शाकम्भरी नवरात्रि का महत्व
शाकम्भरी नवरात्रि में माँ शाकम्भरी की पूजा आराधना की जाती है.
माँ शाकम्भरी भी देवी दुर्गा का ही एक रूप है.
शाकम्भरी माता इस जगत के प्राणियों के लिए अन्न और भोजन का प्रबंध करती है.
शाकम्भरी नवरात्रि पौष शुक्ल अष्टमी तिथि से प्रारंभ होकर पौष पूर्णिमा को समाप्त होती है.
पौष पूर्णिमा को शाकम्भरी माता की जयंती मनाई जाती है.
माता शाकम्भरी की आराधना करने वाले को शाकम्भरी माँ की कृपा प्राप्त होती है.
जिस पर भी शाकम्भरी माता की कृपा रहती है उसे कभी भी अन्न की कमी नहीं रहती है.
शाकम्भरी नवरात्रि प्रत्येक वर्ष पौष महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है.
शाकम्भरी नवरात्रि को अन्य किन नामों से जाना जाता है?
शाकम्भरी नवरात्रि को शाकम्भरी अष्टमी, बनादा अष्टमी आदि नामों से जाना जाता है.
शाकम्भरी नवरात्रि प्रत्येक वर्ष पौष महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारम्भ होती है. इस नवरात्रि में माता शाकम्भरी की पूजा की जाती है. इस बार 2022 में दो शाकंभरी नवरात्रि है समय ,
पहली शाकम्भरी नवरात्रि –
शाकम्भरी नवरात्रि 2022 प्रारंभ 10 जनवरी 2022, सोमवार
शाकम्भरी नवरात्रि 2022 समाप्त 17 जनवरी 2022, सोमवार
दूसरी शाकम्भरी नवरात्रि –
शाकम्भरी नवरात्रि प्रारंभ 30 दिसम्बर 2022, शुक्रवार
शाकम्भरी नवरात्रि समाप्त 06 जनवरी 2023, शुक्रवार
देवी मां शाकंभरी उनके नाम से ज्ञात होता है जिसका अर्थ है - ‘शाक’ जिसका अर्थ है ‘सब्जी व शाकाहारी भोजन’ और ‘भारी’ का अर्थ है ‘धारक’। इसलिए सब्जियों, फलों और हरी पत्तियों की देवी के रूप में भी जाना जाता है और उन्हें फलों और सब्जियों के हरे परिवेश के साथ चित्रित किया जाता है। शाकंभरी देवी को चार भुजाओं और कही पर अष्टभुजाओं वाली के रुप में भी दर्शाया गया है। माँ शाकम्भरी को ही रक्तदंतिका, छिन्नमस्तिका, भीमादेवी, भ्रामरी और श्री कनकदुर्गा कहा जाता है।
माँ श्री शाकंभरी के देश मे अनेक पीठ है। लेकिन शक्तिपीठ केवल एक ही है जो सहारनपुर के पर्वतीय भाग मे है यह मंदिर उत्तर भारत के सबसे अधिक देखे जाने वाले मंदिरों मे से एक है और उत्तर भारत मे वैष्णो देवी के बाद दूसरा सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। उत्तर भारत की नौ देवियों मे शाकम्भरी देवी का नौंवा और अंतिम दर्शन माना जाता है। नौ देवियों मे माँ शाकम्भरी देवी का स्वरूप सर्वाधिक करूणामय और ममतामयी माँ का है
तंत्र-मंत्र के साधकों को अपनी सिद्धि के लिए खास माने जाने वाली शाकंभरी नवरात्रि 10 जनवरी से शुरू होने वाली है इन दिनों साधक वनस्पति की देवी मां शाकंभरी की आराधना करेंगे। मां शाकंभरी ने अपने शरीर से उत्पन्न शाक-सब्जियों, फल-मूल आदि से संसार का भरण-पोषण किया था। इसी कारण माता 'शाकंभरी' नाम से विख्यात हुईं।
वैसे तो वर्ष भर में चार नवरात्रि मानी गई है, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्रि, चैत्र शुक्ल पक्ष में आने वाली चैत्र नवरात्रि, तृतीय और चतुर्थ नवरात्रि माघ और आषाढ़ माह में मनाई जाती है।
देशभर में मां शाकंभरी के तीन शक्तिपीठ हैं। पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय माताजी के नाम से स्थित है। दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप शाकंभर के नाम से स्थित है और तीसरा स्थान उत्तरप्रदेश के मेरठ के पास सहारनपुर में 40 किलोमीटर की दूर पर स्थित है।
तंत्र-मंत्र के साधकों को अपनी सिद्धि के लिए खास माने जाने वाली शाकंभरी नवरात्रि के इन दिनों में साधक वनस्पति की देवी मां शाकंभरी की आराधना करेंगे। मां शाकंभरी ने अपने शरीर से उत्पन्न शाक-सब्जियों, फल-मूल आदि से संसार का भरण-पोषण किया था। इसी कारण माता 'शाकंभरी' नाम से विख्यात हुईं।
शाकंभरी माताजी का प्रमुख स्थल अरावली पर्वत के मध्य सीकर जिले में सकराय माताजी के नाम से विश्वविख्यात हो चुका है। तंत्र-मंत्र के जानकारों की नजर में इस नवरात्रि को तंत्र-मंत्र की साधना के लिए अतिउपयुक्त माना गया है। इस नवरात्रि का समापन 17 जनवरी की पूर्णिमा के दिन होगा
ऐसे करें पूजा: पौष मास की अष्टमी तिथि को सुबह उठकर स्नान आदि कर लें। सबसे पहले गणेशजी की पूजा करें। फिर माता शाकम्भरी का ध्यान करें। मां की प्रतिमा या तस्वीर रखें। पवित्र गंगाजल का छिड़काव करें। मां के चारों तरफ ताजे फल और मौसमी सब्जियां रखें। संभव हो, तो माता शाकम्भरी के मंदिर में जाकर सपरिवार दर्शन करें। मां को पवित्र भोजन का प्रसाद चढ़ाएं। इसके बाद मां की आरती करें। जिनका मिथुन, कन्या, तुला, मकर और कुंभ लग्न है, उन्हें मां शाकम्भरी की पूजा अवश्य करनी चाहिए नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी,।
शाकंभरी नवरात्रि के 9 दिनों में नीचे लिखे मंत्रों का जाप करके मां दुर्गा की आराधना करके कोई भी साधक पूरा जीवन सुख से बिता सकता है। जीवन में धन और धान्य से परिपूर्ण रहने के लिए नवरात्रि के दिनों में इन मंत्रों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
देवी मां शाकंभरी के खास मंत्र-
* 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा।।
* 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति अन्नपूर्णे नम:।।'
* 'ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्य: सुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।'
इन मंत्रों को बतौर अनुष्ठान 10 हजार, 1.25 लाख जप कर दशांस हवन, तर्पण, मार्जन व ब्राह्मण भोजन कराएं।
नित्य 1 माला जपें। हवन सामग्री में तिल, जौ, अक्षत, घृत, मधु, ईख, बिल्वपत्र, शकर, पंचमेवा, इलायची आदि लें। समिधा, आम, बेल या जो उपलब्ध हो, उनसे हवन पूर्ण करके आप सुखदायी जीवन का लाभ उठा सकते हैं
पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार देवी शाकंभरी आदिशक्ति दुर्गा के अवतारों में एक हैं। दुर्गा के सभी अवतारों में से रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी, शाकंभरी प्रसिद्ध हैं। दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य में देवी शाकंभरी के स्वरूप का वर्णन निम्न मंत्र के अनुसार इस प्रकार किया गया है-
मंत्र- शाकंभरी नीलवर्णानीलोत्पलविलोचना।
मुष्टिंशिलीमुखापूर्णकमलंकमलालया।।
अर्थात- मां देवी शाकंभरी का वर्ण नीला है, नील कमल के सदृश ही इनके नेत्र हैं। ये पद्मासना हैं अर्थात् कमल पुष्प पर ही विराजती हैं। इनकी एक मुट्ठी में कमल का फूल रहता है और दूसरी मुट्ठी बाणों से भरी रहती है
नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी,
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