Sunday, October 27, 2024

आइये जानते हैं कब है धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि विधान साधना???

* धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि* 
*29 और 31 तारीख 2024*


 *धनतेरस ओर दिपावली पूजा और अनुष्ठान की विधि*
*धनतेरस महोत्सव*
*(अध्यात्म शास्त्र एवं ज्ञान)*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
💐🙏 *इस बार धनतेरस महोत्सव 29 अक्टूबर मंगलवार को धूम-धाम से मनाया जाएगा। कृपया आप भ्रमित होने से बचें।

💐👉 *धनतेरस पर क्यों, कौन सी और कितनी झाड़ू खरीदना चाहिए और पूजा कैसे करें?*

💐👉 *धनतेरस 2024: धनतेरस पर सोना, चांदी के सिक्के, धनिया के बीज, बताशे, गणेजी और लक्ष्मीजी की मूर्ति, पीली कौड़ी, मिट्टी के दीये के साथ ही झाड़ू खरीदने का भी प्रचलन है। इस बार 29 अक्टूबर 2024 मंगलवार को धनतेरस का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन आप झाड़ू खरीदना बहुत महत्वपूर्ण होता है। 
            ➡️ *आओ जानते हैं कि क्यों खरीदते हैं झाड़ूं, कौनसी खरीदना चाहिए और कितनी झाडू खरीदना चाहिए।*

        🌷*क्यों खरीदते हैं 
                            धनतेरस पर झाड़ू*🌷
🍄👍 *धनतेरस पर झाड़ू खरीदने का प्रचलन है। कहा जाता है कि झाड़ू इससे वर्षभर के लिए घर से नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकल जाती है। इस दिन झाडू खरीदना चाहिए क्योंकि यह बहुत ही शुभ माना गया है क्योंकि इससे घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है।

        🌷*धनतेरस पर कौन
                               सी झाड़ू खरीदे*🌷
🍄👍 *धनतेरस पर सीकों वाली या फूल वाली अच्छी मजबूत झाड़ू खरीदना चाहिए। ऐसी झाड़ू खरीदे जो हाथ से बनाई गई हो। झाड़ू लाएं तो उस पर सफेद रंग का धागा बांध दें, जिससे मां लक्ष्मी आपके घर में बनी रहें।

     🌷*धनतेरस के दिन कितनी 
                           झाड़ू खरीदनी चाहिए*🌷
🍄👍*धनतेरस के दिन विषम संख्या में ही झाड़ू खरीदनी चाहिए। जैसे 3, 5 या 7 झाड़ू खरीदें। कम से कम तीन झाड़ू अलग अलग कार्यों के लिए खरीदना चाहिए। धनतेरस पर खरीदी गई झाड़ू से दिवाली के दिन मंदिर में साफ-सफाई करना भी शुभ माना जाता है।

         🌷*धनतेरस पर झाड़ू 
                              की पूजा कैसे करें*🌷
🍄👍 *शुभ मुहूर्त में झाड़ूं की माता लक्ष्मी की तरह पूजा करें। उसको हल्दी, कुमकुम और चावल लगाएं। उस पर सफेद रंग का धागा बांध दें, जिससे मां लक्ष्मी आपके घर में बनी रहें।
पुखराज मेवाड़ा आसींद 
  


 *दिपावली 2024 मुहूर्त और अन्य विवरण*
कार्तिक अमावस्या तिथि इस बार 31 अक्टूबर व एक नवंबर दो दिन है।
अमावस्या 31 अक्टूबर को दोपहर 3:12 बजे लग रही जो एक नवंबर को शाम 5:13 बजे तक है।
एक नवंबर को सूर्यास्त सायं 5:32 बजे हो रहा।
अमावस्या सूर्यास्त से पूर्व 5:13 बजे खत्म हो रही है।
एक नवंबर को ही सायं 5:13 बजे के बाद प्रतिपदा लग जा रही है।
एक नवंबर को प्रदोष काल व निशीथकाल दोनों में कार्तिक अमावस्या न मिलने से 31 अक्टूबर को दीपावली मनाना शास्त्र सम्मत है।
निर्णय सिंधुकार के अनुसार ‘पूर्वत्रैव प्रदोषव्याप्तौ लक्ष्मीपूजनादौ पूर्वा अभ्यंगस्नानादौ परा।’ ब्रह्म पुराण में भी कार्तिक अमावस्या को लक्ष्मी-कुबेर आदि का रात्रि में भ्रमण बताया गया है।
प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद दो घटी रहता है। एक घटी 24 मिनट का होता है। अर्थात सूर्यास्त के बाद 48 मिनट का समय प्रदोष काल होता है जो 31 अक्टूबर को ही मिलेगा।
वहीं, एक नवंबर को कार्तिक अमावस्या स्नान-दान और श्राद्ध की होगी।
दीपावली पर गुरुवार का संयोग माता लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए चार चांद लगाने वाला होगा।
व्यापारी वर्ग व्यापार की उन्नति व सिद्धि के लिए महालक्ष्मी का पूजन-वंदन करता है।
कार्तिक अमावस्या अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है। इसलिए इस दिन किसी कार्य को किया जाए तो वर्ष भर उसमें सफलता मिलती है।
तिथि विशेष पर तांत्रिक लोग तंत्र-मंत्र की सिद्धि करते हैं। बंगीय समाज में निशीथ काल में महाकाली पूजन किया जाता है।
देवालयों में दीप जलाएं
दीपावली पर सायंकाल देवालयों में दीपदान, रात्रि के अंतिम पहर में दरिद्रा निस्तारण करना चाहिए।
व्यापारी वर्ग शुभ व स्थिर लग्न में अपने प्रतिष्ठान की उन्नति के लिए महालक्ष्मी पूजन करते हैं।
घरों में लक्ष्मी-गणेश व कुबेर का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन कर दीप जलाना चाहिए।
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्रीसूक्तमकनकधारा स्त्रोत, लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी मंत्र का पाठ-जप-हवन आदि करना चाहिए। इससे महालक्ष्मी, स्थिर लक्ष्मी स्वरूप में कृपा के साथ धन-धान्य, सौभाग्य, पुत्र-पौत्र, ऐश्वर्य और प्रभुत्व का इत्यादि का वरदान देती हैं।
दीपावली की सुबह हनुमान जी का दर्शन-पूजन करना चाहिए, दिपावली प्रकाश का एक महान त्योहार है जो घर में अनन्त आशीर्वाद, भाग्य और विशाल समृद्धि लाता है।  इस शुभ त्योहार के दौरान, देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए दिपावली पूजा की जाती है।  असंख्य अनुष्ठान, रीति-रिवाज और परंपराएं हिंदुओं के इस पवित्र त्योहार के साथ जुड़ी हुई हैं।  हालांकि यहां दिपावली पूजा करने की सरल विधि के बारे में विस्तार से बताया गया है।  दिपावली पूजा विधि को विस्तार से जानिए और अपनी दिवाली को बनाएं दिव्य और खास।  जानिए किन पूजा सामग्री की जरूरत है, कौन से पवित्र मंत्रों का जाप किया जाता है और धन की देवी लक्ष्मी और भाग्य के भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए किन परंपराओं का पालन किया जाता है।  यह सच है कि अपनी दिपावली पूजा करने के लिए किसी भी बुद्धिमान पंडित से परामर्श करना पैसे का भुगतान करने का मामला है।  तो, दिपावली पूजा को अपने आप सही तरीके से करने के बारे में क्या?  वास्तव में, उपलब्ध दिपावली पूजन विधि जटिल नहीं है, वास्तव में, इसे करना बहुत आसान होगा।  दिवाली का त्यौहार साल में एक बार आता है।  यह प्रमुख और शुभ अवसर है जो आपको धन की देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करके करोड़पति बनने का अवसर प्रदान करता है।  यहां दी गई दीपावली पूजा विधि के साथ पूजा करें और देवी लक्ष्मी की असीम कृपा प्राप्त करने का अवसर प्राप्त करें।

 दिपावली पूजा सामग्री

 दिपावली के अवसर पर एक साधारण लक्ष्मी पूजा करने के लिए, निम्नलिखित पूजा वस्तुओं का उपयोग किया जाता है।  दिए गए सामान किसी भी स्थानीय किराना स्टोर में आसानी से उपलब्ध हैं।  दिपावली पूजा को निर्दोष रूप से करने के लिए इन पूजा वस्तुओं का प्रयोग करें।

 दिपावली पूजन सामग्री की सूची इस प्रकार है:

 कुमकुम पाउडर 1 चम्मच हल्दी हल्दी 1 चम्मच चंदन पाउडर 1 चम्मच अगरबत्ती/धूपस्टिक 4 अगरबत्ती/धूपस्टिक्स  सिक्के5
पुष्प माला, पुष्प,कलावा
 सिक्के कुछ चम्मच कुछ पेपर प्लेट्स कपास की बत्ती जलाने के लिए सुपारी 1 पैकेट पान के पत्ते लाल या सफेद कपड़ा (तौलिया या ब्लाउज का टुकड़ा) घर में पका हुआ प्रसादम मिठाई केला 1 दर्जन

 दीपावली पूजन के दौरान पालन किए जाने वाले दिशा-निर्देश

 किसी भी पूजा को करने से पहले आत्मा और शरीर की शुद्धि आवश्यक है, इसलिए पहले स्नान करें और नए कपड़े पहनें, और अपने माता-पिता, गुरु या उनके चित्र को नमस्कार करें, अपने तीर्थ स्थान पर दीवाली पूजा की सभी वस्तुओं को इकट्ठा करें जहाँ आप दीवाली पूजा करेंगे, दिवाली पूजा करते समय,  मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए अपने सामने पीठम रखें और ऊपर लाल कपड़ा या अप्रयुक्त छोटा तौलिया फैलाएं। लाल कपड़े के ऊपर देवी लक्ष्मी का चित्र रखें। दोनों तरफ तेल का दीपक लगाएं। दाहिने हाथ की तरफ अगरबत्ती लगाएं  चित्र। कुमकुम, चंदन, हल्दी की शक्ति, सिक्के, सुपारी और पत्तियों के साथ एक प्लेट तैयार करें, केले को किनारे पर रखें प्रसाद को किनारे पर रखें 1 कप कच्चा चावल लें, हल्दी पाउडर के एक जोड़े को मिलाएं।  इसे अच्छी तरह मिला लें और पानी की कुछ बूंदें छिड़कें और फिर से मिला लें।  इसे अक्षत कहते हैं अपनी दाहिनी ओर फूल रखें और उसी थाली में अक्षत (ऊपर तैयार) रखें, अपने बायीं ओर पानी से भरा कलश तैयार रखें पंचपत्रम या पानी से भरा प्याला और अपने सामने चम्मच रखें।  चित्र के ठीक सामने लक्ष्मी के सिक्के पूजा के दौरान महिलाओं को पुरुषों के दाहिनी ओर बैठना चाहिए

 मंत्र

 एक रमणीय पूजा करने और केवल भगवान या देवी को प्रसन्न करने के लिए मंत्रों का जाप बहुत महत्वपूर्ण पवित्र हिस्सा है।  जिससे आवाहन और मंत्र जाप करने से दीवाली पूजा दिव्य हो जाएगी।  विभिन्न प्रयोजनों के लिए दिए गए विभिन्न मंत्र निम्नलिखित हैं।

 "ॐ सर्वभ्यो गुरुभ्यो नमः |
 ॐ सर्वभ्यो देवेभ्यो नमः ||
 ॐ सर्वभ्यो ब्रह्मणभ्यो नमः ||
 प्रारम्भ क्रियां निर्विघ्नमस्तु |
 शुभम शोभनमस्तु |
 इस्ता देवता कुलदेवता सुप्रसन्ना वरदा भवतु ||
 अनुजनम देही ||"

 दीप स्थापना

 चूंकि दीवाली रोशनी का त्योहार है, दीपा या दीया (दीपक) स्थापित करना दिवाली पूजा का दिव्य हिस्सा है।  तीर्थ स्थान पर दीपा की स्थापना को 'दीप स्थापना' कहा जाता है।  ऐसा करके आप न केवल दीपक जलाते हैं बल्कि अपने घर में अपार समृद्धि को आमंत्रित करते हैं।  दीया जलाकर आप ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि आपके जीवन से अंधकार या बुरा प्रभाव हमेशा के लिए दूर हो जाए।  और इस तरह दीपा स्थापना परिवार के सदस्यों के बीच अपार खुशी और सद्भाव लाती है।  इसलिए दीपा स्थापना के लिए कुछ पवित्र विधियों का प्रयोग किया जाता है।  नीचे जानिए दीपा स्थापना कैसे की जाती है।

 "अथ देवस्य वामा भागे दीपा स्थापनां करिस्ये |"  (तस्वीर के बाईं ओर दीपक जलाएं, यदि आपके पास दो तेल के दीपक हैं तो आप दोनों को दोनों तरफ रख सकते हैं अन्यथा देवों के बाईं ओर)

 अचमनम

 (एक चम्मच पानी लें, इसे घूंट लें और नीचे बताए गए प्रत्येक मंत्र के साथ प्रक्रिया को तीन बार दोहराएं और अंत में अपने हाथ धो लें)

 "ॐ केशवय स्वाहा | ॐ नारायणाय स्वाहा | ॐ माधवय स्वाहा |"

 नीचे दिए गए मंत्र हैं।  निम्नलिखित में से प्रत्येक मंत्र से नमस्कार करें।

 "ॐ गोविंदया नमः | विष्णवे नमः | मधुसूदनय नमः | त्रिविक्रमाय नमः | ॐ वामनय नमः | श्रीधरय नमः | हृषिकेशय नमः | ओम पद्मनाभय नमः | दामोदरय नमः |  अनिरुद्धाय नमः पुरुषोत्तमाय नमः अधोक्षजय नमः नरसिंहाय नमः अच्युतय नमः जनार्दनय नमः उपमेद्राय नमः हरे नमः | श्री कृष्णाय नमः ||"

 प्राणायाम (हाथ में एक चम्मच पानी लेकर)

 "ओम प्रणवस्य परब्रह्म ऋषि | परमात्मामदेवता | दैवी गायत्री चंदः | प्राणायाम विनियोगह ||"  (एक प्लेट में अपने हाथ से पानी गिराएं) (सीधे बैठें, अपने फेफड़ों को हवा से भरें, इसे पकड़ें और साँस छोड़ें)

 "ओम भुः | ओम भुवः | ओम स्वाः | ओम महः | ओम जाना | ओम तपः ओम सत्यम | ओम तत्सवितुर्वारेण्यं भरगोदेवस्य धम्मी धियो यो नः प्रचोदयात ||

 (भगवान गणेश को अक्षत और फूल की पंखुड़ियां चढ़ाएं)

 "ॐ श्री महागनाधिपतये नमः |"

 "श्री गुरुभ्यो नमः | श्री सरस्वतीै नमः | श्री वेदाय नमः | श्री वेदपुरुषाय नमः | इस्तदेवताभ्यो नमः | कुलदेवताभ्यो नमः | स्थानदेवताभ्यो नमः | ग्रामदेवतभ्यो नमः |  सर्वभ्यो ब्रह्मणभ्यो नमो नमः | कर्म प्रधान देवताभ्यो नमो नमः ||"

 ||  अविघ्नमस्तु ||

 (भगवान गणेश की मूर्ति पर अक्षत या फूल की पंखुड़ियां चढ़ाते रहें)

 "सुमुखस्का एकदमत्सका कपिलो गजकर्णकः |
 लंबोदरस्का विकातो विघ्न नसो गहाधिपाह ||  "
 "धुमराकेतुर्गनाध्याकसो बालचंद्रो गजाननः |
 द्वादसैतनी नमनी याह पथे श्रुनुयदापि ||"
 "विद्यारंभे विवाहे च प्रवेसे निर्गामे तथा |
 संग्रामे संकटस्कैव विघ्नः तस्य न जायते ||"
 "सुक्लंबरधरम देवं सशिवर्णम चतुर्भुजम |
 प्रसन्ना वदानं ध्यायेत सर्व विघ्नोप समताये ||"
 "सर्वमंगला मंगले सिव सर्वार्थ साधिक |
 सरन्ये त्रयंबके देवी नारायणी नमोस्तुते ||"
 "सर्वदा सर्व कार्येसु नास्ति चायसम अमंगलम |
 येसम हृदयस्थो भगवान मंगलायतनो हरिह ||"
 "तदेव लगनं सुदीनं तदेव तारबलम कमद्रबलम तदेव |
 विद्या बलम दैवबलम तदेव पद्मावतीपते तेमग्री युगम स्मरणि ||"
 "लभस्त्सम जयस्तसम कुतस्त्सम पराजयः |
 येसम इंदिवरा यमो हृदयस्थो जनार्दनः ||"
 "विनायकम गुरुम भानुम ब्रह्मविष्णुमहेश्वरन |
 सरस्वतीम प्रणमयदौ सर्व कार्यार्थ सिद्धये ||"
 संकल्प (फूल, अक्षत, एक सिक्का, पानी की बूंदें, सुपारी दोनों हाथों में एक साथ पकड़ें)
 "ओम पूर्वोक्त एवं गुण विसेना विस्स्तयम सुभपुण्यतिथौ मामा आत्मानः श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त फला-प्रत्यार्थम मामा स-कुटुम्बस्या क्षेमा स्थिर्य आयु-ररोग्य चतुर्विद् पुरुषार्थ सिद्धार्थम पूजं अविललक्ष्मी
 "इदं फलं मायादेव स्थपितं पुरतस्तव |
 तेना में सफलवपतिर्भावेत जन्ममनी जनमनी ||" (देवी के सामने फूल, अक्षत, एक सिक्का, पानी की बूंदें, सुपारी अर्पित करें)
 गणपति पूजा (अपने दाहिने हाथ में एक चम्मच पानी पकड़ो, निम्नलिखित मंत्र का जाप करें और अंत में जल अर्पित करें)
 (भगवान को हाथ में जल अर्पित करें) "अदौ निर्विघ्नतासिध्यार्थम महा गणपतिं पूजनं करिश्चे |"
 "ओम गणनं तवा सौनाको ग्रत्समदो गणपतिरजगति गणपत्यवाहन विनियोगह ||"  (भगवान को हाथ में जल अर्पित करें)
 "ॐ भुर्भुवासः महागणपतये नमः | अवहायमि |"  (अक्षता की पेशकश करें)
 "ॐ भुर्भुवासः महागणपतये नमः |ध्यायमि |ध्यानं समरपयमि |"  (अक्षता की पेशकश करें)
 "ॐ महागहपते नमः | आवाहनं समरपयामि |"  (अक्षता की पेशकश करें)
 "ॐ महागणपतये नमः | आसनं समरपयामि |"  (फूल की पंखुड़ियां अर्पित करें, अक्षता)
 "ॐ महागणपतये नमः | पद्यं समरपयामि |"  (पानी की बूंदे छिड़कें)
 "ॐ महागणपतये नमः | अर्घ्यं समरपयमि |"  (फूल की पंखुड़ियां, पानी की बूंदें और अक्षत अर्पित करें)
 "ॐ महागणपतये नमः | एकमनियम समरपयामि |"  (एक चम्मच पानी चढ़ाएं)
 "ॐ महागणपतये नमः | स्नानं समरपयामि |"  (एक चम्मच पानी चढ़ाएं)
 "ॐ महागणपतये नमः | वस्त्रं समरपयामि |"  (अक्षता, पुष्प अर्पित करें)
 "ॐ महागणपतये नमः | यज्ञोपवितं समरपयमि |"  (अक्षता, पुष्प अर्पित करें)
 "ॐ महागणपतये नमः | कमदानं समरपयामि |"  (चंदन का पेस्ट चढ़ाएं)
 "ॐ महागणपतये नमः | परिमल द्रव्यं समरपयामि |"  (कुमकुम की पेशकश करें)
 "ॐ महागणपतये नमः | पुष्पनी समरपयामि |"  (फूलों की पंखुड़ियां अर्पित करें)
 "ॐ महागणपतये नमः | धूपं समरपयामि |"  (अगरबत्ती की पेशकश करें)
 "ॐ महागणपतये नमः | दीपं समरपयामि |"  (घी का दीपक दिखाओ)
 "ॐ महागणपतये नमः | नैवेद्यं समरपयामि |"  (केला चढ़ाएं)
 "ॐ महागणपतये नमः | तंबुलं समरपयामि |"  (सुपारी, सुपारी अर्पित करें)
 "ॐ महागणपतये नमः | फलं समरपयामि |"  (कुछ फल चढ़ाएं)
 "ॐ महागणपतये नमः | दक्षिणं समरपयमि |"  (सिक्कों की पेशकश करें)
 "ॐ महागणपतये नमः | अर्टिक्यं समरपयामि |"  (घी का दीपक जलाएं, तीन बार आरती करें)
 "ॐ भुर्भुवासः महागणपतये नमः | मन्त्रपुस्पं समरपयमि |"  (फूल चढ़ाएं)
 "ॐ भुर्भुवासः महागणपतये नमः | प्रदाक्षिनं नमस्कार समरपयमि |"  (अक्षता, फूल अर्पित करें)
 "ॐ महागणपतये नमः | सर्व रजोपाकरन समरपयमी ||' (अक्षत अर्पित करें)
 "अनया पूजय विघ्नहर्ता महागणपति प्रियतम ||"

 लक्ष्मी पूजा

 देवी लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी हैं।  उनकी पूजा और वंदना करने से उनके भक्तों को जीवन में असीम धन की प्राप्ति होती है।  वह अपने हाथों की कृपा से निकलने वाले सोने, चांदी और अनंत धन की पेशकश करने के लिए प्रतिनिधित्व करती है।  इस प्रकार, दिपावली के दौरान देवी लक्ष्मी की पूजा करना बहुत शुभ और महत्वपूर्ण है।  साथ ही, दिपावली पूजा विधि में लक्ष्मी पूजा का महत्वपूर्ण अनुष्ठान है।  नीचे जानिए देवी लक्ष्मी की आराधना की विधि।

 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | अवहायमि |"  (अक्षता की पेशकश करें)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | ध्यायमि | ध्यानम समरपयमि |"  (अक्षता की पेशकश करें)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | आवाहनं समरपयामि |"  (अक्षता की पेशकश करें)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | आसनं समरपयामि |"  (फूल की पंखुड़ियां, अक्षत अर्पित करें)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | पद्यं समरपयामि |"  (पानी की बूंदे छिड़कें)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | अर्घ्यं समरपयामि |"  (फूल की पंखुड़ियां, पानी की बूंदें और अक्षत अर्पित करें)
 "ॐ नमो महालक्ष्मयै नमः | अचमण्यं समरपयामि |"  (एक चम्मच पानी चढ़ाएं)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | स्नानं समरपयमि |"  (एक चम्मच पानी चढ़ाएं)

 अब निम्न मंत्र का 108 बार जाप करें और महालक्ष्मी की मूर्ति, लक्ष्मी के सिक्कों पर दूध, दही, घी, चीनी और शहद का मिश्रण चढ़ाते रहें।  यदि आपके पास लक्ष्मी के सिक्के नहीं हैं, तो आप नियमित डॉलर के सिक्के आदि का उपयोग कर सकते हैं और फिर साफ पानी डालें।  इन्हें साफ करके फिर से साफ पूजा की थाली में रख दीजिए.

 "ॐ नमो महालक्ष्मीै नमः |"  अब इस मंत्र का जाप करें और विग्रह, मूर्ति और सिक्कों को साफ पानी से धो लें।  धोकर साफ पूजा की थाली में रख दें।

 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | अभिषेक स्नानं समरपयमि |"  (एक चम्मच पानी चढ़ाएं)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | अचमन्यं समरपयामि |"  (एक चम्मच पानी चढ़ाएं)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | विशालं समरपयमि |"  (अक्षता, फूल अर्पित करें)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | कमदानं समरपयमि |"  (चंदन पेस्ट चढ़ाएं)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | परिमल द्रव्यं समरपयमि |"  (कुमकुम की पेशकश करें)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | पुष्पनी समरपयामि |"  (फूलों की पंखुड़ियां अर्पित करें)

 अब फूल की पंखुड़ियां लें, एक के बाद एक निम्नलिखित मंत्रों का जाप करें और पंखुड़ियों को चढ़ाते रहें।  वैकल्पिक रूप से, आप 108 बार "ॐ नमो महालक्ष्मयै नमः" का जाप करके फूलों की पंखुड़ियां भी चढ़ा सकते हैं।

 "ॐप्रकृतिै नमः |"
 "ॐ विकृत्यै नमः |"
 "ॐ विद्यायै नमः |"
 "ॐ सर्व-भूत-हित-प्रदायै नमः |"
 "ॐ श्रद्धाै नमः |"
 "ॐ विभूतै नमः |"
 "ॐ सुरभै नमः |"
 "ॐ परमात्मिकायै नमः |"
 "ओम वासे नमः |"
 "ॐ पद्मलयै नमः |"
 "ॐ पदमयै नमः |"
 "ॐ सुकेय नमः |"
 "ॐ स्वाहायै नमः |"
 "ॐ स्वाध्याय नमः |"
 "ॐ सुधायै नमः |"
 "ओम धनयै नमः |"
 "ॐ हिरण्मयै नमः |"
 "ॐ लक्ष्मयै नमः |"
 "ॐ नित्यपुस्तयै नमः |"
 "ॐ विभावरायै नमः |"
 "ॐ आदित्यै नमः |"
 "ॐ दिते नमः |"
 "ॐ दिपायै नमः |"
 "ॐ वसुधायै नमः |"
 "ॐ वसुधरण्यै नमः |"
 "ॐ कमलयै नमः |"
 "ॐ कांतायै नमः |"
 "ॐ कामक्षयै नमः |"
 "ॐ क्रोधसम्भवायै नमः |"
 "ॐ अनुग्रहप्रदायै नमः |"
 "ओम बुद्धाय नमः |"
 "ॐ अनघयै नमः |"
 "ॐ हरिवल्लभयै नमः |"
 "ॐ अशोकायै नमः |"
 "ॐ अमृतै नमः |"
 "ॐ दिप्तायै नमः |"
 "ॐ लोक-सोका-विनासिनयै नमः |"
 "ॐ धर्मनिलयैयै नमः |"
 "ॐ करुणायै नमः |"
 "ॐ लोकमात्रे नमः |"
 "ॐ पद्मप्रियायै नमः |"
 "ॐ पद्महस्तयै नमः |"
 "ॐ पद्मक्षयै नमः |"
 "ॐ पद्मसुंदरयै नमः |"
 "ॐ पद्मोभवायै नमः |"
 "ॐ पद्मामुखयै नमः |"
 "ॐ पद्मनाभप्रीयै नमः |"
 "ॐ रमायै नमः |"
 "ॐ पद्ममालधरै नमः |"
 "ॐ देवयै नमः |"
 "ओम पद्मिनै नमः|"
 "ॐ पद्मगंधिनयै नमः |"
 "ॐ पुण्यगंधायै नमः |"
 "ॐ सुप्रसन्नयै नमः |"
 "ॐ प्रसादभिमुखै नमः |"
 "ॐ प्रभायै नमः |"
 "ॐ चंद्रवदनायै नमः |"
 "ॐ चंद्रायै नमः |"
 "ॐ चन्द्रसहोदरयै नमः |"
 "ॐ चतुर्भुजयै नमः |"
 "ॐ चन्द्ररूपायै नमः |"
 "ॐ इंदिरायै नमः |"
 "ॐ इंदुसितालयै नमः |"
 "ॐ अहलादजनन्याय नमः |"
 "ॐ पुस्त्यै नमः |"
 "ॐ शिवायै नमः |"
 "ॐ शिवकार्यै नमः |"
 "ॐ सत्यै नमः |"
 "ॐ विमलयै नमः |"
 "ॐ विश्वजनन्याय नमः |"
 "ॐ तुस्त्यै नमः |"
 "ओम दरिद्र्य- नमः |"
 "ॐ प्रीतिपुष्करिन्यै नमः |"
 "ॐ संतायै नमः |"
 "ॐ सुक्लमाल्यम्बरायै नमः |"
 "ओम सरियै नमः |"
 "ॐ भास्करयै नमः |"
 "ॐ बिल्वनिलयै नमः |"
 "ॐ वररोहायै नमः |"
 "ॐ यसस्विनयै नमः |"
 "ॐ वसुंधरायै नमः |"
 "ओम उदरमगयै नमः |"
 "ॐ हरिनयै नमः |"
 "ॐ हेमामलिनयै नमः |"
 "ॐ धनधन्यकार्यै नमः |"
 "ॐ सिद्धाय नमः |"
 "ओम स्त्रेनसौमयै नमः |"
 "ॐ सुभप्रदाय नमः |"
 "ॐ नृप-वेस्मा-गतानंदायै नमः |"
 "ॐ वरलक्ष्मीै नमः |"
 "ॐ वसुप्रदायै नमः |"
 "ॐ सुभयै नमः |"
 "ॐ हिरण्य-प्रकरायै नमः |"
 "ॐ समुद्र-तनायै नमः |"
 "ॐ जयायै नमः |"
 "ॐ ममगंला देवयै नमः |"
 "ॐ विष्णु-वक्ष-स्थल-स्थितै नमः |"
 "ॐ विष्णुपट्नयै नमः |"
 "ॐ प्रसन्नाक्षयै नमः |"
 "ॐ नारायण समस्रितायै नमः |"
 "ओम दरिद्र्य-ध्वंसिंयै नमः |"
 "ॐ देवयै नमः |"
 "ॐ सर्वोपाद्रव वरनयै नमः |"
 "ॐ नवदुर्गायै नमः |"
 "ॐ महाकालयै नमः |"
 "ॐ ब्रह्म-विष्णु-शिवत्मिकायै नमः |"
 "ॐत्रिकला-ज्ञान-सम्पन्नयै नमः |"
 "ॐ भुवनेश्वरयै नमः |"
 "ॐ नमो महालक्ष्मयै नमः | अस्तोत्तरशतनामा पूजा समरपयमि"
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | धूपं समरपयामि |"  (प्रकाशित धूप/अगरबत्ती दिखाएं)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | दीपं समरपयामि |"  (घी का दीपक जलाएं)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | नैवेद्यं समरपयमि |"  (केला चढ़ाएं)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | तंबुलं समरपयामि |"  (सुपारी, सुपारी अर्पित करें)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | फलं समरपयामि |"  (कुछ फल चढ़ाएं)
 "मैया नमो महालक्ष्मयै नमः | दक्षिणं समरपयमि |"  (सिक्कों की पेशकश करें)
#Jaysiyaramjayhind
 महालक्ष्मी आरती

 आरती किसी भी पूजा को सफलतापूर्वक संपन्न करती है।  दीपावली पूजा के सुखद समापन के लिए गणेश आरती और महालक्ष्मी आरती अवश्य ही गाना चाहिए।  आरती गायन के माध्यम से, भक्त भक्तिपूर्वक देवता के प्रति श्रद्धा दिखाते हैं।  आरती अर्पित करना भगवान या देवी की पूजा या पूजा करने का एक तरीका है।  इसलिए, इस दिवाली पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी को पूरी तरह से प्रसन्न करने के लिए, महालक्ष्मी आरती अवश्य करें।

 नीचे दी गई महालक्ष्मी आरती है।  दीप जलाएं और आरती गाएं।

 "मैया जय लक्ष्मी माता, मैया जयलक्ष्मी माता,
 तुमको निस दिन सेवत, हरि, विष्णु दाता……….. ओम जय लक्ष्मी माता
 उमा रमा ब्राह्मणी, तुम हो जग माता …………… मैया, तुम हो जग माता,
 सूर्य चंद्रमाध्यावत, नारद ऋषि गाता ……… जय लक्ष्मी माता।
 दुर्गा रूप निरंजनी, सुख संपति दाता, ……….. मैया सुख संपति दाता
 जो कोए तुमको ध्यानाता, रिद्धी सीधी धन पाता ……….ओम जय लक्ष्मी माता।
 जिस घर में तुम रहती, सब सुख गुना आटा,…….मैया सब सुख गुना आता,
 ताप पाप मिट जाता, मन नहीं घब्रता …….. जय लक्ष्मी माता
 धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो,………………..मैया माँ स्वीकार करो,
 ज्ञान प्रकाश करो माँ, मोह अग्यान हारो ……….ओम जय लक्ष्मी माता।
 महा लक्ष्मीजी की आरती, निस दिन जो गावे……मैया निस दिन जो गावे,
 दुख जावे, सुख आवे, अति आनंद पावे …… जय लक्ष्मी माता।
 "ॐ नमो महालक्ष्मयै नमः | अर्टिक्यं समरपयामि |"  (घी का दीपक जलाएं, तीन बार आरती करें)
 "ॐ नमो महालक्ष्मयै नमः | मन्त्रपुस्पं समरपयामि |"  (फूल चढ़ाएं)
 "ॐ नमो महालक्ष्मीयै नमः | प्रदाक्षिनं नमस्कार समरपयामि |"  (अक्षता, फूल अर्पित करें)
 "ओम नमो महालक्ष्मयै नमः सर्व रजोपचारण समरपयामि ||"  (अक्षता की पेशकश करें)
 "अनया पूज्य महालक्ष्मीः प्रियतम ||"

 इससे आप अपनी पूजा समाप्त कर सकते हैं और दीयों को अपने घर के विभिन्न कोनों में रख सकते हैं।  सभी में प्रसाद बांटें और देवताओं से आशीर्वाद दें।

Thursday, October 3, 2024

इस नवरात्रि को क्या करे और क्या है खास

जय मां बाबा की मित्रों आप सभी को 




🌷🌷 *घट स्थापना का शुभ मुहूर्त* 🌷🌷
इस बार नवरात्र 3 अक्टूबर 2024 गुरुवार से 
11 अक्टूबर 2024 शुक्रवार तक है 

🍁👉 *शारदीय नवरात्रि 2024 घटस्थापना समय*  👇

ज्योतिष के अनुसार शारदीय नवरात्रि के शुभ अवसर पर घटस्थापना मुहूर्त 03 अक्टूबर 2024 को सुबह 06 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 22 मिनट तक है। वहीं, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक है।
इस बार माता पालकी में आ रहीं हैं। नवरात्र की शुरूआत गुरुवार अथवा शुक्रवार से होती है, तो माना जाता है कि माता पालकी या डोली में आ रहीं हैं। और हाथी पर प्रस्थान करेगी।

*शारदीय नवरात्रि 2024 शुभ योग और नक्षत्र*

शारदीय नवरात्रि के पहले दिन इन्द्र योग बन रहा है. यह 3 अक्टूबर को तड़के 3:23 बजे से शुरू होगा और यह 4 अक्टूबर को तड़के 04:24 बजे खत्म होगा. उसके बाद वैधृति योग बनेगा. नवरात्रि के प्रारंभ वाले दिन हस्त नक्षत्र प्रात:काल से लेकर दोपहर 3:32 बजे तक है. उसके बाद से चित्रा नक्षत्र है.

*शारदीय नवरात्रि 2024 पहले दिन के शुभ समय*

ब्रह्म मुहूर्त: 04:38 बजे से 05:27 बजे तक
अमृत काल: 08:45 बजे से 10:33 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त: 11:46 बजे से दोपहर 12:33 बजे तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:08 बजे से 02:55 बजे तक
निशिता मुहूर्त: रात 11:46 बजे से देर रात 12:34 बजे तक

🕉️ *शैलपुत्री देवी ध्यान* 

शैलपुत्री ध्यान:

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
पूणेन्दु निभाम् गौरी मूलाधार स्थिताम् प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥

ध्यान
 देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।

*माता शैलपुत्री मंत्र*

 शैलपुत्री गायत्री
ॐ शैलपुत्र्यै च विदमहे काममालायै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्।
ॐ शं शैलपुत्र्यै नमः।
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥।
ॐ  ऐं  शैलपुत्री अखण्ड सौभाग्यं देही साधय नमः।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ॐ शैलपुत्री देव्यै नमः।

*माता शैलपुत्री स्तुति*
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।

*शैलपुत्री  साबर स्तुति*  
शैल पुत्री मां बैल असवार । करें देवता जय जय कार ।
शिव शंकर की प्रिय भवानी । ‘तेरी महिमा किसी न जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। मन लालजो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
मन ऋद्धि सिद्धि परवान करे तू। करे धनवान करे तू।
दयासोमवार को शिव संग प्यारी ।कमीकोईआरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो।
रुद्राक्षघी का सुन्दर दीप जलाकें गोला गरी का भोग लगा के ।
श्रद्धा भाव से मन्त्र गाये।जपेप्रेम सहित फिर शीश झुकाये ।
जय गिरिराज किशोरी अम्बे। शिव मुख चन्द्र चकोरी अम्बे।
ब्रह्मचमनो कामना पूर्ण कर दो। ‘चमन’ सदा सुख सम्पति भर दो।

*माँ शैलपुत्री स्तोत्र*

प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागरः तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानन्द प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह विनाशिनीं।
मुक्ति भुक्ति दायिनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्

*शैलपुत्री माता प्रार्थना*

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

*शैलपुत्री माता कथा*

मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।

एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा।

वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।

👉🌷🌷🌷 *गौरी (शैलपुत्री) चालीसा* 🌷🌷🌷

: मां का ये रूप बहुत सुंदर और मोहक है और उनकी आस्था करने वाले को कभी भी कोई भी कष्ट नहीं होता है। मां गौरी मां दुर्गा का आठवां रूप हैं और इन्हें ही लोग मां पार्वती का भी अंश कहते हैं। इनका वर्ण गोरा है इसलिए इनका नाम गौरी पड़ा है।

*मंत्र*
या देवी सर्वभू‍तेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

*॥ चौपाई ॥*

मन मंदिर मेरे आन बसो,
आरम्भ करूं गुणगान,
गौरी माँ मातेश्वरी,
दो चरणों का ध्यान।
पूजन विधी न जानती,
पर श्रद्धा है आपर,
प्रणाम मेरा स्विकारिये,
हे माँ प्राण आधार।
नमो नमो हे गौरी माता,
आप हो मेरी भाग्य विधाता,
शरनागत न कभी गभराता,
गौरी उमा शंकरी माता।
आपका प्रिय है आदर पाता,
जय हो कार्तिकेय गणेश की माता,
महादेव गणपति संग आओ,
मेरे सकल कलेश मिटाओ।
सार्थक हो जाए जग में जीना,
सत्कर्मो से कभी हटु ना,
सकल मनोरथ पूर्ण कीजो,
सुख सुविधा वरदान में दीज्यो।
हे माँ भाग्य रेखा जगा दो,
मन भावन सुयोग मिला दो,
मन को भाए वो वर चाहु,
ससुराल पक्ष का स्नेहा मै पायु।
परम आराध्या आप हो मेरी,
फ़िर क्यूं वर मे इतनी देरी,
हमरे काज सम्पूर्ण कीजियो,
थोडे में बरकत भर दीजियो।
अपनी दया बनाए रखना,
भक्ति भाव जगाये रखना,
गौरी माता अनसन रहना,
कभी न खोयूं मन का चैना।
देव मुनि सब शीश नवाते,
सुख सुविधा को वर मै पाते,
श्रद्धा भाव जो ले कर आया,
बिन मांगे भी सब कुछ पाया।
हर संकट से उसे उबारा,
आगे बढ़ के दिया सहारा,
जब भी माँ आप स्नेह दिखलावे,
निराश मन मे आस जगावे।
शिव भी आपका काहा ना टाले,
दया द्रष्टि हम पे डाले,
जो जन करता आपका ध्यान,
जग मे पाए मान सम्मान।
सच्चे मन जो सुमिरन करती,
उसके सुहाग की रक्षा करती,
दया द्रष्टि जब माँ डाले,
भव सागर से पार उतारे।
जपे जो ओम नमः शिवाय,
शिव परिवार का स्नेहा वो पाए,
जिसपे आप दया दिखावे,
दुष्ट आत्मा नहीं सतावे।

सतोगुन की हो दाता आप,
हर इक मन की ग्याता आप,
काटो हमरे सकल कलेश,
निरोग रहे परिवार हमेश।
दुख संताप मिटा देना माँ,
मेघ दया के बरसा देना माँ,
जबही आप मौज में आय,
हठ जय माँ सब विपदाए।
जीसपे दयाल हो माता आप,
उसका बढ़ता पुण्य प्रताप,
फल-फूल मै दुग्ध चढ़ाऊ,
श्रद्धा भाव से आपको ध्यायु।
अवगुन मेरे ढक देना माँ,
ममता आंचल कर देना मां,
कठिन नहीं कुछ आपको माता,
जग ठुकराया दया को पाता।
बिन पाऊ न गुन माँ तेरे,
नाम धाम स्वरूप बहू तेरे,
जितने आपके पावन धाम,
सब धामो को मां प्राणम।
आपकी दया का है ना पार,
तभी को पूजे कुल संसार,
निर्मल मन जो शरण मे आता,
मुक्ति की वो युक्ति पाता।
संतोष धन्न से दामन भर दो,
असम्भव को माँ सम्भव कर दो,
आपकी दया के भारे,
सुखी बसे मेरा परिवार।
अपकी महिमा अती निराली,
भक्तो के दुःख हरने वाली,
मनो कामना पुरन करती,
मन की दुविधा पल मे हरती।
चालीसा जो भी पढे-सुनाया,
सुयोग वर् वरदान मे पाए,
आशा पूर्ण कर देना माँ,
सुमंगल साखी वर देना माँ।
गौरी माँ विनती करूँ,
आना आपके द्वार,
ऐसी माँ कृपा किजिये,
हो जाए उद्धहार।
हीं हीं हीं शरण मे,
दो चरणों का ध्यान,
ऐसी माँ कृपा कीजिये,
पाऊँ मान सम्मान।
जय मां गौरी
🕉️🙏🏼🕉️

👉 *गौरी चालीसा का महत्व*
मां गौरी  ही शैलपुत्री या पार्वती कहलाती है।
 चालीसा का पाठ करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है।मां की कृपा से सिद्धि-बुद्धि, ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है।
गौरी चालीसा के प्रभाव से इंसान धनी बनता है, वो तरक्की करता है।
वो हर तरह के सुख का भागीदार बनता है, उसे कष्ट नहीं होता।

दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप को समर्पित होता है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री पुकारा जाता है। मां दुर्गा का यह स्वरूप बेहद शांत, सौम्य और प्रभावशाली है। घटस्थापना के साथ ही मां शैलपुत्री की विधि-विधान से पूजा की जाती है।

*मां शैलपुत्री की पूजा विधि*

नवरात्रि के पहले दिन प्रातः स्नान कर निवृत्त हो जाएं।
फिर मां का ध्यान करते हुए कलश स्थापना करें।
कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री के चित्र को स्थापित करें।
मां शैलपुत्री को कुमकुम (पैरों में कुमकुम लगाने के लाभ) और अक्षत लगाएं।
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा में सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है। पहले से लेकर आखिरी दिन तक नवरात्रि की पूजा में कपूर का इस्तेमाल बेहद शुभ माना गया है। कहते हैं कि मां दुर्गा की पूजा में कपूर के इस्तेमाल से उनकी विशेष कृपा भक्तों को प्राप्त होती है।

मां शैलपुत्री का ध्यान करें और उनके मंत्रों का जाप करें।
मां शैलपुत्री को सफेद रंग के पुष्प अर्पित करें।
मां शैलपुत्री की आरती उतारें और भोग लगाएं।

👉मां शैलपुत्री का प्रिय भोग
मां शैलपुत्री को सफेद दिखने वाले खाद्य पदार्थ जैसे कि खीर, चावल, सफेद मिष्ठान आदि का भोग लगाना चाहिए।
मान्यता है कि मां शैलपुत्री को सफेद वस्तुएं प्रिय हैं। इसलिए नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप को सफेद मिष्ठान का भोग लगाया जाता है। इसके साथ ही उन्हें श्वेत पुष्प अर्पित करना भी बेहद शुभ माना जाता है।
👉मां शैलपुत्री का प्रिय रंग 
मां शैलपुत्री का वर्ण श्वेत है ऐसे में मां का प्रिय रंग सफेद है। इसी कारण से मां को नवरात्रि के पहले दिन सफेद रंग की वस्तुएं अर्पित करनी चाहिए।

👉 *शैलपुत्री माता की आरती*

शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।

पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।

सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।

घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।

जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो

जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻 🌹 🙏🏻 

Friday, July 5, 2024

गुप्त नवरात्रि व्रत प्रारम्भ कल 06/जुलाई 2024

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 06/जुलाई/2024

आइये मित्रों जानते घटस्थापना का शुभ मुहूर्त, और किस महाविद्याओं की होगी पुजा और क्या है साधना विधि,,
सनातन हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। वैदिक पंचांग के अनुसार, साल में कुल 4 नवरात्रि पड़ती है। जिसमें से दो चैत्र और शारदीय नवरात्रि होती है। इसके साथ ही 2 गुप्त नवरात्रि होती है। इस दौरान 10 महाविद्याओं क पूजा करने का विधान है। इन नौ दिनों के दौरान तांत्रिक सिद्धियां की जाती है। पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से गुप्त नवरात्रि आरंभ होती है। आइए जानते हैं कब से शुरू हो रही है आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि। इसके साथ ही जानें कलश स्थापना का मुहूर्त और दस महाविद्याओं के बारे में…



कब से कब तक है आषाढ़ गुप्त नवरात्रि?
सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार, गुप्त नवरात्र 6 जुलाई, 2024, शनिवार से शुरू हो रही है, 15 जुलाई, 2024, सोमवार को समाप्त होगी। इस साल तृतीया तिथि दो दिन पड़ रही है। इसलिए आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि पूरे 10 दिन पड़ेगी।

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि में कलश स्थापना मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की घटस्थापना का शुभ मुहूर्त 06 जुलाई को सुबह 05 बजकर 11 मिनट से लेकर 07 बजकर 26 मिनट के बीच का है। अभिजीत मुहूर्त-सुबह 11 बजे से 12 बजे तक ।

गुप्त नवरात्रि में इन 10 महाविद्याएं की होगी पूजा

आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि के दौरान 10 महाविद्याओं की पूजा करने का विधान है। इस दौरान मां काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला माता की पूजा की जाती है।

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2024 तिथि
6 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि प्रतिपदा तिथि, घटस्थापना मुहूर्त
7 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि द्वितीया तिथि
8 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि तृतीया तिथि
9 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि तृतीया तिथि
10 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि चतुर्थी तिथि
11 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि पंचमी तिथि
12 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि षष्ठी तिथि
13 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि सप्तमी तिथि
14 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि महाष्टमी
15 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि महानवमी

गुप्त नवरात्रि का महत्व
आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के अलावा मां काली और अन्य महाविद्याओं की पूजा करने का विधान है। इस दौरान तांत्रिक, साधक और अघोरी तंत्र मंत्र की सिद्धि करने के लिए गुप्त साधना करते हैं। इसमें महाविद्याओं की पूजा गुप्त तरीकों से की जाती है।
*गुप्त नवरात्रि में संतान प्राप्ति से लेकर कर्ज से मु्क्ति पाने के उपाय*
 नवरात्र के दौरान कई साधक नवदुर्गा या अपने इष्ट देव देवी का और दस महाविद्या के लिए *मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी* की पूजा करते हैं।
मित्रों वर्ष में चार नवरात्रि आते हैं, जिनमें से दो गुप्त नवरात्रि आते हैं। आमतौर पर लोग शारदीय और चैत्र नवरात्रि के बारे में ही जानते हैं, इसके अलावा दो और नवरात्रि भी आते हैं। जिनमें विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती है *गुप्त नवरात्रि में सात्विक और तांत्रिक पूजा की जाती है* गुप्त नवरात्रि में पूजा और मनोकामना को गुप्त रखा जाता है, कहते हैं कि ऐसा करने से मां दुर्गा जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और फल दोगुना मिलता है,गुप्त नवरात्रि के दौरान विवाह, नौकरी, स्वस्थ, व्यापार आदि से संबंधित कई उपाय भी किये जाते हैं 
इस नवरात्रि पर कुछ उपाय,,
१:-संतान प्राप्ति के लिए:-* गुप्त नवरात्रि के दौरान संतान प्राप्ति के लिए 9 दिन मां दुर्गा जी के लिए पान का पत्ता अर्पित करना चाहिए, पान का पत्ता कटा-फटा नहीं होना चाहिए। पूजा के दौरान यह मंत्र का जाप करें:-
*ॐ नन्दगोपगृह जाता यशोदागर्भ सम्भवा।*
*ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी।।* 
यह मंत्र का जाप करना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से मनोकामना पूरी होती है।
*२:- नौकरी की समस्या के लिए:-* नौकरी या जॉब में किसी तरह की समस्या आ रही है तो गुप्त नवरात्रि के दौरान 9 दिन तक मां दुर्गा जी को बताशे पर रखकर लौंग अर्पित करनी चाहिए। इस दौरान 
*ॐ सर्वबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वित:।*
*मनुष्यो मत्प्रसादेने भविष्यति ना संशय:।।*
मंत्र का जाप करना चाहिए। 
*३:-खराब सेहत के लिए:-* खराब सेहत से छुटकारा पाने के लिए 9 दिन तक देवी मां को लाल पुष्प अर्पित करना चाहिए। इस दौरान *ॐ क्रीं कालिकायै नम:* मंत्र का जाप करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति स्वस्थ होता है।
*४:-कर्ज से मुक्ति पाने के लिए:-* कर्ज या किसी वाद-विवाद से मुक्ति पाना चाहते हैं तो इसके लिए 9 दिन तक देवी मां के सामने गुग्गल की सुगंध वाला धूप जलाएं। ऐसा करने से समस्याओं से मुक्ति मिलती है। इस दौरान *ॐ दुं दुर्गाय नम:* का जाप करना चाहिए।
*५:-कन्या विवाह के लिए:-* अगर विवाह में कोई बाधा आ रही है तो पूरे 9 दिन पीले फूलों की माला अर्पित करनी चाहिए। इस दौरान 
*ॐ कात्यायनी महामाये, महायोगिनयधीश्वरी।*
*नन्दगोपसुतं देवी, पति में कुरु ते नम:।।* 
मंत्र का जाप करना चाहिए.......
मित्रों इस पोस्ट को शेयर करें कोपी करे हमे कोई दिक्कत नहीं क्योंकि आज ये शब्द हमारे है कल किसी और के होंगे और कल किसी और के होंगे,,
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻 🌹 

Monday, April 8, 2024

इस नवरात्रि पर क्या है खास और घट स्थापना कब करे????

सबसे पहले मित्रों आप सभी को सनातनी हिन्दू नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएं और हार्दिक बधाई 🌹🙏🏻


मित्रों यू तो आप सभी को पता है कि साल में चार नवरात्रि आती है इसके अलावा एक पांचवी नवरात्रि मां शाकम्बरी की आती है पर इस बार चैत्र नवरात्रि विशेष है और बहुत ही दुर्लभ संयोग मिल रहे हैं चैत्र नवरात्रि को वसंत नवरात्रि भी कहा जाता है. इस बार 9 अप्रैल 2024 को घटस्थापना के साथ चैत्र नवरात्रि शुरू होगी और 17 अप्रैल 2024 को राम नवमी पर माता की विदाई होगी यानी नवरात्रि का समापन होगा, मित्रों ये चैत्र नवरात्रि अखंड रहेगी, अंग्रेजी तारीख और तिथियों का ठीक तालमेल होने से एक भी तिथि कम नहीं होगी. इस तरह चैत्र नवरात्रि में पूरे नौ दिनों का शक्ति पर्व मनाया जाएगा. इसके साथ ही इस साल चैत्र नवरात्रि के 9 दिन बेहद अद्भुत योग का संयोग बन रहा है जिससे भक्तों को माता रानी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होगा. देवी पूजन सफल होगा. जानें
घटस्थापना मुहूर्त - सुबह 06.02 - सुबह 10.16,  (अवधि- 4 घंटे 14 मिनट)

अभिजित मुहूर्त - सुबह 11.57 - दोपहर 12.48, (51 मिनट)
चैत्र नवरात्रि 2024 नौ दिन के शुभ योग
दिनांक तिथि शुभ योग मां दुर्गा का स्वरूप
9 अप्रैल 2024 प्रतिपदा लक्ष्मी नारायण योग, गजकेसरी योग, अमृत सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग मां शैलपुत्री (घटस्थापना)

10 अप्रैल 2024 द्वितीया
सर्वार्थ सिद्धि - प्रात: 03.05 - प्रात: 06.00
रवि योग - प्रात: 03.05 - प्रात: 06.00
मां ब्रह्मचारिणी

11 अप्रैल 2024 तृतीया
रवि योग - सुबह 06.00 - प्रात: 01.38, 12 अप्रैल
प्रीति योग - 10 अप्रैल, सुबह 10.38 - 11 अप्रैल, सुबह 07.19
आयुष्मान योग - 11 अप्रैल, सुबह 07.19 - 12 अप्रैल, सुबह 04.30
मां चंद्रघंटा

12 अप्रैल 2024 चतुर्थी
सौभाग्य योग - 12 अप्रैल, सुबह 04.30 - 13 अप्रैल, प्रात: 02.13
रवि योग - 13 अप्रैल, प्रात: 12.51 - प्रात) 05.58
मां कूष्मांडा

13 अप्रैल 2024 पंचमी
रवि योग - सुबह 05.58 - रात 09.12
शोभन योग - 13 अप्रैल, प्रात: 02.13 - 14 अप्रैल, प्रात: 12.34
मां स्कंदमाता

14 अप्रैल 2024 षष्ठी
त्रिपुष्कर योग - 15 अप्रैल, प्रात: 1.35 - प्रात: 5.55
रवि योग - सुबह 05.56 - 15 अप्रैल, प्रात: 01.35
मां कात्यायनी

15 अप्रैल 2024 सप्तमी
सर्वार्थ सिद्धि योग - प्रात: 03.05 - प्रात: 05.54, 16 अप्रैल
सुकर्मा योग - 14 अप्रैल, रात 11.33 - 15 अप्रैल, रात 11.09
मां कालरात्रि

16 अप्रैल 2024 महाष्टमी
सर्वार्थ सिद्धि योग - सुबह 05.16 - सुबह 05.53, 17 अप्रैल
रवि योग - सुबह 05.16 - सुबह 05.53, 17 अप्रैल
धृति योग - 15 अप्रैल, रात 11.09 - 16 अप्रैल, रात 11.17
मां महागौरी

17 अप्रैल 2024 महानवमी रवि योग - पूरे दिन मां सिद्धिदात्रि
चैत्र नवरात्रि में ग्रह-नक्षत्रों की शुभ स्थिति

चैत्र नवरात्रि के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी घटस्थापना के दिन गुरु और चंद्रमा की मेष राशि में युति से गजकेसरी योग बन रहा है. वहीं मेष में सूर्य और बुध का संयोग बुधादित्य राजयोग बना रहा है. शुक्र-बुध के साथ मीन राशि में होंगे जिससे लक्ष्मी नारायण योग बनेगा
साथ ही शुक्र के अपनी उच्च राशि मीन में होने से मालव्य राजयोग भी बन रहा है. इसके अलावा इस दिन अमृत सिद्धि और सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग भी बन रहा है. ऐसे में इतने सारे योग का एक दिन ही निर्माण होना बेहद शुभ माना जा रहा है. व्रती पर माता रानी की कृपा बरसेगी.
देवी पूजन के साथ इन कामों के लिए शुभ है चैत्र नवरात्रि

इन दिनों में सिर्फ पूजा-पाठ ही नहीं होती, नई शुरुआत और खरीदारी के लिए भी ये दिन बहुत शुभ होते हैं. इस बार नवरात्रि के शुरुआती पांच दिन यानी 9-13 अप्रैल खरमास रहेंगे, जिसमें शुभ काम नहीं होते न ही शुभ चीजों की खरीदारी की जाती है लेकिन 14 अप्रैल से नवरात्रि के समापन तक ऐसे मुहूर्त बन रहे हैं, जिसमें प्रॉपर्टी, ज्वैलरी, गाड़ियों से लेकर इलेक्ट्रॉनिक सामान तक खरीदना समृद्धिदायक होगा. साथ ही नए कामों की शुरुआत करना भी सफलतादायक रहेगा नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी, मित्रों आप इस नवरात्रि या किसी भी नवरात्रि में नो दिन उपवास नहीं कर सकते तो पहला और आखिरी उपवास ज़रूर रखें और नौवें दिन कुंवारी कन्या को मातृशक्ति का रुप मानकर पुजा करके भोजन कराये और मां के किसी मंदिर में चुनरी भोग जरूर लगाएं कोई मंत्र जप आता हो या ना आता हो पर मंदिर रोज जरूर जाये और अपना और अपने परिवार की खुशहाली के लिए माता रानी से प्रार्थना जरूर करे, नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी 🙏🏻 🌹 लिखने को बहुत कुछ है पर इस ब्लॉग में आपको मंत्र जप साधनाएं मिल जायेगी,,
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻 🌹

इस सुर्य ग्रहण पर क्या है ऐसा खास किस राशि पर क्या रहेगा प्रभाव??????

इस सुर्य ग्रहण पर क्या है ऐसा खास किस राशि पर क्या रहेगा प्रभाव??????

मित्रों साल का पहला सूर्य ग्रहण 8 अप्रैल 2024 को लगने वाला है. इस सूर्य ग्रहण को लेकर भारत में लोग काफी डरे हुए हैं. इसकी दो वजह हैं. एक तो इस तरह का सूर्य ग्रहण करीब 54 साल बाद लगने वाला है. दूसरा, सूर्य ग्रहण चैत्र नवरात्रि से ठीक एक दिन पहले लग रहा है. और इस सुर्य ग्रहण को काफी डरावना बना दिया है कुछ स्वघोषित सिद्धों ने जबकि इस सुर्य ग्रहण पर भारत में नहीं तो सुतक है नहीं ग्रहण का कोई प्रभाव हां पर सभी स्वघोषितो ने इसको हौव्वो जरूर बना रखा है बाकी मित्रों इस सूर्य ग्रहण को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं. जैसे- सूर्य ग्रहण कहां-कहां दिखेगा. भारत में इसका कितना असर होगा. सूर्य ग्रहण कितने बजे लगेगा और इसे कहां-कैसे देखा जा सकेगा. आइए आज आपको इन्हीं सब सवालों के जवाब देते हैं.

कब लगेगा सूर्य ग्रहण?
साल का पहला सूर्य ग्रहण 8 अप्रैल दिन सोमवार को लगने वाला है.
किस वक्त लगेगा सूर्य ग्रहण,
8 अप्रैल को जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा आ जाएगा तो धरती पर कई जगहें लोग सूर्य ग्रहण के साक्षी बनेंगे. भारतीय समयानुसार, यह सूर्य ग्रहण 8 अप्रैल को रात 9.12 बजे से 9 अप्रैल को देर रात 2.22 बजे तक रहेगा. सूर्य ग्रहण की कुछ अवधि 05 घंटे 10 मिनट की होगी.
हां हम मानते हैं कि इस सुर्य ग्रहण पर दुर्लभ संयोग है और ये साल का पहला सूर्य ग्रहण है 
और 54 साल बाद 08 अप्रैल को लगने वाला सूर्य ग्रहण एक साथ कई दुर्लभ संयोग लेकर आने वाला है, 
- 08 अप्रैल को लगने वाला यह सूर्य ग्रहण 50 वर्षों बाद सबसे लंबा सूर्य ग्रहण होगा। यह ग्रहण करीब 5 घंटे और 25 मिनट तक चलेगा। 
- यह एक पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा। 54 वर्षों बाद इस तरह का संयोग बन रहा है। इसके पहले ऐसा संयोग 1970 में बना था।
- 08 अप्रैल को जब सूर्य ग्रहण लगेगा तब इस दौरान कुछ समय के लिए पृथ्वी पर अंधेरा छा जाएगा। यानी ग्रहण में सूर्य पूरी तरह से गायब हो जाएगा। इसके चलते दिन अंधेरा हो जाएगा। 

- इस सूर्य ग्रहण के दौरान धूमकेतु तारा भी साफ नजर आएगा।
- दुनिया के जिन-जिन हिस्सों में यह सूर्य ग्रहण लगेगा वहां सौर मंडल में मौजूद शुक्र और गुरु भी देखे जा सकेगा। 
- और कहां-कहां दिखाई देगा यह सूर्य ग्रहण
भारत में इस सूर्य ग्रहण को नहीं देखा जा सकेगा। इस सूर्य ग्रहण को पश्चिमी यूरोप, अटलांटिक, आर्कटिक मेक्सिको, उत्तरी अमेरिका , कनाडा, मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, इंग्लैंड के उत्तर पश्चिम क्षेत्र में और आयरलैंड में दिखाई देगा। 
सूर्य ग्रहण का सूतक काल
भारत में इस सूर्य ग्रहण को नहीं देखा जा सकेगा, इस कारण से इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा। नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी मित्रो धार्मिक नजरिए से सूतक को शुभ नहीं माना जाता है। सूर्य ग्रहण पर ग्रहण के शुरू होने के 12 घंटे पहले सूतक काल लग जाता है। सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य और राहु दोनों ही रेवती नक्षत्र में मौजूद होंगे। 
सूर्य ग्रहण का राशियों पर पड़ने वाला प्रभाव
08 अप्रैल को लगने वाला सूर्य ग्रहण का प्रभाव 12 राशियों के जातकों के ऊपर अवश्य ही पड़ेगा। ज्योतिष शास्त्र की गणना के मुताबिक मेष, वृश्चिक, कन्या, कुंभ और धनु राशि के जातकों के लिए सूर्य ग्रहण अच्छा नहीं कहा जा सकता है। इन राशि के जातकों को नौकरी, व्यापार और कार्यक्षेत्र में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। वहीं दूसरी तरफ वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह राशि के जातकों के लिए यह ग्रहण शुभ साबित हो सकता है। 
हालंकि सुर्य ग्रहण भारत में मान्य नहीं है पर इस पुरे ब्रह्माण्ड में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा इसलिए आप सभी कुछ सावधानियां रख सकते हैं इस दौरान गर्भवती महिलाएं अपना खास ध्यान रखें
ग्रहण के समय सुई में धागा नहीं डालना चाहिए, साथ ही इस दौरान न कुछ छीले, बघारे, काटे और न छौंके
सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्यदेव का मंत्र जाप करें अपने आराध्य देव और देवी के मंत्रो का जाप हवन कर सकते हैं चालीसा गुरू मंत्र रक्षा मंत्र या पुनश्चरण भी कर सकते हैं 
ग्रहण के पहले पानी के बर्तन में, दूध और दही में कुश या तुलसी की पत्ती या दूब धोकर डाल दें
ग्रहण समाप्त होने के बाद दूब को निकालकर फेंक देना दें
सूर्य ग्रहण को कभी भी डायरेक्ट आंखों से न देखें
ग्रहण के दौरान नाखून काटना, दांतों को साफ, बाल में कंघी करना, करना वर्जित माना गया है मित्रों लिखने को तो बहुत कुछ है पर अभी के लिए बस इतना ही नादान बालक की कलम से बस अभी इतना ही बाकी फिर कभी 🙏🏻🌹 
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻🌹

Thursday, March 7, 2024

भगवान शिव जी को त्रिशूल चढ़ाने से लाभ ले शिव रात्रि को यह प्रयोग

भगवान शिव जी को त्रिशूल चढ़ाने से लाभ ले शिव रात्रि को यह प्रयोग 


 त्रिशूल भेंट करने का कारण ये हैं कि सभी कोई जीवन के विभिन्न प्रकार को तीन प्रकार के शूलों (दुःख) से संतप्त हैं 
दैहिक, दैविक और भौतिक शूल और इन्हीं शूलों के निवार्णाथ हम त्रिशूल भेंट करते हैं
भगवान शिव को तो बिल्व पत्र भी चढ़ाने पर वो तीन जन्मों के पाप का शमन कर देते हैं
 भारत के ग्रामीण और आदिवासी समाज में लोग महा शिवरात्रि को अपने समस्त कष्ट और दुःख के निवारण हेतु त्रिशूल को अभिमंत्रित कर अर्पित करते हैं
 इस त्रिशूल भेंट करने से तो जीवन के विभिन्न प्रकार के  तीन प्रकार के शूलों (दुःख) से निवारण होती ही है,,,
साथ ही इस प्रयोग से " महा पाशुपात उपासना " भी संपन्न हो जाती है हम यहां महादेव त्रिशूल यंत्र प्रयोग दे रहे हैं,,
 शिवरात्रि के दिन सुबह भोजपत्र पर निम्न वर्णित त्रिशूल यंत्र को बिल्व पत्र की कलम से  त्रिशुल का निर्माण रक्त चंदन का प्रयोग करते हुए यंत्र निर्माण करें
      यंत्र निर्माण के समय उत्तर की तरफ मुख रहें क्योंकि भगवान पशुपतिनाथ का मुख भी उत्तर की ओर है
        यंत्र निर्माण के समय मन ही मन " ऊँ पशुपतये नमः " मंत्र का जाप करते रहें
 १. इसके बाद यंत्र के ऊपर 11, 31, 51 की संख्या में बिल्व पत्र अर्पण करें.
२. फिर रुद्राक्ष माला से " ऊँ श्लीं पशुं  हुँ फट् " मंत्र का 11, 31, 51 या 108 की संख्या में जाप करें
३.इसके बाद यंत्र को शिवलिंग के पास वर्ष भर के लिए स्थापित कर दें
 इससे आपके जीवन के अनेकों विघ्न बाधाएँ खुद ही आपके जीवन से लौट जायेंगी
४. एक साल बाद अगले महा शिवरात्रि से एक दिन पहले इस यंत्र को विसर्जित कर दें
अगर आप पीतल, तांबे का या अन्य किसी धातु का त्रिशूल शिवरात्रि के दिन अभिषेक पुजा मे शामिल कर अभिषेक करके अपने घर के पुजा घर मे स्थापित करे तो बहुत अच्छा होगा 🙏🏻 🌹
 इस प्रकार का ये सबसे आसान प्रयोग संपन्न हुआ
ओर इसके साथ ही दुसरा प्रयोग है,,

भगवान शिव को चढ़ाएं गये डमरू के प्रयोग चढ़ाये,,
 साधना के लाभ,,,
१. नाद ब्रह्म सुनने की तरफ आप अग्रसर हो सकते हो....
२. अघोर साधना को संपन्न करने वाले के लिए ये अद्भूत प्रयोग है......
३. जिन्हें वाक् शक्ति या लेखन शक्ति विकसित करवी है वो इस डमरु यंत्र का प्रयोग करें

४. इस प्रयोग से महादेव की कृपा से साधक के अंदर ललित कलाओं का विकास होता है
 ५. सबसे महत्वपूर्ण ये हैं कि साधक को सदैव रुद्र शक्ति का अनुभव होता है,, इस प्रयोग को संपन्न करने के बाद
महादेव डमरु यंत्र प्रयोग विधि
१. सबसे पहले शिवरात्रि के दिन महादेव के मंदिर में डमरु चढ़ायें....
२. फिर शिवरात्रि के दिन सुबह भोजपत्र पर निम्न वर्णित त्रिशूल यंत्र को बिल्व पत्र की कलम से क्त चंदन, कुंकुंम एवं सिंदूर को शुद्ध घी में घोलकर घोल का प्रयोग करते हुए यंत्र निर्माण करें
      यंत्र निर्माण के समय पूर्व की तरफ मुख रहें 
        यंत्र निर्माण के समय मन ही मन " ऊँ चैतन्याय विमुक्ताय सदाशिवाय नमः " मंत्र का जाप करते रहें
३. इसके बाद यंत्र के ऊपर एक पंचमुखी या एकादश मुखी रुद्राक्ष स्थापित करें, 
४. फिर रुद्राक्ष माला से " ऊँ ऐं  ब्रं  ब्रह्मांड स्वरुपाय बं  ऐं  फट्" मंत्र का 11,000 (110 माला) की संख्या में जाप करें
५. इसके बाद यंत्र को विसर्जित   कर दें.......और रुद्राक्ष को गले में धारण कर लें इससे साधक के अंदर अद्भुत रुद्र तेज का अनुभव होगा,,
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻 🌹

महाशिवरात्रि पर विशेष

जय मां बाबा की मित्रों 
महाशिवरात्रि 08 मार्च 2024 पर विशेष लेख 


महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के अभिसरण का विशेष पर्व है। फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है।

अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ माह की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं। परन्तु पुर्णिमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार फाल्गुन माह की मासिक शिवरात्रि को महा शिवरात्रि कहते हैं। दोनों पञ्चाङ्गों में यह चन्द्र मास की नामाकरण प्रथा है जो इसे अलग-अलग करती है। हालाँकि दोनों, पूर्णिमांत और अमांत पञ्चाङ्ग एक ही दिन महा शिवरात्रि के साथ सभी शिवरात्रियों को मानते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उनके क्रोध की ज्वाला से समस्त संसार जलकर भस्म होने वाला था किन्तु माता पार्वती ने महादेव का क्रोध शांत कर उन्हें प्रसन्न किया इसलिए हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भोलेनाथ ही उपासना की जाती है और इस दिन को मासिक शिवरात्रि कहा जाता है।

माना जाता है कि महाशिवरात्रि के बाद अगर प्रत्येक माह शिवरात्रि पर भी मोक्ष प्राप्ति के चार संकल्पों भगवान शिव की पूजा, रुद्रमंत्र का जप, शिवमंदिर में उपवास तथा काशी में देहत्याग का नियम से पालन किया जाए तो मोक्ष अवश्य ही प्राप्त होता है। इस पावन अवसर पर शिवलिंग की विधि पूर्वक पूजा और अभिषेक करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है।

अन्य भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव लिङ्ग के रूप में प्रकट हुए थे। पहली बार शिव लिङ्ग की पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्माजी द्वारा की गयी थी। इसीलिए महा शिवरात्रि को भगवान शिव के जन्मदिन के रूप में जाना जाता है और श्रद्धालु लोग शिवरात्रि के दिन शिव लिङ्ग की पूजा करते हैं। शिवरात्रि व्रत प्राचीन काल से प्रचलित है। हिन्दु पुराणों में हमें शिवरात्रि व्रत का उल्लेख मिलता हैं। शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इन्द्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती और रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था।जो श्रद्धालु मासिक शिवरात्रि का व्रत करना चाहते है, वह इसे महा शिवरात्रि से आरम्भ कर सकते हैं और एक साल तक कायम रख सकते हैं। यह माना जाता है कि मासिक शिवरात्रि के व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा द्वारा कोई भी मुश्किल और असम्भव कार्य पूरे किये जा सकते हैं। श्रद्धालुओं को शिवरात्रि के दौरान जागी रहना चाहिए और रात्रि के दौरान भगवान शिव की पूजा करना चाहिए। अविवाहित महिलाएँ इस व्रत को विवाहित होने हेतु एवं विवाहित महिलाएँ अपने विवाहित जीवन में सुख और शान्ति बनाये रखने के लिए इस व्रत को करती है।

महाशिवरात्रि अगर शनिवार के दिन पड़ती है तो वह बहुत ही शुभ होती है। शिवरात्रि पूजन मध्य रात्रि के दौरान किया जाता है। मध्य रात्रि को निशिता काल के नाम से जाना जाता है और यह दो घटी के लिए प्रबल होती है। 

महाशिवरात्रि पूजा विधि 
इस दिन सुबह सूर्योंदय से पहले उठकर स्नान आदि कार्यों से निवृत हो जाएं। अपने पास के मंदिर में जाकर भगवान शिव परिवार की धूप, दीप, नेवैद्य, फल और फूलों आदि से पूजा करनी चाहिए। सच्चे भाव से पूरा दिन उपवास करना चाहिए। इस दिन शिवलिंग पर बेलपत्र जरूर चढ़ाने चाहिए और रुद्राभिषेक करना चाहिए। इस दिन शिव जी रुद्राभिषेक से बहुत ही जयादा खुश हो जाते हैं. शिवलिंग के अभिषेक में जल, दूध, दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर या चीनी इत्यादि का उपयोग किया जाता है। शाम के समय आप मीठा भोजन कर सकते हैं, वहीं अगले दिन भगवान शिव के पूजा के बाद दान आदि कर के ही अपने व्रत का पारण करें। अपने किए गए संकल्प के अनुसार व्रत करके ही उसका विधिवत तरीके से उद्यापन करना चाहिए। शिवरात्रि पूजन मध्य रात्रि के दौरान किया जाता है। रात को चार पहाड़ जागकर यदि संभव ना हो तो कम से कम रात्रि 12 बजें के बाद थोड़ी देर जाग कर भगवान शिव की आराधना करें और श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें, इससे आर्थिक परेशानी दूर होती हैं। इस दिन सफेद वस्तुओं के दान की अधिक महिमा होती है, इससे कभी भी आपके घर में धन की कमी नहीं होगी। अगर आप सच्चे मन से मासिक शिवरात्रि का व्रत रखते हैं तो आपका कोई भी मुश्किल कार्य आसानी से हो जायेगा. इस दिन शिव पार्वती की पूजा करने से सभी कर्जों से मुक्ति मिलने की भी मान्यता हैं।

शिवरात्रि तीन पहर अभिषेक, पूजन एवं जागरण मुहूर्त
चतुर्दशी तिथि प्रारंभ👉 8 मार्च को रात्रि 09.55 से

चतुर्दशी तिथि समाप्त - 9 मार्च, सायं 06.16 पर। 

निशिथकाल पूजन समय- 18 फरवरी रात्रि 12.07 से 12.55 तक।

कुल अवधि - 00 घंटे 48 मिनट्स
 
रात्रि प्रथम प्रहर पूजन समय👉 सायं 06.25 से रात्रि 09.27 तक।

रात्रि द्वितीय प्रहर पूजन समय👉 रात्रि 09.27 से 12.31  तक।

रात्रि तृतीय प्रहर पूजन समय👉 रात्रि 12.31 से  03.05 तक।

रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजन समय👉 अंत:रात्रि 03.05 से 09 मार्च  प्रातः 06.35 तक।
 
पारण समय👉 09 मार्च को प्रातः 06.37 से दिन 03.27 तक।
 
शिवरात्रि पर रात्रि जागरण और पूजन का महत्त्व
माना जाता है कि आध्यात्मिक साधना के लिए उपवास करना अति आवश्यक है। इस दिन रात्रि को जागरण कर शिवपुराण का पाठ सुनना हर एक उपवास रखने वाले का धर्म माना गया है। इस अवसर पर रात्रि जागरण करने वाले भक्तों को शिव नाम, पंचाक्षर मंत्र अथवा शिव स्रोत का आश्रय लेकर अपने जागरण को सफल करना चाहिए।

उपवास के साथ रात्रि जागरण के महत्व पर संतों का कहना है कि पांचों इंद्रियों द्वारा आत्मा पर जो विकार छा गया है उसके प्रति जाग्रत हो जाना ही जागरण है। यही नहीं रात्रि प्रिय महादेव से भेंट करने का सबसे उपयुक्त समय भी यही होता है। इसी कारण भक्त उपवास के साथ रात्रि में जागकर भोलेनाथ की पूजा करते है।

शास्त्रों में शिवरात्रि के पूजन को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। कहते हैं महाशिवरात्रि के बाद शिव जी को प्रसन्न करने के लिए हर मासिक शिवरात्रि पर विधिपूर्वक व्रत और पूजा करनी चाहिए। माना जाता है कि इस दिन महादेव की आराधना करने से मनुष्य के जीवन से सभी कष्ट दूर होते हैं। साथ ही उसे आर्थिक परेशनियों से भी छुटकारा मिलता है। अगर आप पुराने कर्ज़ों से परेशान हैं तो इस दिन भोलेनाथ की उपासना कर आप अपनी समस्या से निजात पा सकते हैं। इसके अलावा भोलेनाथ की कृपा से कोई भी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाता है।

शिवपुराण कथा में छः वस्तुओं का महत्व

बेलपत्र से शिवलिंग पर पानी छिड़कने का अर्थ है कि महादेव की क्रोध की ज्वाला को शान्त करने के लिए उन्हें ठंडे जल से स्नान कराया जाता है।

शिवलिंग पर चन्दन का टीका लगाना शुभ जाग्रत करने का प्रतीक है। फल, फूल चढ़ाना इसका अर्थ है भगवान का धन्यवाद करना।

धूप जलाना, इसका अर्थ है सारे कष्ट और दुःख दूर रहे।

दिया जलाना इसका अर्थ है कि भगवान अज्ञानता के अंधेरे को मिटा कर हमें शिक्षा की रौशनी प्रदान करें जिससे हम अपने जीवन में उन्नति कर सकें।

पान का पत्ता, इसका अर्थ है कि आपने हमें जो दिया जितना दिया हम उसमें संतुष्ट है और आपके आभारी हैं।

समुद्र मंथन की कथा
समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित थी, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव 'नीलकंठ' के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान भगवान शिव के चिंतन में एक सतर्कता रखी। शिव का आनंद लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने लगे। जैसे सुबह  हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया। तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है

शिकारी की कथा 

एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।'

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।

कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा। 

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी देवताओं ने  पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए'।

भगवान गंगाधर की आरती

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा।
त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥ हर...॥

कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने।
गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने॥
कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता।

रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ हर...॥
तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता।
तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता॥

क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्‌।
इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥ हर...॥

बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता।
किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता॥

धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते।
क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥हर...॥

रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता।
चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥

तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते।
अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ हर...॥

कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्‌।
त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्‌॥

सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्‌।
डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्‌ ॥ हर...॥

मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्‌।
वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्‌॥

सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्‌।
इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ हर...॥

शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते।
नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥

अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा।
अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥ हर...॥
ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा।

रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥
संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते।

शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥ हर...॥

त्रिगुण शिवजी की आरती

ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।
पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।

भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ हर हर हर महादेव....।।...
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻🌹

Thursday, February 8, 2024

जानये गुप्त नवरात्रि मे सिद्ध योग और साधना,

*जानये गुप्त नवरात्रि मे सिद्ध योग और साधना,*

मित्रों जैसा कि आप सभी को ज्ञात है कि नवरात्रि साल 4 चार होती है और एक शाकम्बरी नवरात्रि होती है और इस बार 2023की पहली माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकम से गुप्त नवरात्रि प्रारंभ होती है। इस बार *10 फरवरी 2024 शनिवार* के दिन से माघ माह की गुप्त नवरात्रि प्रारंभ होगी, जो 18 फरवरी रविवार तक चलेगी। गुप्त नवरात्र में दश महाविद्याओं की पूजा और साधना करते हैं। गुप्त नवरात्रि में गुप्त साधनाओं का खासा महत्व रहता है। यदि आप भी करना चाहते हैं साधना तो जानिए कौनसी साधना तुरंत फलदायी होगी।
इस नवरात्रि को बन रहे हैं ये शुभ योग
वैदिक पंचांग के अनुसार इस बार गुप्त नवरात्रि
पर रवियोग और सर्वार्थसिद्धि योग बन रहे हैं।
जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है।
इन योगों में पूजा करने का दोगुना फल प्राप्त
होता है।
कलश स्थापना का मुहुरत: 10 फरवरी, सुबह
০৪ बजकर 44 मिनट से सुबह 10 बजकर 17
मिनट तक
अभिजीत मुहुर्त : 10 फरवरी, दोपहर 12
बजकर 12 मिनट से 2 बजकर 59 मिनट तक


*गुप्त नवरात्रि की देवियां:-* 

1. काली, 

2. तारा, 

3. त्रिपुरसुंदरी, 

4. भुवनेश्वरी, 

5. छिन्नमस्ता, 

6. त्रिपुरभैरवी, 

7. धूमावती, 

8. बगलामुखी, 

9. मातंगी और 

10. कमला। 

इनमे इनके अलावा नवदुर्गा की साधना भी की जा सकती हैं और अपने अपने आराध्य देव देवी की साधना भी की जाती है आज आपको कुछ मंत्र और साधना विधान दिये जायेगे अपने गुरु देव से आज्ञा लेकर शुरू कर सकते हैं 
*उक्त दस महाविद्याओं का संबंध अलग अलग देवियों से हैं। प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं।* 

*पहला:-* 

सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला), 

*दूसरा:-* 

उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी), 

*तीसरा:-* 

सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी)।
 
*उपरोक्त में से किसी एक देवी की साधना करना है। सभी 10 देवियों के पूजा के मंत्र:-*

*काली:- ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा:।*

*तारा:- ऐं ऊँ ह्रीं क्रीं हूं फट्।*

*त्रिपुर सुंदरी :- श्री ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं क्रीं कए इल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।*

*भुवनेश्वरी:- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं सौ: भुवनेश्वर्ये नम: या ह्रीं।*

*छिन्नमस्ता:- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा:।*

*त्रिपुरभैरवी:- ह स: हसकरी हसे।'*

*धूमावती:- धूं धूं धूमावती ठ: ठ:।*

*बगलामुखी:- ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय, जिव्हा कीलय, बुद्धिं विनाश्य ह्लीं ॐ स्वाहा:।*

*मातंगी:- श्री ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा:।*

*कमला:- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।*

*माता कालिका की करें साधना:-*

*मंत्र:- ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा*
 
*साबर मंत्र:-*
ये मां महाकाली का पंचबाणा शाबर मंत्र है इसको पांच बार जपने से ये पंचमबाण एक बार जपा जाता है 
*ॐ नमो काली कंकाली महाकाली मुख सुन्दर जिह्वा वाली,*
*चार वीर भैरों चौरासी, चार बत्ती पूजूं पान ए मिठाई,*
*अब बोलो काली की दुहाई।*

इस मंत्र पांच बार जपा जाय तब एक मंत्र माना जाये इसका प्रतिदिन 108 बार जाप करने से आर्थिक लाभ मिलता है। इससे धन संबंधित परेशानी दूर हो जाती है। माता काली की कृपा से सब काम संभव हो जाते हैं। नित्य जपे और दिन में एक बार किसी भी मंगलवार या शुक्रवार के दिन काली माता को मीठा पान व मिठाई का भोग लगाते रहें।
 
*दूसरा साबर मंत्र*

*।।ऊँ कालिका खडग खप्पर लिए ठाड़ी* 
*ज्योति तेरी है निराली* 
*पीती भर भर रक्त की प्याली* 
*कर भक्तों की रखवाली* 
*ना करे रक्षा तो महाबली भैरव की दुहाई।।*
 यह शाबर रक्षा मंत्र है इसको आप शोधन जागृत करने के बाद नित्य प्रति दिन सात बार जप कर अपने सीने (छाती) पर फुंक मारनी है इससे सर्व दिशाओं से और सर्वतंत्र से रक्षा होती है प्रत्येक मंत्र पर फुंक मारनी है,।
*नोट : उपरोक्त में से किसी एक मंत्र का ही प्रयोग करें।*

*दुखों को तुरंत दूर करतीं हैं माँ काली:-*
*पति प्राप्ति के लिये मन्त्र-*
कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ! 
नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:!!
यह मंत्र दुर्गा सप्तशती का संपुटित पाठ किसी योग्य ब्राहमण से करवाऐ माता से प्रार्थना करें हे माँ मै आपकी शरण में आ गयी मुझे शीघ्र अति शीघ्र सौभाग्य की प्राप्ति हो और मेरी मनोकामना शीघ्र पुरी हो माँ भगवती कि कृपा से अवश्य सफलता प्राप्त होगी।
*पत्नी प्राप्ति के मंत्र*
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम्। 
तारिणींदुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम.!!
माँ दुर्गा सप्तशती का संपुटित पाठ किसी योग्य ब्राह्मण से करवाऐ आपकी मनोकामना शीघ्र पूरी होगी.!!
*शत्रु पर विजय ओर शांति प्राप्ति के लिए*
सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। 
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्.!!
*बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्रादि प्राप्ति के लिएः* 
सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः। 
मनुष्यों मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय..!!

*पूजन विधि:-*

गुप्त नवरात्रि पर्व के दिनों में सुबह जल्द उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें।

देवी पूजन की सभी सामग्री को एकत्रित करें। पूजा की थाल सजाएं।

मां दुर्गा की प्रतिमा को लाल रंग के वस्त्र में सजाएं।

मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोएं और नवमी तक प्रति दिन पानी का छिड़काव करें।

पूर्ण विधि के अनुसार शुभ मुहूर्त में कलश को स्थापित करें। 

इसमें पहले कलश को गंगा जल से भरें, उसके मुख पर आम की पत्तियां लगाएं और उस पर नारियल रखें। 

फिर कलश को लाल कपड़े से लपेटें और कलावा के माध्यम से उसे बांधें। 

अब इसे मिट्टी के बर्तन के पास रख दें।

फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत के साथ पंचोपचार पूजा करें।

पूरे परिवार सहित माता का स्वागत करें, उनका पूजन, आरती करके भोग लगाएं और उनसे सुख-समृद्धि की कामना करें।

नौ दिनों तक मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करें।

अष्टमी या नवमी को दुर्गा पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें और उन्हें तरह-तरह के व्यंजनों (पूड़ी, चना, हलवा) का भोग लगाएं।

गुप्त नवरात्रि अंतिम दिन दुर्गा पूजा के बाद घट विसर्जन करें। 

मां की आरती गाएं, उन्हें फूल, अक्षत चढ़ाएं और बेदी से कलश को उठाएं।

इस तरह नवरात्रि के पूरे दिनों में मां की आराधना करें।
 
*जीवनरक्षक मां काली:-* 

माता काली की पूजा या भक्ति करने वालों को माता सभी तरह से निर्भीक और सुखी बना देती हैं। वे अपने भक्तों को सभी तरह की परेशानियों से बचाती हैं।
 
* लंबे समय से चली आ रही बीमारी दूर हो जाती हैं।

* ऐसी बीमारियां जिनका इलाज संभव नहीं है, वह भी काली की पूजा से समाप्त हो जाती हैं।

* काली के पूजक पर काले जादू, टोने-टोटकों का प्रभाव नहीं पड़ता।

* हर तरह की बुरी आत्माओं से माता काली रक्षा करती हैं।

* कर्ज से छुटकारा दिलाती हैं।

* बिजनेस आदि में आ रही परेशानियों को दूर करती हैं।

* जीवनसाथी या किसी खास मित्र से संबंधों में आ रहे तनाव को दूर करती हैं।

* बेरोजगारी, करियर या शिक्षा में असफलता को दूर करती हैं।

* कारोबार में लाभ और नौकरी में प्रमोशन दिलाती हैं।

* हर रोज कोई न कोई नई मुसीबत खड़ी होती हो तो काली इस तरह की घटनाएं भी रोक देती हैं।

* शनि-राहु की महादशा या अंतरदशा, शनि की साढ़े साती, शनि का ढइया आदि सभी से काली रक्षा करती हैं।

* पितृदोष और कालसर्प दोष जैसे दोषों को दूर करती हैं।

10 महाविद्याओं में से साधक महाकाली की साधना को सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली मानते हैं, जो किसी भी कार्य का तुरंत परिणाम देती हैं। साधना को सही तरीके से करने से साधकों को अष्टसिद्धि प्राप्त होती है। काली की पूजा या साधना के लिए किसी गुरु या जानकार व्यक्ति की मदद लेना जरूरी है। महाकाली को खुश करने के लिए उनकी फोटो या प्रतिमा के साथ महाकाली के मंत्रों का जाप भी किया जाता है। इस पूजा में महाकाली यंत्र का प्रयोग भी किया जाता है। इसी के साथ चढ़ावे आदि की मदद से भी मां को खुश करने की कोशिश की जाती है। अगर पूरी श्रद्धा से मां की उपासना की जाए तो आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं। अगर मां प्रसन्न हो जाती हैं तो मां के आशीर्वाद से आपका जीवन बहुत ही सुखद हो जाता है।
        *कुछ नहीं कर सकते तो बस मां आदिशक्ति का ये मंत्र जाप हवन शुरू कर दें, ऊँ_श्री_दुर्गाय_नम:*
आप सभी को नवरात्रि के पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएं और हार्दिक बधाई 🌹 मां बाबा आप सभी की मनोकामना पूर्ण करे यही मां बाबा से हमारी प्रार्थना है 🌹🙏🏻
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻🌹

Monday, January 15, 2024

आज का पंचांग 16 जनवरी

🌺🌺🙏🙏🌺आज का पंचांग 16 जनवरी 🌺🙏🙏🌺🌺
*********|| जय श्री राधे ||*********
🌺🙏 *महर्षि पाराशर पंचांग* 🙏🌺
🙏🌺🙏 *अथ  पंचांगम्* 🙏🌺🙏
*********ll जय श्री राधे ll*********
🌺🌺🙏🙏🌺🌺🙏🙏🌺🌺


*दिनाँक:-16/01/2024, मंगलवार*
षष्ठी, शुक्ल पक्ष, 
पौष
""""""""""""""""""""""""""""""""""""(समाप्ति काल)

तिथि------------- षष्ठी 23:57:14      तक 
पक्ष------------------------- शुक्ल
नक्षत्र--------- उo भाo 28:37:02
योग------------ परिघ 19:59:44
करण----------- कौलव 13:03:19
करण----------- तैतुल 23:57:14
वार---------------------- मंगलवार
माह-------------------------  पौष
चन्द्र राशि------------------    मीन
सूर्य राशि------------------    मकर
रितु------------------------ शिशिर
आयन------------------ उत्तरायण
संवत्सर------------------ शोभकृत
संवत्सर (उत्तर)---------------- पिंगल
विक्रम संवत--------------- 2080 
गुजराती संवत------------- 2080 
शक संवत------------------ 1945
कलि संवत----------------- 5124

वृन्दावन 
सूर्योदय--------------- 07:12:19 
सूर्यास्त---------------- 17:45:26
दिन काल------------- 10:33:07 
रात्री काल------------- 13:26:45
चंद्रोदय---------------- 10:45:13 
चंद्रास्त---------------- 23:10:39

लग्न----  मकर 1°13' , 271°13'

सूर्य नक्षत्र------------- उत्तराषाढा 
चन्द्र नक्षत्र----------- उत्तरा भाद्रपद
नक्षत्र पाया-------------------- ताम्र 

*🚩💮🚩  पद, चरण  🚩💮🚩*

दू----उत्तरभाद्रपदा 11:43:39

थ---- उत्तरभाद्रपदा 17:19:46

झ---- उत्तरभाद्रपदा 22:57:33

ञ---- उत्तरभाद्रपदा 28:37:02

*💮🚩💮  ग्रह गोचर  💮🚩💮*

        ग्रह =राशी   , अंश  ,नक्षत्र,  पद
==========================
सूर्य=  मकर 01:10,  उ o षाo         2   भो
चन्द्र=मीन  03:30 ,       शतभिषा    4   सू
बुध =धनु 08:53'            मूल         3    भा 
शु क्र=वृश्चिक 26°05,  ज्येष्ठा  '      4      यू 
मंगल=धनु 14 °30 '    पू oषाo'     1      भू 
गुरु=मेष  11°30     अश्विनी ,          4    ला 
शनि=कुम्भ 10°40 '     शतभिषा     ,2    सा      
राहू=(व) मीन  25°05      रेवती ,     3    च 
केतु=(व) कन्या 25°05    चित्रा  ,     1    पे 

*🚩💮🚩 शुभा$शुभ मुहूर्त 💮🚩💮*

राहू काल 15:07 - 16:26 अशुभ
यम घंटा 09:51 - 11:10 अशुभ
गुली काल 12:29 - 13: 48अशुभ 
अभिजित 12:08 - 12:50 शुभ
दूर मुहूर्त 09:19 - 10:01 अशुभ
दूर मुहूर्त 23:08 - 23:50 अशुभ
वर्ज्यम 15:05 - 16:35    अशुभ

💮गंड मूल 28:37* - अहोरात्र अशुभ

🚩पंचक  अहोरात्र अशुभ

💮चोघडिया, दिन
रोग 07:12 - 08:31 अशुभ
उद्वेग 08:31 - 09:51 अशुभ
चर 09:51 - 11:10 शुभ
लाभ 11:10 - 12:29 शुभ
अमृत 12:29 - 13:48 शुभ
काल 13:48 - 15:07 अशुभ
शुभ 15:07 - 16:26 शुभ
रोग 16:26 - 17:45 अशुभ

🚩चोघडिया, रात
काल 17:45 - 19:26 अशुभ
लाभ 19:26 - 21:07 शुभ
उद्वेग 21:07 - 22:48 अशुभ
शुभ 22:48 - 24:29* शुभ
अमृत 24:29* - 26:10* शुभ
चर 26:10* - 27:51* शुभ
रोग 27:51* - 29:31* अशुभ
काल 29:31* - 31:12* अशुभ

💮होरा, दिन
मंगल 07:12 - 08:05
सूर्य 08:05 - 08:58
शुक्र 08:58 - 09:51
बुध 09:51 - 10:43
चन्द्र 10:43 - 11:36
शनि 11:36 - 12:29
बृहस्पति 12:29 - 13:22
मंगल 13:22 - 14:14
सूर्य 14:14 - 15:07
शुक्र 15:07 - 15:59
बुध 15:59 - 16:53
चन्द्र 16:53 - 17:45

🚩होरा, रात
शनि 17:45 - 18:53
बृहस्पति 18:53 - 19:59
मंगल 19:59 - 21:07
सूर्य 21:07 - 22:14
शुक्र 22:14 - 23:22
बुध 23:22 - 24:29
चन्द्र 24:29* - 25:36
शनि 25:36* - 26:43
बृहस्पति 26:43* - 27:51
मंगल 27:51* - 28:58
सूर्य 28:58* - 30:05
शुक्र 30:05* - 31:12

*🚩 उदयलग्न प्रवेशकाल  🚩* 
  
मकर   > 06:14  से  08:10 तक
कुम्भ   > 08:10  से  09:28   तक
मीन    > 09:28  से  10:58   तक
मेष     > 10:58  से  12:40  तक
वृषभ   > 12:40 से  14:38   तक
मिथुन  > 14:38 से   16:50   तक
कर्क    > 16:50  से  19:10   तक
सिंह    >  19:10  से  21:22   तक
कन्या  >  21:22  से  23:36  तक
तुला   >  23:36   से  01:42  तक
वृश्चिक > 01:42  से  03:54   तक
धनु     > 03:54   से  06:14  तक

*🚩विभिन्न शहरों का रेखांतर (समय)संस्कार*

       (लगभग-वास्तविक समय के समीप) 
दिल्ली +10मिनट--------- जोधपुर -6 मिनट
जयपुर +5 मिनट------ अहमदाबाद-8 मिनट
कोटा   +5 मिनट------------ मुंबई-7 मिनट
लखनऊ +25 मिनट--------बीकानेर-5 मिनट
कोलकाता +54-----जैसलमेर -15 मिनट

*नोट*-- दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। 
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है। 
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।

*💮दिशा शूल ज्ञान-------------उत्तर*
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो  घी अथवा गुड खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
*शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l*
*भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll*

*🚩  अग्नि वास ज्ञान  -:*
*यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,*
*चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।*
*दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,*
*नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।।* *महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्*
*नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।*

6 + 3 + 1 = 10 ÷ 4 = 2 शेष
 आकाश लोक पर अग्नि वास हवन के लिए अशुभ कारक है l

*🚩💮 ग्रह मुख आहुति ज्ञान 💮🚩*

सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु  आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है

 बुध ग्रह मुखहुति

*💮    शिव वास एवं फल -:*

 6 + 6 + 5 = 17 ÷ 7 =  3 शेष

वृषाभा रूढ़ = शुभ कारक

*🚩भद्रा वास एवं फल -:*

*स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।*
*मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।*

*💮🚩    विशेष जानकारी   🚩💮*

* सर्वार्थ सिद्धि योग 28:37 तक

*अनुरूपा षष्ठी

*संक्रांति करीदिन 

*💮🚩💮   शुभ विचार   💮🚩💮*

निविषेणापि सर्पेण कर्तव्या महती फणा ।
विषमस्तु न चाप्यस्तु घटाटोप भयंकरः ।।
।। चा o नी o।।

  यदि नाग अपना फना खड़ा करे तो भले ही वह जहरीला ना हो तो भी उसका यह करना सामने वाले के मन में डर पैदा करने को पर्याप्त है. यहाँ यह बात कोई माइना नहीं रखती की वह जहरीला है की नहीं.

*🚩💮🚩  सुभाषितानि  🚩💮🚩*

गीता -: कर्मयोग अo-03

व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे ।,
तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम्‌ ॥,

आप मिले हुए-से वचनों से मेरी बुद्धि को मानो मोहित कर रहे हैं।, इसलिए उस एक बात को निश्चित करके कहिए जिससे मैं कल्याण को प्राप्त हो जाऊँ॥,2॥,॥,

*💮🚩   दैनिक राशिफल   🚩💮*

देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।।

🐏मेष
कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। जीवनसाथी से सामंजस्य बैठाएं। भूमि व भवन की खरीद-फरो्ख्‍त की योजना बनेगी। उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे। निवेश शुभ रहेगा। लंबी यात्रा का मन बनेगा। प्रसन्नता में वृद्धि होगी। पारिवारिक सहयोग मिलेगा। मित्रों के साथ अच्छा समय बीतेगा। भय रहेगा। चोट व रोग से बचें।

🐂वृष
प्रभावशाली व्यक्तियों का सहयोग व मार्गदर्शन प्राप्त होगा। आय में वृद्धि होगी। रुके कार्यों में गति आएगी। किसी मांगलिक कार्य में भाग लेने का मौका मिलेगा। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। शारीरिक कष्ट संभव है। शत्रु पस्त होंगे। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकता है।

👫मिथुन
वाहन व मशीनरी के प्रयोग में लापरवाही न करें। क्रोध व उत्तेजना से बाधा उत्पन्न होगी। नियंत्रण रखें। अपेक्षित कार्यों में विलंब होगा। चिंता तथा तनाव रहेंगे। दूसरों के काम में दखल न दें। व्यवसाय ठीक चलेगा। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। काम में मन नहीं लगेगा। विवाद से बचें।

🦀कर्क
पार्टी व पिकनिक का कार्यक्रम बन सकता है। मनपसंद भोजन का आनंद प्राप्त होगा। रचनात्मक कार्य सफल रहेंगे। पठन-पाठन व लेखन आदि में मन लगेगा। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। मस्तिष्क पीड़ा हो सकती है। यात्रा मनोरंजक रहेगी। राजभय है। जल्दबाजी न करें। वाणी में संयम रखें।

🐅सिंह
देव-दर्शन का कार्यक्रम बनेगा। अध्यात्म में रुचि रहेगी। वरिष्ठजनों का सहयोग प्राप्त होगा। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। व्यवसाय से मनोनुकूल लाभ होगा। प्रभावशालीव व्यक्तियों से परिचय बढ़ेगा। नौकरी में सहकर्मी साथ देंगे। निवेश शुभ रहेगा। परिवार के साथ समय अच्छा गुजरेगा।

🙍‍♀️कन्या
किसी अपरिचित की बातों में न आएं। अप्रत्याशित खर्च सामने आएंगे। व्यवस्था में अधिक प्रयास करना पड़ेंगे। चिंता तथा तनाव रहेंगे। किसी झगड़े में न पड़ें। व्यवसाय ठीक चलेगा। आय बनी रहेगी। वाणी में हल्के शब्दों के प्रयोग से बचें। कुसंगति से हानि होगी। लेन-देन में जल्दबाजी न करें।

⚖️तुला
भागदौड़ रहेगी। किसी व्यक्ति के व्यवहार से दिल को ठेस पहुंच सकती है। बनते काम बिगड़ सकते हैं, धैर्य रखें। प्रयास अधिक करना पड़ेंगे। आय में निश्चितता रहेगी। बुद्धि का प्रयोग करें। किसी के उकसावे में न आएं। वाणी में हल्के शब्दों के प्रयोग से बचें। दु:खद समाचार मिल सकता है।

🦂वृश्चिक
घर में अतिथियों का आगमन होगा। व्यय होगा। शुभ समाचार प्राप्त होंगे। प्रसन्नता रहेगी। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। आत्मविश्वास बना रहेगा। नौकरी व व्यवसाय मनोनुकूल लाभ देंगे। कोई अनहोनी होने की आशंका रहेगी। स्वास्थ्य का पाया कमजोर रहेगा।

🏹धनु
सामाजिक कार्य करने का अवसर प्राप्त होगा। मान-सम्मान मिलेगा। निवेश शुभ रहेगा। यात्रा की योजना बनेगी। नौकरी में कार्य की प्रशंसा होगी। आय में वृद्धि होगी। मातहतों का सहयोग मिलेगा। घर-बाहर प्रसन्नता बनी रहेगी। किसी बड़ी समस्या से सामना हो सकता है। प्रयास सफल रहेंगे।

🐊मकर
प्रतिद्वंद्विता में वृद्धि होगी। पारिवारिक चिंता बनी रहेगी। बकाया वसूली के प्रयास सफल रहेंगे। व्यावसायिक लाभ बढ़ेगा। यात्रा मनोरंजक रहेगी। नए कार्य प्रारंभ करने की योजना बनेगी। मित्रों के साथ अच्छा समय बीतेगा। विरोध करने का अवसर दूसरों को न दें। प्रसन्नता बनी रहेगी।

🍯कुंभ
यात्रा मनोरंजक रहेगी। सभी ओर से सफलता प्राप्त होगी। भाग्योन्नति के प्रयास सफल रहेंगे। नवीन वस्त्राभूषण पर व्यय होगा। व्यस्तता के चलते थकान महसूस होगी। विवेक से कार्य करें। लाभार्जन सहज होगा। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। दूसरों के कार्य में हस्तक्षेप न करें।

🐟मीन
यात्रा मनोरंजक रहेगी। नई योजना बनेगी। व्यवसाय में वृद्धि के लिए सभी ओर से सहयोग प्राप्त होगा। नौकरी में मातहतों का सहयोग प्राप्त होगा। धन प्र‍ाप्ति सुगम होगी। प्रसन्नता में वृद्धि होगी। स्वास्थ्य का पाया कमजोर रहेगा। चोट व दुर्घटना से बचें। वाणी में हल्के शब्दों के प्रयोग से बचें।

🙏आपका दिन मंगलमय हो🙏
🌺🌺🌺🌺🙏🌺🌺🌺🌺
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻🌹

आइये जानते हैं कब है धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि विधान साधना???

* धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि*  *29 और 31 तारीख 2024*  *धनतेरस ओर दिपावली पूजा और अनुष्ठान की विधि* *धनतेरस महोत्सव* *(अध्यात्म शास्त्र एवं ...

DMCA.com Protection Status