Friday, May 26, 2017

साई देवता नही बस समुदाय विशेष के गुरु है, देवता ओर संत मे पहचान करो..



हम साई को देवता नही मानते पर समुदाय विशेष के गुरु होने के नाते गुरु या संत होने के नाते नाम का आदर हम करते है...
जी हम साई को नही मानते पर हमारी ओर से प्रभु राजाओ के राजा शनिमहाराज जी के रास्ते मे शिर्डी के साई बाबा का मंदिर  भी आता है हम तीन दोस्त ही थे उनमे से एक दोस्त बोला मे दर्शन करना चाहता हूँ
हमने भी कह दिया चलो कर लो हम यही बैठे है उसने कहाँ आपको भी चलना पड़ेगा हमे भी क्या सुझा हम भी चल दिया वहाँ डिजिटल टोकन दिये जाते है फ्री दर्शन ओर पेड दर्शन दोनो.. हमे भी गेट नं दो की टोकन मिला हम गये. वहाँ काफी भारी तादाद मे भीड़ थी .बाहर कुछ भी लो रेट फिक्स है ५००रु प्रसाद कम का नही है दलालो की भीड लगी हुयी है दर्शन करवाने के लिए ओर प्रसाद दिलावाने के लिये. अंदर हाल मे पहचे वातावरण खुशनुमा लगा फिर आस पास नजर दोडाई तो ८०ं/. नवविवाहित जोडे थे या युवक युवतीयाँ थे जो हंसी ठिठोली कर रहे थे लगता नही था  की वो दर्शन को आये है..या पिकनिक को आये है या....
वहाँ जो गाने चल रहे थे.. वो सारे गाने किसी देवता के थे जैस बाबा हनुमानजी की चालीसा मे से बाबा का नाम काटकर साई की नाम चिपका दिया गया ओर नारायण भगवान की जगह भी वोही नाम है.. वैसे कई गाने वहाँ मंदिर प्रगाण मे बज रहे थे दर्शन के दौरान. वहाँ से बाहर गुरुस्थान है. फिर गेट नं तीन से हम बाहर आये वापस आये वहाँ निकले तो शनि महाराज की ओर निकले तो रास्ते लोग खडे थे कि आप यहाँ भी दर्शन करो मतलब जबरदस्ती दर्शन करवाने की वहाँ शायद परम्परा रही हो पर वहाँ से हम दर्शन नही करके निकल गये ..
घर आकर सोचते है की क्या सनातन धर्म इतना कमजोर हो गया है कि एक मंजार सभी देवताओ पर भारी पड गयी जो सब वेदो मे हिन्दु देवताओ के ऊपर लिखे गये श्लोको मे साई भक्तो ने उनका नाम जोडा दिया ओर सनातनी चुप है पर क्यु ये हमारी समझ मे नही आया.. राधा का श्याम भी उसको बना दिया ओर सिया का राम भी.. भोलेनाथ की पदवी भी उसको देदी क्या ये सही है हमारी समझ के पेर है यह सब हम आप सभी से जानने के इच्छुक है... की आप सभी क्या चाहते है.. किसी को बुरा लगा हो तो माफी चाहते है पर यही सत्य है कि जो जिसकी पुजा करेगा वो उसी को पायेगा..... नादान बालक की कलम से एक यात्रा ऐसी भी....

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश
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सोच आपकी



चेहरे पर राख मलने से हर कोई अवधूत नही बनता,
जटा बढाने से हर कोई साधु नही बनता,
जिम्मेदारीयो से भागकर हर कोई संत नही बना करता,
किताब पढकर दो मंत्र बोलने से हर कोई तांत्रिक नही बनता,
जोर से झूठ बोलकर पीठ पीछे बुराई करके कोई साधक नही बनता,
पीठ पीछे जो आप के सामने किसी की बुराई करके है,
क्या आपको पता है कल वो आपकी बुराई नही करेगा,
ऐसे बिन गुरु के चेलो से सम्भल कर रहो प्रभु जनो,
आज जो आपका है कल किसी ओर का होगा,
कोई चिरंजीव नही है दुनिया मे ना आप ना हम,
कर्म करने आये हो कर्म करो फल की चिंता ना करो जिसको फल देना होगा वो देगा,
बाकी काफी है यहाँ जो पीठ पीछे बुराई करने वाले आप स्वयंम की तारीफ तो करना सीखो,
जिनको गुरु शब्द का पता नही वो गुरु निन्दक बने फिरते है
जैसे सच्चे गुरु के चले यही है बाकी तो गूगल बाबा से चलकर आये है,
जय हो ऐसे संतो की क्योंकि ये ना आपके होते है ना हमारे,
मूह पर भाई तो पीठ पीछे कसाई..
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश
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मृतसंजीवनी मंत्र



इसको शांबर तो नही कह सकते पर ये मृतसंजीवनी मंत्र होने से शाबर मे ही इसकी गणना की जा सकती है..

ऊँ नमो भगवति मृतसंजीवनी 'अमुक' शांति कुरु कुरु स्वाहा.


ये मंत्र दिखने मे छोटा है पर बडे काम है अगर इससे शरीर के असाध्य रोग दूर होते बस आपमे अपने गुरु ओर इष्ट के प्रति सच्ची आस्था ओर विश्वास होना चाहिए.... किसी भी शुभ मर्हुत या किसी शुभ नक्षत्र मे शुरु करके ग्यारह सौ बार रुद्राक्ष की माला से पुणे पवित्रता को साथ जप कर ले फिर आप इसका इस्तेमाल आप अपने लिए ओर किसी ओर के लिये कर सकते है 'अमुक' की जगह रोगी का नाम ले या रोगी खुद करे तो अमुक को हटा दे... माँ भगवती को साक्षी मानकर शुरु कर दे जिसने एक बार सिद्ध किया है वो किसी ओर को  भी जपने के लिये कह सकता है पत्येक रोगी के नाम से माँ के मंदिर मे नारियल भेजना ना भुले ओर रोगी का हाथ लगाकर गाय को गुड भी खिला दे सवा किलो थोडा थोडा करके..

बाकी माँ बाबा की इच्छा... ओर उनकी कृपा

पांच दुख को हरने वाले



ये पांच दु:ख हर लेते हैं बाबा हनुमान जी...
श्री बाबा हनुमानजी के स्वरूप, चरित्र, आचरण की महिमा ऐसी है कि उनका मात्र नाम ही मनोबल और आत्मविश्वास से भर देता है। रुद्र अवतार होने से हनुमान का स्मरण दु:खों का अंत करने वाला भी माना गया है।

श्री बाबा हनुमान जी के ऐसे ही अतुलनीय चरित्र, गुणों और विशेषताओं को प्रभु श्री राम जी के परमभक्त भक्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री बाबा हनुमान जी की चालीसा में उतारा है। श्री बाबा हनुमान जी की चालीसा का पाठ बाबा भक्ति का सबसे श्रेष्ट, सरल उपाय है, ये हम भी सभी से सदा ही कहते है ओर बल्कि धर्म की दृष्टि से बताए गए पांच दु:खों का नाश करने वाला भी माना गया है जो हर तरह से सत्य है पर आस्था ओर विश्वास आपको होना चाहिए ओर हमारा या हम जैसे नादान बालको के लिये राम बाण है जो लक्ष्य बिना भेदे वापस नही आता.. तो बोलो लाल लंगोटे ओर हाथ सोटे वाले बाबा की जय जय जयकार हो...

श्री बाबा हनुमान जी की चालीसा की शुरूआत में ही पंक्तियां आती है कि -

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।

बल बुद्धि, विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

इस दोहे में बल, बुद्धि और विद्या द्वारा क्लेशों को हरने के लिए हनुमान से विनती की गई है। यहां जिन क्लेशों का अंत करने के लिए प्रार्थना की गई है, वह पांच कारण है - अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश। जानते हैं इन पांच दु:खों के अर्थ और व्यावहारिक रूप।

अविद्या - विद्या या ज्ञान का अभाव। विद्या व्यक्ति के चरित्र, आचरण और व्यक्तित्व विकास के लिए अहम है। व्यावहारिक रूप से भी किसी विषय पर जानकारी का अभाव असुविधा, परेशानी और कष्टों का कारण बन जाता है। इसलिए विद्या के बिना जीवन दु:खों का कारण माना गया है।

अस्मिता - स्वयं के सम्मान, प्रतिष्ठा के लिए भी व्यक्ति अनेक पर मौकों अहं भाव के कारण दूसरों का जाने-अनजाने उपेक्षा या अपमान कर देता है। जिससे बदले में मिली असहयोग, घृणा भी व्यक्ति के गहरे दु:ख का कारण बन सकती है।

राग - किसी व्यक्ति, वस्तु या विषय से आसक्ति से उनसे जुड़ी कमियां, दोष या बुराईयों को व्यक्ति नहीं देख पाता। जिससे मिले अपयश, असम्मान विरोध भी कलह पैदा करता है ,हम भी सभी को यही सलाह देते है की सदा खुश रहो ओर दुसरो को भी खुश रहने की सलाह दो ।

द्वेष - किसी के प्रति ईर्ष्या या बैर भाव का होना। यह भी कलह का ही रूप है, जो हमेशा ही व्यक्ति को बेचैन और अशांत रखता है तभी ये चालीसा का बात समझ मे आयेगी यहाँ कोई दुश्मन नही है जो हमको दुश्मन समझे उनका भी भला हो।

अभिनिवेश - मौत या काल का भय। मन पर संयम की कमी और इच्छाओं पर काबू न होना जीवन के प्रति आसक्ति पैदा करता है। यही भाव मौत के अटल सत्य को स्वीकारने नहीं देता है और मृत्यु को लेकर चिंता या भय का कारण बनता है।

व्यावहारिक रूप से इन पांच दु:खों से मुक्ति या बचाव बुद्धि, विद्या या बल से ही संभव है। धार्मिक दृष्टि से हनुमान उपासना से प्राप्त होने वाले बुद्धि और विवेक खासतौर पर इन पांच तरह के कलह दूर रखते हैं मानो तो आपकी इच्छा ना माने तो आपकी इच्छा... जय माँ जय बाबा की ।

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश..
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मकान दिग्बंधन मंत्र


अरघट जाऊं मरघट जाऊं,
मरघट बैठ के लड्डू खाऊ,
लोहे की कील वज्र का ताला,
तहाँ बैठा हनुमंत रखवाला,

ये मंत्र अपने आप मे सिद्ध है बस जाग्रत आप को करना है...
ये मंत्र भूत प्रेत जादू टोना सबको जड़ से बांधने वाला है...
मगलवार को बाबा लंगोटी वाले का जन्मदिन है
इससे अच्छा शुभ मूर्हुत कभी नही आयेगा इसको जपने ओर जाग्रत करने के लिये..
फिर जिस जगह को बांधना हो वहाँ चाकू से मंत्र द्वारा रेखा खीचे दे
ओर मकान की सुरक्षा पर इस मंत्र से जल को अभिमंत्रित कर के मकान के चारो ओर जल की धारा देव....
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश...
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आध्यात्मिक मे अभिमान कैसा



अकड ,घमण्ड ,अभिमान इन सभी से परे है आध्यात्मिक ,
कोई यहाँ ग्यान ले जल्दी परिपुणे होकर ग्यान देता है तो हम जैसे नादान बालक सुनते है क्या कर सकते है क्योंकि मीराँ बाई, कबीरदास जी, रखान, भक्त रैदास, ओर भी कई संत या भक्त हुये है जिन्होंने भाव का पकड़ा है चाहे उनका भाव कोई भी रहा हो लेकिन आध्यात्मिक हो या साधना सभी मे भाव प्रधान होता है हम स्वयंम नादान बालक है इसमे कोई शंका नही है ओर हम अपने आपको विद्वान भी नही बनाना चाहता है हम है जो वोही रहेगे हमे किसी की होड नही करनी कि कोन क्या कर रहा है ओर कोन हमारे लिये क्या कह रहा है हम जो है वोही रहेगे किसी के बदलने या किसी कहने से हम परिवर्तित नही हो सकते बाकी माँ बाबा की इच्छा वो क्या चाहते है..
सब अच्छे है हमारी सोच मे हमारी बुराई करने वाला भी अच्छा है तो हमारी सुनने वाला भी अच्छा न्याय हमारे हाथ मे नही है हम कोई फैसला नही सुना सकते कोन गलत है कोन सही इसका फैसला तो माँ बाबा ने ही करना है बाकी कोई हमारी वजह से मायूस ना हो यही सोच हमारी है.... *ये सोच हमारी है आप मानो या ना मानो कोई जबरदस्ती नही है...* आगे माँ बाबा की इच्छा ओर कृपा... ॐ गुरुदेवाये नमः ॐ..

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश.
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गुरु ही सर्वप्रिय




बुराई कितनी ही बडी हो, पर अच्छाई के सामने एक ना एक दिन हारना ही पड़ता है यह अटल सत्य है चाहे कर्म अच्छे हो या बुरे यहाँ भोगने ही पडते है यही स्वर्ग है ,
यही नर्क उसी तरह हिन्दू धर्म भी गुरु परम्परा पर आधारित है, गुरु को भगवान से भी बडा दर्जा दिया गया है मतलब सर्वोपरि माना गया है ,
गुरु चाहे तो शिष्य को आग बना सकते है चाहे तो बर्फ पर ये शिष्य की काबलियत पर निर्भर करता है ,
कि वो गुरु पर विश्वास कितना करता है,
वास्तव में शिष्य अपने गुरु के रुप में ज्ञान,तप ,योग, की पूजा करता है है
गुरु अज्ञान रुपी अंधकार से ज्ञान रुपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं,

गुरु धर्म और सत्य की राह बताते हैं,
 गुरु से ऐसा ज्ञान मिलता है,
जो जीवन के लिए कल्याणकारी होता है,

गुरु शब्द का सरल अर्थ होता है,
 बड़ा, देने वाला, अपेक्षा रहित, स्वामी, प्रिय यानि गुरु वह है ,
जो ज्ञान में बड़ा है,
विद्यापति है,
जो निस्वार्थ भाव से देना जानता हो,
जो हमको प्यारा है,
 गुरु का जीवन में उतना ही महत्व है,
 जितना माता-पिता का ,
 माता-पिता के कारण इस संसार में हमारा अस्तित्व होता है,
ओर इसी कारण माता को प्रथम गुरु ओर पिता को प्रथम पथ पर्दशक भी कहाँ जाता है,
पर जन्म के बाद आध्यात्मिक या भौतिक जीवन मे एक सद्गुरु की जरुरत रहती है ,
जो व्यक्ति को ज्ञान और अनुशासन का ऐसा महत्व सिखाता है,
जिससे व्यक्ति अपने सद्कर्मों और सद्विचारों से जीवन के साथ-साथ मृत्यु के बाद भी अमर हो जाता है,
यह अमरत्व गुरु ही दे सकता है। सद्गुरु ने ही भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया हाल की वो भगवान थे पर उनको भी गुरु की जरुरत पडी थी खैर हम तो इंसान है वो भी मामूली नादान बालक या मिट्टी का शरीर जिसमे राम बसा हो तो ही कार्य करता है उन्होने भी अपने माता पिता की आग्या का उलंघन नही किया उसका भी उन्होने निर्वाह किया तो उसमे भी उनके प्रथम गुरु ग्यान ओर सद्गुरु की कृपा ही महसूस होती है,
इस प्रकार व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास गुरु ही करता है,
जिससे जीवन की कठिन राह को आसान हो जाती है,
ओर जब आध्यात्मिक क्षेत्र की बात होती है तो बिना गुरु के ईश्वर से जुडऩा कठिन है,
गुरु से दीक्षा पाकर ही आत्मज्ञान, ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है,
ओर वैसे भी हमारे धर्म ग्रंथों में भी गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश माना गया है,
गुरुब्र्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरा:।
गुरुर्साक्षात् परब्रह्मï तस्मै: श्री गुरुवे नम:॥,,

तो आज का हमारा सार यही है कि गुरु शिष्य के बुरे गुणों को नष्ट कर उसके चरित्र, व्यवहार और जीवन को ऐसे सद्गुणों से भर देता है,
जिससे शिष्य का जीवन संसार के लिए एक आदर्श बन जाता है,
 ऐसे गुरु को ही साक्षात ईश्वर कहा गया है,
 इसलिए जीवन में गुरु का होना जरुरी है,
ओर जो गुरुमुखी होते है, वो जानते है कि गुरु कोई भी किसी का भी हो निन्दा नही नही की जाती क्योंकि वो भी गुरु तो है, किसी ना किसी का तो वो उस नाते गुरु तुल्य है हुआ अगर किसी के गुरु की निन्दा की जाती है तो आपके गुरु की या किसी आमजन की पीठ पीछे बुराई या निन्दा होगी मतलब आप किसी के कर्म काट रहे है,
उसका पाप अपने सर पर से रहे है,अपने पुण्य क्षणी कर रहे है, इससे अच्छा है कि जहाँ ऐसी चर्चा चले या तो मौन साध ले या वहाँ से निकल ले,
गुरु अपने आप मे बीज मंत्र है, गुरु हर शिष्य का आवरण है गुरु बह्मस्त्रा है, गुरु दिग्बंधन है,
हमारे कथन से कोई सहमत हो या ना हो कोई जरुरी नही पर यही सत्य है कि बुराई पनपती जल्दी है, तो खत्म भी जल्दी होती है,
ओर अच्छाई को रोका जा सकता है पर दबाया भी नही जा सकता सच्चाई स्वयंम एक दिन सामने आ ही जाती है, आज के लिए इतना ही नादान बालक की कलम से , *ॐ गुरुदेवाये नमः ॐ....*

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश ,..
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साधु या शैतान जरा सोच समझकर चले



मित्रो आजकल एक चलन चल गया है कि हर कोई अपने आपको नाथ साधु समझने लगा है जिनको आदेश आदेश शब्द क्यु बोला जाता है ये भी नही पता ओर जिनके गुरुओ का पता नही फिर भी नाथ बने हुये ये वो है जो लोगो को डरा धमका कर कुछ भी वसुली करते रहते है ,,
*ओर नाथ पंथ जैसे पवित्र संप्रदायी को बदनाम करने मे लगे हुये, हिन्दू धर्म की ये एक बहुत बडी शाख है जिसने कभी भी जाति पाति को महत्व ना देकर सबको समान रुप से महत्व दिया है......*
तो दोस्तों ऐसे फर्जी लोगो से बचे ओर इनके चक्करो मे ना पडे ये पैसो के भूख होते है अगर आपको असली नाथ पंथी देखना है तो
*गिरनारा ,गोरखपुर, बनारस, या हरिद्वार, या कोई अन्य पुजनीये स्थलो  पर जावो क्योंकि नाथपंथी साधु गली गली नही घूमते...*
ओर आजकल कुछ काले कपडे वाले साधु महात्मा भी गली या किसी शहर के कोने मे सा एक छोटे से मकान मे नजर आ सकते है ओघड या अघोरी बने हुये हाथ मे खोपड़ी लिये हुये ये मंजर कुछ डरावना हो गया ना ये वो है जो अपने आपको ओघड या अघोरी बोलते है ओर हर काम के बदले पैसे की डिमांड रखते है तो दोस्तों हर काले कपडे वाला ओघड या अघोरी नही होता इनसे डरने की जरुरत नही क्योंकि असली अघोरी या अघोड पैसे नही मांगता यही सत्य है बाकी डराने का काम ये फर्जी कथित तांत्रिक जो अघोरी या ओघड बने है यही करते *असली अघोरी या ओघड आजकल कहाँ मिलते है कुछ से हम मिले थे जिनमे एक हमारे गुरुदेव भी थे उनसे हमने काफी कुछ सीखा था जिनकी समाधि हमारे गाँव से काफी दुर है इसलिए कभी जा नही पाये पर उनका हाथ ओर आशीर्वाद सदा हमारे साथ है ये हमे पता है क्योंकि  गुरुओ की खुशबू चंदन सी महकती है पर असली डराते नही पर आवाज उनकी बलूंद होती है ओर मांगते कुछ नही जो आप खुशी से ले जाऊगे उसको वो खुशी खुशी ग्रहण करते है बिना भेदभाव......*
पर आजकल कई ढोंगी पाखण्डीयो ने हिन्दू धर्म के इस पंथ को भी बदनाम कर दिया जिनके गुरु का पता नही वो आजकल ओघड, अघोरी, तांत्रिक, बने हुये है तो ऐसे तथाकथित महापुरुषो से सावधान रहे ओर पैसे ना दे ओर डरे नही..
आजकल कोलचार के साधक भी अपने चरम पर है जिनको ये नही पता होता की कोलचार की दीक्षा मे संस्कार कितने होते है बीजं मंत्रो के जाग्रति संस्कार कितने होते है मुखशोधन संस्कार कितने होते है ओर कौलचार्य कोन बनने के लायक है या नही बस दीक्षा वा ओर बन गये कोलचार साधक दोस्तों एक हमारे गुरुदेव जिन्होंने हमारे गावँ मे ही जिंदा समाधि ली थी जो पैसो का भूखा हो उसको कभी गुरु मत बनाओ हमारा यही कहना है हाँ जिस गुरु की जीविका कैसे चलती है या नही तो शिष्यौ का फर्ज है कि उनके भोजन का व्यवस्था करे क्योंकि भगवान से पहले गुरु का स्थान है गुरु आपका मजबूत है तो आपको कोई हिला नही सकता सही अटल सत्य है..
ओर आजकल कई जगह हम देखा करते है की पंडितो को कोई दक्षिणा पुणे रुप से नही देते दोस्तों पंडित या मंत्र ज्योतिषचार्या को पुणे दक्षिणा दे तो उतना ही उसका फलक मिलता है कुंडली या पंचांग खुलता है तो बिना दक्षिणा के ये दोनो चीज ना खुलाये वरना आप भाग्यहीन भी हो सकते है यही सत्य है सबका मान सम्मान होना चाहिये ज्योतिषचार्य हमारे समाज के स्तंभ है..
तो दोस्तों हमारे हिन्दू धर्म को बदनाम करने वालो से सावधान रहे ओर उन पंथो को समझे जिनके बारे मे आपको पता ना हो आज बस इतना ही नादान बालक की कलम से. आगे फिर कभी.बहुत कुछ छिपा है जो भी करो सोच समझकर करो...

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश
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गुरु बनाने से पहले सोचे

*🌹जय माँ जय बाबा की 🌹*

बिना सोचे समझे कदम उठाना मूर्खता है,
यहाँ घुम रहे है तांत्रिक गली गली मे,
अगर वो सच्चा होगा तो आप स्वयंम उसके पास चले जाऊगे,
 सच्चाई को किसी प्रचार की जरुरत नही होती,
ओर फुल गुलाब का हो तो वहाँ इत्र की जरुरत नही होती,
बाकी अपवाहो का बजार गर्म है जिसको देखो ओघड बने हुयै है.

उसी तरह साधना के लिये साधक की जरुरत होती है,
गुरु को भी अपने लिए शिष्य की जरुरत होती है,
शिष्य गुरु नही खोजता, खोजता तो गुरु है अपने लिये शिष्य,
बाकी आप सभी समझदार है. हम तो नादान बालक है..
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश
🙏🏻🌹🌹🌹🌹🌹🙏🏻

जरा मनन करे

जो लोग अभिचार कर्म करते है ओर डाकिनी,शाकिनी या ओर किसी अन्य शैतान के माध्यम से पुजा करते है या कुछ पल के लिए क्षणिक सुख की कामना मे वो रास्ता भटक जाता है ओर सुर असुर मे फर्क महसूस नही करते व दुसरो की पीडा हो अनुभव नही कर सकते तो उनको गति मलिना मुश्किल है आज कल जहाँ देखो काफी तांत्रिक व अघोरी भरे पडे है दुनिया मे जो माँ महामाया, माँ महाकाली या बाबा भूतेश्वर, प्रेतराज, बाबा भैरव के नाम पर श्मशान या अऩ्य विराने मे या किसी खण्डहर मे बलि या तामसिक पुजा करते नजर आते ये वो लोग होतै है जो अघोर पंत जैसे पवित्र पंथ को बदनाम करते है जो भोले भाले ग्रामीणो को या किसी प्रेत का साधना करके चमत्कार करके उन कमजोर व्यक्तियो को निशाना बनाते है जो ये तो अपना विश्वास खो चुके है या जो इनके बारे मे जानतै हुये भी अनजान बनते है.. ...
नागा साधु।। या अघोरी को बुरे नही होते यह सब मान सम्मान. अपमान से परे होते है जो एकदम सरल सीधी भाषा मे मे बोले तो सारे जगत को ये अपना समझने वाले होते है.. जो अपने मोक्ष दाय देवता के अलावा किसी से कुछ नही मागंता ये सब समय काल परिस्थिति सै ऊपर जा चुके होते है....
पर कुछ टीवी चैनल ओर उनके कथित मालिक या पत्रकार इन पंथो के बारे मे आम जनता मे इतना डर बैठा चुका है कि लोग इनसे डरने लगे है...
पंच मंकार की साधना भी अघोरीयो मे होती है पर वो सारी साधनाये अपने आप मे काफी रहस्यमय है जिनको कुछ टोचे या ओछे व्यक्तियो ने इनका नाम खराब किया है वो सारी साधनाये निर्जीवो के साथ पुणे की जाती है पर कुछ असामाजिक तत्वो ने सनातन धर्म को बदनाम करने के लिये इस धर्म की जितनी शाखाये है समय समय पर फिल्मो या नेताओ द्वारा आरोप या प्रत्यारोप किया गया है इसलिए आप जब तक किसी के बारे मे पुणेयता समझ ना ले उसके बारे मे या किसी भी पंथ के बारे मे टिप्पणि ना करे ओर जब आपको कोई गलत संदेश या किसी की टिप्पणीयों मिले तो उसका मुंह तोड जवाब दे हमारा तो यही कहना है....
बाकी श्मशान साधना से जो सिद्धियां माँ या बाबा को मंत्र शक्ति या अन्य किसी को मजबुर या किसी भी अनचाहे बलि देकर अर्जित करते हैं या की गयी हो यह सब....
अंत समय यही सिद्धियां दुखदायी बन जाती है ओर इनका गलत प्रयोग आपको नाश ओर प्रेतयोनी मे जाने पर विवश कर देता है इसलिए जो भी करे सोच समझकर करे किसी का हक मारने की मतलब है कि आप खुद अपने परिवार को विनाश की ओर ले जा रहे हो अगर आपके पास कुछ है तो उनको अच्छे काम मे लगाये... ...
कुल का नाश होजाता है.....
और वंशोन्नति नहीं होती....
इसलिये इसका प्रयोग न करना ही बेहतर है..
रावण....मेघनाद ये साधनाएं करते थे उनका परिणाम आप सभी के सामने है खैर जो जिसकी पुजा करेगा वो उसी को जायेगा यह भी सत्य है देवता की पुजा करेगा तो निश्चित ही उनको पा लेगा ओर भुतो या अन्य धर्म को मानेगा तो उनको ही जायेगा प्रेतयोनी मे भी भटकना पड सकता है जिस तरह महापंडित रावण की गलतियों से उसके कुल का सर्वनाश हो गया था ।।.....
सब कुछ आपके सामने है फिर आपकी सोच ओर आपका विवेक... स्ताविक मे भी तामसिक पुजा होती है इसके बारे मे फिर कभी जानेगे...

  पर अभी सात्विक पूजन ही करें
सत्य सनातन संस्कृति ही हमारी पहचान है
जो कोई भगवान् को अपने हृदयमें बसाता है,
उसको भगवान् अपने हृदयमें बसा लेते हैं
हमारी बातो से आप सहमत हो ये कोई जरुरी नही ये हमारी निजी राय है आप सभी के लिये मानो तो अच्छा ना मानो तो बहुत अच्छा.... नादान बालक की कलम से.....


जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश...

आइये जानते हैं कब है धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि विधान साधना???

* धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि*  *29 और 31 तारीख 2024*  *धनतेरस ओर दिपावली पूजा और अनुष्ठान की विधि* *धनतेरस महोत्सव* *(अध्यात्म शास्त्र एवं ...

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