Sunday, November 29, 2020

साल का आखिरी चंद्र ग्रहण लगेगा कार्तिक पूर्णिमा के दिन , जानें समय और तारीख।





कार्तिक पूर्णिमा 30 नवंबर को है. इस बार की कार्तिक पूर्णिमा बहुत ही खास माना जा रहा है, क्योंकि इस दिन देव दीपावली भी है. वहीं, इस दिन इस साल का आखिरी चंद्र ग्रहण भी लगने जा रहा है. कार्तिक मास का सबसे आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा होता है. स्नान और दान के लिहाज से यह दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस बार कार्तिक पूर्णिमा दो तरह से बहुत महत्वपूर्ण है. कार्तिक पूर्णिमा पर एक तरफ जहां चंद्रग्रहण लग रहा है, वहीं दो शुभ संयोग इस पूर्णिमा को और भी पावन बना रहे हैं. सर्वार्थ सिद्धि योग व वर्धमान योग इस बार कार्तिक पूर्णिमा के दिन रहेंगे.

इस बार पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 29 नवंबर की दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से प्रारंभ होकर 30 नवंबर की दोपहर 2 बजकर 59 मिनट तक रहेगी. वहीं ग्रहण 30 नवंबर दोपहर 1 बजकर 4 मिनट से शुरू होगा और 30 नवंबर की शाम 5 बजकर 22 मिनट तक रहेगा. हालांकि ग्रहण का सूतक काल इस बान नहीं लगेगा. क्योंकि ये उपछाया चंद्र ग्रहण लग रहा है.

वृषभ राशि और रोहिणी नक्षत्र में यह उपचाया चंद्रग्रहण लगेगा. इसका असर वृषभ राशि के जातको पर पड़ेगा. उपच्छाया में न तो कोई सूतक ही लगेगा और न ही किसी प्रकार के शुद्धिकरण आदि की आवश्यकता होगी. इससे पहले 10 जनवरी, 5 जून व 5 जुलाई को भी ग्रहण लग चुके हैं. अब साल का अंतिम सूर्य ग्रहण 14 दिसंबर को होगा.

पूर्णिमा तिथि:
29 नवंबर की दोपहर 12 बजकर 47 मिनट पर

30 नवंबर की दोपहर 2 बजकर 59 मिनट पर

ग्रहण प्रारंभ 30 नवंबर की दोपहर 1 बजकर 4 मिनट पर

ग्रहण मध्यकाल 30 नवंबर की दोपहर 3 बजकर 13 मिनट पर

ग्रहण समाप्त 30 नवंबर की शाम 5 बजकर 22 मिनट पर

Saturday, October 24, 2020

बाबा हनुमान जी चालीसा


श्री हनुमान चालीसा हिंदी में अनुवाद सहित 

ॐ हं हनमंते रूद्रात्मकाय हुं फट् 
इस मंत्र का चालीसा शुरू करने ओर पुणेयता पर जपना चाहिए, 

 दोहा

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि |
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ||
“श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला हे।”

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार |
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार ||
“हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।”

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर,
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥
“श्री हनुमान जी!आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों, स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।”

राम दूत अतुलित बलधामा,
अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥
“हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नहीं है।”

महावीर विक्रम बजरंगी,
कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥
“हे महावीर बजरंग बली!आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है।”

कंचन बरन बिराज सुबेसा,
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥
“आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।”

हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे,
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥
“आपके हाथ में बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।”

शंकर सुवन केसरी नंदन,
तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥
“हे शंकर के अवतार!हे केसरी नंदन आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर में वन्दना होती है।”

विद्यावान गुणी अति चातुर,
राम काज करिबे को आतुर॥7॥
“आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।”

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया,
राम लखन सीता मन बसिया॥8॥
“आप श्री राम चरित सुनने में आनन्द रस लेते है।श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय में बसे रहते है।”

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा,
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥9॥
“आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को जलाया।”

भीम रूप धरि असुर संहारे,

रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥

“आपने विकराल रूप धारण करके राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उद्देश्यों को सफल कराया।”

लाय सजीवन लखन जियाये,
श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥
“आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।”

रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई,
तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥
“श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।”

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं,
अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥13॥
“श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।”

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा,
नारद, सारद सहित अहीसा॥14॥
“श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।”

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15॥
“यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।”

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा,
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥
“आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया , जिसके कारण वे राजा बने।”

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना,
लंकेस्वर भए सब जग जाना॥17॥
“आपके उपदेश का विभीषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।”

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू,
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥
“जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे।दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।”

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि,
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥
“आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह में रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।”

दुर्गम काज जगत के जेते,
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥
“संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।”

राम दुआरे तुम रखवारे,
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥21॥
“श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले है, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।”

सब सुख लहै तुम्हारी सरना,
तुम रक्षक काहू को डरना ॥22॥
“जो भी आपकी शरण में आते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक है, तो फिर किसी का डर नहीं रहता।”

आपन तेज सम्हारो आपै,
तीनों लोक हाँक ते काँपै॥23॥
“आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।”

भूत पिशाच निकट नहिं आवै,
महावीर जब नाम सुनावै॥24॥
“जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नहीं फटक सकते।”

नासै रोग हरै सब पीरा,
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥
“वीर हनुमान जी!आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है, और सब पीड़ा मिट जाती है।”

संकट तें हनुमान छुड़ावै,
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥
“हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में, जिनका ध्यान आपमें रहता है, उनको सब संकटों से आप छुड़ाते है।”

सब पर राम तपस्वी राजा,
तिनके काज सकल तुम साजा॥27॥
“तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिया।”

और मनोरथ जो कोइ लावै,
सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥
 “जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।”
चारों जुग परताप तुम्हारा,
है परसिद्ध जगत उजियारा॥ 29॥
“चारों युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फैला हुआ है, जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।”

साधु सन्त के तुम रखवारे,
असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥
“हे श्री राम के दुलारे ! आप सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।”

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता,
अस बर दीन जानकी माता॥31॥
“आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।”

राम रसायन तुम्हरे पासा,
सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥
“आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।”

तुम्हरे भजन राम को पावै,
जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥
 “आपका भजन करने से श्री राम जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।”
अन्त काल रघुबर पुर जाई,
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥ 34॥
“अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।”

और देवता चित न धरई,
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥
“हे हनुमान जी!आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती।”

संकट कटै मिटै सब पीरा,
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥
“हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।”

जय जय जय हनुमान गोसाईं,
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥
“हे स्वामी हनुमान जी!आपकी जय हो, जय हो, जय हो!आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।”

जो सत बार पाठ कर कोई,
छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥
“जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।”

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा,
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥ 39॥
“भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है, कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।”

तुलसीदास सदा हरि चेरा,
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥
“हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए।”

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभुप॥
“हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरूप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए

Thursday, June 4, 2020

जानये किस किस राशि पर रहेगा ग्रहण का प्रभाव ।

दो चंद्रग्रहण एवं एक सूर्य ग्रहण का योग बन रहा है 5 जून सन 2020 जेस्ट शुक्ला पूर्णिमा शुक्रवार को चंद्र ग्रहण होगा इस ग्रहण का प्रभाव विदेशों में अधिक है भारत में इसका प्रभाव नहीं है सूतक यम नियम का कोई विधान नहीं होगा नियमित तौर पर पूजा पाठ एवं कार्यक्रम विधिवत रहेंगे रात्रि 11:16 से रात्रि शेष 2:34 तक ग्रहण रहेगा मध्य भाग ग्रहण का रात्रि में 12:55 पर रहेगा उत्तरी अमेरिका ग्रीनलैंड रसिया आदि भागों को छोड़कर ग्रहण का दृश्य मान होगा मगर प्रभाव शून्य रहेगा दूसरा चंद्र ग्रहण 5 जुलाई सन 2020 असार शुक्ला पूर्णिमा रविवार को चंद्र ग्रहण रहेगा यह ग्रहण ऑस्ट्रेलिया चीन इराक ईरान मंगोलिया भारत को छोड़कर शेष भाग में दृश्य मान होगा मगर भारत में इसका प्रभाव नहीं रहेगा अतः सूतक यम नियम प्रभावी नहीं होंगे 21 जून सन 2020 आषाढ़ कृष्ण अमावस्या रविवार को खंडग्रास सूर्यग्रहण होगा इसका सूतक यम नियम भारत में लगेगा यह ग्रहण मृगशिरा नक्षत्र में मात्रा नक्षत्र पर रहेगा मिथुन राशि पर इसका प्रभाव बनेगा मेष सिंह कन्या मकर राशि वालों के लिए सुखद रहेगा वृषभ तुला धन कुंभ के लिए सामान्य फल प्रदान करेगा मिथुन कर्क वृश्चिक मीन राशि वालों के लिए अशुभ दायक रहेगा भारत के साथ म्यांमार दक्षिण रूस मंगोलिया बांग्लादेश श्रीलंका थाईलैंड मलेशिया कोरिया जापान इंडोनेशिया पूर्वी ऑस्ट्रेलिया अफ्रीका ईरान इराक अफगानिस्तान नेपाल पाकिस्तान आदि देशों में ग्रहण दृश्य मान होगा अफ्रीका के कुछ क्षेत्र यमन ओमान दक्षिण चीन का भाग ताइवान भारत में पोखरी उठी मंडे अगस्त मुनि जेलम टेहरी चंबा देहरादून जगधारी यमुनानगर शरीफ गढ़ कुरुक्षेत्र थानेश्वर नंदा देवी अनूपगढ़ श्री विजयनगर अमरपुरा सूरतगढ़ चमोली जोशीमठ पीपलकोटी रुद्रनाथ गोपेश्वर आदि स्थानों पर कंकण आकृति सूर्य ग्रहण दृश्य मान होगा 20 जून सन 2020 रात्रि 10:09 सूतक यम नियम मान्य हो जाएंगे ग्रहण का स्पर्श दिन में 10:09 से प्रभावी होगा दिन में 1:36 तक ग्रहण रहेगा महिला वर्ग के लिए नवविवाहित महिला एवं कन्या विवाह योग्य बालक बालिकाओं के लिए अशुभ कारी रहेंगे उद्योगपति मंत्री गण धर्म नेता पर दुष्प्रभाव रहेगा इन्हें दर्शन नहीं करना चाहिए अनाजों में उतार-चढ़ाव होगा स्टेशनरी सामान कृषि का सामान केसर कस्तूरी के सामानों के व्यवसाय को बढ़ोतरी मिलेगी इस सूर्य ग्रहण में सूर्य की उपासना गायत्री मंत्र का जाप गुरु मंत्र का जाप नारायण मंत्र का जाप विष्णु सहस्त्रनाम गोपाल सहस्त्रनाम गीता पाठ आदि धार्मिक पुस्तकों का पठन मंत्र जाप हवन दान पुण्य धर्म कर्म करना चाहिए अन्न दान वस्त्र दान भजन दक्षिणा द्रव्य दान करें तीर्थों का स्नान नदियों का स्थान ब्रह्मसरोवर सतयुग के महान तीर्थ ब्रह्मा के इस पावन तीर्थ में पुष्कर राज में स्नान करने से तर्पण मार्जन हवन पूजन परिक्रमा एवं दान करने से कामधेनु के समान फल लिखा है किसी की जन्मपत्री में सूर्य का ग्रह अशुभ है रोग दोष कष्ट व्याधि पीड़ा एवं पारिवारिक असंतोष को दूर करने के लिए सूर्य का जाप एवं दान पुण्य करना चाहिए गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता है

Wednesday, May 20, 2020

गुप्त नवरात्रि कब से है ओर क्या करे




*#गुप्तनवरात्रि_बाइस_जून_दो_हजार_बीस,*
*#22/06/2020*
*#गुप्तनवरात्रि,,*
*#घटस्थापना 22जून ,* #सोमवार
देवी माँ नवदुर्गा ओर दसमहाविधा स्तुति,,
*#पहला दिन 22जून*
#सोमवार
*देवी माँ #शैलपुत्री स्तुति*

जगत्पजये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरूपिणि। सर्वात्मिकेशि कौमारि जगन्मातर्नमोsस्तु ते॥

*#दुसरा दिन 23 जून*
#मंगलवार
*देवी माँ #ब्रह्मचारिणी स्तुति*

त्रिपुरां त्रिर्गुणाधारां मार्गज्ञानस्वरूपिणीम् । त्रैलोक्यवन्दितां देवीं त्रिमूर्ति प्रणमाम्यहम् ॥

*#तीसरा दिन 24 जून*
#बुधवार
*देवी माँ #चन्द्रघण्डा स्तुति*

कालिकां तु कलातीतां कल्याणहृदयां शिवाम् । कल्याणजननीं नित्यं कल्याणीं प्रणमाम्यहम् ॥

*#चौथा दिन 25जून*
#गुरूवार
देवी माँ कूष्माण्डा स्तुति

अणिमाहिदगुणौदारां मकराकारचक्षुषम् । अनन्तशक्तिभेदां तां कामाक्षीं प्रणमाम्यहम् ॥

*#पांचवां दिन 26 जून*
#शुक्रवार
देवी माँ स्कन्दमाता स्तुति

चण्डवीरां चण्डमायां चण्डमुण्डप्रभञ्जनीम् । तां नमामि च देवेशीं चण्डिकां चण्डविक्रमाम् ॥

*#पांचवा ओर छठा दिन 26जून*
#शुक्रवार
देवी माँ कात्यायनी स्तुति

सुखानन्दकरीं शान्तां सर्वदेवैर्नमस्कृताम् । सर्वभूतात्मिकां देवीं शाम्भवीं प्रणमाम्यहम् ॥

*#सातवा दिन 27 जून*
#शनिवार
देवी माँ कालरात्रि स्तुति

चण्डवीरां चण्डमायां रक्तबीज-प्रभञ्जनीम् । तां नमामि च देवेशीं कालरात्रीं गुणशालिनीम् ॥

*#आठवा दिन 28 जून,,*
#रविवार
देवी माँ महागौरी स्तुति

सुन्दरीं स्वर्णसर्वाङ्गीं सुखसौभाग्यदायिनिम् । सन्तोषजननीं देवीं महागौरी प्रणमाम्यम् ॥

*#नवां दिन 29जून*
#सोमवार
देवी माँ सिद्धिदात्री स्तुति

दुर्गमे दुस्तरे कार्ये भयदुर्गविनाशिनि । प्रणमामि सदा भक्तया दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम् ॥
*#दसवा दिन 30जून,*
मंगलवार पारणा या भैरवदशमी भैरव पुजा ,नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी आगे माँ महा सिद्धविधा की पुजा ओर स्तुति इस तरह कर सकते है,,
*#देवी माँ दसमहासिद्धविद्या स्तुति,,*

देवी माँ काली स्तुति

रक्ताsब्धिपोतारूणपद्मसंस्थां पाशांकुशेष्वासशराsसिबाणान् । शूलं कपालं दधतीं कराsब्जै रक्तां त्रिनेत्रां प्रणमामि देवीम् ॥

देवी माँ तारा स्तुति

मातर्तीलसरस्वती प्रणमतां सौभाग्य-सम्पत्प्रदे प्रत्यालीढ –पदस्थिते शवह्यदि स्मेराननाम्भारुदे ।
फुल्लेन्दीवरलोचने त्रिनयने कर्त्रो कपालोत्पले खड्गञ्चादधती त्वमेव शरणं त्वामीश्वरीमाश्रये ॥

देवी माँ षोडशी स्तुति

बालव्यक्तविभाकरामितनिभां भव्यप्रदां भारतीम् ईषत्फल्लमुखाम्बुजस्मितकरैराशाभवान्धापहाम् ।
पाशं साभयमङ्कुशं च ‍वरदं संविभ्रतीं भूतिदा ।
भ्राजन्तीं चतुरम्बजाकृतिकरैभक्त्या भजे षोडशीम् ॥

देवी माँ छिन्नमस्ता स्तुति

नाभौ शुद्धसरोजवक्त्रविलसद्बांधुकपुष्पारुणं भास्वद्भास्करमणडलं तदुदरे तद्योनिचक्रं महत् ।
तन्मध्ये विपरीतमैथुनरतप्रद्युम्नसत्कामिनी पृष्ठस्थां तरुणार्ककोटिविलसत्तेज: स्वरुपां भजे ॥

देवी माँ त्रिपुरभैरवी स्तुति

उद्यद्भानुसहस्रकान्तिमरुणक्षौमां शिरोमालिकां रक्तालिप्तपयोधरां जपपटीं विद्यामभीतिं वरम् ।
हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं देवीं बद्धहिमांशुरत्नमुकुटां वन्दे समन्दस्मिताम् ॥

देवी माँ धूमावती स्तुति

प्रातर्यास्यात्कमारी कुसुमकलिकया जापमाला जयन्ती मध्याह्रेप्रौढरूपा विकसितवदना चारुनेत्रा निशायाम् ।
सन्ध्यायां वृद्धरूपा गलितकुचयुगा मुण्डमालां वहन्ती सा देवी देवदेवी त्रिभुवनजननी कालोका पातु युष्मान् ॥

देवी माँ बगलामूखी स्तुति

मध्ये सुधाब्धि – मणि मण्डप – रत्नवेद्यां सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम् ।
पीताम्बराभरण – माल्य – बिभूतिषताङ्गी देवीं स्मरामि धृत-मुद्गर वैरिजिह्वाम् ॥

देवी माँ मातङगी स्तुति

श्यामां शुभ्रांशुभालां त्रिकमलनयनां रत्नसिंहासनस्थां भक्ताभीष्टप्रदात्रीं सुरनिकरकरासेव्यकंजांयुग्माम् ।
निलाम्भोजांशुकान्ति निशिचरनिकारारण्यदावाग्निरूपां पाशं खङ्गं चतुर्भिर्वरकमलकै: खेदकं चाङ्कुशं च ॥

देवी माँ भुवनेश्वरी स्तुति

उद्यद्दिनद्युतिमिन्दुकिरीटां तुंगकुचां नयनवययुक्ताम् ।
स्मेरमुखीं वरदाङ्कुश पाशभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम् ॥

देवी माँ कमला स्तुति

त्रैलोक्यपूजिते देवि कमले विष्णुबल्लभे ।
यथा त्वमचल कृष्णे तथा भव मयि स्थिरा ॥
*#आगे महासिद्धविधा कवच है जो अभेद है,  जैसी इच्छा हो वैसी भक्ति करे पुणे शक्ति के साथ कहे नादान बालक माँ बाबा सदेव आप सभी पर अपनी कृपा बनाये रखे ,,जय माँ बाबा की,,,*
*#देवी माँ श्रीमहा-सिद्धविधा-कवच,,*

ॐ प्राच्यां रक्षतु मे तारा, काम-रुप-निवासिनी ।
आग्नेयां षोडशी पातु, याम्यां धुमावती स्वयम ।।१।।

नैर्ॠत्यां भैरवी पातु, वारुण्यां भुवनेश्वरी ।
वायव्यां सततं पातु, छिन्नमस्ता महेश्वरी ।।२।।

कौबेर्यां पातु मे देवी, श्रीविधा बगला-मुखी ।
ऐशान्यां पातु मे नित्यं महा-त्रिपुर-सुन्दरी ।।३।।

उर्ध्वं रक्षतु मे विधा, मातङ्गी पिठ-वासिनी ।
सर्वत: पातु मे नित्यं, कामाख्या कालिका स्वयम ।।४।।

ब्रह्म-रुपा-महा-विधा, सर्व-विधा-मयी स्वयम ।
शिर्षे रक्षतु मे दुर्गा, भालं श्रीभव-गेहिनी ।।५।।

त्रिपुरा भ्रु-युगे पातु, शर्वाणी पातु नासिकाम ।
चक्षुषी चण्डिका पातु, श्रीत्रे निल-सरस्वती ।।६।।

मुखं सौम्य-मुखी पातु, ग्रिवां रक्षतु पार्वती ।
जिह्वां रक्षतु मे देवी, जिह्वा-ललन-भीषणा ।।७।।

वाग्-देवी वदनं पातु वक्ष: पातु महेश्वरी ।
बाहु महा-भुजा पातु, करांगुली: सुरेश्वरी ।।८।।

पृष्‍ठत: पातु भिमास्या, कट्यां देवी दिगम्बरी ।
उदरं पातु मे नित्यं, महा-विधा महोदरी ।।९।।

उग्र-तारा महा-देवी, जंघोरु परी-रक्षतु ।
गूदं मुष्कं च मेढुं च, नाभीं च सुर-सुन्दरी ।।१०।।

पदांगुली: सदा पातु, भवानी त्रिदशेश्वरी ।
रक्तं-मांसास्थी-मज्जादिन, पातु देवी शवासना ।।११।।

महा-भयेषु घोरेषु, महा-भय-निवारीणी ।
पातु देवी महा-माया, कामाख्या-पिठ-वासिनी ।।१२।।

भस्माचल-गता दिव्य-सिंहासन-कृताश्रया ।
पातु श्रीकालिका-देवी, सर्वोत्पातेषु सर्वदा ।।१३।।

रक्षा-हिनं तु यत स्थानं, कवचेनापी वर्जितम ।
तत्-सर्व सर्वदा पातु, सर्व-रक्षण-कारीणी ।।१४।।
*#ये बाबा शिवजी का मंत्र है,,*
||  ऊं रुद्राय पशुपतये साम्ब सदाशिवाय नमः ||

शिवलिन्ग के सामने 108 बार बेल पत्र चढाते हुए जाप करें ।

अपने जीवन मे पशुवृत्तियों से उठ कर देवत्व प्राप्ति के लिये सहयोगी साधना ।
इस मंत्र में जगदम्बा सहित शिव समाहित हैं.
देखने में सरल मगर अत्यंत प्रभावशाली मंत्र है.
मित्रो नवरात्रि तक इस पोस्ट को संभाल कर रखे फिर ये पोस्ट दुबारा नही होगी,,
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश ।।
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Thursday, April 23, 2020

दीक्षा के भेद ४ चार

दीक्षा के भेद ४ चार
जैसा मित्रो हमने हमारे गुरू कृपा ओर इष्टकृपा के माध्यम से आप सभी को यहाँ गुरू दीक्षा के छः ६ भेद बता चूके है हालाकि सभी दीक्षा भेद इनमे से ही निकले है पर ये आठ ८ भेद प्रमुख है बाकी सभी प्रकार इनसे ही निकले है,
७, सातः, शाम्भवी दीक्षा ,ये सिर्फ मात्र विचार या स्पर्श से ही सब कुछ संभव हो जाता है या स्मरण मात्र से ही,
गुरोरालोकमोत्रण भाषणात् स्पर्शनादिप ध्यानम , ,, सघः संजायते ग्यानं सा दीक्षा शाम्भवी मता ,।।
मित्रो इन सभी का मतलब यही है कि आपका अगर गुरूदेव पर पुणे विश्वास है तो उनका ध्यान करने से ही आपको गति मिल सकती है साधना श्रेत्र अथवा सांसरिक सागर को पार करने मे, ये गुरूदेव पर निर्भर है की वो आपकी ओर कृपापूर्वक कब देखते है या कब बात करते है (संभाषण, वार्तालाप )से या स्पर्श ( प्रेमपूर्वक शिष्य को छुने से या मस्तक पर हाथ पिरोने से या आग्या चक्र मे अपनी ऊर्जा के संचार करने से मात्र ही ) शिष्य मे शक्तियों का संचार हो जाता है ओर अगर शिष्य गुरू भक्त हो तो छुने मात्र से ही उनके ह्रदय मे एकदम यानी तत्काल ही ग्यान उत्पन्न हो जाता है पर इसमे गुरूशिष्य के साथ आपका रिश्ता दर्शाता है कि आप कैसे है ओर इष्ट से मिलाती है यही कृपा गुरू की सारी शक्तियां शिष्यो को जागृत आवस्था मे ले आती है अगर समझदार या समझने वाला शिष्य हुआ तो वो गुरू भी सौ या हजार कदम आगे रह सकता है ओर अपना ओर अपने गुरू का नाम अमर कर सकता है, ये दीक्षा मात्र नही ये माँ  आदि शक्ति का ही एक रुप है
८,आठवी दीक्षा, वाग्दीक्षा, यानी वाणी द्वारा दी जानी वाली दीक्षा कर्णदीक्षा भी इसका का अंग है,, यानी मंत्रोद्वारा या अपनी श्रीवाणी से दीक्षित करना,,
मित्रो इसमे आदिनाथ द्वारा स्वयंम माता को शाम्भवी नाम देकर इस दीक्षा के बारे मे पुणे विस्तार से बताया गया है,, है शाम्भवी, वाणी द्वारा जो दीक्षा दी जाती है उसको वाग्दीक्षा कहाँ जाता है जैसे मंत्र स्वर्ण करना कान मे या एंकात मे गुरू द्वारा शिष्यो को मंत्रो का उपदेश प्रदान करना, इसमे मे भी तीव्रा ओर तीव्रतमा नामक दो भेद है, जिस समय षडध्वग्यानी गुरू शिष्य के जानु, नाभि, ह्रदय ओर सभी षट् स्थानो मे भुवन, तत्व, कला, वर्ण, पद, ओर मन्त्राध्व को चिन्हित कर गुरूपदिष्ट मार्ग से बेध कर उसको मंत्र प्रदान करता है तो उसी समय शिष्य सभी पापो से मुक्त होकर तथा पाशरहित होकर भूमि पर लेटता है ओर उसको दिव्यभाव प्राप्त होता है, मित्रो नादान बालक की कलंम से आज बस इतना बाकी फिर कभी ये सारी दीक्षाये शिष्यो के लिए है पर यह सब शिष्य की योग्यता पर भी निर्भर है की गुरू से क्या ले ओर क्या दे गुरू अगर निर्धन है तो गुरू के भरण पोषण की जिम्मेदारी सभी शिष्यो की रहती है चाहे गुरू मांगे या ना मांगे, क्योंकि पिता वह जो पुत्रो को खिलाये यहाँ भी शिष्यो को पुत्र ओर गुरू को पिता समझा जाता है,, ओर गुरू का पिता समझा जाता है जब तक शिष्य आध्यात्मिक मे परिपक्व नही हो जाता जब तक गुरू यानी पिता की जिम्मेदारी बनती है कि वो उसको आगे बढाये या उसका आध्यात्मिक पुण्य आगे ले जाये,, इसी प्रकार सभी दीक्षा कर्मपुर्वक प्राप्त करके, आप अपने अलग अलग आदिनाथ या आदिशक्ति, मतलब रूद्र रुप या रुद्र रूपायै की या अलग अलग महाविधाओ की उनकी अाम्नाय दीक्षा लेकर फिर, शाक्ताभिषेक दीक्षा के बाद पुर्णोभिषेक दीक्षा प्राप्त करे, उसके बाद, क्रमानुसार या गुरू कृपानुसार मेधा दीक्षा महामेधा दीक्षा, बाद मे समााज्या दीक्षा प्राप्त करे,,
बाकी कल पोस्ट करते है,, आगे क्या है देखते है 😍
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻🌹🙏🏻

Monday, April 20, 2020

दीक्षा के भेद पार्ट ३ तीन

दीक्षा के भेद पार्ट ३, तीन,
जैसा की मित्रो हमने दुसरे पार्ट मे आपको चार भेदो का वर्णन विस्तार पुर्वक समझाया था कि कैसे दीक्षा ओर उनके कितने भेद होते है हालिक यह सब हमारे गुरूजनो की देने है, हमारी जन्म देने वाली परम पुजनीये माता जी से हमे आध्यात्मिक मिला है उनकी कृपा से हमे गुरूओ की कृपा मिलती रही है इसी क्रम मे हर गुरूजनो से हमे कुछ ना कुछ मिला है,, हमारे प्रथम सद्गुरू परमपुजनीये नरेश जी शर्मा ,मेजा  (भीलवाड़ा ) ओर परम पुजनीये गुरूदेव ओघडबाबा श्री बरदा बाबा गागेड़ा (भीलवाड़ा ) ओर परम पुजनीये गुरूदेव आत्मविकासानन्द जी गिरी ,प्रयागराज, (उ,प्र) ओर परम पुजनीये गुरू योगी रामनाथ जी धर्मपंत, गुरूगद्धी, अस्तलपुर बनारस, (उ, प्र) इनके अलावा भी कई गुरूजनो मे हमे कृपा प्राप्त हुयी है मित्रो दीक्षा के भेद जो हम यहाँ बता रहे वो तो ठीक है पर इनके अलावा भी गुरूजनो की कृपा कई तरह से हो सकती है,, यही सत्य है कई ओघड अघोरी कई पीर फकीर संतो से कुछ ना कुछ मिला है पर लास्ट मे यही ग्यान मिला है की गुरू ओर इष्ट कृपा के आगे सभी साधना सिद्धि सब बेकार है नादान बालक की कलम से आज बस इतना बाकी फिर कभी तो मित्रो गुरू संयोग ओर कर्मो से मिलते है इसके अलावा ग्यान ओर ध्यान कभी भी किसी से भी लिया जा सकता है पर गुरू तत्व तो फिर भी जन्मो जन्मो से वो ही चलता रहता है, तो मित्रो आगे है दीक्षा के भेद,,  अब आगे भेद नं पांच,,
५,,, वर्ण दीक्षा, यानी शरीर के देवतत्व को जागृत करना,,
वर्णदीक्षा त्रिधा प्रोक्ता द्विचत्वारिंशदक्षरैः । पंच्चशद्ववर्णकैर्देवि! द्विषष्टिलिपभिस्तु वै, ।।

यानि शिष्य के शरीर मे मातकारूपिणी भगवती के ४२ वर्णो से या ५० अक्षरों से या ६२ भूत लिपियाें से न्यास द्वारा उसमे देवता का भाव यानी देवत्व को पैदा या जागृत किया जाता है यानी मातृकान्यास ओर इष्टमंत्रन्यास द्वारा शिष्यशरीर मे देवत्व का अवतरण कराया जाता है,, जिसने शिष्य को काफी कुछ त्याग करना पड़ता है क्योकि ये समय वो है जिसमे सबसे ज्यादा सयंम की जरूरत पडती है कई चीजो का त्याग करना पडता है माया के लोभ को त्यागना पड़ता है यही देवत्व जागृत दीक्षा यानी वर्ण दीक्षा है,
६,, कला दीक्षा, यानी पंचभुतो का शरीर मे सोमवेश अथवा जागृति संस्कार या कलाशक्ति का संस्कार,,
कला दीक्षा च विग्रेया कर्तव्या विधिवत् प्रिये, । निवृत्तिर्जानुपर्यन्त तलादारभ्य संस्थिता, ।।
इयं प्रोक्ता कुलेशनि, दिव्यभावप्रदायिनी,,
मित्रो इसमे कलाओ के न्यायपूर्वक यह दीक्षा दी जाती है इसलिए कलान्यास हम यहाँ उजागर कर रहे है जो इस प्रकार रहेगी नादान बालक की कलम से गुरूजनो की ओर इष्टकृपा से कलान्यास यहाँ प्रकट कर रहे है बाबा काशीविश्वनाथ, राधा माधव बाबा दण्डप्रणि ,मणिकणिका बाबा त्रयंबकराज कालभैरव संकटमोचन सर्वदा हमारे सतत रहे,,
कलान्यास,
पादतलात् जानुपर्यन्तं ॐ निवृत्त्यै नमः ।जान्वोर्नाभिपर्यन्तं, ॐ प्रतिष्ठायै नमः ।नाभेः कण्ठपर्यन्त, ॐ विधायै नमः। कण्ठाल्ल्लाटान्तं, ॐ शान्त्यै नमः, । ललाटाद् ब्रह्मरन्ध्रपर्यन्त, ॐ शान्तयतीतायै नमः, ब्रह्मरन्ध्रात् आललांट ,ॐ शान्त्यतीतायै नमः ।, ललाटात् कण्ठपर्यन्त, ॐ शान्त्यै नमः। कण्ठात् नाभिपर्यन्तं,  ॐ विधायै नमः । नाभेर्जानुपर्यन्त, ॐ प्रतिष्ठायै नमः । जान्वोः पादपर्यन्तं ,ॐ निवृत्त्यै नमः, ।।
मित्रो इस न्यास मे प्रत्येक नाम के पीछे,, कलायै नमः  ,,,लगेगा यानि निवृत्तिकलायै नमः या निवृत्त्यै कलायै नमः लगेगा ऐसे ही कलादीक्षा होगी, यह कला दीक्षा साधक को दिव्यभाव प्रदान करती है इससे पांच महाभूतो यानि कलाशक्ति को बेध द्वारा शिष्य के शरीर मे प्रवेश कराया जाता है, यह कला पांच ५ ओर अट्ठाइस २८ भेदो द्वारा दो प्रकार की मानी जाती है, मित्रो यह दीक्षा महासिद्धविधा मे एक तरह से मील का पत्थर साबित होती है जो जानता है वो कर सकता है पर इन सभी साधनाओ मे कुछ गुप्त संचार है जो किसी कारणो से हम यहाँ उजागर नही कर सकते धन्यवाद आप सभी का,, ,नादान बालक की कलम से आज बस इतना बाकी फिर कभी मित्रो अगला भाग बहुत जल्द प्रकाशित होगा,,
आगे है शाम्भवी दीक्षा, वाग्दीक्षा, शक्ताभिषेक, पूणोभेषिक, मेधा, महामेधा सामाज्या दीक्षा ओर मंत्र शोधन मंत्र जागृत दीक्षा संस्कार  मित्रो ये पार्ट काफी लम्बा होने वाला है तो आप सभी का सहयोग बना रहे ओर कोई कोपी करता है ओर छेडछाड करता है तो उसका सम्पुणे उतरदायी का जनाबदेही उनकी स्वयंम की होगी,, आगे जैसी माँ बाबा की इच्छा ओर कृपा,, 🙏🏻🌹🌹
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹🙏🏻🌹

Saturday, April 18, 2020

दीक्षा के भेद पार्ट २ टू

दीक्षा के भेद ,
मित्रो यह सब दीक्षा प्रकार का वर्णन बाबा भोलेनाथ ओर  महाविधा देवी माँ महाकाली के बीच जो वार्तालाप है वो ही यहाँ हम पस्तुत कर रहे जो देवी महासिद्धविधा माँ राजराजेश्वरी त्रिपुरासुंदरी ललितेम्बीका के परम शिष्य हमारे परम पुजनीये श्री श्री श्री 1008 आत्माविकासानन्द जी गिरी द्वारा कहाँ गया वर्णन हम यहाँ पस्तुत कर रहे है जिनकी जीवित समाधि हमारे आसीन्द मे है तपोस्थली प्रतापगढ गुप्त गंगा ओर बांसवाड़ा, देवी महासिद्धविधा त्रिपुरासुंदरी का मंदिर, इसके अलावा देवी माँ कालिका मंदिर हरिद्वार, प्रयागराज, हिमाचल उतराखंड आदि रहा है उन तक जाना या पहुच पाना हमारे बस मे नही है बस हम तो उनका दिया हुआ ग्यान आगे बढा सकते है नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी,, मित्रो आप यहाँ से कांपी कर सकते हो पर शब्दो से छेड़छाड़ करना मतलब आपको पाप का भागी बना सकती है क्योंकि यह पुरा ब्लाक हमारे पंचगुरूओ को समर्पित है,, ओर माँ बाबा की सेवा मे है आगे जैसी आपकी इच्छा ओर माँ बाबा की कृपा
मित्रो दीक्षा आठ प्रकार की कही गयी है ये सब हम हमारे गुरूओ को समर्पित करते है यहाँ भी लेखनी है वो नादान बालक अपने माँ बाबा के चरणो मे अर्पित करता है, किसी दिन समय मिला या कोई योग्य हुआ तो माँ बाबा का भेद भी उन पर उजागर किया जायेगा ये जो आठ प्रकार की दीक्षा के जो भेद है हमारे गुरूजनो के श्री चरणो मे हमारी ओर श्रद्धा के फुलो की तरह पुणेयता समर्पित है,
पहली दीक्षा स्पर्श दीक्षा, दुसरी दृग् दीक्षा, तीसरी, वेधदीक्षा, चौथी ,क्रिया दीक्षा, पांचवी, वर्ण दीक्षा, छठी, कला दीक्षा, सातंवी, शाम्भवी दीक्षा, आठंवी वाग् दीक्षा, ।सम्पूर्ण जानकारी सविस्तार से कहे नादान सुने आप सभी,,
१, स्पर्श दीक्षा,
यथा पक्षी स्वपक्षाभ्यां शिशृन् उध्दरते शनैः ,। स्पर्शदीक्षापदेशच्श तादृशः कथितः प्रियै, ।।
यानि ,है प्रिये, जैसे मादा पक्षी अपने पंखो से अपने बच्चो की रक्षा करती है ओर उनको बड़ा करती है इसी प्रकार,, गुरूदेव,,, अपना वरदहस्त शिष्य के मस्तक पर रखकर उसकी रक्षा करते ओर उसके ग्यान की वृद्धि करते है यह स्पर्श दीक्षा कही जाती है,,, इसलिए कहाँ जाता है कि उतने ही बच्चो को अपनाओ या जन्म देओ जहाँ तक तूम पाल पोस सको वरना अपने साथ शिष्यो का भी तूम बेडा गर्क कर सकते हो, आध्यात्मिक की पहली सीढी जब तक आध्यात्मिक उर्जा शिष्य को नही मिलती तब तक गुरू की अपनी ऊर्जा शिष्य को देनी पडती है यानी जब तक बेटा कमाने लायक ना हो तब तक बाप को ही बेटे को खिलाना पडता है, ओर बेटा कमा रहो हो तो बाप को खिलाये यह भी सत्य है,,
२,,,, दृग् दीक्षा,,, (दृष्टिशक्तिपात )
स्वापत्यानि यथा मत्स्यो वाक्षणेनैव पोषयेत्, । दृग्भयां दीक्षोपदेशच्श्र तादृशः परमेश्वरी, ।
यानि, है परमेश्वरी, जिस प्रकार मछली अपने बच्चो ( )से दुर रहकर भी अपने बच्चो का लालन पोषण ओर संरक्षण करती है ओर अपनी दृष्टि बच्चो पर बनाये रखती है उसी तरह सद्गुरू भी अपने शिष्य यानी बच्चो को अपने पास बैठकर अपनी दिव्य दिृष्ट से (यानी शिष्य की आंखो मे आंखे मिलाकर )शिष्य मे ग्यान का संचार कर देते है यानि शिष्य की ओर देखने से ओर आग्या चक्र पर ध्यान केन्द्रित करने से ही शिष्य मे शक्तिपात हो जाता है,,यह एक पिता पुत्र का रिश्ते जैसा होता है या जैसी गुरू परम्पराओं मे या गुरू क्रिया होती है वो सारी शक्तियां स्वयंम शिष्यो के साथ हो जाती है पर यहाँ शिष्यो को अपना अभिमान घमण्ड का त्याग करना पडता है वरना यही शक्तियों शिष्यो के पतन का कारण बन सकती है इसलिए ध्यान रहे शक्तिपात के बाद गुरू की सारी शक्तियां आपके साथ बनी रहती है वो आपका स्वभाव को ज्यादा उग्र बना देती है यहाँ संभलना जरूरी है,,
३,,, वेध दीक्षा,, यानि स्मरण, याद, ध्यानम, समर्पण दीक्षा,,
यथा कर्मः स्वतनयान् ध्यानमात्रेण पोषयेत्, । वेधदीक्षाेपदेशच्श्र मानुषस्य तथा विधीः ।।
यानि,, जैसे कछुवे के बच्चो की माता अपने बच्चो का केवल ध्यान रखने से ही लालन पोषण करती है ,यानि सक्ष्म गुरूदेव मात्र अपने ध्यान करने मात्र से ही शिष्य मे शक्तिपात कर सकते है यानी शक्ति का संचार कर सकते मतलब शिष्य का कल्याण कर देते है,, पर यहाँ शिष्यो का अपने गुरू पर भी विश्वास होना जरूरी है अगर विश्वास है तो सब कुछ है, यानि उतने ही बच्चे पालने चाहिए जिनका तूम भरण पोषण कर सको ओर शिष्य अपने गुरू का ध्यान रख सके यही भेद शिष्यो को समर्पित ओर समर्पण की भावना को जागृत कर सकता है,,
४,,, क्रिया दीक्षा,,
क्रियादीक्षाअ्ष्टधा प्रोक्ता कुलमण्डपपूर्विका, । कलशादिसमायुक्ता कर्तव्या गुरूणा वहिः।।
मित्रो क्रिया दीक्षा भी आठ तरह की बताई गयी है संक्षिप्त रुप मे जाने तो पहले विधिपूर्वक षडध्वशोधन किया जाता है बाद मे गुरूदेव अपने शरीर से यानि आंतरिक उर्जा यानि चितशक्ति को क्रमपुर्वक निकालकर अपने शिष्य के भीतर हृदय मे प्रवेश कराते है या उसके मस्तक के ऊपर आग्या चक्र को उन्नत करते हुये अपने हाथो के अंगुठे से दबाव डालकर अपनी उर्जा ओर गुरूओ ओर इष्ट के प्रति समर्पित होकर अपनी उर्जा का प्रवेश शिष्य के अंदर किया जाता है पर सभी मे उग्रता आना स्वाभाविक है इसलिए यहाँ शिष्य को अपने मन ओर चित को शांत रखना जरूरी है वरना वो सारी आत्मसात की हुयी शक्तियों बुरा परिणाम भी दे सकती है,
बाकी कल वर्ण, कला, शाम्भवी वाग्दीक्षा के प्रकार अगली पोस्ट मे कही जायेगी नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी,,
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻🌹🌹🌹🙏🏻

दीक्षा के भेद पार्ट १ वन, ़

आजकल दीक्षा के चार प्रकार चल रहे है जबकि दीक्षा आठ प्रकार होती है उनमे से ही कई रुप दीक्षा के निकले हुये है,, आज आज हम यहाँ बताने जा रहे है जो हमारे ब्लाँक के माध्यम से उसका लिंक दिया जायेगा उसमे दीक्षा के आठ प्रकार ओर उनमे क्या भेद है इन आठ दीक्षा मे भी रई भेद होते है जैसे सिद्ध विधा साधक मे अलग अलग महाविधाओ की दीक्षा लेकर शाक्ताभिषेक दीक्षा फिर पुणोभिषेक दीक्षा, फिर मेधा, महामेधा, सामाज्या, ओर भी कई भेद की दीक्षाये होती है पर प्रमुख दीक्षा के भेद यही बाकी इनकी शाखाये है,, वो पुणे रुप से ब्लाक के लिंक बताये जायेगे हाल की तीन या चार साल पहले भी हमने दीक्षा भेद पोस्ट किये थे,, बाकी गुरूकृपा तो नजर भर से ही मिल जाती है,, यही सत्य है
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🙏🏻🌹🙏🏻

Thursday, March 19, 2020

नवरात्रि मे कब से है ओर क्या करे नवरात्रि मे

मित्रो 25 मार्च से यानी चैत्र नवरात्रि के दिन से हिंदी का नव वर्ष शुरू होने जा रहा है हिंदू यानि सत्य सनातन धर्म नववर्ष के पहले दिन को नव संवत्सर कहा जाता है ,जिसको विक्रम संवत भी कहकर बुलाते हैं, ये विक्रम संवत 2077 होगा, इसी दिन से नया पंचांग तैयार होता है ,आज भी हम अपने व्रत एवं त्यौहार हिंदू कैलेंडर और हिंदू तिथियों के आधार पर ही मनाते हैं ओर घर में शादी ब्याह से लेकर सभी शुभ कार्यों के लिए हिंदू कैलेंडर या पंचांग देखा जाता है, माना जाता है कि इसी दिन सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्ना ने सृष्टि की रचना शुरू की थी ,इसलिए इसे हिंदुओं का नया साल माना गया है ,ओर इस दिन से हमारे नववर्ष के शुभारंभ के साथ ही त्योहार ओर पर्वो का समय शुरू हो जाता है, हम यहाँ बात कर रहे नवरात्रि ओर नववर्ष की तो आप सभी को अग्रिम सत्य सनातन हिन्दू नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएं ओर चैत्र नवरात्रि की भी बहुत बहुत शुभकामनाएं, मित्रो बहुत कम लोग जानते है कि नवदुर्गा मे नो ओषधियो के भी रुप होते है ओर नवरात्रि ,नववर्ष, गुडी पडवा एक साथ शुरू होगे,
25 मार्च 2020 से तीस अप्रैल तक के त्योहार ओर व्रत औषधि वाले दिन ओर रुप,,
25 मार्च ,बुधवार ,चैत्र नवरात्रि प्रारंभ, गुडी पडवा,प्रथम दिन देवी माँ शैलपुत्री यानी हरड़,
26,मार्च ,गुरुवार द्वितीय दिन देवी माँ बह्मचारिणी यानी ब्राह्मी,
27 ,मार्च ,शुक्रवार: गौरी पूजा, गणगौर ओर तृतीय दिन देवी माँ चंद्रघंटा यानी चन्दुसूर,
28 ,मार्च, शनिवार चतुर्थ देवी माँ कृष्माण्डा यानी पेठा,
29, मार्च ,रविवार पंचम देवी माँ स्कंदमाता यानी अलसी,
30, मार्च, सोमवार ,देवी माँ यमुना छठ पुजा ओर षष्ठम देवी माँ कात्यानी यानी मोडया,
31 ,मार्च, मंगलवार सप्तम देवी माँ कालरात्रि यानी नागदौन,
1 ,अप्रैल, बुधवार अष्टम देवी माँ महागौरी यानी तुलसी,
2 अप्रैल गुरुवार , नवम देवी माँ सिद्धिदात्री यानी शतावरी ओर राम नवमी, स्वामी नारायण जयंती ,
3 अप्रैल, नवरात्रि पुणेिहुति ओर बाबा भैरव पुजा ,
4,अप्रैल ,शनिवार ,कामदा एकादशी
8,अप्रैल ,बुधवार बाबा हनुमान अवतरण दिवस या जन्मदिवस जन्मजयंती , चैत्र पूर्णिमा
13 अप्रैल सोमवार मेष संक्रांति, सोलर न्यू ईयर
18 अप्रैल, शनिवार, वरुथिनी एकादशी
25 अप्रैल, शनिवार ,प्रभु परशुराम जी अवतरण दिवस
26 अप्रैल ,रविवार: अक्षय तृतीया
30 अप्रैल ,गुरुवार, देवी माँ गंगा सप्तमी,
मित्रो नवरात्रि मे नौ दिन तक हवन ओर जप आदि करे आपकी शुद्धि के साथ प्रकृति मे भी शुद्धि रहेगी इससे हवा वातावरण शुद्ध होगा ओर बीमारियां से छुटकारा भी मिलेगा, माँ का रक्तपुष्पो से श्रृंगार करे फिर उनको हवन मे भी काम मे ले ताकि आपको कई समस्याओं से छुटकारा मिले ,पुजा जो चाहे करो पर पुरा मनोभाव ओर मनोयोग से करे तो सफलता अवश्य मिलेगी यही सत्य है,,
आप सभी को अग्रिम हिन्दू नववर्ष ओर नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनाएं ओर हार्दिक बधाई, माता रानी आप सभी की मनोकामनापूर्ण करे यही माँ बाबा से हमारी प्रार्थना है,, 🌹🙏🏻
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश

Monday, March 9, 2020

होली पर ये कार्य जरूर करे

संत का आना और बसंत का आना एक सा होता है क्यों कि
जब बसंत आता है तो. पकृति सुधर जाती है .और जब संत आता है तो. संस्कृति सुधर जाती है  एक खुबसूरत दिल हजार खुबसूरत
चहेरों से ज्यादा बेहतर होता है,
इसलिए जिन्दगी में हंमेशा ऐसे लोग चुनो,
जिनका दिल चहेरे से ज्यादा खुबसूरत हो !
हमारे दिल की बस यही दुआ है
हम सब के जीवन में
ऐसा ही कुछ घट जाय
हमारे पास आने की सोच के ही
गमों की भी सटक जाय.
आप को दिल से होली की बधाई व शुभकामनाऐं...
 होली पर ये कार्य जरूर करे
एक श्रीफल अर्थात नारियल ओर नींबू एक कागज की पूडिया के अंदर राई बांध लेवे जिसको काली सरसों भी कहते हैं कुछ नमक सादा या काला जो उपलब्ध होे उन सभी को एक साथ बांधे ओर पूरे मकान के अंदर सात बार घुमाए जो बीमार रहते हैं विविध प्रकार के जादू टोने के चक्कर में आए हुए हो या कोई प्रेत बाधा किसी प्रकार की हवा के चक्कर में आए हुए हैं उन सब के लिए सात सात बार सर से पैर तक उतार लेना चाहिए या घुमा लेना चाहिए पुरे मकान के अंदर भी घुमाएं अन्दर से बाहर की ओर घुमाया फिर रात्रि को जब होलिकादहन होता है उसके अंदर होली के अंदर प्रवाहित कर दें जिस तरह होलिका दहन होगी आपके कष्टो का भी निवारण जरूर होगा... या कार्य आप अपने ओफिस दुकान मे भी कर सकते है ओर अपने मिलने वाले को कही भी किसी को भी बता सकते है क्योंकि होली फिर बारह महीने बाद आयेगी किसी का भला हो जाये

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश, 🌹

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Saturday, March 7, 2020

होली पर करें अपनी राशिनुसार मंत्र विधान ओर टोटके भाग दो



दीपावली की तरह होली भी बहुत महत्वपूर्ण है इस मौके पर भी तंत्र-मंत्र  ,वैदिक सिद्धि और टोने-टोटके की सिद्धियां की जातीं है जो कि आम व्यक्ति नहीं जानते हैं इस अवसर पर की जाने वाली साधनाएं बहुत कम लोग ही जानते हैं। अधिकांश लोग जब होली के हुडदंग में डूबे होते हैं और चारो तरफ मस्ती का आलम होता है, तब गुमनाम और सुनसान जगहों पर तंत्र-मंत्र से टोटकों की होली खेली जा रही होती है। इस होली में लाल, हरे, नीले, पीले रंग नहीं बल्कि देशी पान के पत्ते, काले तिल, सिंदूर, कपूर, नारियल, नीबू, लाल मिर्च और भी बहुत सारी पूजा सामग्री होती हैं। तांत्रिकों की दुनिया में  होली पर भी टोने-टोटके की परंपरा चल पडी है। होलिका दहन के अवसर के समय को तांत्रिक सिद्धि का उचित समय मानते हैं।
तंत्र के आदि गुरु भगवान् शिव माने जाते है और वे वास्तव में देवों के देव महादेव है। तंत्र शास्त्र का आधार यही है की व्यक्ति का ब्रह्म से साक्षात्कार हो जाये और उसका कुण्डलिनी जागरण हो तथा तृतीय नेत्र (Third Eye) एवं सहस्रार जागृत हो।

भगवान् शिव ने प्रथम बार अपना तीसरा नेत्र फाल्गुन पूर्णिमा होली के दिन ही खोला था और कामदेव को भस्म किया था। इसलिए यह दिवस तृतीय नेत्र जागरण दिवस है और तांत्रिक इस दिन विशेष साधना संपन्न करते है जिससे उन्हें भगवान् शिव के तीसरे नेत्र से निकली हुई ज्वाला का आनंद मिल सके और वे उस अग्नि ऊर्जा को ग्रहण कर अपने भीतर छाये हुए राग, द्वेष, काम, क्रोध, मोह-माया के बीज को पूर्ण रूप से समाप्त कर सकें।

होली का पर्व पूर्णिमा के दिन आता है और इस रात्रि से ही जिस काम महोस्तव का प्रारम्भ होता है उसका भी पूरे संसार में विशेष महत्त्व है क्योंकि काम शिव के तृतीय नेत्र से भस्म होकर पुरे संसार में अदृश्य रूप में व्याप्त हो गया। इस कारण उसे अपने भीतर स्थापित कर देने की क्रिया साधना इसी दिन से प्रारम्भ की जाती है। सौन्दर्य, आकर्षण, वशीकरण, सम्मोहन, उच्चाटन आदि से संबन्धित विशेष साधनाएं इसी दिन संपन्न की जाती है। शत्रु बाधा निवारण के लिए, शत्रु को पूर्ण रूप से भस्म कर उसे राख बना देना अर्थात अपने जीवन की बाधाओं को पूर्ण रूप से नष्ट कर देने की तीव्र साधनाएं महाकाली, चामुण्डा, भैरवी, बगलामुखी धूमावती, प्रत्यंगिरा इत्यादि साधनाएं भी प्रारम्भ की जा सकती हैं तथा इन साधनाओं में विशेष सफलता शीघ्र प्राप्त होती है।
काम जीवन का शत्रु नहीं है क्योंकि संसार में जन्म लिया है तो मोह-माया, इच्छा, आकांक्षा यह सभी स्थितियां सदैव विद्यमान रहेंगी ही और इन सब का स्वरुप काम ही हैं। लेकिन यह काम इतना ही जाग्रत रहना चाहिए कि मनुष्य के भीतर स्थापित शिव, अपने सहस्रार को जाग्रत कर अपनी बुद्धि से इन्हें भस्म करने की क्षमता रखता हो।
और फिर होली का पर्व ... दो महापर्वों के ठीक मध्य घटित होने वाला पर्व! होली के पंद्रह दिन पूर्व ही संपन्न होता है, महाशिवरात्रि का पर्व और पंद्रह दिन बाद चैत्र नवरात्री का। शिव और शक्ति के ठीक मध्य का पर्व और एक प्रकार से कहा जाएं तो शिवत्व के शक्ति से संपर्क के अवसर पर ही यह पर्व आता है। जहां शिव और शक्ति का मिलन है वहीं ऊर्जा की लहरियां का विस्फोट है और तंत्र का प्रादुर्भाव है, क्योंकि तंत्र की उत्पत्ति ही शिव और शक्ति के मिलन से हुई। यह विशेषता तो किसी भी अन्य पर्व में सम्भव ही नहीं है और इसी से होली का पर्व का श्रेष्ठ पर्व, साधना का सिद्ध मुहूर्त, तांत्रिकों के सौभाग्य की घड़ी कहा गया है।
प्रकृति मैं हो रहे कम्पनों का अनुभव सामान्य रूप से न किया जा लेकिन महाशिवरात्रि के बाद और चैत्र नवरात्रि के पहले - क्या वर्ष के सबसे अधिक मादक और स्वप्निल दिन नहीं होतें? ... क्या इन्हीं दिनों में ऐसा नहीं लगता है कि दिन एक गुनगुनाहट का स्पर्श देकर चुपके से चला गया है और सारी की सारी रात आखों ही आखों में बिता दें ... क्योंकि यह प्रकृति का रंग है, प्रकृति की मादकता, उसके द्वारा छिड़की गई यौवन की गुलाल है और रातरानी के खिले फूलों का नाशिलापन है। पुरे साल भर में यौवन और अठखेलियां के ऐसे मदमाते दिन और ऐसी अंगडाइयों से भरी रातें फिर कभी होती ही नहीं है और हो भी कैसे सकती हैं ।

तंत्र भी जीवन की एक मस्ती ही है, जिससे सुरूर से आंखों में गुलाबी डोरें उतर आते हैं, क्योंकि तंत्र का जानने वाला ही सही अर्थ में जीवन जीने की कला जानता है। वह उन रहस्यों को जानता हैं जिनसे जीवन की बागडोर उसके ही हाथ में रहती है और उसका जीवन घटनाओं या संयोगों पर आधारित न होकर उसके ही वश में होता है, उसके द्वारा ही गतिशील होता है। तंत्र का साधक ही अपने भीतर उफनती शक्ति की मादकता का सही मेल होली के मुहूर्त से बैठा सकता है और उन साधनाओं को संपन्न कर सकता है, जो न केवल उसके जीवन को संवार दे बल्कि इससे भी आगे बढ़कर उस उंचे और उंचे उठाने में सहायक हो।

इस साल यह होली पर्व मार्च में संपन्न हो रहा है। जो भी अपने जीवन को और अपने जीवन से भी आगे बढ़कर समाज व् देश को संवारने की इच्छा रखते है, लाखों-लाख लोगों का हित करने, उन्हें प्रभावित करने की शैली अपनाना चाहते है, उनके लिए तो यही एक सही अवसर है। इस दिन कोई भी साधना संपन्न की जा सकती है। तान्त्रोक्त साधनाएं ही नहीं दस महाविद्या साधनाएं, अप्सरा या यक्षिणी साधना या फिर वीर-वेताल, भैरवी जैसी उग्र साधनाएं भी संपन्न की जाएं तो सफलता एक प्रकार से सामने हाथ बाँध खड़ी हो जाती है। जिन साधनाओं में पुरे वर्ष भर सफलता न मिल पाई हो, उन्हें भी एक एक बार फिर इसी अवसर पर दोहरा लेना ही चाहिए।

इस प्रकार होली लौकिक व्यवहार में एक त्यौहार तो है लेकिन साधना की दृष्टी से यह विशेष तंत्रोक्त-मान्त्रोक्त पर्व है जिसकी किसी भी दृष्टी से उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। साधक को इस दिन किसी न किसी साधना का संकल्प अवश्य ही लेना चाहिए। और यदि सम्भव हो होली से प्रारम्भ कर नवरात्री तक साधना को पूर्ण कर लेना चाहिए
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार होलिकाष्टक का काल होली से पहले अष्टमी तिथि से प्रारंभ होता है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से होली समस्त काम्य अनुष्ठानो हेतु श्रेष्ठ है। अष्टमी तिथि को चंद्र, नवमी तिथि को सूर्य, दशमी तिथि को शनि, एकादशी तिथि को शुक्र, द्वादशी तिथि को गुरू, त्रयोदशी तिथि को बुध, चतुर्दशी को मंगल व पूर्णीमा तिथि को राहु उग्र हो जाते है जो व्यक्ति के शारिरीक व मानसिक क्षमता को प्रभावित करते हैं साथ ही निर्णय व कार्य क्षमता को कमजोर करते हैं।
होलिका दहन के पश्चात रात्रि से सुबह तक  तांत्रिक विभिन्न प्रकार के तंत्र और मंत्रों को सिद्ध करके अपना और जातकों का कल्याण करते हैं। होली के दिन तांत्रिक तंत्र-मंत्र को सिद्ध करने के लिए पूरे दिन पूजा, पाठ, हवन आदि करते हैं। पीडितों की मांग पर टोटके आदि किए जाते हैं। तांत्रिक प्रक्रिया में दीपावली की तरह पशु-पक्षियों अथवा उनके अंगों का उपयोग नहीं किया जाता, बल्कि वनस्पति और अन्य सामग्री से उतारा आदि किए जाते हैं। होली और श्मशान की राख होली पूर्णिमा की रात को अनिष्टकारी कार्यो के लिए उपयुक्त माना जाता है।तंत्र-मंत्र की दुनिया से जुडे लोग कहते हैं कि समाज में आज भी ईष्र्यालु लोगों की कमी नहीं है। व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा वाले कुछ लोग एक-दूसरे के पतन के लिए टोने-टोटके करवाते हैं। इसमें होली और श्मशान की राख का खास तौर पर उपयोग किया जाता है। दिशाएं बताती हैं, इसी क्रम में दशा मान्यता है कि होलिका दहन के समय उसकी उठती हुई लौ से कई संकेत मिलते हैं।
पूरब की ओर लौ उठना कल्याणकारी होता है, दक्षिण की ओर पशु पी़डा, पश्चिम की ओर सामान्य और उत्तर की ओर लौ उठने से बारिश होने की संभावना होती है ।
आप होली पर अपनी राशि अनुसार भी मंत्र जप कर सकते है,,

मेष राशि के लिए

ऊं ह्रीं श्रीं लक्ष्मीनारायण नम:। इस मंत्र का जप होलिका दहन के समय करने से मां की विशेष कृपा मिलेगी। साथ में होलिका में दुर्वा विश्ेाष रुप से चढ़ाएं। इस मंत्र से धन की सभी परेशानी दूर होगी।

वृषभ राशि के लिए


इस राशि वालों को ऊं गौपालाये उत्तर ध्वजाए:, इस मंत्र का जप करना चाहिए। इस मंत्र के जप से पे्रम की बाधा तो दूर होगी, साथ ही धन का मार्ग भी बनेगा।



मिथुन राशि के लिए


इस राशि वाले ऊं क्लीं कृष्णाये नम:, मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से किस्मत के बंद दरवाजे खुलेंगे। जिस दिशा में जाएंगे, वहां से धन मिलेगा।

कर्क राशि वालों के लिए

ये राशि वाले ऊं हिरण्यगर्भाये अव्यक्त रूपिणे नम:, मंत्र का जप करे। ऐसा करने से संतान सुख की प्राप्ति होगी। इसके अलावा धन की समस्या का समाधान होगा।

सिंह राशि वालों के लिए


इस राशि वाले ऊं क्लीं ब्रह्मणे जगदाधाराये नम:, मंत्र का जाप करें ऐसा करने से स्वास्थ तो बेहतर रहता ही है, इसके अलावा धन की समस्या हल होगी।

कन्या राशि वालों के लिए


इस राशि के व्यक्ति होली की रात को ऊं नमो प्रीं पीताम्बरायै नम:, मंत्र का जाप करने से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है। साथ में हालिका में पीले रंग की मिठाई चढ़ाए तो लक्ष्मी वर्षभर प्रसन्न रहेगी।

तुला राशि वालों के लिए


इस राशि वालों को ऊँ तत्व निरंजनाय तारक रामाये नम:, का जाप करने से जीवन की हर प्रकार की समस्या से समाधन मिलता है। होलिका दहन में सफेद फूल जरूर चढ़ाएं, इससे लक्ष्मी विशेष प्रसन्न होगी।

वृश्चिक राशि वालों के लिए


इस राशि वाले अगर ऊँ नारायणाय सुरसिंहाये नम:, मंत्र का जप करे तो ये मान लिजिए की लक्ष्मी आपके दरवाजे पर सफलता व धन लेकर खड़ी रहेगी।

धनु राशि वालो के लिए

इस राशि वाले ऊँ श्रीं देवकीकृष्णाय ऊर्ध्वषंताये नम:, मंत्र का जप करे। होलिका दहन के समय इस मंत्र को जप करने से हर बाधा का समाधान होगा।

मकर राशि वालों के लिए

इस राशि वालों को ऊँ श्रीं वत्सलाये नम: मंत्र से होलिका की पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही नीले रंग के फूल चढ़ाने से लक्ष्मी प्रसन्न होगी।

कुंभ राशि वालों के लिए


इस राशि वालों को श्रीं उपेन्द्रायै अच्युताय नम: मंत्र का जप करने के साथ पीेले रंग के फूल होलिका में चढ़ाने चाहिए। इससे धन का प्रचुर लाभ होगा।

मीन राशि वालों के लिए


इस राशि वालों को ऊं क्लीं उद्धृाताय उद्धारिणे नम: मंत्र का जप करते हुए सरसों होलिका में चढ़ानी चाहिए। इससे बाहरी दुश्मन समाप्त होंगे। इसके अलावा लक्ष्मी की विशेष कृपा होगी।
तांत्रिक मंत्र सिद्धि के लिए होलिका दहन से पूर्व अर्थात भद्रा काल को सर्वाधिक उपयुक्त मानते हैं। यद्यपि पूर्णिमा को प्रात: से मध्य रात्रि तक तात्रिक तंत्र-मंत्र सिद्ध करने का अनुष्ठान करते हैं। किंतु अंतिम तांत्रिक कृत्य रात्रि 12 बजे ही किया जाता है। मंत्र सिद्ध कर तांत्रिक अपना और जातकों का कल्याण करते हैं।
फाल्गुन पूर्णिमा की रात्रि तंत्र साधना के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है। तंत्र-मंत्र को सिद्ध करने के लिए पूरे दिन पूजा, पाठ, हवन आदि करते हैं। पीड़ितों की माग पर टोटके भी किए जाते हैं।

सावधानी

होलिका दहन वाले दिन टोने-टोटके के लिए सफेद खाद्य पदार्थों का
उपयोग किया जाता है। इसलिए
*इस दिन सफेद खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिये।
*उतार और टोटके का प्रयोग सिर पर जल्दी होता है,
इसलिए सिर को पगडी रूमाल आदि से ढके रहें।
*टोने-टोटके में व्यक्ति के कपड़ों का प्रयोग किया जाता है, इसलिए
अपने कपड़ों का ध्यान रखें।
*होली पर पूरे दिन अपनी जेब में काले
कपड़े में बांधकर काले तिल रखें। रात को जलती
होली में उन्हें डाल दें। यदि पहले से ही
कोई टोटका होगा तो वह भी खत्म हो जाएगा।

होली के दिन करें ये ख़ास उपाय

स्वास्थय लाभ के लिए

अगर परिवार में कोई लंबे समय से बीमार हो
होली की रात में सफेद कपड़े में 11
गोमती चक्र, नागकेसर के 21 जोड़े तथा 11 धनकारक
कौड़ियां बांधकर कपड़े पर हरसिंगार तथा चन्दन का इत्र लगाकर
रोगी पर से सात बार उतारकर किसी शिव
मन्दिर में अर्पित करें। व्यक्ति स्वस्थ होने लगेगा। यदि
बीमारी गंभीर हो, तो यह
शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से आरंभ कर लगातार 7 सोमवार
तक किया जा सकता है।

आर्थिक समस्या के समाधान के लिए :

होली की रात में चंद्रोदय होने के बाद
अपने घर की छत पर या खुली जगह
जहां से चांद नजर आए पर खड़े हो जाएं। फिर चंद्रमा का स्मरण
करते हुए चांदी की प्लेट में सूखे छुहारे
तथा कुछ मखाने रखकर शुद्ध घी के
दीपक के साथ धूप एवं अगरबत्ती अर्पित
करें। अब दूध से अर्घ्य प्रदान करें। अर्घ्य के बाद कोई सफेद
प्रसाद तथा केसर मिश्रित साबूदाने की खीर
अर्पित करें। चंद्रमा से आर्थिक संकट दूर कर समृद्धि प्रदान
करने का निवेदन करें। बाद में प्रसाद और मखानों को बच्चों में बांट
दें।
फिर लगातार आने वाली प्रत्येक पूर्णिमा की
रात चंद्रमा को दूध का अर्घ्य अवश्य दें। कुछ ही दिनों
में आप महसूस करेंगे कि आर्थिक संकट दूर होकर समृद्धि निरंतर
बढ़ रही है।;

दुर्घटना से बचाव के लिए :

अगर आप अक्सर दुर्घटनाग्रस्त
होते रहते हैं तो होलिका दहन से पहले पांच काली
गोप/गुंजा/धागा/डोरा लेकर होली की पांच
परिक्रमा लगाकर अंत में होलिका की ओर
पीठ करके पांचों गुंजाओं को सिर के ऊपर से पांच बार
उतारकर सिर के ऊपर से होली में फेंक दें।

• होलिका दहन तथा उसके दर्शन से शनि-राहु-केतु के दोषों से शांति
मिलती है।

• होली की भस्म का टीका
लगाने से नजर दोष तथा प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है।

• घर में होली की भस्म चांदी की डिब्बी
में रखने से कई बाधाएं स्वत: ही दूर हो
जाती हैं।

• कार्य में बाधाएं आने पर -

आटे का चौमुखा दीपक सरसों
के तेल से भरकर कुछ दाने काले तिल के डालकर एक बताशा,
सिन्दूर और एक तांबे का सिक्का डालें। होली
की अग्नि से जलाकर घर पर से ये पीड़ित
व्यक्ति पर से उतारकर सुनसान चौराहे पर रखकर बगैर
पीछे मुड़े वापस आएं तथा हाथ-पैर धोकर घर में प्रवेश
करें।

• जलती होली में तीन
गोमती चक्र हाथ में लेकर अपने
(अभीष्ट) कार्य को 21 बार मानसिक रूप से कहकर
गोमती चक्र अग्नि में डाल दें तथा प्रणाम कर वापस
आएं।

• विपत्ति नाश के लिए मंत्र-

राजीव नयन धरें धनु सायक।
भगति विपति भंजन सुखदायक।।
इस मंत्र को जलती होलिका स्म्मुख 108 बार पढ कर 11 परिक्रमा करने से समस्त विपत्तियो का नाश हो जाता हैl

सुख, समृद्धि और सफलता के लिए :

अहकूटा भयत्रस्तै:कृता त्वं होलि बालिशै:
अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम: ||
इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच
माला विषम संख्या के रूप में करना चाहिए।

ऐसा माना जाता है कि होली की
बची हुई अग्नि और भस्म को अगले दिन प्रात: घर में
लाने से घर को अशुभ ‍शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है तथा
इस भस्म का शरीर पर लेपन भी किया
जाता है।
भस्म का लेपन करते समय निम्न मंत्र का जाप करना
कल्याणकारी रहता है-
वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रह्मणा शंकरेण च।
अतस्त्वं पाहि मां देवी! भूति भूतिप्रदा भव।।

स्फटिक श्रीयंत्र को होली से एक दिन पूर्व चतुर्दशी की रात्रि में ‘गुलाबजल’ में रखकर ‘फ्रीजर’ में रख दें। प्रातः जमे हुये ‘श्री यंत्र’ को फ्रीजर से निकाल नहाने वाले जल के बर्तन में डुबोकर जमी हुई बर्फ को घुलने दें, फिर बाहर निकाल लें। स्नान के बाद ‘श्री यंत्र’ पूजन करें, फिर ‘श्रीसूक्त’ के प्रत्येक ऋचा के आरंभ और अंत में इस मंत्र -‘‘ऊँ ओम ह्रीं क्रौं ऐं श्रीं क्लीं ब्लूं सौं रं वं श्रीं’- को लगाकर, इत्र से लिप्त नाग-केशर ‘श्री यंत्र’ पर चढ़ायें। इसके बाद रात में ‘श्री यंत्र, के सम्मुख ही उक्त मंत्र की 1008 आहुतियां - मधु, घी, दूध युक्त हवन-सामग्री से अग्नि में आहुतियां दें या 108 आहुतियां सूखे बिल्व पत्र, मधु, घी, दूध से लिप्त कर ‘जलती होली’ में अर्पित करें। अंत में ‘श्रीयंत्र’ तथा अर्पित ‘नाग केशर’- लाल वस्त्र में बांधकर अपनी तिजोरी में रखें। संपूर्ण वर्ष घर धन-धान्य से परिपूर्ण रहेगा, इसमें संदेह नहीं है।

होली की रात्रि को स्थिर लग्न में पीपल के पांच अखंडित (साबुत) पत्ते लेकर, पत्तल में रखें, प्रत्येक पत्ते पर पनीर का एक टुकड़ा तथा एक रसगुल्ला (सफेद) रखें। आटे का दीपक बनाकर, सरसों का तेल भरकर जलायें। मिट्टी की कुलिया (बहुत छोटा-सा कुल्हड़) में, जल-दूध-शहद और शक्कर मिलाकर, भक्ति-पूर्वक सारा सामान पीपल पर चढ़ाकर, हाथ जोड़कर श्रद्धा से आर्थिक संकट दूर होने की प्रार्थना करें, वापसी में पीछे मुड़कर न देखें। यही प्रयोग आने वाले मंगल तथा शनिवार को पुनः करें।
किंतु फिर से पीपल के पत्तों का प्रयोग न करें। तीनों बार घर लौटकर लाल चंदन की माला पर निम्न मंत्र की 3 माला जपें: मंत्र: ‘‘ ऐं ह्री श्री क्लीं सर्वबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः। मनुष्योमत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः क्लीं ह्रीं ऐं।।’’

होली की रात्रि में साबुत उड़द और चावल- एक साथ उबाल कर पत्तल पर रखें। 5 प्रकार की मिठाई और सरसों के तेल के दीपक में 1-1 रुपये के 5 सिक्के डालकर, दीपक जलाकर, निम्न मंत्र का 108 बार जप करके, सभी सामान को निर्जन स्थान पर रख आयें, पीछे मुड़कर न देखें। इससे धन का आगमन होता है। मंत्र -‘‘ऊँ ह्री ह्री बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्री ह्री’’


होली (पूर्णिमा) के दिन प्रातः सूर्योदय से पहले पीपल पर हल्दी मिश्रित गुलाबजल चढ़ायें, देशी घी का दीपक और धूप जलायें, 5 तरह की मिठाई, 5 तरह के फल, 21 किशमिश का भोग लगायें तथा कलावे से 7 परिक्रमा करते हुये पीपल का बंधन करें और निम्न मंत्र का जप करें। इससे घर में धन-समृद्धि आती है। मंत्र - ‘‘ऊँ’’ ह्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं लक्ष्मी मम् गृहे धन पूरय चिंता दूरय दूरय स्वाहा।’’

होली (पूर्णिमा) की रात्रि को स्थिर लग्न में मां काली की पंचोपचार पूजा कर निम्न मंत्र से 1008 आहुतियां, हवन सामग्री में काली मिर्च, पीली सरसों, भूत केशी मिलाकर- अग्नि में दें। प्रत्येक 108 आहुतियों के बाद पान के पत्ते पर सफेद मक्खन, मिश्री, 2 लौंग, 3 जायफल, 1 नींबू, 1 नारियल (गोला), इत्र लगी रूई, कपूर रखकर मां काली का ध्यान कर अग्नि में अर्पण करें। यह आहुति 10 बार अग्नि में अर्पित करें। यह प्रयोग समस्त नजर दोष, तंत्र एवं रोग बाधाओं को समाप्त कर देता है। मंत्र: ‘‘ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै बिच्चै, ऊँ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै बिच्चै ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।’’

इस  बार होली  सोमवार को है। रविवार को ऐसे पे़ड के नीचे जाए जिस पर चमगादड लटकती हो उस पेड की एक डाल को निमंत्रण  दें। निमंत्रण के लिए चावल को हल्दी से रंग लें और वंहा पेड़ की जड़ पर चावल रोली एक रुपया रख कर जल चढाएं और बोलें हमें जन कल्याण के लिए एक डाली चाहिए वह डाली हम कल ले जाएंगे। होली वाले दिन सूर्योदय से पूर्व उस डाल को तोडकर ले आए। रात को उस डाल एवं उसके पत्तों का पूजन कर अपनी गद्दी के नीचे रखें। व्यवसाय खूब फलेगा-फूलेगा व्यापार ओर कर्ज से बचने के लिए ओर भी उपाय है जो आगे बता दिये जायेगे,।

ऊँ नमो धनदाय स्वाहा होली की रात इस मंत्र का जाप करने से धन में वृद्धि होती है
रोग नाश करने के लिए नमो भगवते रूद्राय  मम शरीर अमृतं कुरू कुरू स्वाहा इस मंत्र का होली की रात जाप करने से कैसा भी रोग हो नाश हो जाता है

शीघ्र विवाह के लिए होली के दिन सुबह एक साबुत पान पर साबुत सुपारी एवं हल्दी की गांठ शिवलिंग पर चढाएं तथा पीछे पलटे बगैर अपने घर आ जाएं यही प्रयोग अगले दिन भी करें। तो इस तरह करने से विवाह में आने वाली रूकावटें दूर होतीं है विवाह के लिए ओर भी उपाय है जो इस पोस्ट मे आगे बताये जायेगे, ।
गोरखमुण्डी का पौधा लाकर उसको धोकर होली की रात उसका पूजन करें फिर उसको होली की अग्नि में सुखा दें तथा पांच दिन सूखने दे पंचमी के दिन उसको पीसकर चूर्ण बना लें।
यह चूर्ण की काम आता है। रोजाना सुबह और शाम इस चूर्ण को शहद से चाटने पर स्मरण एवं भाषण शक्ति बढती है।दूध के साथ इस चूर्ण का सेवन करने से शरीर स्वस्थ और बलिष्ठ होता है। इस चूर्ण के पानी से बाल धोने पर बाल लंबे और काले घने होते हैं। इस चूर्ण के तेल से शरीर की ऎंठन, जकडन दूर होती है।

टोने-टोटके के लिए सफेद खाद्य पदार्थों का उपयोग किया जाता है। होलिका दहन वाले दिन अनजान घरों में सफेद खाद्य पदाथों के सेवन से बचना चाहिये।
उतारा और टोटके का प्रयोग सिर पर जल्दी होता है, इसलिए सिर को टोपी आदि से ढके रहें।
टोने-टोटके में व्यक्ति के कपडों का प्रयोग किया जाता है, इसलिए अपने कपडों का ध्यान रखें। होलीका दहन पर पूरे दिन अपनी जेब में काले कपडे में बांधकर काले तिल रखें। रात को जलती होली में उन्हें डाल दें। यदि पहले से ही कोई टोटका होगा तो वह भी खत्म हो जाएगा।
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश,

क्या करे होली पर तंत्र क्रिया से बचाव के लिए, भाग एक,



होली हुई तब जानिये, पिचकारी गुरुज्ञान की लगे |

सब रंग कच्चे जाय उड़, एक रंग पक्के में रंगे |
अर्थात
पक्का रंग क्या है ? पक्का रंग है ‘हम आत्मा है’ और ‘हम दु:खी है, हम सुखी है, हम अमुक जाति के है ....’ - यह सब कच्चा रंग है | यह मन पर लगता है लेकिन इसको जाननेवाला साक्षी चैतन्य का पक्का रंग है | एक बार उस रंग में रँग गये तो फिर विषयों का रंग जीव पर कतई नहीं चढ़ सकता |
होली का पर्व भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद की याद में मनाया जाता है। प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया था। नृसिंह भगवान तंत्र साधना के लिए भी जाने जाता हैं। होली के अवसर पर नृसिंह स्तोत्र का पाठ करें होलिकाग्नि में नारियल डालें तो यह धन के लिए शुभ होता है। इससे कर्ज के बोझ से मुक्ति मिलती है।
गृह क्लेश से निजात पाने और सुख-शांति के लिए होलिका की अग्नि में जौ-आटा चढ़ाएं। इसके अलावा होलिका दहन के दूसरे दिन राख लेकर उसे लाल रुमाल में बांधकर पैसों के स्थान पर रखने से बेमतलब के खर्च रुक जाते हैं।
दांपत्य जीवन में शांति के लिए होली की रात उत्तर दिशा में एक पाट पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर मूंग, चने की दाल, चावल, गेहूं, मसूर, काले उड़द एवं तिल के ढेर पर नवग्रह यंत्र स्थापित करें। इसके बाद केसर का तिलक कर घी का दीपक जलाएं और नवग्रह एवं कामदेव रति की पूजा करें।
जल्द विवाह के लिए होली के दिन सुबह एक पान के पत्ते पर साबूत सुपारी और हल्दी की गांठ लेकर शिवलिंग पर चढ़ाएं और बिना पीछे मुड़े घर आ जाएं। अगले 21 दिन यह उपाय करते रहें।
होली की रात “ॐ नमो धनदाय स्वाहा” मंत्र के जाप से धन में वृद्धि होती है। इसके अलावा 21 गोमती चक्र लेकर होलिका दहन की रात शिवलिंग पर चढ़ाने से व्यापार में वृद्धि और लाभ होता है ऐसी मान्यताएं कहती हैं।
होली की रात 12 बजे किसी पीपल वृक्ष के नीचे घी का दीपक जलाने और सात बार परिक्रमा करने से तमाम तरह की बाधाएं दूर होती हैं। इसके अलावा उधार की रकम वापस पाने के लिए होलिका दहन स्थल पर जिसने कर्ज लिया है उसका नाम अनार की लकड़ी से लिखकर होलिका से धन वापसी करने की प्रार्थना करने पर धन की वापसी जल्दी हो जाती है ऐसी मान्यताएं कहती हैं।

होली पर कुछ ओर करने योग्य टोटके,

यदि किसी ने आपके व्यवसाय अथवा निवास पर कोई तंत्र क्रिया करवा रखी हो, तो होली की रात्रि में जिस स्थान पर होलिका दहन हो, उस स्थान पर एक गड्ढा खोसकर उसमें 11 अभिमंत्रित कौड़ियाँ दबा दें । अगले दिन कौड़ियों को निकालकर व्यवसाय स्थल की मिट्टी के साथ नीले वस्त्र में बांधकर बहते जल में प्रवाहित कर दें । तंत्र क्रिया नष्ट हो जाएगी ।

यदि आपके कार्यों में लगातार बाधाएँ आ रही हो, अथवा घर में अचानक ही अप्रिय घटनाएँ घटित होती हों, जिसके कारण बड़ी हानि उठानी पड़ती हो अथवा आपको लगता हो कि आपके घर पर कोई ऊपरी चक्कर है अथवा किसी ने कोई बन्दिश करवा दी है, तो आप इस उपाय के माध्यम से उपरोक्त सभी समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं ।
होली की रात्रि में घर में किसी शुद्ध स्थान पर गोबर से लीपकर उसपर अष्टदल बनाएं । फिर एक बाजोट रखकर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर अभिमंत्रित ३ लघु नारियल तथा श्री हनुमान यंत्र को स्थान दें । इसके बाद एक पात्र में थोड़ा-सा गाय का कच्चा दूध रखें तथा अलग से पंचगव्य रखें । फिर नारियल व यंत्र पर रोली से तिलक करके प्रभु श्री हनुमान् जी से अपनी समस्या के समाधान का निवेदन करें और गुड़ का भोग लगाएँ ।
तत्पश्चात् शुद्ध घी के दीपक के साथ चन्दन की अगरबत्ती व गुग्गुल की धूप अर्पित करें । फिर ताँबे की प्लेट पर रोली से “ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्” मंत्र लिखकर एक सामान्य नारियल को फोड़कर (पधारकर) उसके पानी को अपने साधना स्थल पर छिड़क दें और नारियल को प्लेट के पास रख दें । फिर मूंगे की माला से “ॐ घण्टाकर्णो महावीर सर्व उपद्रव नाशय कुरु-कुरु स्वाहा” मंत्र की तीन माला का जप करें । मंत्र समाप्त होने के बाद प्रणाम करके बाहर आ जाएँ । गाय के दूध को अपने घर के चारों ओर घुमते हुए धारा के रुप में बिखराकर कवच जैसा बना दें और पंचगव्य से मुख्यद्वार को लीप दें ।
अगले दिन स्नान करके प्रभु को भोग व धूप-दीप अर्पत करके घण्डाकर्ण मंत्र की पुनः तीन माला का जप करें । इस प्रकार यह क्रिया लगातार 11 दिन तक करें । 11वें दिन मंत्र जप के बाद 14-18 वर्ष के किसी लड़के को भोजन कराकर दक्षिणा और वस्त्र आदि दें । फिर उसका चरण स्पर्श कर विदा करें । उसके जाने के बाद लाल वस्त्र पर लघु नारियल, यंत्र और टूटा नारियल रखकर एक पोटली का रुप दें । उसको किसी लकड़ी के डिब्बे में रखकर अपने घर में कहीं भी गड्ढा खोदकर दबा दें ।
अब ताँबे की जिस प्लेट में आपने प्रभु का नाम लिखा था, उसमें गंगाजल डालकर धो लें और उस जल को अपने घर में छिड़क दें । यदि आप किसी फ्लैट में रहते हों, जहाँ आपको पोटली दबाने का स्थान न मिले, तो अपने फ्लैट के पास किसी कच्चे स्थान पर दबा सकते हैं । इस उपाय से कुछ ही समय बाद आप चमत्कारिक परिवर्तन अनुभव करेंगे । यदि यह उपाय होली पर नहीं कर पाते, तो शुक्ल पक्ज़ के प्रथम मंगलवार से आरम्भ करें । सभी समस्या दूर हो जायेगी ।

व्यवसाय में सफलता के लिए आप जब होली जल जाए, तब आप होलिका की थोड़ी-सी अग्नि ले आएं । फिर अपने दुकान एवं व्यवसाय स्थल के आग्नेय कोण में उस अग्नि की मदद से सरसों के तेल का दीपक जला दें । इस उपाय से आपके दुकान व व्यवसाय स्थल की सारी नकारात्मक ऊर्जा जलकर समाप्त हो जाएगी । इससे आपके दुकान एवं व्यवसाय में सफलता मिलेगी ।

 यदि आपके परिवार अथवा परिचितों में कोई व्यक्ति अधिक समय से अस्वस्थ हो, तो उसके लिए यह उपाय लाभकारी होगा । होली की रात्रि में सफेद वस्त्र में 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, नागकेसर के 21 जोड़े तथा 11 धनकारक कौड़ियाँ बांधकर कपड़े पर हरसिंगार तथा चन्दन का इत्र लगाकर रोगी पर से सात बार उसारकर किसी शिव मन्दिर में अर्पित करें । व्यक्ति तुरन्त स्वस्थ होने लगेगा । यदि बिमारी गम्भीर हो, तो यह क्रिया शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से आरम्भ करके लगातार 7 सोमवार को करें ।

यदि आप अपना कोई विशेष कार्य सिद्ध करना चाहते हों अथवा कोई व्यक्ति गम्भीर रुप से रोगग्रस्त हो, तो होली की रात्रि में किसी काले कपड़े में काली हल्दी तथा खोपरे में बूरा भरकर पोटली बनाकर पीपल के वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर दबा दें । फिर पीपल के वृक्ष को आटे से निर्मित सरसों के तेल का दीपक, धूप-अगरबत्ती तथा मीठा जल अर्पित करें । इसके बाद आठ अभिमंत्रित गोमती चक्र पीपल पर ही छोड़कर पीछे देखे बिना घर आ जाएं । शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को जाकर सिर्फ उपरोक्त प्रकार से दीपक व धूप-अगरबत्ती अर्पित करके छोड़े गए गोमती चक्र ले आएं । जब तक कार्य सिद्ध न हो, वह गोमती चक्र अपनी जेब में रखें अथवा जो व्यक्ति रोग-ग्रस्त हो, उसके सिरहाने रख दें । कुछ ही समय में आपके कार्य सिद्ध होने लगेंगे अथवा अस्वस्थ व्यक्ति स्वस्थ लाभ करेगा ।

यदि आप आर्थिक संकट से ग्रस्त हैं, तो जिस स्थान पर होलिका जलती हो, उस स्थान पर गड्ढा खोदकर अपने मध्यमा अंगुली के लिए बनने वाले छल्ले की मात्रा के अनुसार चाँदी, पीतल व लोहा दबा दें । फिर मिट्टी से ढककर लाल गुलाल से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं । जब आप होलिका पूजन को जाएं, तो पान के एक पत्ते पर कपूर, थोड़ी-सी हवन सामग्री, शुद्ध घी में डुबोया लौंग का जोड़ा तथा बताशै रखें । दूसरे पान के पत्ते से उस पत्ते को ढक दें और सात बार परिक्रमा करते हुए “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें । परिक्रमा समाप्त होने पर सारी सामग्री होलिका में अर्पित कर दें तथा पूजन के बाद प्रणाम करके घर वापस आ जाएं । अगले दिन पान के पत्ते वाली सारी नई सामग्री ले जाकर पुनः यही क्रिया करें । जो धातुएं आपने दबाई हैं, उनको निकाल लाएं । फिर किसी सुनार से तीनों धातुओं को मिलाकर अपनी मध्यमा अंगुली के माप का छल्ला बनवा लें । 15 दिन बाद आने वाले शुक्ल पक्ष के गुरुवार को छल्ला धारण कर लें । जब तक आपके पास यह छल्ला रहेगा, तब तक आप कभी भी आर्थिक संकट में नहीं आएंगे ।

यदि आप किसी प्रकार की आर्थिक समस्या से ग्रस्त हैं, तो होली पर यह उपाय अवश्य करें । होली की रात्रि में चन्द्रोदय होने के बाद अपने निवास की छत पर अथवा किसी खुले स्थान पर आ जाएं । फिर चन्द्रदेव का स्मरण करते हुए चाँदी की एक प्लेट में सूखे छुहारे तथा कुछ मखाने रखकर शुद्ध घी के दीपक के साथ धूप एवं अगरबत्ती अर्पित करें । अब दूध से अर्घ्य प्रदान करें । अर्घ्य के बाद कोई सफेद प्रसाद तथा केसर मिश्रित साबूदाने की खीर अर्पित करें । चन्द्रदेव से आर्थिक संखट दूर कर समृद्धि प्रदान करने का निवेदन करें । बाद में प्रसाद और मखानों को बच्चों में बांट दें । आप प्रत्येक पूर्णिमा को चन्द्रदेव को दूध का अर्घ्य अवश्य दें । कुछ ही दिनों में आप अनुभव करेंगे कि आर्थिक संकट दूर होकर समृद्धि बढ़ रही है ।

होली के दिन अपने घर पर अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान में सूर्य डूबने से पहले धूप-दीप करें । घर व प्रतिष्ठान की सारी लाइट जला दें तथा मन्दिर के सामने माँ लक्ष्मी का कोई मंत्र 11बार मानसिक रुप से जपें । तत्पश्चात् घर अथवा प्रतिष्ठान की कोई भी कील लाकर जिस स्थान पर होली जलनी हो, वहां की मिट्टी में दबा दें । अगले दिन उस कील को निकालकर मुख्य-द्वार के बाहर की मिट्टी में दबा दें । इस उपाय से आपके निवास अथवा प्रतिष्ठान में किसी प्रकार की नकारात्मक शक्ति का प्रवेश नहीं होगा । आप आर्थिक संकट में भी नहीं आएंगे ।
यदि आप पर किसी प्रकार का कोई कर्ज है, तो होली की रात्ति में यह उपाय करके कर्ज से मुक्ति पा सकते हैं । जिस स्थान पर होली जलनी हो, उस स्थान पर एक छोटा-सा गड्ढा खोदकर उसमें तीन अभिमंत्रित गोमती चक्र तथा तीन कौड़ियाँ दबा दें । फिर मिट्टी में लाल गुलाल व हरा गुलाल मिलाकर उस गड्ढे को भरकर उसके ऊपर पीले गुलाल से कर्जदार का नाम लिख दें । जब होली जले तब आप पान के पत्ते पर 3 बतासे, घी में डुबोया एक जोड़ा लौंग, तीन बड़ी इलायची, थोड़े-से काले तिल व गुड़ की एक डली रखकर तथा सिन्दूर छिड़ककर पान के पत्ते से ढक दें ।
अब सात परिक्रमा करते हुए प्रत्येक बार निम्न मंत्र का जप करके एक-एक गोमती चक्र होलिका में डालतेजाएं - “ल्रीं ल्रीं फ्रीं फ्रीं अमुक कर्ज विनश्यते फट् स्वाहा” यहां अमुक के स्थान पर कर्जदार का नाम लें । परिक्रमा करने के बाद प्रणाम करके वापस आ जाएं । अगले दिन जाकर सर्वप्रथम तीन अगरबत्ती दिखाकर गड्ढे में से सामग्री निकाल लें और थोड़ी-सी गुलाल मिश्रित मिट्टी भी ले लें । फिर सभी को किसी नदी में प्रवाहित कर दें । कुछ ही समय में कर्ज मुक्ति के मार्ग निर्मित होने लगेंगे ।

आपने देखा होगा कि किसी निवास या व्यवसाय स्थल पर अचानक ही कुछ अजीबो-गरीब घटनाएं घटित होती हैं अथवा उस स्थान पर जो व्यक्ति प्रवेश करता है, उसके मन में डर के साथ अजीब-सी घुटन होने लगती है अथवा बिना बात के नुकसान या झगड़े होने लगते हैं । यदि आपके साथ ऐसा कुछ होता है, तो समझ जाएं कि आप पर अथवा उस स्थान पर किसी प्रकार की कोई ऊपरी बाधा का प्रभाव है । जब तक आप उस बाधा से मुक्ति नहीं पा लेंगे, तब तक आप ऐसे ही परेशान रहेंगे । इस बाधा से मुक्ति पाने के लिए आप यह उपाय अवश्य करें ।
जिस स्थान पर यह बाधा है, उस स्थान के सर्वाधिक निकट जो भी वृक्ष हो, उसको देखें । यदि पीपल का वृक्ष हो, तो बहुत अच्छा है । होली के पूर्व शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार को अंधेरा होने पर आप उस स्थान पर जाएं, जिस स्थान पर वृक्ष है । फिर ताँबे के एक पात्र में दूध में थोड़ी-सी शक्कर मिश्रित करें और खोए के तीन लड्डू, थोड़ी-सी साबूदाने की खीर, 11 हरी इलायची, 21 बताशे, दूध से बनी थोड़ी-सी कोई भी अन्य मिठाई तथा एक सूखे खोपरे में बूरा भरकर उसके मध्य लौंग का एक जोड़ा रखकर उस वृक्ष की जड़ में अर्पित करें । साथ ही 21 अगरबत्ती भी अर्पित करें । यही क्रिया किसी मन्दिर में लगे पीपल के वृक्ष पर भी करें । प्रथम बार के प्रयोग से ही आप परिवर्तन अनुभव करेंगे । यदि समस्या अधिक है, तो यह क्रिया 3, 5, 7 या 11 सोमवार तक करें । आप निश्चित रुप से ऊपरी बाधा से मुक्ति पा लेंगे । परन्तु इतना ध्यान रखें कि बाधा से मुक्ति के बाद आप प्रभु श्री हनुमान् जी के नाम पर कुछ दान अवश्य करें ।

यदि आपको ऐसा लगे कि आपके निवास अथवा व्यवसाय स्थल पर कोई ऊपरी बाधा है, तो आप इस उपाय द्वारा उस बाधा से मुक्ति पा सकते हैं । होली की रात्रि में गाय के गोबर से इक दीपक बनाएं । इसके बाद उसमें सरसों का तेल, लौंग का जोड़ा, थोड़ा-सा गुड़ और काले तिल डाल दें । फिर दीफक को अपने मुख्य द्वार के बिल्कुल मध्य स्थान पर रख दें । द्वार की चौखट के बाहर आठ सौ ग्राम काली साबूत उड़द को फैला दें ।
अब द्वार के अन्दर आकर दीपक को जला दें और द्वार बन्द कर दें । अगले दिन ठण्डा दीपक उठाकर घर के बाहर रख दें और झाड़ू की मदद से सारी उड़द को समेट लें । फिर ठण्डा दीपक और उड़द को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें । तत्पश्चात् घर वापस आ जाएं तथा हाथ-पैर धोकर ही घर में प्रवेश करें । इसके बाद आप अगले शनिवार से पुनः यही क्रिया लगातार तीन शनिवार करें । यदि आपको लगे कि बाधा अधिक बड़ी है, तो अगले शुक्ल पक्ष से पुनः तीन बार यह क्रिया दोहराएं । कार्य सिद्ध हो जाने पर शनिवार को ही किसी भी पीपल के वृक्ष में मीठे जल के साथ धूप-दीप अर्पित करें । इस उपाय द्वारा आप ऊपरी बाधा से मुक्ति पा लेंगे ।
‘होलिकायै नमः
होली वैसे तो रंगों का त्योहार है लेकिन हमारे सनातन धर्म में होली के पर्व का विशेष धार्मिक महत्व है। लेकिन होली की रात्रि यंत्र निर्माण, तंत्र साधना एवं मंत्र सिद्धि के लिए एक श्रेष्ठ मुहूर्त होती है। तंत्र क्रियाओं की प्रमुख चार रात्रियों में से एक रात ये भी है। होली की रात्रि को संपन्न की गई साधना शीघ्र सफल व फलदायी होती है।  शास्त्रोक्त मान्यतानुसार होलिकादहन भद्रा के उपरांत ही करना चाहिए। भद्रा में होलिकादहन करने से राज्य, राजा व प्रजा पर संकट आते हैं प्रतिपदा, चतुर्दशी और भद्राकाल में होली दहन के लिए सख्त मनाही है। फाल्गुन पूर्णिमा पर भद्रा रहित प्रदोषकाल में होली दहन को श्रेष्ठ माना गया है। इसी के साथ ही होलिका दहन में आहुति देना भी आवश्‍यक माना गया है। होलिका में कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर. आदि की आहुति दी जाती है
अगर कोई व्यक्ति पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ होली की रात पूजा-पाठ या कोई उपाय करता है तो उसकी मनोकामनाएं जल्दी पूरी होने के योग बन सकते हैं होली की सुबह 11 बिल्व पत्रों पर सफेद चंदन की बिंदी लगाएं शिवलिंग पर चढ़ाएं। शिवजी को खीर का भोग लगाएं। इससे शिवजी की कृपा मिल सकती है।

 प्राचीन समय में होली के पर्व पर होलिकादहन के उपरांत उठते हुए धुएं को देखकर भविष्य कथन किया जाता था। यदि होलिकादहन से उठा धुआं पूर्व दिशा की ओर जाता है तब यह राज्य, राजा व प्रजा के लिए सुख-संपन्नता का कारक होता है। यदि होलिका का धुआं दक्षिण दिशा की ओर जाता है तब यह राज्य, राजा व प्रजा के लिए संकट का संकेत करता है। यदि होली का धुआं पश्चिम दिशा की ओर जाता है तब राज्य में पैदावार की कमी व अकाल की आशंका होती है। जब होलिकादहन का धुआं उत्तर दिशा की ओर जाए तो राज्य में पैदावार अच्छी होती है और राज्य धन-धान्य से भरपूर रहता है। लेकिन यदि होली का धुआं सीधा आकाश में जाता है तब यह राजा के लिए संकट का प्रतीक होता है अर्थात राज्य में सत्ता परिवर्तन की संभावना होती है, ऐसी मान्यता है।
‘वन्दितासि सुरेन्द्रेण ब्रह्राणा शंकरेण च। अतस्त्वं पाहि नो देवि विभूतिः भूतिदा भव।।


ज्योतिषशास्त्र में भी होली की रात का विशेष महत्व है, क्योंकि इस रात में किए गए उपायों और शुभ काम करने से बहुत ही जल्दी शुभ फल प्राप्त होते हैं। ज्‍योतिष और हिंदू धर्म में होली का बहुत महत्‍व हैं। होलिका दहन के साथ ही होली के पर्व की शुरुआत हो जाती हैं। इस रात किए गए कुछ खास उपायों से आप अपने ज्‍योतिषीय समस्‍याओं को दूर कर हर समस्‍या से निजात पा सकते हैं। इस रात में किए गए उपायों और शुभ काम करने से बहुत ही जल्दी शुभ फल प्राप्त होते हैं।
होली दहन के समय परिवार के सभी सदस्यों को होलिका की तीन या सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करते समय होलिका में चना, मटर, गेहूं, अलसी जैसे अन्‍न जरुर चढ़ाए। होलिका दहन के बाद होली खेलने से पहले किसी मंदिर में देवी-देवताओं को गुलाल चढ़ाएं और परेशानियों को दूर करने की प्रार्थना करें। होली दहन के समय होलिका में कर्पूर भी डालें।
होली पर सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि के बाद किसी शिव मंदिर जाएं। एक पान पर साबूत सुपारी और हल्दी की गांठ रखकर शिवजी को चढ़ाएं। शाम को शिवलिंग के पास दीपक जलाएं
सभी मनोकामना की पूर्ति के लिए होली पर सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद हनुमानजी को पांच लाल फूल चढ़ाएं। इसके बाद रोज सुबह ये उपाय करें। इससे जल्दी ही आपकी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं।
अगर आप धन लाभ पाना चाहते हैं तो होली की रात 12 बजे मुख्य दरवाजे पर गुलाल छिड़कें। दरवाजे की दोनों तरफ दो दोमुखी दीपक जलाएं। दोमुखी यानी दीपक को दो तरफ से जलाना है। जब दीपक बुझ जाए तो दोनों दीपक होलिका दहन में डाल दें।
अगर कोई व्यक्ति बुरी नजर की वजह से लंबे समय से बीमार है और दवाओं का असर नहीं हो रहा है तो होली पर ये उपाय करें। उपाय के अनुसार एक नारियल का गोला लें, उसमें अलसी का तेल भरें और थोड़ा सा गुड़ डालें। इसके बाद बीमार व्यक्ति के शरीर से 7 बार या 11 बार वार लें। वारने के बाद ये नारियल होलिका दहन में डाल दें। इस उपाय से बुरी नजर उतर सकती है।

होलिका दहन की रात को तंत्र साधना होने के कारण आपको ये काम नहीं करने चाहिए सफेद रंग की खाने पीने की चीजों के सेवन से बचना चाहिए। दरअसल इस शाम टोने-टोटके के लिए सफेद खाद्य पदार्थों का उपयोग किया जाता है। इसलिए इस दिन सफेद खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिये। क‍िसी भी तरह के टोटके का प्रयोग सिर पर जल्दी होता है, इसलिए होलिका दहन वाले द‍िन सिर को ढककर रखने की सलाह दी जाती है। टोने-टोटके को प्रभावशाली बनाने के लिए में व्यक्ति के कपड़ों का प्रयोग किया जाता है, इसलिए अपने कपड़ों का ध्यान रखें। इनका कोई भी टुकड़ा इधर उधर न फेंके और न ही इसे अपने से ईर्ष्‍या करने वालों के हाथ लगने दें। अनजानी वस्‍तुओं को न छुएं और ना ही घर में लेकर आएं। होली पर पूरे दिन अपनी जेब में काले कपड़े में बांधकर काले तिल रखें। रात को जलती होली में उन्हें डाल दें। माना जाता है कि इस तरह आप पर हुआ कोई भी टोटका खत्‍म हो जाएगा।


होलिका दहन में घी से भीगी दो लौंग, एक बतासा और एक पान चढ़ाने से दुश्मनी, संकट और रोगों का नाश होता है। अगर 11 परिक्रमा कर सूखा नारियल होली की अग्नि को अर्पित करें तो घर में लक्ष्मी का आगमन होता है। इस दिन काले कपड़े में काले तिल लेकर जेब में रख लें और होलिका दहन के समय अग्नि में डालें। इससे आप पर किया गया काले जादू का प्रभाव समाप्त हो जाएगा।
रंगोत्सव के दिन हनुमानजी को सिंदूर लगाने एवं 5 लाल पुष्प चढ़ाने से दुर्घटनाओं से रक्षा होती है, अकाल मृत्यु का भय दूर होता है, मनोकामना शीघ्र पूरी होगी।
‘होली’ अर्थात् हो… ली…। जो हो गया उसे भूल जाओ। निंदा हो ली सो हो ली… प्रशंसा हो ली सो हो ली… तुम तो रहो मस्ती और आनंद में। होली एक ऐसा अनूठा त्यौहार है जिसमें गरीब की संकीर्णता और अमीर का अहं दोनों किनारे रह जाते हैं। दबा हुआ मन एवं अहंकारी मन, दूषित मन और शुद्ध मन – इस दिन ये सारे मन ‘अमन’ होकर प्रभु के रंग में रँगने के लिए मैदान में आ जाते हैं।

यदि अभी भी आप यह निर्णय नहीं कर पा रहे हैं की आपको होली की रात्रि में अथवा चन्द्र ग्रहण में क्या करना चाहिए तो आप भगवान विष्णु के मूल मंत्र का जप करें –

ओम नमोः नारायणाय। ओम नमोः भगवते वासुदेवाय।

होली के दिन विष्णु उपासना को शुभ माना जाता है। होली की सुबह जल्दी उठें। स्नान करें और फिर भगवान विष्णु से संबंधित कोई भी पाठ या मंत्र का  जाप करें। इसके पश्चात विष्णु को पीली मिठाई का भोग लगाएं और सुखद भविष्य की कामना करें
लंबे समय से घर आया धन रुकता नहीं है, धन हानि अधिक हो रही है, लक्ष्मी आपसे नाराज हैं तो होली के दिन एक एकाक्षी नारियल की पूजा करके लाल कपड़े में लपेट कर उसे दुकान में या व्यापार स्थल पर रखें। इसके साथ स्फटिक का शुद्ध श्रीयंत्र रखें। होली पर इस टोटके को करने से दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होगी
होली की भस्म का भगवान शिव से भी खास संबंध है। चूंकि भस्म को भगवान शिव के वस्त्र माना गया है इसलिए वे भक्त द्वारा भस्म अर्पित किए जाने पर प्रसन्न होते हैं। होलिका दहन की भस्म को लगातार 11 दिन भगवान शिव को अर्पित करें। शिव कृपा से जीवन के कई सारे कष्ट दूर हो जाएंगे
बुरी नजर, टोने, किसी व्यक्ति के कराए हुए अनिष्ट कार्य से बचना हो तो होलिका दहन की रात जलती अग्नि के सामने खड़े हो जाएं। हाथ की मुट्ठी में (या कपडे मे ) नमक, लाल मिर्च, राई भरकर अपने ऊपर वार लें। ऐसा करते हुए मन ही मन उस व्यक्ति का नाम लें जिससे आप बचना चाहते हैं और फिर पूरी ताकत से मुट्ठी में लिया सामान अग्नि की ओर फेंक दें
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश

Monday, February 24, 2020

बाबा हनुमान जी का संकट रोग नाशक मंत्र विधान

मित्रो आज की दुनिया मे सनातन का मजाक उडाने वाले कई सनातनी है, उसी तरह आगे बढाने की बजाय टांग खीचने वाले भी ज्यादा है, इस दुनिया मे अच्छे करने भी है तो, बुरा करने वाले भी है, तो हताशा होने की जरूरत नही है, आज हम आपको यहाँ एक मंत्र दे रहे है ,जिसको आप कभी भी कही भी नित्य जीवन भर करे ,रोज एक सौ आठ बार , तो इक्कीस दिन मे आप अपने आप मे एक बदलाव महसूस करेंगे, अगर समय की कमी है तो नित्य ,ग्यारह, इक्कीस, इक्यावन, बार कर सकते है तो कुछ समय लगेगा जैसे इकतालीस दिन, इक्यावन दिन ,या सौ दिन ,पर मंत्र अपना प्रभाव जरूर दिखाता है, इस मंत्र मे गुरू का होना ,या ना होने का कोई बंधन नही है, इसको आम आदमी भी कर सकता है पर, बाबा हनुमान जी को अपना आराध्य मानकर इस मंत्र का जाप करे ,उसके बाद, हनुमान चालीसा का पाठ जरूर करे,, नादान बालक की कलम से आज बस इतना बाकी फिर कभी, जो गुरूमुखी है वो मंत्र को जपने से पहले अपने इष्ट ओर गुरू को याद करके सारी मुश्किल ओर मुसीबतो से निजात पाने की कामना करे, जो गुरूमुखी नही है वो अपने इष्ट ओर माता पिता (गुरू स्थान पर रखना है माता पिता को ) का ध्यान करके जाप कर सकते है ,
मंत्र जाप से पहले बाबा हनुमान जी की स्तुति जरूर कर ले एक बार नित्य,
स्तृति,
है अंजनीयै, है राम दुताया ,
श्री राम भक्तायै नमो नमौ,
सीता माता शोक विनाशा
अति बलवंता नमो नमो,
जो हनुमत का ध्यान धरे,
उसका वो कल्याण करे ,
सारी बाधाओ को वो पल मे मिटाते है,
सुख संपत बरसते है,
बिगड़े काम बनाते है ,
मेरी भी सुन लो है पवन कुमार,
चरणो मे है दास तुम्हारा ,
है केसरी नन्दन है रूदअवतार ,
सबकी की बिगड़ी बनाते है,
जो जपे नाम दिन रात तुम्हारा,
🌹
मंत्र साधना,,,
👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻
असाध्य साधक स्वामिन,
असाध्य तव किंवद,
राम दूत कृपा सिंधो,
मत्कार्यं साध्यप्रभो,
👆🏻👆🏻👆🏻👆🏻👆🏻
🌹ये सब करने से पहले एक नारियल बाबा हनुमान जी को जरूर चढाये ओर अपनी समस्याओं को उनको बताकर उनसे क्षमा दान मांगे, ओर जीवन भर आवारा कुत्ते को रोटी दे ओर दो मुट्ठी आनाज रोज कबुतरो ओर चिडिया के लिए किसी मंदिर या चबुतरे पर जरूर डाले ओर नन्दी महाराज अगर आपके घर आ जाये तो उनको रोटी जरूर  दे,, ओर अगर कोई घर मे कोई बीमार है तो इस मंत्र का जाप सुर्याअस्त या सुर्य उदय मे जरूर करे ओर सूर्यास्त के समय थोडा सा गुड रोगी का हाथ लगाकर गौमाता को इक्कीस दिन खिलाये,, या जीवन भर भी खिला सकते है,, बाकी जैसी आपकी इच्छा ओर माँ बाबा की कृपा,, बाकी फिर कभी, मानो तो अच्छा नही मानो तो बहुत अच्छा,
अच्छी लगी पोस्ट तो बिना छेडछाड के शेयर करे बाकी नकल तो बंदर भी अच्छी कर लेता है, बुरी लगे तो नजरअंदाज करे जो कार्य ऊपर लिखे है वो करना हो तो ही उक्त मंत्र का जाप करे धन्यवाद,,
किया करते हो तुम दिन रात क्यों बिन बात की चिंता
तेरे श्री बाबा हनुमान को रहती है तेरी हर बात की चिंता
थारो सांचो है दरबार है बाबा ,
थारी महिमा अपरम्पार है बाबा,
राम नाम की धुनी में, भये मुनी लवलीन,,,,,
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹🙏🏻

Sunday, January 12, 2020

रहस्यमय रक्षा मंत्र

मित्रो आज रक्षा मंत्र दे रहा हूँ यह मंत्र रक्षा मन्त्र होने के साथ-साथ  झाड़े का मंत्र भी है |
   | मंत्र |
ॐ नमो धरती माता, धरती पिता |
धरती धरे  न धीर |
बाजे सिंगी |
बाजे तरतरी  |
आया गोरखनाथ |
मीन का पूत |
मुंज का छडा |
लोहे का कड़ा |
हमारी पीठ पीछे यति हनुमंत खड़ा ||
शब्द साँचा |
फुरो मंत्र  ईश्वरोवाचा ||
जैसा की हमने पहले भी कहा है की हम यंहा सिर्फ मंत्र देते है  तोह उचित यही है की आप अपने गुरु से इसकी पूरी जानकारी ले तभी इनका प्रयोग करे हमसे समंपर्क  के लिए आप हमारी ईमेल या हमे व्हाट्सएप्प कर सकते है |
बाकि जैसी माँ बाबा की इच्छा और कृपा |
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 🌹

Wednesday, January 8, 2020

इस साल का पहला चन्द्र ग्रहण

इस साल का पहला चन्द्र ग्रहण आइए जानते हैं क्या होता है ये मांद्य चंद्र ग्रहण, ग्रहण का सूतक काल ,,
दस जनवरी को साल दो हजार बीस को पहला चंद्रग्रहण लगेगा। यह चंद्र ग्रहण शुक्रवार, दस जनवरी की रात दस बजकर अडतीस मिनट से शुरू होकर रात के दो बजकर बयालीस मिनट तक चलेगा, दस जनवरी को लगने वाले चंद्रग्रहण को मांद्य चंद्र ग्रहण होगा, ओर इसमे सुतक नही लगेगा ,,धार्मिक कार्य बंद नही होंगे मंदिर के कपाट बन्द नही होगे,,भूतनाथ (नादान बालक ) की कलम से आज बस इतना बाकी फिर कभी,,,
कई राशियो पर इसका शुभ अशुभ फल देखने को मिलेगा इसलिए सावधान रहे,, ये चन्द्र ग्रहण, हादसे दुर्घटना ,धन खर्च, युद्ध, धर्म युद्ध भी करा सकता है, लाभ हानि से बचने के लिए गुरू मंत्र आराध्य मंत्र का जाप करे ,वैसे सुतक नौ घंटे पहले लग जाता है पर इस चन्द्र ग्रहण पर सुतक नही लगेगा यही सत्य है दान पुण्य  ,जप सिद्धि हवन इत्यादि करे,, जो आपका मन करे,,
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश

आइये जानते हैं कब है धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि विधान साधना???

* धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि*  *29 और 31 तारीख 2024*  *धनतेरस ओर दिपावली पूजा और अनुष्ठान की विधि* *धनतेरस महोत्सव* *(अध्यात्म शास्त्र एवं ...

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