Friday, May 26, 2017

गुरु ही सर्वप्रिय




बुराई कितनी ही बडी हो, पर अच्छाई के सामने एक ना एक दिन हारना ही पड़ता है यह अटल सत्य है चाहे कर्म अच्छे हो या बुरे यहाँ भोगने ही पडते है यही स्वर्ग है ,
यही नर्क उसी तरह हिन्दू धर्म भी गुरु परम्परा पर आधारित है, गुरु को भगवान से भी बडा दर्जा दिया गया है मतलब सर्वोपरि माना गया है ,
गुरु चाहे तो शिष्य को आग बना सकते है चाहे तो बर्फ पर ये शिष्य की काबलियत पर निर्भर करता है ,
कि वो गुरु पर विश्वास कितना करता है,
वास्तव में शिष्य अपने गुरु के रुप में ज्ञान,तप ,योग, की पूजा करता है है
गुरु अज्ञान रुपी अंधकार से ज्ञान रुपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं,

गुरु धर्म और सत्य की राह बताते हैं,
 गुरु से ऐसा ज्ञान मिलता है,
जो जीवन के लिए कल्याणकारी होता है,

गुरु शब्द का सरल अर्थ होता है,
 बड़ा, देने वाला, अपेक्षा रहित, स्वामी, प्रिय यानि गुरु वह है ,
जो ज्ञान में बड़ा है,
विद्यापति है,
जो निस्वार्थ भाव से देना जानता हो,
जो हमको प्यारा है,
 गुरु का जीवन में उतना ही महत्व है,
 जितना माता-पिता का ,
 माता-पिता के कारण इस संसार में हमारा अस्तित्व होता है,
ओर इसी कारण माता को प्रथम गुरु ओर पिता को प्रथम पथ पर्दशक भी कहाँ जाता है,
पर जन्म के बाद आध्यात्मिक या भौतिक जीवन मे एक सद्गुरु की जरुरत रहती है ,
जो व्यक्ति को ज्ञान और अनुशासन का ऐसा महत्व सिखाता है,
जिससे व्यक्ति अपने सद्कर्मों और सद्विचारों से जीवन के साथ-साथ मृत्यु के बाद भी अमर हो जाता है,
यह अमरत्व गुरु ही दे सकता है। सद्गुरु ने ही भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया हाल की वो भगवान थे पर उनको भी गुरु की जरुरत पडी थी खैर हम तो इंसान है वो भी मामूली नादान बालक या मिट्टी का शरीर जिसमे राम बसा हो तो ही कार्य करता है उन्होने भी अपने माता पिता की आग्या का उलंघन नही किया उसका भी उन्होने निर्वाह किया तो उसमे भी उनके प्रथम गुरु ग्यान ओर सद्गुरु की कृपा ही महसूस होती है,
इस प्रकार व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास गुरु ही करता है,
जिससे जीवन की कठिन राह को आसान हो जाती है,
ओर जब आध्यात्मिक क्षेत्र की बात होती है तो बिना गुरु के ईश्वर से जुडऩा कठिन है,
गुरु से दीक्षा पाकर ही आत्मज्ञान, ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है,
ओर वैसे भी हमारे धर्म ग्रंथों में भी गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश माना गया है,
गुरुब्र्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरा:।
गुरुर्साक्षात् परब्रह्मï तस्मै: श्री गुरुवे नम:॥,,

तो आज का हमारा सार यही है कि गुरु शिष्य के बुरे गुणों को नष्ट कर उसके चरित्र, व्यवहार और जीवन को ऐसे सद्गुणों से भर देता है,
जिससे शिष्य का जीवन संसार के लिए एक आदर्श बन जाता है,
 ऐसे गुरु को ही साक्षात ईश्वर कहा गया है,
 इसलिए जीवन में गुरु का होना जरुरी है,
ओर जो गुरुमुखी होते है, वो जानते है कि गुरु कोई भी किसी का भी हो निन्दा नही नही की जाती क्योंकि वो भी गुरु तो है, किसी ना किसी का तो वो उस नाते गुरु तुल्य है हुआ अगर किसी के गुरु की निन्दा की जाती है तो आपके गुरु की या किसी आमजन की पीठ पीछे बुराई या निन्दा होगी मतलब आप किसी के कर्म काट रहे है,
उसका पाप अपने सर पर से रहे है,अपने पुण्य क्षणी कर रहे है, इससे अच्छा है कि जहाँ ऐसी चर्चा चले या तो मौन साध ले या वहाँ से निकल ले,
गुरु अपने आप मे बीज मंत्र है, गुरु हर शिष्य का आवरण है गुरु बह्मस्त्रा है, गुरु दिग्बंधन है,
हमारे कथन से कोई सहमत हो या ना हो कोई जरुरी नही पर यही सत्य है कि बुराई पनपती जल्दी है, तो खत्म भी जल्दी होती है,
ओर अच्छाई को रोका जा सकता है पर दबाया भी नही जा सकता सच्चाई स्वयंम एक दिन सामने आ ही जाती है, आज के लिए इतना ही नादान बालक की कलम से , *ॐ गुरुदेवाये नमः ॐ....*

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश ,..
🙏🏻🌹🌹🌹🌹🌹🙏🏻

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