~ श्री~ श्री कार्तवीर्य सहस्त्रबाहु और परशुराम के युद्ध का वर्णन ~
उभयोः सेनयोर्युद्घमभवत्तत्र नारद !
पालयिता रामशिष्या भ्रतश्चमहावलाः !!
क्षत् विक्षत् सर्बांग् कार्तवीर्य प्रपीडिताः !! १
नृपस्यशरजालेनरामः शस्त्रभृता वरः !
न ददर्शस्वसैन्यं न राजसैन्य तथैव च !! २
चिक्षेप रामश्चाssग्नेयंवभूबाग्निमयं रणे !
निर्बापयामास राजा वारुणेव लीलया !! ३
चिक्षेप रामो गान्धर्व शैल सर्प समन्वितम् !
वायव्येन महाराजः प्रेरयामास लीलया !!४
चिक्षेप रामो नागास्त्र दुर्निवार्य भयंकरम् !
गारूणेन महाराजःप्रेरयामास लीलया !!५
माहेश्वर च भगवांश्चिक्षेप भृगुनन्दनः !
निर्वापयामास राजा वैष्णवास्त्रेण लीलया !!६
ब्रहृमास्त्रं चिक्षेप रामो नृप नाशया नारद !
ब्रह्मास्त्रेण च शान्तं तत्प्राणनिर्वापणं रणे !!७
दत्तदत्तं यच्छूलमव्यर्थ मन्त्रपूर्वकम् !
जग्राह राजा परशुरामनाशाय संयुगे !!८
शूलं ददर्श. रामश्च शत् सूर्यसमप्रभम् !
प्रल्याग्निशिखो द्रक्तं दुनिर्वार्य सुरैरपि !!९
पपात शूलं समरे रामस्योपरिनारद !
मूर्छापबाप स. भृगुः पपात च हरि स्मरन् !!१०
पतिते तु तदा रामे सर्वे देवा भया कुलाः !
आजग्मुः समरमं तत्र ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः!!११
शंकरश्च. महाज्ञानी महाज्ञानेन लीलया !
ब्रह्मणं जीवया मास तूर्ण नारायणाज्ञया !!१२
- ब्रह्मवैवर्त पुराण (सत्य प्रत)
भावार्थः-
हे नारद ! अनन्तर दोनो ओर के सैनिको में भयंकर युद्ध आरम्भ हुआ, जिसमे परशुराम के शिष्यगण और महावली भ्राता गण भगवान कार्तबीर्य से अतिपीडित एवं छिन्नभिन्न होकर भाग निकले !१. !!
राजा कार्तवीर्य के बाणजाल से आछन्न होने के कारण परशुराम अपनी सेना और राजा कार्तबीर्य की सेना को नही देख सके ! २ !!
पश्चात परशुराम ने समर मै आग्नेय बाण का प्रयोग किया , जिसमे सव कुछ अग्निमय हो गया , राजा कार्तवीर्य ने वरुण बाण द्वारा उसे लीलापूर्वक भाँति
शान्त कर दिया ! ३ !!
परशुराम ने पर्वत सर्प युक्त गांन्धर्व अस्त्र का प्रयोग किया जिसे कार्तवार्य महाराज ने वायव्य बाण द्वारा समाप्त कर दिया !४!!
फिर परशुराम ने अग्निबार्य एंव भयंकर नागास्त्र का प्रयोग किया , जिसे महाराजा सहस्रबाहु ने गारूण अस्त्र द्वारा बिना यत्न के ही नष्ट कर दिया ! ५ !!
भृगु नन्दन परशुराम ने माहेश्वर अस्त्र का प्रयोग किया जिसे महाराजा ने वैष्णव अस्त्र द्बारा लीलापूर्वक समाप्त कर दिया ! ६!!
हे नारद् !! अनन्तर परशुराम ने कार्तवीर्य महाराजा के विनाशार्थ ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया , कार्तवीर्य महाराजा ने भी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर उस प्राणनाशक को भी युद्ध में शान्त कर दिया !७!!
तब महाराज कार्तवीर्य जी ने उस रण मै परशुराम के वधार्थ दत्तात्रेय द्वारा प्रद्त्त शूल का मन्त्र पूर्वक उपयोग किया , जो कभी भी व्यर्थ ना होने वाला था !८!!
परशुराम ने उस सैकडो सूर्य के समान कान्तिपूर्ण प्रलय कालीन अग्निशिखा से बडा- चडा और देवो के लिये भी दुर्निवार उस शूल को देखा !९!!
हे नारद् !! परशुराम के ऊपर वह शूल गिरा, जिससे भगवान् का स्मरण करते हुए परशुराम मूर्छित होगये !१०!!
परशुराम के गिर जाने के वाद समस्त देव गण व्याकुल होगये , उस समय युद्ध स्थल में ब्रह्मा विष्णु एंव महेश्वर भी आ गये!११ !!
नारायण की आज्ञा से महाज्ञानी शिव ने अपने महाज्ञान द्वारा लीला पूर्वक परशुराम जी को जीवित कर दिया ! १२ !! इति !
- ब्रह्मवैवर्त पुराण (सत्य प्रत)
इसके बाद शिवजी ने दोनों को आशिर्वाद देकर यह युद्ध रोक दिया। इस युद्ध के बाद सहस्त्रबाहु जी ने अपने जेष्ठ पुत्र जयध्वज का राजतिलक करने के पश्चात सन्यास धारण कर शिवजी के साथ महेश्वर स्थित शिवलिंग में विलीन हो गए। जिसे राजराजेश्वर लिंग के नाम से जाना जाता है। आज भी महेश्वर में दीपप्रिय सहस्त्रबाहु जी के राजराजेश्वर मंदिर में ११ अखंड नंददीप प्रज्वलित है। यह राजराजेश्वर शिवलिंग आज करोडो लोगों की आस्था का केंद्र है।
*महाराज कार्तवीर्य अर्जुन को श्री भगवान् दत्तात्रेय का दर्शन*
*श्री मार्कंडेय पुराण अध्याय"१८*
*यदि देव प्रसंन्त्वं तत्प्रयाच्छाधि मुक्त माम।*
*यथा प्रजा पाल्यायेम न चा धर्मं मवाप्नुयाम।।*
*परानुस्मरण ज्ञान म प्रति द्वन्दतांरणे।*
*सहस्त्रमाप्तु भिच्छामि बाहुना लघुता गुणाम ।।*
*असँगा गतय: सन्तु शौला काशम्बु मूमिसु।*
*पातालेषु च सर्वेषु वधश्चाप्याधि कान्नरात।।*
*तथा माग प्रवृ तस्य सन्तु सन्मार्ग देशिवा :।*
*संतुमें तिथय -शलाघ्य वित्तवान्य तथा क्षयं ।।*
*अन्स्ट द्रव्यता रास्ट्रे मामनुस्मरणेन च ।*
*त्वयि भक्तिश्च देवाश्तु नित्यं मव्यभि चारणी ।।*
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*ॐ हिंगुले परमहिंगुले अमृतरूपीणी तनुशक्ति मनः शिवे श्री हिंगुलाय नमः*
*जय कुलरक्षणी तिलदानी आपको सर्वदा शंत शंत नमन जय माँ हिंगलाज,,,*
*है कुलगुरु दत महाराज है कुलशेष्ठ महाराज,,*
*||जय जय गुरुदेव दत्त, जय श्री सहस्रार्जुन महाराज ||*
जब महाराज को ये वरदान मिले थे तो उनका भ्रमित होने का कोई चांस नही ओर इनके तो काफी मंत्र ओर तंत्र भी है कल एक प्रभु जन ने महाराज सहस्त्रार्जुन पर टिप्पणी करके दिल को अंदर तक झंझोड दिया इसलिए...
ये वो वरदान थे जी महाराज को गुरुशेष्ट से मिले...
यमाहुर्वाषु देवांश हैहय नां फुर्लात्कम।
हैहया नामी धिपतिरर्जुन :क्षत्रियर्षम।।
भावार्थ :- महाराजा ययाति के यहाँ वासुदेव के अंश से हैहय नामक पुत्र हुआ। जिनके वंश में कार्तवीर्यार्जुन क्षत्रिय हुए है।
श्री कार्तवीर्यार्जुन ने दस हजार वर्षो की कठिन तपस्या के पश्चात् श्री भगवान् दत्तात्रेय से दस १०, वरदान प्राप्त किये, वे वरदान निम्न प्रकार से है:-
१-ऐश्वर्य शक्ति प्रजा पालन के योग्य हो, किन्तु अधर्म न बन जावे।
२- दूसरो के मन की बात जानने का ज्ञान हो।
३- युद्ध में कोई समानता न कर सके।
४- युद्ध के समय सस्त्र भुजाएं प्राप्त हो, उनका तनिक भी भार न लगे।
५-पर्वत, आकाश, जल, पृथ्वी और पाताल में अव्याहत गति हो।
६-मेरी मृत्यु अधिक श्रेष्ठ के हाथो से हो ओर जीवित सशरीर मे अपने आराध्य देव भोलेनाथ मे समा जाऊ..।
७-कुमार्ग में प्रवृत्ति होने पर सन्मार्ग का उपदेश प्राप्त हो।
८-श्रेष्ठ अतिथि नी निरंतर प्राप्ति होती रहे।
९-निरंतर दान से धन न घटे।
१०-स्मरण मात्र से धन का आभाव दूर हो जाये एवं भक्ति बनी रहे।,,,
श्री राजराजेश्वर कार्तवीर्य सहस्त्रबाहु जी सात चक्रवर्ती राजाओं में से एक है। इस पृथ्वीपर सबसे अधिक सालो तक धर्म और न्याय से राज उन्हीका माना गया है। ऐसे योगिराज सहस्त्रबाहु जी की बदनामी और उनके बारे में भ्रामक झूठी कहानियां झूठी पुस्तिका, सीरियल और फिल्मो के माध्यम से फैलाने का काम कुछ अधर्मी धर्मभ्रष्ट लोग कर रहे है। ..खैर आपकी कलम है कुछ भी लिख सकते है ओर पहले भी कुछ इतिहास ओर चापलूसो ने महाराज सहस्त्रार्जुन को विलेन तो बना ही दिया है शास्त्रो मे फेर बदल कर ओर भी कई बात है जिनसे प्रर्दा उठना बाकी है क्योंकि मौज अगर लेनी है तो खोज करनी पडेगी ध्यान लगाना पडेगा. यही सत्य है...
ओर हमे गर्व है कि हम इनके वशंज है...
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधेकृष्णा अलख आदेश..
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