के शाक्षीभूत भगवान् सूर्य का ही ध्यान करते हैं। जो मनुष्य प्रातःकाल स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देता है उसे किसी भी प्रकार का ग्रहदोष नहीं लगता क्योंकि इनकी सहस्रों किरणों में से प्रमुख सातों किरणें सुषुम्णा, हरिकेश, विश्वकर्मा, सूर्य, रश्मि, विष्णु और सर्वबंधु, जिनका रंग बैगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल है। हमारे शरीर को नयी उर्जा और आत्मबल प्रदान करते हुए हमारे पापों का शमन कर देती हैं प्रातःकालीन लाल सूर्य का दर्शन करते हुए 'ॐ सूर्यदेव महाभाग ! त्र्यलोक्य तिमिरापः। मम् पूर्वकृतं पापं क्षम्यतां परमेश्वरः। यह मंत्र बोलते हुए सूर्य नमस्कार करने से जीव को पूर्वजन्म में किये हुए पापों से मुक्ति मिलती है और मित्रों इस पर्व पर समुद्र में स्नान के साथ-साथ गंगा, यमुना, सरस्वती, नमर्दा, कृष्णा, कावेरी आदि सभी पवित्र नदियों में स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देने से पापों का नाश तो होता ही है पितृ भी तृप्त होकर अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं यहां तक कि इस दिन किए जाने वाले दान को महादान की श्रेणी में रखा गया है। वैसे तो सभी संक्रांतियों के समय जप-तप तथा दान-पुण्य का विशेष महत्व है किन्तु मेष और मकर संक्रांति के समय इसका फल सर्वाधिक प्रभावशाली कहा गया है उसका कारण यह है कि मेष संक्रांति देवताओं का अभिजित मुहूर्त होता है और मकर संक्रांति देवताओं के दिन का शुभारंभ होता है। इस दिन सभी देवता भगवान  श्री विष्णु और मां श्रीमहालक्ष्मी का पूजन-अर्चन करके अपने दिन की शुरुआत करते हैं अतः श्रीविष्णु के शरीर से उत्पन्न तिल के द्वारा बनी वस्तुएं और श्रीलक्ष्मी के द्वारा उत्पन्न इक्षुरस अर्थात गन्ने के रस से बनी वस्तुएं जिनमें गुड़-तिल का मिश्रण हो उसे  दान किया जाता है नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी। इस दिन गणेश जी बाबा भोलेनाथ और सुर्य देव और महालक्ष्मी जी कुबेर देवता की पुजा ज़रूर करें ,,।
आप सभी को मकरसंक्रांति की बहुत बहुत शुभकामनाएं और हार्दिक बधाई 
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹🙏

Saturday, January 8, 2022

क्यू है शाकंभरी नवरात्रि का इतना महत्त्व और कब से है

शाकम्भरी नवरात्रि का महत्व
शाकम्भरी नवरात्रि में माँ शाकम्भरी की पूजा आराधना की जाती है.
माँ शाकम्भरी भी देवी दुर्गा का ही एक रूप है.
शाकम्भरी माता इस जगत के प्राणियों के लिए अन्न और भोजन का प्रबंध करती है.
शाकम्भरी नवरात्रि पौष शुक्ल अष्टमी तिथि से प्रारंभ होकर पौष पूर्णिमा को समाप्त होती है.
पौष पूर्णिमा को शाकम्भरी माता की जयंती मनाई जाती है.
माता शाकम्भरी की आराधना करने वाले को शाकम्भरी माँ की कृपा प्राप्त होती है.
जिस पर भी शाकम्भरी माता की कृपा रहती है उसे कभी भी अन्न की कमी नहीं रहती है.
शाकम्भरी नवरात्रि प्रत्येक वर्ष पौष महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है.
शाकम्भरी नवरात्रि को अन्य किन नामों से जाना जाता है?
शाकम्भरी नवरात्रि को शाकम्भरी अष्टमी, बनादा अष्टमी आदि नामों से जाना जाता है.
शाकम्भरी नवरात्रि प्रत्येक वर्ष पौष महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारम्भ होती है. इस नवरात्रि में माता शाकम्भरी की पूजा की जाती है. इस बार 2022 में दो शाकंभरी नवरात्रि है समय ,
पहली शाकम्भरी नवरात्रि –
शाकम्भरी नवरात्रि 2022 प्रारंभ 10 जनवरी 2022, सोमवार
शाकम्भरी नवरात्रि 2022 समाप्त 17 जनवरी 2022, सोमवार
दूसरी शाकम्भरी नवरात्रि –
शाकम्भरी नवरात्रि प्रारंभ 30 दिसम्बर 2022, शुक्रवार
शाकम्भरी नवरात्रि समाप्त 06 जनवरी 2023, शुक्रवार
देवी मां शाकंभरी उनके नाम से ज्ञात होता है जिसका अर्थ है - ‘शाक’ जिसका अर्थ है ‘सब्जी व शाकाहारी भोजन’ और ‘भारी’ का अर्थ है ‘धारक’। इसलिए सब्जियों, फलों और हरी पत्तियों की देवी के रूप में भी जाना जाता है और उन्हें फलों और सब्जियों के हरे परिवेश के साथ चित्रित किया जाता है। शाकंभरी देवी को चार भुजाओं और कही पर अष्टभुजाओं वाली के रुप में भी दर्शाया गया है। माँ शाकम्भरी को ही रक्तदंतिका, छिन्नमस्तिका, भीमादेवी, भ्रामरी और श्री कनकदुर्गा कहा जाता है।
माँ श्री शाकंभरी के देश मे अनेक पीठ है। लेकिन शक्तिपीठ केवल एक ही है जो सहारनपुर के पर्वतीय भाग मे है यह मंदिर उत्तर भारत के सबसे अधिक देखे जाने वाले मंदिरों मे से एक है और उत्तर भारत मे वैष्णो देवी के बाद दूसरा सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। उत्तर भारत की नौ देवियों मे शाकम्भरी देवी का नौंवा और अंतिम दर्शन माना जाता है। नौ देवियों मे माँ शाकम्भरी देवी का स्वरूप सर्वाधिक करूणामय और ममतामयी माँ का है
तंत्र-मंत्र के साधकों को अपनी सिद्धि के लिए खास माने जाने वाली शाकंभरी नवरात्रि 10 जनवरी से शुरू होने वाली है इन दिनों साधक वनस्पति की देवी मां शाकंभरी की आराधना करेंगे। मां शाकंभरी ने अपने शरीर से उत्पन्न शाक-सब्जियों, फल-मूल आदि से संसार का भरण-पोषण किया था। इसी कारण माता 'शाकंभरी' नाम से विख्यात हुईं।
वैसे तो वर्ष भर में चार नवरात्रि मानी गई है, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्रि, चैत्र शुक्ल पक्ष में आने वाली चैत्र नवरात्रि, तृतीय और चतुर्थ नवरात्रि माघ और आषाढ़ माह में मनाई जाती है।
देशभर में मां शाकंभरी के तीन शक्तिपीठ हैं। पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय माताजी के नाम से स्थित है। दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप शाकंभर के नाम से स्थित है और तीसरा स्थान उत्तरप्रदेश के मेरठ के पास सहारनपुर में 40 किलोमीटर की दूर पर स्थित है।
तंत्र-मंत्र के साधकों को अपनी सिद्धि के लिए खास माने जाने वाली शाकंभरी नवरात्रि के इन दिनों में साधक वनस्पति की देवी मां शाकंभरी की आराधना करेंगे। मां शाकंभरी ने अपने शरीर से उत्पन्न शाक-सब्जियों, फल-मूल आदि से संसार का भरण-पोषण किया था। इसी कारण माता 'शाकंभरी' नाम से विख्यात हुईं।
शाकंभरी माताजी का प्रमुख स्थल अरावली पर्वत के मध्य सीकर जिले में सकराय माताजी के नाम से विश्वविख्यात हो चुका है। तंत्र-मंत्र के जानकारों की नजर में इस नवरात्रि को तंत्र-मंत्र की साधना के लिए अतिउपयुक्त माना गया है। इस नवरात्रि का समापन 17 जनवरी की पूर्णिमा के दिन होगा
ऐसे करें पूजा: पौष मास की अष्टमी तिथि को सुबह उठकर स्नान आदि कर लें। सबसे पहले गणेशजी की पूजा करें। फिर माता शाकम्भरी का ध्यान करें। मां की प्रतिमा या तस्वीर रखें। पवित्र गंगाजल का छिड़काव करें। मां के चारों तरफ ताजे फल और मौसमी सब्जियां रखें। संभव हो, तो माता शाकम्भरी के मंदिर में जाकर सपरिवार दर्शन करें। मां को पवित्र भोजन का प्रसाद चढ़ाएं। इसके बाद मां की आरती करें। जिनका मिथुन, कन्या, तुला, मकर और कुंभ लग्न है, उन्हें मां शाकम्भरी की पूजा अवश्य करनी चाहिए नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी,।
 शाकंभरी नवरात्रि के 9 दिनों में नीचे लिखे मंत्रों का जाप करके मां दुर्गा की आराधना करके कोई भी साधक पूरा जीवन सुख से बिता सकता है। जीवन में धन और धान्य से परिपूर्ण रहने के लिए नवरात्रि के दिनों में इन मंत्रों का प्रयोग अवश्‍य करना चाहिए।
देवी मां शाकंभरी के खास मंत्र-
* 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा।।
* 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति अन्नपूर्णे नम:।।'
* 'ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्य: सुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।'
इन मंत्रों को बतौर अनुष्ठान 10 हजार, 1.25 लाख जप कर दशांस हवन, तर्पण, मार्जन व ब्राह्मण भोजन कराएं।
नित्य 1 माला जपें। हवन सामग्री में तिल, जौ, अक्षत, घृत, मधु, ईख, बिल्वपत्र, शकर, पंचमेवा, इलायची आदि लें। समिधा, आम, बेल या जो उपलब्ध हो, उनसे हवन पूर्ण करके आप सुखदायी जीवन का लाभ उठा सकते हैं
पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार देवी शाकंभरी आदिशक्ति दुर्गा के अवतारों में एक हैं। दुर्गा के सभी अवतारों में से रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी, शाकंभरी प्रसिद्ध हैं। दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य में देवी शाकंभरी के स्वरूप का वर्णन निम्न मंत्र के अनुसार इस प्रकार किया गया है-
मंत्र- शाकंभरी नीलवर्णानीलोत्पलविलोचना।

मुष्टिंशिलीमुखापूर्णकमलंकमलालया।।
अर्थात- मां देवी शाकंभरी का वर्ण नीला है, नील कमल के सदृश ही इनके नेत्र हैं। ये पद्मासना हैं अर्थात् कमल पुष्प पर ही विराजती हैं। इनकी एक मुट्‌ठी में कमल का फूल रहता है और दूसरी मुट्‌ठी बाणों से भरी रहती है 
नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी,
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश🌹🙏🏻



आइये जानते हैं कब है धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि विधान साधना???

* धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि*  *29 और 31 तारीख 2024*  *धनतेरस ओर दिपावली पूजा और अनुष्ठान की विधि* *धनतेरस महोत्सव* *(अध्यात्म शास्त्र एवं ...

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