Friday, November 6, 2015

श्री भैरव मन्त्र

श्री भैरव मन्त्र
“ॐ गुरुजी काला भैरुँ कपिला केश, काना मदरा, भगवाँ भेस। मार-मार काली-पुत्र। बारह कोस की मार, भूताँ हात कलेजी खूँहा गेडिया। जहाँ जाऊँ भैरुँ साथ। बारह कोस की रिद्धि ल्यावो। चौबीस कोस की सिद्धि ल्यावो। सूती होय, तो जगाय ल्यावो। बैठा होय, तो उठाय ल्यावो। अनन्त केसर की भारी ल्यावो। गौरा-पार्वती की विछिया ल्यावो। गेल्याँ की रस्तान मोह, कुवे की पणिहारी मोह, बैठा बाणिया मोह, घर बैठी बणियानी मोह, राजा की रजवाड़ मोह, महिला बैठी रानी मोह। डाकिनी को, शाकिनी को, भूतनी को, पलीतनी को, ओपरी को, पराई को, लाग कूँ, लपट कूँ, धूम कूँ, धक्का कूँ, पलीया कूँ, चौड़ कूँ, चौगट कूँ, काचा कूँ, कलवा कूँ, भूत कूँ, पलीत कूँ, जिन कूँ, राक्षस कूँ, बरियों से बरी कर दे। नजराँ जड़ दे ताला, इत्ता भैरव नहीं करे, तो पिता महादेव की जटा तोड़ तागड़ी करे, माता पार्वती का चीर फाड़ लँगोट करे। चल डाकिनी, शाकिनी, चौडूँ मैला बाकरा, देस्यूँ मद की धार, भरी सभा में द्यूँ आने में कहाँ लगाई बार ? खप्पर में खाय, मसान में लौटे, ऐसे काला भैरुँ की कूण पूजा मेटे। राजा मेटे राज से जाय, प्रजा मेटे दूध-पूत से जाय, जोगी मेटे ध्यान से जाय। शब्द साँचा, ब्रह्म वाचा, चलो मन्त्र ईश्वरो वाचा।”
विधिः- उक्त मन्त्र का अनुष्ठान रविवार से प्रारम्भ करें। एक पत्थर का तीन कोनेवाला टुकड़ा लिकर उसे अपने सामने स्थापित करें। उसके ऊपर तेल और सिन्दूर का लेप करें। पान और नारियल भेंट में चढावें। वहाँ नित्य सरसों के तेल का दीपक जलावें। अच्छा होगा कि दीपक अखण्ड हो। मन्त्र को नित्य २१ बार ४१ दिन तक जपें। जप के बाद नित्य छार, छरीला, कपूर, केशर और लौंग की आहुति दें। भोग में बाकला, बाटी बाकला रखें (विकल्प में उड़द के पकोड़े, बेसन के लड्डू और गुड़-मिले दूध की बलि दें। मन्त्र में वर्णित सब कार्यों में यह मन्त्र काम करता है।

दुर्गा के कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र

दुर्गा के कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र

माँ दुर्गा के लोक कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र 


१॰ बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये
“सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥” (अ॰१२,श्लो॰१३)

अर्थ :- मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा- इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

२॰ बन्दी को जेल से छुड़ाने हेतु
“राज्ञा क्रुद्धेन चाज्ञप्तो वध्यो बन्धगतोऽपि वा।
आघूर्णितो वा वातेन स्थितः पोते महार्णवे।।” (अ॰१२, श्लो॰२७)

३॰ सब प्रकार के कल्याण के लिये
“सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१०)

अर्थ :- नारायणी! तुम सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।

४॰ दारिद्र्य-दु:खादिनाश के लिये
“दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता॥” (अ॰४,श्लो॰१७)

अर्थ :- माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दु:ख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दया‌र्द्र रहता हो।

४॰ वित्त, समृद्धि, वैभव एवं दर्शन हेतु
“यदि चापि वरो देयस्त्वयास्माकं महेश्वरि।।
संस्मृता संस्मृता त्वं नो हिंसेथाः परमापदः।
यश्च मर्त्यः स्तवैरेभिस्त्वां स्तोष्यत्यमलानने।।
तस्य वित्तर्द्धिविभवैर्धनदारादिसम्पदाम्।
वृद्धयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथाः सर्वदाम्बिके।। (अ॰४, श्लो॰३५,३६,३७)

५॰ समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये
“विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति :॥” (अ॰११, श्लो॰६)

अर्थ :- देवि! सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे एवं परा वाणी हो।

६॰ शास्त्रार्थ विजय हेतु
“विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपेष्वाद्येषु च का त्वदन्या।
ममत्वगर्तेऽति महान्धकारे, विभ्रामयत्येतदतीव विश्वम्।।” (अ॰११, श्लो॰ ३१)

७॰ संतान प्राप्ति हेतु
“नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भ सम्भवा।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी” (अ॰११, श्लो॰४२)

८॰ अचानक आये हुए संकट को दूर करने हेतु
“ॐ इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति।
तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्ॐ।।” (अ॰११, श्लो॰५५)

९॰ रक्षा पाने के लिये
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥

अर्थ :- देवि! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें।

१०॰ शक्ति प्राप्ति के लिये
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥

अर्थ :- तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है।

११॰ प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥

अर्थ :- विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ। त्रिलोकनिवासियों की पूजनीया परमेश्वरि! सब लोगों को वरदान दो।

१२॰ विविध उपद्रवों से बचने के लिये
रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्॥

अर्थ :- जहाँ राक्षस, जहाँ भयंकर विषवाले सर्प, जहाँ शत्रु, जहाँ लुटेरों की सेना और जहाँ दावानल हो, वहाँ तथा समुद्र के बीच में भी साथ रहकर तुम विश्व की रक्षा करती हो।

१३॰ बाधा शान्ति के लिये
“सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥” (अ॰११, श्लो॰३८)

अर्थ :- सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।

१४॰ सर्वविध अभ्युदय के लिये
ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्ग:।
धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥

अर्थ :- सदा अभ्युदय प्रदान करनेवाली आप जिन पर प्रसन्न रहती हैं, वे ही देश में सम्मानित हैं, उन्हीं को धन और यश की प्राप्ति होती है, उन्हीं का धर्म कभी शिथिल नहीं होता तथा वे ही अपने हृष्ट-पुष्ट स्त्री, पुत्र और भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं।

१५॰ सुलक्षणा पत्‍‌नी की प्राप्ति के लिये
पत्‍‌नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥

अर्थ :- मन की इच्छा के अनुसार चलनेवाली मनोहर पत्‍‌नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारनेवाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो।

१६॰ आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

अर्थ :- मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

१७॰ महामारी नाश के लिये
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

अर्थ :- जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।

१८॰ रोग नाश के लिये
“रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥” (अ॰११, श्लो॰ २९)

अर्थ :- देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाञ्छित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।

१९॰ विपत्ति नाश के लिये
“शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१२)

अर्थ :- शरण में आये हुए दीनों एवं पीडितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है।

२०॰ पाप नाश के लिये
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥

अर्थ :- देवि! जो अपनी ध्वनि से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके दैत्यों के तेज नष्ट किये देता है, वह तुम्हारा घण्टा हमलोगों की पापों से उसी प्रकार रक्षा करे, जैसे माता अपने पुत्रों की बुरे कर्मो से रक्षा करती है।

१७॰ भय नाश के लिये
“सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।
पातु न: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥ ” (अ॰११, श्लो॰ २४,२५,२६)

अर्थ :- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्ति यों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है। कात्यायनी! यह तीन लोचनों से विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है। भद्रकाली! ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमें बचाये। तुम्हें नमस्कार है।

२१॰ विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:।

अर्थ :- वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मङ्गल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डाले।

२२॰ विश्व की रक्षा के लिये
या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥

अर्थ :- जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रतारूप से, शुद्ध अन्त:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जारूप से निवास करती हैं, उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं। देवि! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये।

२३॰ विश्व के अभ्युदय के लिये
विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं
विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति
विश्वाश्रया ये त्वयि भक्ति नम्रा:॥

अर्थ :- विश्वेश्वरि! तुम विश्व का पालन करती हो। विश्वरूपा हो, इसलिये सम्पूर्ण विश्व को धारण करती हो। तुम भगवान् विश्वनाथ की भी वन्दनीया हो। जो लोग भक्तिपूर्वक तुम्हारे सामने मस्तक झुकाते हैं, वे सम्पूर्ण विश्व को आश्रय देनेवाले होते हैं।

२४॰ विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥

अर्थ :- शरणागत की पीडा दूर करनेवाली देवि! हमपर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचर जगत् की अधीश्वरी हो।

२५॰ विश्व के पाप-ताप निवारण के लिये
देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य:।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥

अर्थ :- देवि! प्रसन्न होओ। जैसे इस समय असुरों का वध करके तुमने शीघ्र ही हमारी रक्षा की है, उसी प्रकार सदा हमें शत्रुओं के भय से बचाओ। सम्पूर्ण जगत् का पाप नष्ट कर दो और उत्पात एवं पापों के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाले महामारी आदि बडे-बडे उपद्रवों को शीघ्र दूर करो।

२६॰ विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिये
यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो
ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तु मलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय
नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥

अर्थ :- जिनके अनुपम प्रभाव और बल का वर्णन करने में भगवान् शेषनाग, ब्रह्माजी तथा महादेवजी भी समर्थ नहीं हैं, वे भगवती चण्डिका सम्पूर्ण जगत् का पालन एवं अशुभ भय का नाश करने का विचार करें।

२७॰ सामूहिक कल्याण के लिये
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या
निश्शेषदेवगणशक्ति समूहमूत्र्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां
भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥

अर्थ :- सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरूप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है, समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीया उन जगदम्बा को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं। वे हमलोगों का कल्याण करें।

२८॰ भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिये
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

२९॰ पापनाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिये
नतेभ्यः सर्वदा भक्तया चण्डिके दुरितापहे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

३०॰ स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिये
सर्वभूता यदा देवि स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः॥

३१॰ स्वर्ग और मुक्ति के लिये
“सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनस्य ह्रदि संस्थिते।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोस्तुऽते॥” (अ॰११, श्लो८)

३२॰ मोक्ष की प्राप्ति के लिये
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः॥

३३॰ स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने के लिये
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय॥

३४॰ प्रबल आकर्षण हेतु
“ॐ महामायां हरेश्चैषा तया संमोह्यते जगत्,
ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।” (अ॰१, श्लो॰५५)

उपरोक्त मंत्रों को संपुट मंत्रों के उपयोग में लिया जा सकता है अथवा कार्य सिद्धि के लिये स्वतंत्र रुप से भी इनका पुरश्चरण किया जा सकता है।

श्री कामदेव का मन्त्र

श्री कामदेव का मन्त्र
(मोहन करने का अमोघ शस्त्र)

“ॐ नमो भगवते काम-देवाय श्रीं सर्व-जन-प्रियाय सर्व-जन-सम्मोहनाय ज्वल-ज्वल, प्रज्वल-प्रज्वल, हन-हन, वद-वद, तप-तप, सम्मोहय-सम्मोहय, सर्व-जनं मे वशं कुरु-कुरु स्वाहा।”

विधीः- उक्त मन्त्र का २१,००० जप करने से मन्त्र सिद्ध होता है। तद्दशांश हवन-तर्पण-मार्जन-ब्रह्मभोज करे। बाद में नित्य कम-से-कम एक माला जप करे। इससे मन्त्र में चैतन्यता होगी और शुभ परिणाम मिलेंगे।
प्रयोग हेतु फल, फूल, पान कोई भी खाने-पीने की चीज उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर साध्य को दे।
उक्त मन्त्र द्वारा साधक का बैरी भी मोहित होता है। यदि साधक शत्रु को लक्ष्य में रखकर नित्य ७ दिनों तक ३००० बार जप करे, तो उसका मोहन अवश्य होता है।

हनुमान जी के मन्त्रों

1॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, वायु-सुताय, अञ्जनी-गर्भ-सम्भूताय, अखण्ड-ब्रह्मचर्य-व्रत-पालन-तत्पराय, धवली-कृत-जगत्-त्रितयाय, ज्वलदग्नि-सूर्य-कोटि-समप्रभाय, प्रकट-पराक्रमाय, आक्रान्त-दिग्-मण्डलाय, यशोवितानाय, यशोऽलंकृताय, शोभिताननाय, महा-सामर्थ्याय, महा-तेज-पुञ्जः-विराजमानाय, श्रीराम-भक्ति-तत्पराय, श्रीराम-लक्ष्मणानन्द-कारणाय, कवि-सैन्य-प्राकाराय, सुग्रीव-सख्य-कारणाय, सुग्रीव-साहाय्य-कारणाय, ब्रह्मास्त्र-ब्रह्म-शक्ति-ग्रसनाय, लक्ष्मण-शक्ति-भेद-निवारणाय, शल्य-विशल्यौषधि-समानयनाय, बालोदित-भानु-मण्डल-ग्रसनाय, अक्षकुमार-छेदनाय, वन-रक्षाकर-समूह-विभञ्जनाय, द्रोण-पर्वतोत्पाटनाय, स्वामि-वचन-सम्पादितार्जुन, संयुग-संग्रामाय, गम्भीर-शब्दोदयाय, दक्षिणाशा-मार्तण्डाय, मेरु-पर्वत-पीठिकार्चनाय, दावानल-कालाग्नि-रुद्राय, समुद्र-लंघनाय, सीताऽऽश्वासनाय, सीता-रक्षकाय, राक्षसी-संघ-विदारणाय, अशोक-वन-विदारणाय, लंका-पुरी-दहनाय, दश-ग्रीव-शिरः-कृन्त्तकाय, कुम्भकर्णादि-वध-कारणाय, बालि-निर्वहण-कारणाय, मेघनाद-होम-विध्वंसनाय, इन्द्रजित-वध-कारणाय, सर्व-शास्त्र-पारंगताय, सर्व-ग्रह-विनाशकाय, सर्व-ज्वर-हराय, सर्व-भय-निवारणाय, सर्व-कष्ट-निवारणाय, सर्वापत्ति-निवारणाय, सर्व-दुष्टादि-निबर्हणाय, सर्व-शत्रुच्छेदनाय, भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-ध्वंसकाय, सर्व-कार्य-साधकाय, प्राणि-मात्र-रक्षकाय, राम-दूताय-स्वाहा।।
2॰ ॐ नमो हनुमते, रुद्रावताराय, विश्व-रुपाय, अमित-विक्रमाय, प्रकट-पराक्रमाय, महा-बलाय, सूर्य-कोटि-समप्रभाय, राम-दूताय-स्वाहा।।
प्रत्येक मन्त्र के ११००० ‘जप‘ एवं दशांश ‘हवन’ से सिद्धि होती है।
हनुमान जी के मन्दिर में, ‘रुद्राक्ष’ की माला से, ब्रह्मचर्य-पूर्वक ‘जप करें। नमक न खाए तो उत्तम है। कठिन-से-कठिन कार्य इन मन्त्रों की सिद्धि से सुचारु रुप से होते हैं।)

गणेश शाबर मन्त्र

गणेश शाबर मन्त्र
“गणपत वीर भूखे मसान, जो फल माँगू सो फल देत, गणपत देखे, गजपत डरे, गणपत के छत्र से बादशाह डरे, मुख देखे राजा-प्रजा डरे, हाथा चढ़े सिन्दूर औलिया गौरी का पुत्र, गूगल खेये करुँगा ढेरी, रिद्धि-सिद्धि गणपत लाये घनेरी, गिरनार पति ॐ नमो स्वाहा”
Hawan kare tab es mantr ka upyog kare

काली-शाबर-मन्त्र

काली-शाबर-मन्त्र

“काली काली महा-काली, इन्द्र की बेटी, ब्रह्मा की साली। पीती भर भर रक्त प्याली, उड़ बैठी पीपल की डाली। दोनों हाथ बजाए ताली। जहाँ जाए वज्र की ताली, वहाँ ना आए दुश्मन हाली। दुहाई कामरो कामाख्या नैना योगिनी की, ईश्वर महादेव गोरा पार्वती की, दुहाई वीर मसान की।।”

विधिः- प्रतिदिन १०८ बार ४० दिन तक जप कर सिद्ध करे। प्रयोग के समय पढ़कर तीन बार जोर से ताली बजाए। जहाँ तक ताली की आवाज जायेगी, दुश्मन का कोई वार या भूत, प्रेत असर नहीं करेगा।

महा-लक्ष्मी मन्त्र

महा-लक्ष्मी मन्त्र
“राम-राम क्ता करे, चीनी मेरा नाम। सर्व-नगरी बस में करुँ, मोहूँ सारा गाँव।
राजा की बकरी करुँ, नगरी करुँ बिलाई। नीचा में ऊँचा करुँ, सिद्ध गोरखनाथ की दुहाई।।”
विधिः- जिस दिन गुरु-पुष्य योग हो, उस दिन से प्रतिदिन एकान्त में बैठ कर कमल-गट्टे की माला से उक्त मन्त्र को १०८ बार जपें। ४० दिनों में यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है, फिर नित्य ११ बार जप करते रहें।

लक्ष्मी-पूजन मन्त्र

लक्ष्मी-पूजन मन्त्र
“आवो लक्ष्मी बैठो आँगन, रोरी तिलक चढ़ाऊँ। गले में हार पहनाऊँ।। बचनों की बाँधी, आवो हमारे पास। पहला वचन श्रीराम का, दूजा वचन ब्रह्मा का, तीजा वचन महादेव का। वचन चूके, तो नर्क पड़े। सकल पञ्च में पाठ करुँ। वरदान नहीं देवे, तो
महादेव शक्ति की आन।।”
विधिः- दीपावली की रात्रि को सर्व-प्रथम षोडशोपचार से लक्ष्मी जी का पूजन करें। स्वयं न कर सके, तो किसी कर्म-काण्डी ब्राह्मण से करवा लें। इसके बाद रात्रि में ही उक्त मन्त्र की ५ माला जप करें। इससे वर्ष-समाप्ति तक धन की कमी नहीं होगी और सारा वर्ष सुख तथा उल्लास में बीतेगा।

मोहन सम्मोहन व आकर्षण हेतु “उर्वशी-यन्त्र” साधना





इस यन्त्र को चमेली की लकड़ी की कलम से, भोजपत्र पर कुंकुम या कस्तुरी की स्याही से निर्माण करे।इस यन्त्र की साधना पूर्णिमा की रात्री से करें। रात्री में स्नानादि से पवित्र होकर एकान्त कमरे में आम की लकड़ी के पट्टे पर सफेद वस्त्र बिछावें, स्वयं भी सफेद वस्त्र धारण करें, सफेद आसन पर ही यन्त्र निर्माण व पूजन करने हेतु बैठें। पट्टे पर यन्त्र रखकर धूप-दीपादि से पूजन करें। सफेद पुष्प चढ़ाये। फिर पाँच माला



“ॐ सं सौन्दर्योत्तमायै नमः।”


नित्य पाँच रात्रि करें। पांचवे दिन रात्री में एक माला देशी घी व सफेद चन्दन के चूरे से हवन करें। हवन में आम की लकड़ी व चमेली की लकड़ी का प्रयोग करें।




सिद्ध मोहन मन्त्र

सिद्ध मोहन मन्त्र
॰ “ॐ नमो भगवती पाद-पङ्कज परागेभ्यः।”
विधिः- किसी पर्व काल में १२५ माला अथवा १२,५०० बार मन्त्र का जप कर सिद्ध कर लेना चाहिए। बाद में प्रयोग के समय किसी भी एक मन्त्र को तीन बार जप करने से आस-पास के व्यक्ति मोहित होते हैं

सिद्ध मोहन मन्त्र

सिद्ध मोहन मन्त्र
॰ “ॐ अं आं इं ईं उं ऊं हूँ फट्।”
विधिः- ताम्बूल को उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर साध्या को खिलाने से उसे खिलानेवाले के ऊपर मोह उत्पन्न होता है।

टोटके जिससे लोग सबसे ज्‍यादा डरते हैं

टोटके जिससे लोग सबसे ज्‍यादा डरते हैं
हमारे देश में जब भी किसी को गंभीर बीमारी हो जाती है, डॉक्‍टर जवाब दे देते हैं, तो लोग बाबा, मुल्‍ला, मौलवी, तांत्रिक आदि की शरण में चले जाते हैं। वो तमाम तरह के टोने-टोटके करने की सलाह देते हैं, इत्‍तेफाक से जब वो सफल हो जाते हैं, तो टोना करने वाला व्‍यक्ति पीड़ित के लिए भगवान से कम नहीं होता। देश में तमाम लोग ऐसे भी हैं, जो इन बातों पर विश्‍वास नहीं करते, लेकिन यह बात सच है कि आप विश्‍वास करें या न करें, इन बातों को लेकर डर जरूर लगता है। यहां हम उन्‍हीं टोटाकों की बात करेंगे जिनसे आदमी सबसे ज्‍यादा डरता है-
ये वो टोटके हैं जो प्रायः हमें किसी भी चौराहों, सुनसान जगह, प्रमुख स्थानों के आस पास देखने को मिल जाते हैं। ये वो टोटके हैं, जो केवल और केवल अंधविश्वास और नकारात्मक उर्जाओं की उपज हैं, अमूमन आदमी इन टोटको का प्रयोग कार्यसिद्धि के लिए करता है जहां इन टोटको के माध्यम से व्यक्ति को ये उम्मीद होती है की उसके रुके हुए काम पूरे हो जायंगे और उसका बिगड़ा भाग्य सुधर जायगा। इन टोटकों को आम बोल चाल की भाषा में काला जादू भी कहा जाता है। यहां हमारा मकसद न तो किसी की भावना और विश्वास को ठेस पहुंचना है और न ही आपको अंधविश्वासी बनाना है।
सड़क पर सुई से गुदा हुआ नींबू देखना
चौराहों या सुनसान जगहों पर अकसर ऐसा देखने को मिलता है कि सुई से गुदा हुआ एक नींबू पड़ा है। दूसरी दिशा से एक व्यक्ति अपनी गाडी से उसी ओर तेजी से चला आ रहा है गाड़ी की स्पीड चाहे कितनी ही तेज हो नींबूदेखके वो डगमगा ही जाती है। या फिर व्यक्ति हर संभव यही कोशिश करता है की उस पड़े हुए नींबूसे बच के निकल जाये। अब सवाल ये है की आखिर ऐसा क्यों होता है? चलिए हम आपको बताते हैं की ऐसे टोटके करने की मुख्य वजह क्या है।
आम जन मानस में ये धारणा है की यदि किसी व्यक्ति पर भूत, पिशाच, जिन, चुड़ैल का साया है तो उस व्यक्ति को इस साए से दूर करने के लिए तंत्र विद्या में इसका प्रयोग किया जाता है। लोगों का ये मानना है की यदि कोई व्यक्ति व्यक्ति इस नींबूको अपनी गाड़ी या फिर अपने पैरों से कुचल दे तो उनकी परेशानी दूर हो जायगी और पीड़ित व्यक्ति ठीक हो जायगा।
लोगों का ये भी मानना है की यदि किसी को भयंकर बीमारी हो तो एक नींबूमें पतली पिन से छेद करके उसे सात बार व्यक्ति के ऊपर से नांग कर ठीक रात्रि 12 बजे बीच चौराहे पर रख दे और फिर यदि कोई उस नींबू को नांग लेता है तो उस पीड़ित व्यक्ति की सारी बीमारियां उस व्यक्ति पर आ जाती है जिसने उसे नांगा है।
अमूमन सड़क पर नींबू वो लोग भी रखते है जो अपने व्यापार में भारी नुक्सान का सामना कर रहे होते हैं। ऐसे में ये धारणा होती है की यदि व्यक्ति को भोर के समय सड़क या प्रमुख चौराहे पर रख दे तो जल्द ही उसका आर्थिक संकट दूर होगा। यदि कोई महिला गर्भवती है और वो इस नींबू को नांग दे तो ये उसके लिए शुभ नहीं होता। लोगों का मानना है की इस तरह उसका गर्भपात हो सकता है।
नींबू का टोटका वो टोटका है जो बड़े बड़ों के कदम डगमगा देता है। जिस कारण व्यक्ति इनसे बहुत डरता है प्रायः ये देखा जाता है हर इंसान को अपने जीवन से बड़ा ही मोह रहता है और इन सब चीजों को देखकर उसे लगता है कि कहीं उसका जीवन संकट में न पड़ जाये। अंत में हम फिर से बताना चाहेंगे कि यह सब महज अंधविश्‍वास है।

तंत्र क्या है?

तंत्र क्या है?

तंत्र, तांत्रिक या टोने-टोटके का नाम सुनते ही हर आदमी के मन में एक जिज्ञासा उठती है कि आखिर यह तंत्र होता क्या है? तंत्र केवल अनिष्ट कार्यों के लिए ही नहीं होता बल्कि यह एक तरह की ऐसी विद्या है जो व्यक्ति के शरीर को अनुशासित बनाती है, शरीर पर खुद का नियंत्रण बढ़ाती है।

मोटे तौर पर देखा जाए तो तंत्र की परिभाषा बहुत सीधी और सरल है। सामान्य शब्दों में कहें तो तंत्र शब्द का अर्थ तन यानी शरीर से जुड़ा है। ऐसी सिद्धियां जिन्हें पाने के लिए पहले तन को साधना पड़े या ऐसी सिद्धियां जिन्हें शरीर की साधना से पाया जाए, उसे तंत्र कहते हैं। तंत्र एक तरह से शरीर की साधना है। एक ऐसी साधना प्रणाली, जिसमें केंद्र शरीर होता है। तंत्र शास्त्र का प्रारंभ भगवान शिव को माना गया है। शिव और शक्ति ही तंत्र शास्त्र के अधिष्ठाता देवता हैं। शिव और शक्ति की साधना के बिना तंत्र सिद्धि को हासिल नहीं किया जा सकता है।

तंत्र शास्त्र के बारे में अज्ञानता ही इसके डर का कारण हैं। दरअसल तंत्र कोई एक प्रणाली नहीं है, तंत्र शास्त्र में भी कई पंथ और शैलियां होती हैं। तंत्र शास्त्र वेदों के समय से हमारे धर्म का अभिन्न अंग रहा है। वेदों में भी इसका उल्लेख है और कुछ ऐसे मंत्र भी हैं जो पारलौकिक शक्तियों से संबंधित हैं इसलिए कहा जा सकता है कि तंत्र वैदिक कालीन है।तंत्र, तांत्रिक या टोने-टोटके का नाम सुनते ही हर आदमी के मन में एक जिज्ञासा उठती है कि आखिर यह तंत्र होता क्या है? तंत्र केवल अनिष्ट कार्यों के लिए ही नहीं होता बल्कि यह एक तरह की ऐसी विद्या है जो व्यक्ति के शरीर को अनुशासित बनाती है, शरीर पर खुद का नियंत्रण बढ़ाती है।

मोटे तौर पर देखा जाए तो तंत्र की परिभाषा बहुत सीधी और सरल है। सामान्य शब्दों में कहें तो तंत्र शब्द का अर्थ तन यानी शरीर से जुड़ा है। ऐसी सिद्धियां जिन्हें पाने के लिए पहले तन को साधना पड़े या ऐसी सिद्धियां जिन्हें शरीर की साधना से पाया जाए, उसे तंत्र कहते हैं। तंत्र एक तरह से शरीर की साधना है। एक ऐसी साधना प्रणाली, जिसमें केंद्र शरीर होता है। तंत्र शास्त्र का प्रारंभ भगवान शिव को माना गया है। शिव और शक्ति ही तंत्र शास्त्र के अधिष्ठाता देवता हैं। शिव और शक्ति की साधना के बिना तंत्र सिद्धि को हासिल नहीं किया जा सकता है।

तंत्र शास्त्र के बारे में अज्ञानता ही इसके डर का कारण हैं। दरअसल तंत्र कोई एक प्रणाली नहीं है, तंत्र शास्त्र में भी कई पंथ और शैलियां होती हैं। तंत्र शास्त्र वेदों के समय से हमारे धर्म का अभिन्न अंग रहा है। वेदों में भी इसका उल्लेख है और कुछ ऐसे मंत्र भी हैं जो पारलौकिक शक्तियों से संबंधित हैं इसलिए कहा जा सकता है कि तंत्र वैदिक कालीन है।

मंत्र साधनाओं एवं तंत्र के क्षेत्र में आज लोगों में रूचि बड़ी है, परन्तु फिर भी समाज में तंत्र के नाम से अभी भी भय व्याप्त है| यह पूर्ण शुद्ध सात्विक प्रक्रिया है, विद्या है| यह विडम्बना रही है, कि भारतीय ज्ञान का यह उज्ज्वलतम पक्ष अर्थात तंत्र से समाज भयभीत है|

समाज में आज बहुत ही ऐसे व्यक्ति मिलेंगे जो भौतिक चिन्तन से ऊपर उठाकर साधनात्मक जीवन जीने की ललक रखते हैं| मात्र दैनिक पूजा या अर्चना से ही प्रसन्न हो जाते हैं, परन्तु उनमें दुर्लभ साधनाओं के प्रति बिल्कुल कोई लालसा नहीं है| पूजा एक अलग चीज है, साधना एक बिल्कुल अलग चीज है|

साधना केवल वही दे सकता है जो गुरु है| आज गाँव, नुक्कड़ में कई पुजारी मिल जायेंगे, पंडित मिल जायेंगे पर वे गुरु नहीं हो सकते, उनमें कोई साधनात्मक बल नहीं होता है| वह पूजा, कर्मकांड मात्र एक ढकोसला है जिसमें समाज आज पुरी तरह फंसा है| यही कारण है कि व्यक्ति जीवन भर मन्दिर जाते हैं, सत्य नारायण की कथा तो कराते हैं, यज्ञ भी कराते हैं, परन्तु उन्हें न तो किसी प्रकार की कोई साधनात्मक अनुभूति होती है और न ही किसी देवी या देवता के दर्शन ही होते हैं फिर भी वे स्वयं साधना के क्षेत्र में पदार्पण नहीं करते| यदि व्यक्ति इन्हें जीवन में स्थान दें, तो वह सब कुछ स्वयं ही प्राप्त कर सकता है|

तंत्र में मुख्यत ६ कार्य आते है...

१. वशीकरण: किसी निश्चित व्यक्ति से को अपने अनुकूल कर लेना और अपने इच्छित कार्य करवाना वशीकरण में आता है ।
२. मोहन : व्यक्तियों के पुरे समूह को अपने अनुकूल करना मोहन तंत्र के अन्तरगत आता है ।
३. विद्वेषण : किन्ही २ व्यक्तियों के बीच में भयंकर झगडा करवाना की वह दोनों आपस में मरने मारने को उतारू हो जाए ।
४. उच्चाटन : शत्रु का किसी विशेष कार्य से इस प्रकार मोह भंग कर देना की वह कार्य छोड़ दे उच्चाटन तंत्र के अन्तरगत माना गया है ।
५. स्तम्भन : शत्रुओ की बुद्धि, बल को को इस प्रकार से भ्रष्ट कर देना की वेह समझ ही ना पाए की क्या करना है और क्या नहीं ।
६. मारन : शत्रु को मार देना या मृत्यु तुल्ये कष्ट देना मारन में आता है ।

तांत्रिक सिद्धि में कुंआरी कन्या क्यों?

तंत्र शास्त्र के बारे में बहुत-सी भ्रांतियां प्रचलित हैं। विशेषत: पचं 'मकार' साधना को लेकर, जिसमें मत्स्य, मदिरा, मुद्रा मैथुन आदि का वर्णन है। इसी कारण कुंआरी कन्या तथा मैथुन पर समय-समय पर आक्षेप लगते रहे हैं।

वस्तुत: इन शब्दों का अर्थ शाब्दिक न होकर गुप्त था जिसमें कुंआरी कन्या का महत्व नारी में अंतरनिहित चुंबकीय शक्ति (मैग्नेटिक फोर्स) से था।

नारी जितना पुरुष के संसर्ग में आती है वह उतनी ही चुंबकीय शक्ति का क्षरण करती जाती है। चुंबकीय शक्ति ही आद्याशक्ति है जिसे अंतर्निहित करके काम शक्ति को आत्मशक्ति में परिवर्तित किया जाता है। यह शक्ति दो केंद्रों में विलीन होती है।

प्रथमत: मूलाधार चक्र में, जहां से यह ऊर्जा जननेंद्रिय के मार्ग से नीचे प्रवाहित होकर प्रकृति में विलीन हो जाती है और यदि यही ऊर्जा भौंहों के मध्य स्‍थि‍त आज्ञा चक्र से जब ऊपर को प्रवाहित होती है तो सहस्रार स्‍थि‍त ब्रह्म से एकीकृत हो जाती है।

अत: कुंआरी कन्या का प्रयोग तांत्रिक उसकी शक्ति की सहायता से दैहिक सुख प्राप्त करने हेतु नहीं, ‍अपितु उसे भैरवी रूप में प्रतिष्ठित करके ब्रह्म से सायुज्य प्राप्त करने हेतु करता है।
तंत्र साधना में नारी क्यों है जरूरी...
ऋग्वेद के नासदीय सूक्त (अष्टक 8, मं. 10 सू. 129) में वर्णित है कि प्रारंभ में अंधकार था एवं जल की प्रधानता थी और संसार की उत्पत्ति जल से ही हुई है। जल का ही एक पर्यायवाची 'नार' है।

सृजन के समय विष्णु जल की शैया पर विराजमान होते हैं और नारायण कहलाते हैं एवं उस समय उनकी नाभि से प्रस्फुटित कमल की कर्णिका पर स्थित ब्रह्मा ही संसार का सृजन करते हैं और नारी का नाभि से ही सृजन प्रारंभ होता है तथा उसका प्रस्फुटन नाभि के नीचे के भाग में स्थि‍त सृजन पद्म में होता है।

सृजन की प्रक्रिया में नारायण एवं नारी दोनों समान धर्मी हैं एवं अष्टकमल युक्त तथा पूर्ण हैं जबकि पुरुष केवल सप्त कमलमय है, जो अपूर्ण है। इसी कारण तंत्र शास्त्र में तंत्रराज श्रीयंत्र की रचना में रक्तवर्णी अष्ट कमल विद्यमान होता है, जो नारी की अथवा शक्ति की सृजनता का प्रतीक है।

इसी श्रीयंत्र में अष्ट कमल के पश्चात षोडश दलीय कमल सृष्टि की आद्या शक्ति 'चन्द्रा' के सृष्टि रूप में प्रस्फुटन का प्रतीक है। चंद्रमा 16 कलाओं में पूर्णता को प्राप्त करता है। इसी के अनुरूप षोडशी देवी का मंत्र 16 अक्षरों का है तथा श्रीयंत्र में 16 कमल दल होते हैं। तदनुरूप नारी 27 दिन के चक्र के पश्चात 28वें दिन पुन: नवसृजन के लिए पुन: कुमारी रूपा हो जाती है।

यह संपूर्ण संसार द्वंद्वात्मक है, मिथुनजन्य है एवं इसके समस्त पदार्थ स्त्री तथा पुरुष में विभाजित हैं। इन दोनों के बीच आकर्षण शक्ति ही संसार के अस्तित्व का मूलाधार है जिसे आदि शंकराचार्यजी ने सौंदर्य लहरी के प्रथम श्लोक में व्यक्त किया है।

शिव:शक्तया युक्तो यदि भवति शक्त: प्रभवितुं।
न चेदेवं देवो न खलु कुशल: स्पन्दितुमपि।

यह आकर्षण ही कामशक्ति है जिसे तंत्र में आदिशक्ति कहा गया है। यह परंपरागत पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में से एक है। तंत्र शास्त्र के अनुसार नारी इसी आदिशक्ति का साकार प्रतिरूप है। षटचक्र भेदन व तंत्र साधना में स्त्री की उपस्थिति अनिवार्य है, क्योंकि साधना स्थूल शरीर द्वारा न होकर सूक्ष्म शरीर द्वारा ही संभव है।
अष्ट यक्षिणी साधना

जीवन में रस आवश्यक है
जीवन में सौन्दर्य आवश्यक है
जीवन में आहलाद आवश्यक है
जीवन में सुरक्षा आवश्यक है

ऐसे श्रेष्ठ जीवन के लिए संपन्न करें
अष्ट यक्षिणी साधना

बहुत से लोग यक्षिणी का नाम सुनते ही डर जाते हैं कि ये बहुत भयानक होती हैं, किसी चुडैल कि तरह, किसी प्रेतानी कि तरह, मगर ये सब मन के वहम हैं। यक्षिणी साधक के समक्ष एक बहुत ही सौम्य और सुन्दर स्त्री के रूप में प्रस्तुत होती है। देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर स्वयं भी यक्ष जाती के ही हैं। यक्षिणी साधना का साधना के क्षेत्र में एक निश्चित अर्थ है। यक्षिणी प्रेमिका मात्र ही होती है, भोग्या नहीं, और यूं भी कोई स्त्री भोग कि भावभूमि तो हो ही नहीं सकती, वह तो सही अर्थों में सौन्दर्य बोध, प्रेम को जाग्रत करने कि भावभूमि होती है। यद्यपि मन का प्रस्फुटन भी दैहिक सौन्दर्य से होता है किन्तु आगे चलकर वह भी भावनात्मक रूप में परिवर्तित होता है या हो जाना चाहिए और भावना का सबसे श्रेष्ठ प्रस्फुटन तो स्त्री के रूप में सहगामिनी बना कर एक लौकिक स्त्री के सन्दर्भ में सत्य है तो क्यों नहीं यक्षिणी के संदर्भ में सत्य होगी? वह तो प्रायः कई अर्थों में एक सामान्य स्त्री से श्रेष्ठ स्त्री होती है।

तंत्र विज्ञान के रहस्य को यदि साधक पूर्ण रूप से आत्मसात कर लेता है, तो फिर उसके सामाजिक या भौतिक समस्या या बाधा जैसी कोई वस्तु स्थिर नहीं रह पाती। तंत्र विज्ञान का आधार ही है, कि पूर्ण रूप से अपने साधक के जीवन से सम्बन्धित बाधाओं को समाप्त कर एकाग्रता पूर्वक उसे तंत्र के क्षेत्र में बढ़ने के लिए अग्रसर करे।

साधक सरलतापूर्वक तंत्र कि व्याख्या को समझ सके, इस हेतु तंत्र में अनेक ग्रंथ प्राप्त होते हैं, जिनमे अत्यन्त गुह्य और दुर्लभ साधानाएं वर्णित है। साधक यदि गुरु कृपा प्राप्त कर किसी एक तंत्र का भी पूर्ण रूप से अध्ययन कर लेता है, तो उसके लिए पहाड़ जैसी समस्या से भी टकराना अत्यन्त लघु क्रिया जैसा प्रतीत होने लगता है।

साधक में यदि गुरु के प्रति विश्वास न हो, यदि उसमे जोश न हो, उत्साह न हो, तो फिर वह साधनाओं में सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। साधक तो समस्त सांसारिक क्रियायें करता हुआ भी निर्लिप्त भाव से अपने इष्ट चिन्तन में प्रवृत्त रहता है।

ऐसे ही साधकों के लिए <strong>'उड़ामरेश्वर तंत्र'</strong> मे एक अत्यन्त उच्चकोटि कि साधना वर्णित है, जिसे संपन्न करके वह अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकता है तथा अपने जीवन में पूर्ण भौतिक सुख-सम्पदा का पूर्ण आनन्द प्राप्त कर सकता है।

'अष्ट यक्षिणी साधना' के नाम से वर्णित यह साधना प्रमुख रूप से यक्ष की श्रेष्ठ रमणियों, जो साधक के जीवन में सम्पूर्णता का उदबोध कराती हैं, की ये है।

ये प्रमुख यक्षिणियां है -
1. सुर सुन्दरी यक्षिणी २. मनोहारिणी यक्षिणी 3. कनकावती यक्षिणी 4. कामेश्वरी यक्षिणी
5. रतिप्रिया यक्षिणी 6. पद्मिनी यक्षिणी 6. नटी यक्षिणी 8. अनुरागिणी यक्षिणी

प्रत्येक यक्षिणी साधक को अलग-अलग प्रकार से सहयोगिनी होती है, अतः साधक को चाहिए कि वह आठों यक्षिणियों को ही सिद्ध कर लें।

सुर सुन्दरी यक्षिणी
यह सुडौल देहयष्टि, आकर्षक चेहरा, दिव्य आभा लिये हुए, नाजुकता से भरी हुई है। देव योनी के समान सुन्दर होने से कारण इसे सुर सुन्दरी यक्षिणी कहा गया है। सुर सुन्दरी कि विशेषता है, कि साधक उसे जिस रूप में पाना चाहता हैं, वह प्राप्त होता ही है - चाहे वह माँ का स्वरूप हो, चाहे वह बहन का या पत्नी का, या प्रेमिका का। यह यक्षिणी सिद्ध होने के पश्चात साधक को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है।

मनोहारिणी यक्षिणी
अण्डाकार चेहरा, हरिण के समान नेत्र, गौर वर्णीय, चंदन कि सुगंध से आपूरित मनोहारिणी यक्षिणी सिद्ध होने के पश्चात साधक के व्यक्तित्व को ऐसा सम्मोहन बना देती है, कि वह कोई भी, चाहे वह पुरूष हो या स्त्री, उसके सम्मोहन पाश में बंध ही जाता है। वह साधक को धन आदि प्रदान कर उसे संतुष्ट कराती है।

कनकावती यक्षिणी
रक्त वस्त्र धारण कि हुई, मुग्ध करने वाली और अनिन्द्य सौन्दर्य कि स्वामिनी, षोडश वर्षीया, बाला स्वरूपा कनकावती यक्षिणी है। कनकावती यक्षिणी को सिद्ध करने के पश्चात साधक में तेजस्विता तथा प्रखरता आ जाती है, फिर वह विरोधी को भी मोहित करने कि क्षमता प्राप्त कर लेता है। यह साधक की प्रत्येक मनोकामना को पूर्ण करने मे सहायक होती है।

कामेश्वरी यक्षिणी
सदैव चंचल रहने वाली, उद्दाम यौवन युक्त, जिससे मादकता छलकती हुई बिम्बित होती है। साधक का हर क्षण मनोरंजन करती है कामेश्वरी यक्षिणी। यह साधक को पौरुष प्रदान करती है तथा पत्नी सुख कि कामना करने पर पूर्ण पत्निवत रूप में साधक कि कामना करती है। साधक को जब भी द्रव्य कि आवश्यकता होती है, वह तत्क्षण उपलब्ध कराने में सहायक होती है।

रति प्रिया यक्षिणी
स्वर्ण के समान देह से युक्त, सभी मंगल आभूषणों से सुसज्जित, प्रफुल्लता प्रदान करने वाली है रति प्रिया यक्षिणी। रति प्रिया यक्षिणी साधक को हर क्षण प्रफुल्लित रखती है तथा उसे दृढ़ता भी प्रदान करती है। साधक और साधिका यदि संयमित होकर इस साधना को संपन्न कर लें तो निश्चय ही उन्हें कामदेव और रति के समान सौन्दर्य कि उपलब्धि होती है।

पदमिनी यक्षिणी
कमल के समान कोमल, श्यामवर्णा, उन्नत स्तन, अधरों पर सदैव मुस्कान खेलती रहती है, तथा इसके नेत्र अत्यधिक सुन्दर है। पद्मिनी यक्षिणी साधना साधक को अपना सान्निध्य नित्य प्रदान करती है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि यह अपने साधक में आत्मविश्वास व स्थिरता प्रदान कराती है तथा सदैव उसे मानसिक बल प्रदान करती हुई उन्नति कि और अग्रसर करती है।

नटी यक्षिणी
नटी यक्षिणी को 'विश्वामित्र' ने भी सिद्ध किया था। यह अपने साधक कि पूर्ण रूप से सुरक्षा करती है तथा किसी भी प्रकार कि विपरीत परिस्थितियों में साधक को सरलता पूर्वक निष्कलंक बचाती है।

अनुरागिणी यक्षिणी
अनुरागिणी यक्षिणी शुभ्रवर्णा है। साधक पर प्रसन्न होने पर उसे नित्य धन, मान, यश आदि प्रदान करती है तथा साधक की इच्छा होने पर उसके साथ उल्लास करती है।

साधना विधान
इस साधना में आवश्यक सामग्री है -
८ अष्टाक्ष गुटिकाएं
अष्ट यक्षिणी सिद्ध यंत्र
'यक्षिणी माला
'। साधक यह साधना किसी भी शुक्रवार को प्रारम्भ कर सकता है। यह तीन दिन की साधना है। लकड़ी के बजोट पर सफेद वस्त्र बिछायें तथा उस पर कुंकुम से निम्न यंत्र बनाएं।

फिर उपरोक्त प्रकार से रेखांकित यंत्र में जहां 'ह्रीं' बीज अंकित है वहां एक-एक अष्टाक्ष गुटिका स्थापित करें। फिर अष्ट यक्षिणी का ध्यान कर प्रत्येक गुटिका का पूजन कुंकूम, पुष्प तथा अक्षत से करें। धुप तथा दीप लगाएं। फिर यक्षिणी से निम्न मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर क्रमानुसार दिए गए हुए आठों यक्षिणियों के मंत्रों की एक-एक माला जप करें। प्रत्येक यक्षिणी मंत्र की एक माला जप करने से पूर्व तथा बाद में मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें। उदाहरणार्थ पहले मूल मंत्र की एक माला जप करें, फिर सुर-सुन्दरी यक्षिणी मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर क्रमशः प्रत्येक यक्षिणी से सम्बन्धित मंत्र का जप करना है। ऐसा तीन दिन तक नित्य करें।

मूल अष्ट यक्षिणी मंत्र
॥ ॐ ऐं श्रीं अष्ट यक्षिणी सिद्धिं सिद्धिं देहि नमः ॥

सुर सुन्दरी मंत्र
॥ ॐ ऐं ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा ॥

मनोहारिणी मंत्र
॥ ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा ॥कनकावती मंत्र॥ ॐ ह्रीं हूं रक्ष कर्मणि आगच्छ कनकावती स्वाहा ॥कामेश्वरी मंत्र॥ ॐ क्रीं कामेश्वरी वश्य प्रियाय क्रीं ॐ ॥रति प्रिया मंत्र॥ ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ रति प्रिया स्वाहा ॥पद्मिनी मंत्र॥ ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ पद्मिनी स्वाहा ॥नटी मंत्र॥ ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ नटी स्वाहा ॥अनुरागिणी मंत्र॥ ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा ॥

मंत्र जप समाप्ति पर साधक साधना कक्ष में ही सोयें। अगले दिन पुनः इसी प्रकार से साधना संपन्न करें, तीसरे दिन साधना साधना सामग्री को जिस वस्त्र पर यंत्र बनाया है, उसी में बांध कर नदी में प्रवाहित कर दें।

भैरवी

तंत्र के क्षेत्र में प्रविष्ट होने के उपरांत साधक को किसी न किसी चरण में भैरवी का साहचर्य ग्रहण करना पड़ता ही है। यह तंत्र एक निश्चित मर्यादा है। प्रत्येक साधक, चाहे वह युवा हो, अथवा वृद्ध, इसका उल्लंघन कर ही नहीं सकता, क्योंकि भैरवी 'शक्ति' का ही एक रूप होती है, तथा तंत्र की तो सम्पूर्ण भावभूमि ही, 'शक्ति' पर आधारित है। कदाचित इसका रहस्य यही है, कि साधक को इस बात का साक्षात करना होता है, कि स्त्री केवल वासनापूर्ति का एक माध्यम ही नहीं, वरन शक्ति का उदगम भी होती है और यह क्रिया केवल सदगुरुदेव ही अपने निर्देशन में संपन्न करा सकते है, क्योंकि उन्हें ही अपने किसी शिष्य की भावनाओं व् संवेदनाओं का ज्ञान होता है। इसी कारणवश तंत्र के क्षेत्र में तो पग-पग पर गुरु साहचर्य की आवश्यकता पड़ती है, अन्य मार्गों की अपेक्षा कहीं अधिक।

किन्तु यह भी सत्य है, कि समाज जब तक भैरवी साधना या श्यामा साधना जैसी उच्चतम साधनाओं की वास्तविकता नहीं समझेगा, तब तक वह तंत्र को भी नहीं समझ सकेगा, तथा, केवल कुछ धर्मग्रंथों पर प्रवचन सुनकर अपने आपको बहलाता ही रहेगा।

पूज्यपाद गुरुदेव की आज्ञा को ध्यान में रखकर इसी कारणवश मैं भैरवी साधना की पूर्ण एवं प्रामाणिक साधना विधि प्रस्तुत करने में असमर्थ हूं, किन्तु मेरा विश्वास है, कि कुछ साधक ऐसे होंगे ही, जो साधना के मर्म को समझते होंगे तथा व्यक्तिगत रूप से आगे बढकर उन साधनाओं को सुरक्षीत कर सकेंगे, जो हमारे देश की अनमोल थाती हैं।

साधनाएं केवल साधकों के शरीरों के माध्यम से संरक्षित होती है, उन्हें संजो लेने के लिए किसी भी कैसेट या फ्लापी या डिस्क न तो बन सकी है, न बनेगी। आशा है, गंभीर साधक इस बात को विवेचानापूर्वक आत्मसात करेंगे।

शक्ति उपासकों का जो दुसरा वाम मार्गी मत था, उसमें शराब को जगह दी गई। उसके बाद बलि प्रथा आई और माँस का सेवन होने लगा। इसी प्रकार इसके भी दो हिस्से हो गये, जो शराब और माँस का सेवन करते थे, उन्हे साधारण-तान्त्रिक कहा जाने लगा। लेकिन जिन्होनें माँस और मदिरा के साथ-साथ मीन(मछली), मुद्रा(विशेष क्रियाँऐं), मैथुन(स्त्री का संग) आदि पाँच मकारों का सेवन करने वालों को सिद्ध-तान्त्रिक कहाँ जाने लगा। आम व्यक्ति इन सिद्ध-तान्त्रिकों से डरने लगा। किन्तु आरम्भ में चाहें वह साधारण-तान्त्रिक हो या सिद्ध-तान्त्रिक, दोनों ही अपनी-अपनी साधनाओं के द्वारा उस ब्रह्म को पाने की कोशिश करते थे। जहाँ आरम्भ में पाँच मकारों के द्वार ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा बनाई जाती थी और उस ऊर्जा को कुन्डलिनी जागरण में प्रयोग किया जाता था। ताकि कुन्डलिनी जागरण करके सहस्त्र-दल का भेदन किया जा सके और दसवें द्वार को खोल कर सृष्टि के रहस्यों को समझा जा सके।

कोई माने या न माने लेकिन यदि काम-भाव का सही इस्तेमाल किया जा सके तो इससे ब्रह्म की प्राप्ति सम्भव है।

इसी वक्त एक और मत सामने आया जिसमें की भैरवी-साधना या भैरवी-चक्र को प्राथमिकता दी गई। इस मत के साधक वैसे तो पाँचों मकारों को मानते थे, किन्तु उनका मुख्य ध्येय काम के द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति था।

भैरवी साधना में कई भेद है– जहाँ प्रथम रूप में स्त्री और पुरूष निर्वस्त्र हो कर एक दूसरे से तीन फुट की दूरी पर आमने सामने बैठ कर, एक दूसरे की आँखों में देखते हुऐ शक्ति मंत्रों का जाप करते हैं। लगातार ऐसा करते रहने से साधक के अन्दर का काम-भाव उर्ध्व-मुखी हो कर उर्जा के रूप में सहस्त्र-दल का भेदन करता है। वहीं अन्तिम चरण में स्त्री और पुरूष सम्भोग करते हुऐ, अपने आपको काबू में रखते हैं। दोनों ही शक्ति मंत्रों का जाप करते है और कोशिश करते है की जितना भी हो सके, उतनी ही देर से स्त्री या पुरूष का स्खलन हो। इसके साथ ही इस साधना को करवाने वाला योग्य गुरू अपने शिष्यों को यह निर्देश देता हैं, कि जब भी स्खलन हो तो दोनों का एक साथ हो। इससे यह होता है, कि जैसे बिजली के दो तारों को जिसमें एक गर्म(फेस) और दूसरा ठंडा(न्यूट्रल) हो, यदि इन दोनों को आपस में टकरा दिया जाये तो चिंगारी(स्पार्किन्ग) निकलेगी, उसी प्रकार अगर स्त्री और पुरूष दोनों का स्खलन एक साथ होने पर अत्यधिक उर्जा उत्पन्न होगी जिससे की एक ही झटके में सहस्त्र-दल का भेदन हो जायेगा। सहस्त्र-दल का भेदन करने के लिऐ आज तक जितने भी प्रयोग हुऐ है, उन सभी प्रयोगों में यह प्रयोग सब से अनूठा है। ऐसे साधक को साधना के तुरन्त बाद दिव्य ध्वनियॉ एवं ब्रह्माण्ड में गूंज रहे दिव्य मंत्र सुनाई पड़ते है। साधक को दिव्य प्रकाश दिखाई देता है। साधक के मन में कई महीनों तक दुबारा काम-भाव कि उत्पत्ति नहीं होती।

प्रत्येक साधना में कोई न कोई कठिनाई अवश्य होती है, उसी प्रकार इस साधना में जो सबसे बड़ी कठिनाई है, वह यह है कि अपने आप को काबू में रखना एवं साधक और साधिका का एक साथ स्खलन होना। किन्तु धीरे-धीरे भैरवी-साधना भी मात्र काम-वासना का उपभोग बन कर रह गई। धीरे-धीरे साधक सहस्त्र-दल भेदन को भूल गये और उस परमपिता-परमात्मा को भी जिसने कि यह सम्पूर्ण सृष्टि बनाई है, भुलने लगे। भैरवी-साधना मात्र व्याभिचार-साधना बन कर रह गई। इसका मूल कारण सही गुरू एवं सही दीक्षा तथा पूर्ण मंत्र का न होना भी है। जब तक साधक के पास सही मंत्र एवं दीक्षा नहीं होगी तब तक साधक चाहे कितना भी अभ्यास करे भैरवी-साधना में सफलता असम्भव है। क्योंकि भैरवी-तंत्र के अनुसार भैरवी ही गुरू है और गुरू ही भैरवी का रूप है।

योगिनी / सहचरी के साथ संभोग करना

संभोग करना- सीधी सपाट भाषा में इसे मैथुन या संभोग करना कहते हैं- जब कोई साधक तनाव में आए हुए लिंग को योगिनी / सहचरी की योनि में प्रवेश करते हैं।

अधिकांश तांत्रिक / साधक पहले दूसरे तरीकों से यौन क्रिया करते हैं। इसलिए ऐसा न सोचें कि आपको सीधे संभोग ही करना होगा।

किसी योगिनी / सहचरी के साथ संभोग कैसे करें
आरंभ में ही सीधे संभोग करना शुरू न करें। धीरे-धीरे आगे बढ़ें, सुनिश्चित कर लें कि आप दोनों वास्तव में संभोग के लिए तैयार हो चुके हैं। धीरे-धीरे एक-दूसरे के कपड़े उतारें, एक-दूसरे के शरीर पर चुंबन लें और सहलाएं, एक-दूसरे की प्रशंसा करें।
पहले उनके पेट, स्तनों, जांघों के निचले हिस्सों को सहलाएं। रोमांच बढ़ाने के लिए पहले उनकी टांगों के बीच उनके भगोष्ठ को थोड़ी देर के लिए छूएं, जैसे कि यह अचानक हो गया हो।

टिठनी
टिठनी को उंगली या जीभ से सहलाएं। ऐसा आप, संभोग से पहले, संभोग के दौरान और संभोग के बाद भी कर सकते हैं। अधिकांश योगिनी / सहचरी को चरम आनंद तभी महसूस होता है जब टिठनी में यौन उत्तेजना आती है, संभोग से नहीं। क्योंकि टिठनी योनि के अंदर नहीं होती बल्कि इसके बाहर और सामने होती है।

जी-स्पॉट
कुछ योगिनी / सहचरी में जी-स्पॉट भी मौज़ूद होता है। यह, योनि के तीन-पांच सें.मी. अंदर सामने वाली सतह पर सिक्के के आकार का एक क्षेत्र होता है। कुछ योगिनी / सहचरी के लिए इसका कोई खास महत्व नहीं होता, लेकिन दूसर

सर्व-कार्य-सिद्धि हेतु शाबर मन्त्र

सर्व-कार्य-सिद्धि हेतु शाबर मन्त्र
“काली घाटे काली माँ, पतित-पावनी काली माँ, जवा फूले-स्थुरी जले। सई जवा फूल में सीआ बेड़ाए। देवीर अनुर्बले। एहि होत करिवजा होइबे। ताही काली धर्मेर। बले काहार आज्ञे राठे। कालिका चण्डीर आसे।”
विधिः- उक्त मन्त्र भगवती कालिका का बँगला भाषा में शाबर मन्त्र है। इस मन्त्र को तीन बार ‘जप’ कर दाएँ हाथ पर फूँक मारे और अभीष्ट कार्य को करे। कार्य में निश्चित सफलता प्राप्त होगी। गलत कार्यों में इसका प्रयोग न करें।

मूंछों से जानिए अपना सौभाग्य

मूंछों से जानिए अपना सौभाग्यआपका स्वभाव बताए, मूंछें कैसी-कैसी


जिनकी मूंछें होती है उनके व्यक्तित्व को रौबदार माना जाता है लेकिन क्या आपको पता है कि आप जैसी मूंछें रखना पसंद करते हैं वह आपके स्वभाव को भी दर्शाती हैं।
जानिए मूंछों से अपना भविष्य और फिर पहचानिए अपने व्यक्तित्व के छुपे राज-
लंबी मूंछें- शौर्य एवं साहस की प्रतीक हैं। ऐसे व्यक्ति नि:स्वार्थ भाव से जनसेवा करते हैं। भाग्यशाली होते हैं।
छोटी मूंछें- व्यवहारकुशलता की चिह्न है। ऐसे व्यक्ति निजी लाभ की चिंता सदा रखते हैं।
ऊंची उठी मूंछें- ऐसे व्यक्ति स्वयं को बड़ा आदमी समझते हैं। उन्हें भोग की कामना अधिक होती है तथा वे परिश्रम से धन संचय करते हैं।
सीधी मूंछें- जीवन में सादगी तथा दुनियादारी का प्रतीक हैं। गृहस्थ जीवन में दुख तथा धन का अभाव दर्शाती है।
सफाचट मूंछें- दुर्भाग्य का संकेत हैं। ऐसे व्यक्ति हर सही-गलत ढंग से अपना मनोरथ सिद्ध करते हैं। विश्वास के योग्य नहीं होते। शत्रु का कभी सामना नहीं करते।
Note = kisi ko bura lage to hum jimedaar nahi hai baki ye sach hai,

दीपावली पर करें तंत्र-मंत्र सिद्धि

दीपावली पर करें तंत्र-मंत्र सिद्धिकुछ खास मंत्र एवं सिद्‍ध प्रयोग

संसार की रचना के साथ ही कई चीजों का अविष्कार हुआ है। जैसे-जैसे मनुष्य ने उन्नति की अपने स्वार्थ, पुरुषार्थ, परोपकार के लिए कुछ न कुछ खोजता रहा, ये जिज्ञासा संसार में सदैव प्रबल रही है। कई ऐसे शुभ सिद्धिदायक मुहुर्त होते हैं जिनमें तंत्र-विज्ञान में रुचि लेने वाले तंत्र सिद्धि करते हैं। प्रस्तुत है चौदस अमावस्या (दीपावली) को सिद्‍ध होने वाले मंत्र एवं प्रयोग।
* रोगी को ठीक करने के लिए :- कृष्ण पक्ष में अमावस्या की रात को 12 बजे नहा-धोकर नीले रंग के वस्त्र ग्रहण करें। आसन पर नीला कपड़ा बिछाकर पूर्व की ओर मुख करके बैठे। इसके पश्चात चौमुखी दीपक (चार मुँह वाला जलाएँ। (निम्न सामग्री पहले से इकट्‍ठी करके रख लें) नीला कपड़ा सवा गज - 4 मीटर चौमुखी दिए 40 नग, मिट्‍टी की गड़वी 1 नग, सफेद कुशासन(कुश का आसन) 1 नग, बत्तियाँ 51 नग, छोटी इलायची 11 दाने, छुहारे (खारक) 5 नग, एक नीले कपड़े का रूमाल, दियासलाई, लौंग 11 दाने, तेल सरसों 1 किलो इत्र व शीशी गुलाब के फूल 5 नग, गेरू का टुकड़ा, 1 लडडू और लड्डू के टुकड़े 11 नग।
विधि - नीले कपड़े के चारों कोने में लड्‍डू, लौंग, इलायची एवं छुहारे बाँध लें, फिर‍ मिट्‍टी के बर्तन में पानी भरकर, गुलाब के फूल भी वहाँ रख लें। फिर नीचे लिखा मंत्र पढ़ें। मंत्र पढ़ते समय लोहे की चीज (दियासलाई) से अपने चारों ओर लकीर खींच लें।
मंत्र इस प्रकार है।
ऊँ अनुरागिनी मैथन प्रिये स्वाहा।
शुक्लपक्षे, जपे धावन्ताव दृश्यते जपेत्।।
यह मंत्र चालीस दिन लगातार पढ़ें, (सवा लाख बार) सुबह उठकर नदी के पानी में अपनी छाया को देखें। जब मंत्र संपूर्ण हो जाएँ तो सारी सामग्री (नीले कपड़े सहित) पानी में बहा दें।
अब जिसको आप अपने वश में करना चाहते हैं अथवा जिस किसी रोगी का इलाज करना चाहते हैं, उसका नाम लेकर इस मंत्र को 1100 बार पढ़ें, बस आपका काम हो जाएगा।
शत्रु वशीकरण मंत्र
(श्रीयंत्र)
इस यंत्र को अमावस्या के दिन लाल स्याही से नगाड़े पर लिखकर नगाड़ा बजाएँ तो शत्रु वशीभूत हो जाता है।
इस प्रकार दोनों प्रयोग आप चौदस एवं दीपावली पर करें तो आप अवश्य सफल होंगे। आपका कार्य सफल होगा।

जानिए दीपावली की पूजन सामग्री

जानिए दीपावली की पूजन सामग्री
दीपावली पर पूजन सामग्री का विशेष महत्व हैं। इस पांच दिवसीय त्योहार में दीपावली का प्रमुख पर्व लक्ष्मी पूजन होता है। इस दिन रात्रि को जागरण करके धन की देवी लक्ष्मी माता का पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए। घर के प्रत्येक स्थान को स्वच्छ करके वहां दीपक लगाना चाहिए, जिससे घर में लक्ष्मी का वास एवं दरिद्रता का नाश होता है।
आपके लिए प्रस्तुत हैं दीपावली के पूजन सामग्री की सूची :-

* लक्ष्मीजी का पाना (अथवा मूर्ति)
* गणेशजी की मूर्ति
* सरस्वती का चित्र
* धूप बत्ती (अगरबत्ती)
* चंदन
* कपूर
* केसर
* यज्ञोपवीत 5
* कुंकु
* चावल
* अबीर
* गुलाल, अभ्रक
* हल्दी
* सौभाग्य द्रव्य- मेहँदी
* चूड़ी, काजल, पायजेब,
* बिछुड़ी आदि आभूषण।
* नाड़ा
* रुई
* रोली, सिंदूर
* सुपारी, पान के पत्ते
* पुष्पमाला, कमलगट्टे
* धनिया खड़ा
* सप्तमृत्तिका
* सप्तधान्य
* कुशा व दूर्वा
* पंच मेवा
* गंगाजल
* शहद (मधु)
* शकर
* घृत (शुद्ध घी)
* दही
* दूध
* ऋतुफल (गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े इत्यादि)
* नैवेद्य या मिष्ठान्न (पेड़ा, मालपुए इत्यादि)
* इलायची (छोटी)
* लौंग
* मौली
* इत्र की शीशी
* तुलसी दल
* सिंहासन (चौकी, आसन)
* पंच पल्लव (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते)
* औषधि (जटामॉसी, शिलाजीत आदि)
* चांदी का सिक्का
* लक्ष्मीजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र
* गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र
* अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र
* जल कलश (ताँबे या मिट्टी का)
* सफेद कपड़ा (आधा मीटर)
* लाल कपड़ा (आधा मीटर)
* पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार)
* दीपक
* बड़े दीपक के लिए तेल
* ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा)
* श्रीफल (नारियल)
* धान्य (चावल, गेहूं)
* लेखनी (कलम)
* बही-खाता, स्याही की दवात
* तुला (तराजू)
* पुष्प (गुलाब एवं लाल कमल)
* एक नई थैली में हल्दी की गाँठ,
* खड़ा धनिया व दूर्वा आदि
* खील-बताशे
* अर्घ्य पात्र सहित अन्य सभी पात्र

दीपावली पूजन की प्रामाणिक विधि

दीपावली पूजन की प्रामाणिक विधि
दिवाली पर कैसे करें शास्त्रीय विधि से पूजन
देवी लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री अपनी सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए। इसमें लक्ष्मीजी को कुछ वस्तुएं विशेष प्रिय हैं। उनका उपयोग करने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इनका उपयोग अवश्य करना चाहिए।
वस्त्र में इनका प्रिय वस्त्र लाल, गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है। माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय हैं। फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं। सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। अनाज में चावल तथा मिठाई में घर में बनी शुद्धतापूर्ण केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है।
प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है। अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्व पत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए।
तैयारी:
चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।
दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें।
मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएँ। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें।
थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें-
1. 11 दीपक,
2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चंदन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान,
3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।
इन थालियों के सामने यजमान बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
चौकी
(1) लक्ष्मी, (2) गणेश, (3-4) मिट्टी के दो बड़े दीपक, (5) कलश, जिस पर नारियल रखें, वरुण, (6) नवग्रह, (7) षोडशमातृकाएं, (8) कोई प्रतीक, (9) बहीखाता, (10) कलम और दवात, (11) नकदी की संदूकची, (12) थालियां, 1, 2, 3, (13) जल का पात्र, (14) यजमान, (15) पुजारी, (16) परिवार के सदस्य, (17) आगंतुक।
पूजा की संक्षिप्त विधि-
सबसे पहले पवित्रीकरण करें। आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा-सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग ऋषिः सुतलं छन्दः
कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः
अब आचमन करें
पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ केशवाय नमः
और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ नारायणाय नमः
फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ वासुदेवाय नमः
फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। पुनः तिलक लगाने के बाद प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें। आचमन करने से विद्या तत्व, आत्म तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है तथा तिलक व अंग न्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है।
आचमन आदि के बाद आंखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी सांस लीजिए। यानी प्राणायाम कीजिए क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है फिर पूजा के प्रारंभ में स्वस्तिवाचन किया जाता है। उसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत और थोड़ा जल लेकर स्वतिनः इंद्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता परमात्मा को प्रणाम किया जाता है। फिर पूजा का संकल्प किया जाता है। संकल्प हर एक पूजा में प्रधान होता है।
संकल्प
आप हाथ में अक्षत लें, पुष्प और जल ले लीजिए। कुछ द्रव्य भी ले लीजिए। द्रव्य का अर्थ है कुछ धन। ये सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों।
सबसे पहले गणेशजी व गौरी का पूजन कीजिए। उसके बाद वरुण पूजा यानी कलश पूजन करनी चाहिए। हाथ में थोड़ा सा जल ले लीजिए और आह्वान व पूजन मंत्र बोलिए और पूजा सामग्री चढ़ाइए। फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है।
हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प ले लीजिए। 16 माताओं को नमस्कार कर लीजिए और पूजा सामग्री चढ़ा दीजिए। 16 माताओं की पूजा के बाद रक्षाबंधन होता है। रक्षाबंधन विधि में मौली लेकर भगवान गणपति पर चढ़ाइए और फिर अपने हाथ में बंधवा लीजिए और तिलक लगा लीजिए। अब आनंदचित्त से निर्भय होकर महालक्ष्मी की पूजा प्रारंभ कीजिए।

विपरीत-प्रत्यंगिरा महा-विद्या स्तोत्र

विपरीत-प्रत्यंगिरा महा-विद्या स्तोत्र
शत्रु की प्रबल से प्रबलतम तांत्रिक क्रियाओं को वापिस लौटने वाली एवं रक्षा करने वाली ये दिव्य शक्ति है I परप्रयोग को नाश करने के लिए, शत्रुओं के किये-करायों को नाश करने के लिए इस तन्त्र का प्रयोग किया जाता है I एक तन्त्र सिद्ध एवं चलन क्रियाओं को जानने वाला तांत्रिक ही इस विद्या का प्रयोग कर सकता है क्योंकि इस विद्या को प्रयोग करने से पूर्व शत्रुओं के तन्त्र शक्ति, उसकी प्रकृति एवं उसकी मारक क्षमता का ज्ञान होना अति आवश्यक है क्योंकि साधारण युद्ध में भी शत्रु की गति और शक्ति को न पहचानने वाला, उसको कम आंकने वाला हमेशा मारा जाता है I फिर यह तो तरंगों से होने वाला अदृश्य युद्ध है I
वास्तव में प्रत्यंगिरा स्वयं में शक्ति न होकर नारायण, रूद्र, कृत्य, भद्रकाली आदि महा शक्तियों की संवाहक है I जैसे तारें स्वयं में विद्युत् न होकर करंट की सम्वाहिकाएँ हैं I
बहुत से व्यक्ति प्रेत, यक्ष, राक्षस, दानव, दैत्य, मरी-मसान, शंकिनी, डंकिनी बाधाओं तथा दूसरे के द्वारा या अपने द्वारा किए गए प्रयोगों के फल-स्वरुप पीड़ित रहते हैं। इन सबकी शान्ति हेतु यहाँ भैरव-तन्त्रोक्त ‘विपरीत-प्रत्यंगिरा’ की विधि प्रस्तुत है।
पीड़ित व्यक्ति या प्रयोग-कर्ता गेरुवा लंगोट पहन कर एक कच्चा बिल्व-फल अपने तथा एक पीड़ित व्यक्ति के पास रखे। रात्रि में सोने से पूर्व पीड़ित व्यक्ति की चारपाई पर चारों ओर इत्र का फाहा लगाए। रात्रि को १०८ या कम से कम १५ पाठ सात दिन तक करे। नित्य गो-घृत या घृत-खाण्ड (लाल शक्कर), घृत, पक्वान्न, बिल्व-पत्र, दूर्वा, जाउरि (गुड़ की खीर) से हवन करे। सात ब्राह्मणों या कुमारियों को भोजन प्रतिदिन करावे। यदि भोजन कराने में असमर्थ हो, तो कुमारियों को थोड़े बताशे तथा दक्षिणा प्रतिदिन दे। बिल्व-फल जब काला पड़ जाये, तो दूसरा हरा बिल्व-फल ले ले। फल को लाल कपड़े में लपेटकर रखे।
II ध्यानम् II
नानारत्नार्चिराक्रान्तं वृक्षाम्भ: स्त्रव??र्युतम् I
व्याघ्रादिपशुभिर्व्याप्तं सानुयुक्तं गिरीस्मरेत् II
मत्स्यकूर्मादिबीजाढ्यं नवरत्न समान्वितम् I
घनच्छायां सकल्लोलम कूपारं विचिन्तयेत् II
ज्वालावलीसमाक्रान्तं जग स्त्री तयमद्भुतम् I
पीतवर्णं महावह्निं संस्मरेच्छत्रुशान्तये II
त्वरा समुत्थरावौघमलिनं रुद्धभूविदम् I
पवनं संस्मरेद्विश्व जीवनं प्राणरूपत: II
नदी पर्वत वृक्षादिकालिताग्रास संकुला I
आधारभूता जगतो ध्येया पृथ्वीह मंत्रिणा II
सूर्यादिग्रह नक्षत्र कालचक्र समन्विताम् I
निर्मलं गगनं ध्यायेत् प्राणिनामाश्रयं पदम् II
“वक्र-तुण्ड महा-काय, कोटि-सूर्य-सम-प्रभं! अविघ्नं कुरु मे देव! सर्व-कार्येषु सर्वदा।।”
उक्त श्लोक को पढ़कर भगवान् गणेश को नमन करे। फिर पाठ करे-
ब्राह्मी मां पूर्चतः पातु, वह्नौ नारायणी तथा। माहेश्वरी च दक्षिणे, नैऋत्यां चण्डिकाऽवतु।।
पश्चिमेऽवतु कौमारी, वायव्ये चापराजिता। वाराही चोत्तरे पातु, ईशाने नारसिंहिका।।
प्रभाते भैरवी पातु, मध्याह्ने योगिनी क्रमात्। सायं मां वटुकः पातु, अर्ध-रात्रौ शिवोऽवतु।।
निशान्ते सर्वगा पातु, सर्वदा चक्र-नायिका।
ॐ क्षौं ॐ ॐ ॐ हं हं हं यां रां लां खां रां रां क्षां ॐ ऐं ॐ ह्रीं रां रां मम रक्षां कुरु ॐ ह्रां ह्रं ॐ सः ह्रं ॐ क्ष्रीं रां रां रां यां सां ॐ वं यं रक्षां कुरु कुरु।
ॐ नमो विपरित-प्रत्यंगिरायै विद्या-राज्ञो त्रैलोक्य-वशंकरी तुष्टि-पुष्टि-करी, सर्व-पीड़ापहारिणी, सर्व-रक्षा-करी, सर्व-भय-विनाशिनी। सर्व-मंगल-मंगला-शिवा सर्वार्थ-साधिनी। वेदना पर-शस्त्रास्त्र-भेदिनी, स्फोटिनी, पर-तन्त्र पर-मन्त्र विष-चूर्ण सर्व-प्रयोगादीनामभ्युपासितं, यत् कृतं कारितं वा, तन्मस्तक-पातिनी, सर्व-हिंसाऽऽकर्षिणी, अहितानां च नाशिनी दुष्ट-सत्वानां नाशिनी। यः करोति यत्-किञ्चित् करिष्यति निरुपकं कारयति। तन्नाशयति, यत् कर्मणा मनसा वाचा, देवासुर-राक्षसाः तिर्यक् प्रेत-हिंसका, विरुपकं कुर्वन्ति, मम मन्त्र, यन्त्र, विष-चूर्ण, सर्व-प्रयोगादीनात्म-हस्तेन, पर-हस्तेन। यः करोति करिष्यति कारियिष्यति वा, तानि सर्वाणि, अन्येषां निरुपकानां तस्मै च निवर्तय पतन्ति, तस्मस्तकोपरि।
।।भैरव-तन्त्रान्तर्गत विपरित-प्रत्यंगिरा महा-विद्या स्तोत्रम्।।

माँ लक्ष्मी की स्थायी कृपा, धन प्राप्ति के लिए कुछ खास उपाय / टोटके

माँ लक्ष्मी की स्थायी कृपा, धन प्राप्ति के लिए कुछ खास उपाय / टोटके
1. सदैव याद रखें कभी भी किसी से कोई चीज मुफ्त में न लें , हमेशा उसका मूल्य अवश्य ही चुकाएं , कभी भी किसी व्यक्ति को धोखा देकर धन का संचय न करें , इस तरह से कमाया हुआ धन टिकता नहीं है , वह उस व्यक्ति और उसके परिवार के ऊपर कर्ज के रूप में चढ जाता है और ऐसा करने से व्यक्ति के स्वयं के भाग्य और उसके कर्म से आसानी से मिलने वाली सम्रद्धि और सफलता में भी हमेशा बाधाएँ ही आती है ।
2. हर एक व्यक्ति को चाहे वह अमीर हो या गरीब , उसका जो भी व्यवसाय / नौकरी हो अपनी आय का कुछ भाग प्रति माह धार्मिक कार्यों में अथवा दान पुण्य में अवश्य ही खर्च करें , ऐसा करने से उस व्यक्ति पर माँ लक्ष्मी की सदैव कृपा बनी रहती है , उसके परिवार में हर्ष - उल्लास और सहयोग का वातावरण बना रहता है तथा सामान्यता वह अपने दायित्वों के पूर्ति के लिए पर्याप्त धन अवश्य ही आसानी से कमा लेता है ।
3. स्त्रियों को स्वयं लक्ष्मी का स्वरुप माना गया है । प्रत्येक स्त्री को पूर्ण सम्मान दें । घर की व्यवस्था अपनी पत्नी को सौपें , वही घर को चलाये उसके काम में कभी भी मीन मेख न निकालें । अपने माता पिता को अपनी आय का एक निश्चित हिस्सा अवश्य ही दें । घर में कोई भी बड़ा काम हो तो उस घर के बड़े बुजुर्गों विशेषकर स्त्रियों को अवश्य ही आगे करें । अपने घर एवं रिश्तेदारी में अपनी पत्नी को अवश्य ही आगे रखें । अपनी माँ, पत्नी, बहन एवं बेटी को हर त्यौहार , जन्मदिवस , एवं शादी की सालगिरह आदि पर कोई न कोई उपहार अवश्य ही दे ।
4. घर के मुखिया जो अपने घर व्यापार में माँ लक्ष्मी की कृपा चाहते है वह रात के समय कभी भी चावल, सत्तू , दही , दूध ,मूली आदि खाने की सफेद चीजों का सेवन न करें इस नियम का जीवन भर यथासंभव पालन करने से आर्थिक पक्ष हमेशा ही मजबूत बना रहता है ।
5. शुक्रवार को सवा सौ ग्राम साबुत बासमती चावल और सवा सौ ग्राम ही मिश्री को एक सफेद रुमाल में बांध कर माँ लक्ष्मी से अपनी गलतियों की क्षमा मांगते हुए उनसे अपने घर में स्थायी रूप से रहने की प्रार्थना करते हुए उसे नदी की बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें , धीरे धीरे आर्थिक पक्ष मजबूत होता जायेगा ।
6. प्रथम नवरात्री से नवमी तिथि तक प्रतिदिन एक बार श्रीसूक्त का अवश्य ही पाठ करें इससे निश्चय ही आप पर माता लक्ष्मी की कृपा द्रष्टि बनी रहेगी ।
7. घर के पूजा स्थल और तिजोरी में सदैव लाल कपडा बिछा कर रखें और संध्या में आपकी पत्नी या घर की कोई भी स्त्री नियम पूर्वक वहां पर ३ अगरबत्ती जला कर अवश्य ही पूजा करें ।
8. प्रत्येक पूर्णिमा में नियमपूर्वक साबूदाने की खीर मिश्री और केसर डाल कर बनाये फिर उसे माँ लक्ष्मी को अर्पित करते हुए अपने जीवन में चिर स्थाई सुख , सौभाग्य और सम्रद्धि की प्रार्थना करें , तत्पश्चात घर के सभी सदस्य उस खीर के प्रशाद का सेवन करें ।
9. हर 6 माह में कम से कम एक बार अपने माता पिता को कोई उपहार अवश्य ही दें इससे आपकी आय में सदैव बरकत रहेगी ।
10. घर में तुलसी का पौधा लगाकर वहां पर संध्या के समय रोजाना घी का दीपक जलाने से माता लक्ष्मी उस घर से कभी भी नहीं जाती है ।
11.
घर और कार्यस्थल के उत्तर पूर्व अर्थात ईशान कोण को बिलकुल साफ रखे । दोनों ही जगह के ईशान कोण में जल का स्रोत अथवा गंगा जल रखने से उस घर में सुख समृद्धि आती है,धन धान्य की कभी भी कोई भी कमी नहीं रहती है।
12.
जीवन में सफ़ेद चीजो का दान ज्यादा से ज्यादा करते रहना चाहिए , इससे माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती है और घर में धन की वृद्धि होती है ।
धन रखने के लिए उत्तर दिशा के कमरे की दक्षिण दीवार से लगभग 2 इंच दूर पर अलमारी रहे जिसका मुँख उत्तर की ओर खुले । अलमारी पर लाल रंग का पेंट करवाना शुभ रहता है तथा इसके हैंडिल पर लाल धागे में 1,3,5,7 आदि विषम संख्या में सिक्के बांध कर रखे । घर में कभी भी धन धान्य की कमी नहीं रहेगी ।
13.
धन ,वैभव, यश, कीर्ति ,सुख शांति के लिए एक ही उपाय - शुक्र को प्रसन्न करे अत्यन्त लाभकारी उपाय .
इस मात्र का जप करे .
ओम भरग़ुजाए विधमहे दिव्याद ेहाए धिमही त्ंनो शुक्रह
प्रचोड़यत .
मात्र तीन दिन मे इसका असर देखे .
रात्रि तारो की छाव मे बैठकर 15 मिनट इस मंत्र का जप करें .

उत्तम मनचाही संतान प्राप्ति के लिए कुछ खास उपाय

उत्तम मनचाही संतान प्राप्ति के लिए कुछ खास उपाय
1. यदि किसी दम्पति को संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है तो वह स्त्री शुक्ल पक्ष में अभिमंत्रित संतान गोपाल यंत्र को अपने घर में स्थापित करके लगातार 16 गुरुवार को ब्रत रखकर केले और पीपल के वृक्ष की सेवा करें उनमे दूध चीनी मिश्रित जल चड़ाकर धुप अगरबत्ती जलाये फिर मासिक धर्म से ठीक तेहरवीं रात्रि में अपने पति से रमण करें संतान सुख अति शीघ्र प्राप्त होगा ।
2. पति पत्नी गुरुवार का ब्रत रखें या इस दिन पीले वस्त्र पहने , पीली वस्तुओं का दान करें यथासंभव पीला भोजन ही करें .....अति शीघ्र योग्य संतान की प्राप्ति होगी ।
3. संतान सुख के लिए स्त्री गेंहू के आटे की 2 मोटी लोई बनाकर उसमें भीगी चने की दाल और थोड़ी सी हल्दी मिलाकर नियमपूर्वक गाय को खिलाएं ...शीघ्र ही उसकी गोद भर जाएगी ।
4. शुक्ल पक्ष में बरगद के पत्ते को धोकर साफ करके उस पर कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर उस पर थोड़े से चावल और एक सुपारी रखकर सूर्यास्त से पहले किसी मंदिर में अर्पित कर दें और प्रभु से संतान का वरदान देने के लिए प्रार्थना करें ...निश्चय ही संतान की प्राप्ति होगी ।
5. किसी भी गुरुवार को पीले धागे में पीली कौड़ी को कमर में बांधने से संतान प्राप्ति का प्रबल योग बनता है।
6. संतान प्राप्ति के लिए स्त्री पारद शिवलिंग का नियम से दूध से अभिषेक करें ...उत्तम संतान की प्राप्ति होगी ।
7. हर गुरुवार को भिखारियों को गुड का दान देने से भी संतान सुख प्राप्त होता है ।
8. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में आम की जड़ को लाकर उसे दूध में घिसकर पिलाने से स्त्री को अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती है यह अत्यंत ही सिद्ध / परीक्षित प्रयोग है ।
9. रविवार को छोड़कर अन्य सभी दिन निसंतान स्त्री यदि पीपल पर दीपक जलाये और उसकी परिक्रमा करते हुए संतान की प्रार्थना करें उसकी इच्छा अति शीघ्र पूरी होगी ।
10. श्वेत लक्ष्मणा बूटी की 21 गोली बनाकर उसे नियमपूर्वक गाय के दूध के साथ लेने से संतान सुख की अवश्य ही प्राप्ति होती है ।
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संतान के लिए इच्छुक दम्पत्तियों को घर के उत्तर-पश्चिम अथवा उत्तर दिशा में स्थित कमरे को तब तक अपना शयन कक्ष बनाना चाहिए जब तक गर्भ धारण ना हो जाए। इससे गर्भ जल्दी ठहरता है।
गर्भ ठहरने के बाद प्रेग्नेंट महिला को हमेशा दक्षिण-पश्चिम कमरे में ही सोना चाहिए। प्रेग्नेंसी के दौरान उत्तर-पश्चिम दिशा के कमरे का इस्तेमाल अब बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। गर्भवती महिला को हमेशा कमरे की दक्षिण-पश्चिम कमरे में दक्षिण दिशा की ओर ही अपना सिर करके सोना चाहिए । इन उपायों से स्वस्थ, योग्य संतान उत्पन्न होती है और गर्भवती महिला और होने वाले शिशु को किसी भी प्रकार का खतरा भी नहीं होता है ।
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अश्वगंधा, नागकेसर और गोरोचन इन तीनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस कर छान ले। इसे शीतल जल के साथ सेवन करें तो गर्भ ठहरने की सम्भावना बहुत ही बड़ जाती है।

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अश्वगंधा का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में दूध और घी मिलाकर मासिक-धर्म के शुरू होने के लगभग 4 दिन पहले से लगातार 7 दिनों तक पिलाने से स्त्री को निश्चित रूप से गर्भधारण होता है।
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जिन निसंतान दम्पतियों को संतान की प्रबल चाह हो उन्हें श्रावण शुक्ल एकादशी व पौष शुक्ल एकादशी का ब्रत पूर्ण विधि विधान से अवश्य ही करना चाहिए । इन दोनों एकादशी का व्रत रखने से पुत्र की प्राप्ति होती है इस कारण से इसे पुत्रदा एकादशी कहा गया है।
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जिस भी व्यक्ति को उत्तम एवं सुख देने वाली संतान की कामना हो, उसे पलाश का पेड़ अवश्य ही लगाना चाहिए और उसकी देखभाल भी करनी चाहिए । लेकिन यह पेड़ घर की सीमा में नहीं होना चाहिए।
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रविवार के दिन पुष्प नक्षत्र में आक की जड़ लेकर यदि स्त्री अपनी कमर में बांधकर सम्बन्ध बनाये तो संतान प्राप्ति के प्रबल योग बनते है । ( पुष्प नक्षत्र आप किसी भी पँचांग / हिन्दु कैलेण्डर से मालूम कर सकते है )

प्रेम में सफलता,वशीकरण के उपाय / टोटके

प्रेम में सफलता,वशीकरण के उपाय / टोटके
दोस्तों यहाँ पर बताये गए प्रयोगों द्वारा आप निश्चित ही किसी भी वर या कन्या को अपने पक्ष में कर सकते हैं, उसके दिल में अपनी जगह बना सकते है परन्तु इनका प्रयोग तभी करना चाहिए जब आपका प्रेम सच्चा हो आपकी उसके प्रति भावना निश्चल हो, आप उसके योग्य हो और आपको लगता हो की आप उसे प्रसन्न रख पाएंगे .....ध्यान रहे इससे किसी का भी अहित करने की भावना से प्रयोग करना सर्वथा गलत होगा !
जब भी किसी को प्रेम करें तो याद रखें कि संयम और प्रतीक्षा सबसे उत्तम उपाय है
1. ईश्वर से सच्चे मन से अपने प्रेम के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ।
2. भगवान विष्णु और लक्ष्मी की मूर्ति या फोटो के सम्मुख शुक्ल पक्ष में गुरुवार से
'' ऊँ लक्ष्मी नारायणाय नमः।''मन्त्र की 3 माला प्रतिदिन स्फटिक की माला से जप करें और 3 महीनों तक हर गुरुवार को मंदिर में प्रसाद चढ़ायें।
3. कृष्ण मंदिर में बांसुरी और पान अर्पण से प्रेम की प्राप्ति होती है ।
4. यदि आप किसी को अपना बनाना चाहते हैं तो माँ दुर्गा की की पूजा करे माता को लाल रंग की ध्वजा चढ़ाएं व प्रेम में सफलता की मनोकामना मांगें।
5. शहद से रुद्राभिषेक करने से मनचाहा प्रेम मिलता है ।
6. सोलह सोमवार के ब्रत से योग्य, सुन्दर, सुशील और प्रेम करने वाला जीवन साथी मिलता है ।
7. प्रेम-विवाह में सफलता के लिए शुक्ल पक्ष में प्राण प्रतिष्ठत असली नेपाली गौरी-शंकर रुद्राक्ष, वाइट गोल्ड में धारण करें |
8. ओपल या हीरा रत्न धारण कर से प्रेम-संबंधों को विवाह तक पहुंचाने में सहायता मिलती है।
9. यदि प्रेमी/प्रेमिका में से कोई एक मांगलिक हैं और प्रेम-विवाह में बाधा आ रही है तो तो विवाह की लिए पुन: विचार करें नहीं तो मंगल दोष का तत्काल निवारण अवश्य ही कर लें, अन्यथा जीवन भर पछताना पड़ सकता है।
10. सप्तमेश या सप्तम भाव में विराजमान ग्रह की शांति अवश्य करा लें।
11. एक-दूसरे को नुकीली या काले रंग की कोई वस्तु कभी भी न दें | इससे संबंध खराब होने की संभावना होती है।
12. गिफ्ट में कभी भी काले रंग की कोई वस्तु एक-दूसरे को न दें। इससे आपस में दूरियां हो सकती है।
13. अपने प्रियतम/प्रेयसी को हीरा भेंट करना बहुत ही शुभ होता है, हीरे के स्थान पर अमरीकन डायमण्ड भी उपहार में दे सकते है लेकिन याद रहे वह काला या नीला न हो।
14. लाल,गुलाबी,पीले और सुनहरे पीले रंग की वस्तुओं को उपहार में देना अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है।
15. कन्या अधिकतर अपने हाथों में हरी चूडिय़ां तथा प्रत्येक गुरुवार को पीले और शुक्रवार को सफेद वस्त्र पहनें।
16. लड़के को प्रेम में सफलता के लिए पन्ना (एमरल्ड) की अंगूठी धारण करना चाहिए इससे प्रेयसी के मन में प्रबल आकर्षण बना रहता है ।
17. प्रेमी युगल को शनिवार और अमावस्या के दिन नहीं मिलना चाहिए। इन दिनों में मिलने से आपस में किसी भी बात पर विवाद हो सकता है ...एक दूसरे की कोई भी बात बुरी लग सकती है तथा प्रेम संबंधो में सफलता मिलने में संदेह हो सकता है।
18. प्रेमी युगल को यह प्रयास करना चाहिए कि शुक्रवार और पूर्णिमा के दिन अवश्य मिलें। जिस शुक्रवार को पूर्णिमा हो वह दिन अत्यंत शुभ रहता है इस दिन मिलने से परस्पर प्रेम व आकर्षण बढ़ता है।
19. सफ़ेद वस्त्र धारण करके किसी भी धार्मिक स्थान पर लाल गुलाब व चमेली का इत्र अर्पित करके अपने प्रेम की सफलता के लिए सच्चे मन से प्रार्थना करें निश्चय ही लाभ होगा।
20. काम व आकर्षण बीज मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ऊँ क्लीं नम:।
आकर्षण शक्ति बड़ाने के लिए इस मंत्र का जाप करें ।
ॐ क्लीं कृष्णाय गोपीजन वल्लभाय स्वाहा:
अपने प्रेमी या प्रेमिका को अपने मन में रखकर उपरोक्त मंत्र से राधा-कृष्ण की प्रतिमा, तस्वीर या मंदिर में जाकर सच्चे मन से 108 बार भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करें। प्रति शुक्रवार किसी भी राधा कृष्ण के मंदिर में जाकर उनकी प्रतिमा का दर्शन करें उन्हें फूल माला, और मिश्री का भोग लगाएं, अति शीघ्र ही आपके प्रेम विवाह में आ रही हर अड़चन दूर होगी, प्रेम विवाह में अवश्य सफलता मिलेगी।
21. मनचाहे प्रेम विवाह के लिए भगवान श्री कृष्ण का मन्त्र :------------
भगवान श्री कृष्ण के राधा जी के साथ प्रेममय स्वरुप का ध्यान करें. भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को लाल / गुलाबी रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करके धूप, दीप, पुष्प, इत्र मीठा अर्पित करके गुलाबी रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से नित्य एक माला इस मंत्र का जाप करें.
मंत्र- ॐ हुं ह्रीं सः कृष्णाय नम:
मंत्र जाप के पश्चात भगवान को शहद के छीटे दें।
22. शनिवार की रात्रि में 7 लौंग लेकर उस पर 21 बार जिस भी जातक को अपनी तरफ आकर्षित करना हो उसका नाम लेकर फूंक मारें और अगले दिन रविवार को सुबह स्नान पूजा आदि के बाद इनको आग में जला दें। यह प्रयोग लगातार 7 बार करने से किसी भी जातक के वश में होने की प्रबल स्तिथि बनती है। लेकिन ध्यान रहे इसका प्रयोग किसी के अहित के लिए बिलकुल भी नहीं करना चाहिए ।

आइये जानते हैं कब है धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि विधान साधना???

* धनतेरस ओर दिपावली पूजा विधि*  *29 और 31 तारीख 2024*  *धनतेरस ओर दिपावली पूजा और अनुष्ठान की विधि* *धनतेरस महोत्सव* *(अध्यात्म शास्त्र एवं ...

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