प्रेत बाधा से बचाव केसे
1. प्रेत शक्तियों से बचाव के लिए शरीर को पाक पवित्र रखें। इसके अतिरिक्त साधक आकर्षक व सुगंधित वस्तुओं के प्रयोग करते समय विशेष सावधानी का ध्यान रखें।
2. देवदारू, हींग, सरसो, जौ, नीम की पत्ती, कुटकी, कटेली, चना व मोर के पंख को गाय के घी तथा लोहबान में मिरित करके मिट्टी के पात्र में रख लें, फिर उसे अग्नि से जलाकर उसका धुंआ प्रेतादि बाधा से पीड़ित जातक को दिखाएं। इस प्रक्रिया को नित्य कुछ दिनों तक दोहराते रहें, अवश्य लाभ मिलेगा।
3. मंगलवार व शनिवार के दिन जावित्री व श्वेत अपराजिता के पत्ते को आपस में पीसकर उसके रस को प्रेतादि या ऊपरी बाधा से पीड़ित जातक को सुंघाएं। इन नकारात्मक शक्तियों से अवश्य ही मुक्ति मिलेगी।
4. सेंधा नमक, चंदन, कूट, घृत व चर्बी को सरसो के तेल के साथ मिश्रित करके किसी मिट्टी के पात्र में रख लें। फिर उसे अग्नि से जलाकर उसका धुआं प्रेतादि बाधा से पीड़ित जातक को दिखाएं। इस प्रक्रिया को शनिवार अथवा मंगलवार से प्रारंभ करके नित्य 21 दिनों तक दोहराएं। ऊपरी बाधा से अवश्य ही मुक्ति मिलेगी।
5. बबूल, देवदारू, बेल की जड़ व प्रियंगु को धूप अथवा लोहबार के साथ मिश्रित करके मिट्टी के पात्र में रख लें तथा फिर उसे अग्नि से जलाकर उसके धुएं को पीड़ित जातक के ऊपर से उतारें। मंगल या शनिवार से इस कार्य को प्रारंभ करके इसे 21 दिनों तक दोहराते रहें। जब यह प्रयोग समाप्त हो जाए, तो 22वें दिन जली हुई सारी सामग्री को किसी चौराहे पर मिट्टी के पात्र सहित प्रातः सूर्य उदय से पूर्व फेंक आएं। अवश्य लाभ होगा।
6. मंगलवार या शनिवार के दिन लौंग, रक्त-चंदन, धूप, लोहबान, गौरोचन, केसर, बंसलोचन, समुद्र-सोख, अरवा चावल, कस्तूरी, नागकेसर, जई, भालू के बाल व सुई को भोजपत्र के साथ अपने शरीर व लग्न के अनुकूल धातु के ताबीज में भरकर गले में धारण करें। शरीर पर प्रेतादि जैसे नकारात्मक तत्वों का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ सकता।
1. प्रेत शक्तियों से बचाव के लिए शरीर को पाक पवित्र रखें। इसके अतिरिक्त साधक आकर्षक व सुगंधित वस्तुओं के प्रयोग करते समय विशेष सावधानी का ध्यान रखें।
2. देवदारू, हींग, सरसो, जौ, नीम की पत्ती, कुटकी, कटेली, चना व मोर के पंख को गाय के घी तथा लोहबान में मिरित करके मिट्टी के पात्र में रख लें, फिर उसे अग्नि से जलाकर उसका धुंआ प्रेतादि बाधा से पीड़ित जातक को दिखाएं। इस प्रक्रिया को नित्य कुछ दिनों तक दोहराते रहें, अवश्य लाभ मिलेगा।
3. मंगलवार व शनिवार के दिन जावित्री व श्वेत अपराजिता के पत्ते को आपस में पीसकर उसके रस को प्रेतादि या ऊपरी बाधा से पीड़ित जातक को सुंघाएं। इन नकारात्मक शक्तियों से अवश्य ही मुक्ति मिलेगी।
4. सेंधा नमक, चंदन, कूट, घृत व चर्बी को सरसो के तेल के साथ मिश्रित करके किसी मिट्टी के पात्र में रख लें। फिर उसे अग्नि से जलाकर उसका धुआं प्रेतादि बाधा से पीड़ित जातक को दिखाएं। इस प्रक्रिया को शनिवार अथवा मंगलवार से प्रारंभ करके नित्य 21 दिनों तक दोहराएं। ऊपरी बाधा से अवश्य ही मुक्ति मिलेगी।
5. बबूल, देवदारू, बेल की जड़ व प्रियंगु को धूप अथवा लोहबार के साथ मिश्रित करके मिट्टी के पात्र में रख लें तथा फिर उसे अग्नि से जलाकर उसके धुएं को पीड़ित जातक के ऊपर से उतारें। मंगल या शनिवार से इस कार्य को प्रारंभ करके इसे 21 दिनों तक दोहराते रहें। जब यह प्रयोग समाप्त हो जाए, तो 22वें दिन जली हुई सारी सामग्री को किसी चौराहे पर मिट्टी के पात्र सहित प्रातः सूर्य उदय से पूर्व फेंक आएं। अवश्य लाभ होगा।
6. मंगलवार या शनिवार के दिन लौंग, रक्त-चंदन, धूप, लोहबान, गौरोचन, केसर, बंसलोचन, समुद्र-सोख, अरवा चावल, कस्तूरी, नागकेसर, जई, भालू के बाल व सुई को भोजपत्र के साथ अपने शरीर व लग्न के अनुकूल धातु के ताबीज में भरकर गले में धारण करें। शरीर पर प्रेतादि जैसे नकारात्मक तत्वों का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ सकता।
7. प्रेत बाधा दूर करने के लिए पुष्य नक्षत्र में चिरचिटे अथवा धतूरे का पौधा जड़ सहित उखाड़कर, यदि इस प्रकार धरती में दबा दिया जाए कि उसका जड़ वाला भाग ऊपर रहे और पूरा पौधा धरती में समा जाए तो उस परिवार में सुख-शान्ति बनी रहती है। वहां प्रेतात्माएं कभी भी डेरा नहीं जमातीं।
2… किसे प्राप्त होती हैं भूत-प्रेत योनि
’प्रेत कल्प’ में कहा गया है कि नरक में जाने के पश्चात प्राणी प्रेत बनकर अपने परिजनों और संबंधियों को अनेकानेक कष्टों से प्रताड़ित करता रहता है। वह परायी स्त्री और पराये धन पर दृष्टि गड़ाए व्यक्ति को भारी कष्ट पहुंचाता है। जो व्यक्ति दूसरों की संपत्ति हड़प कर जाता है, मित्र से द्रोह करता है, विश्वासघात करता है, ब्राहमण अथवा मंदिर की संपत्ति का हरण करता है, स्त्रियों और बच्चों का संग्रहीत धन छीन लेता है, परायी स्त्री से व्यभिचार करता है, निर्बल को सताता है, ईश्वर में विश्वास नहीं करता, कन्या का विक्रय यकरता है, माता बहन पुत्र पुत्री स्त्री पुत्रवधु आदि के निर्दोष होने पर भी उनका त्याग कर देता है, ऐसा व्यक्ति प्रेत योनि में अवश्य जाता है। उसे अनेकानेक नारकीय कष्ट भोगना पड़ता है। उसकी कभी मुक्ति नहीं होती। ऐसे व्यक्ति को जीते जी अनेक रोग और कष्ट घेर लेते हैं। व्यापार में हानि गर्भनाश गृह कलह ज्वर कृषि हानि संतान मृत्यु आदि से वह दुखी होता रहता है। अकाल मृत्यु उसी व्यक्ति की होती है जो धर्म का आचरण और नियमों का पालन नहीं करता तथा जिसके आचार-विचार दूषित होते हैं। उसके दुष्कर्म ही उसे अकाल मृत्यु में धकेल देते हैं।
2… किसे प्राप्त होती हैं भूत-प्रेत योनि
’प्रेत कल्प’ में कहा गया है कि नरक में जाने के पश्चात प्राणी प्रेत बनकर अपने परिजनों और संबंधियों को अनेकानेक कष्टों से प्रताड़ित करता रहता है। वह परायी स्त्री और पराये धन पर दृष्टि गड़ाए व्यक्ति को भारी कष्ट पहुंचाता है। जो व्यक्ति दूसरों की संपत्ति हड़प कर जाता है, मित्र से द्रोह करता है, विश्वासघात करता है, ब्राहमण अथवा मंदिर की संपत्ति का हरण करता है, स्त्रियों और बच्चों का संग्रहीत धन छीन लेता है, परायी स्त्री से व्यभिचार करता है, निर्बल को सताता है, ईश्वर में विश्वास नहीं करता, कन्या का विक्रय यकरता है, माता बहन पुत्र पुत्री स्त्री पुत्रवधु आदि के निर्दोष होने पर भी उनका त्याग कर देता है, ऐसा व्यक्ति प्रेत योनि में अवश्य जाता है। उसे अनेकानेक नारकीय कष्ट भोगना पड़ता है। उसकी कभी मुक्ति नहीं होती। ऐसे व्यक्ति को जीते जी अनेक रोग और कष्ट घेर लेते हैं। व्यापार में हानि गर्भनाश गृह कलह ज्वर कृषि हानि संतान मृत्यु आदि से वह दुखी होता रहता है। अकाल मृत्यु उसी व्यक्ति की होती है जो धर्म का आचरण और नियमों का पालन नहीं करता तथा जिसके आचार-विचार दूषित होते हैं। उसके दुष्कर्म ही उसे अकाल मृत्यु में धकेल देते हैं।
गरुड़ पुराण में प्रेत योनि और नरक में पड़ने से बचने के उपाय भी सुझाए गए हैं। उनमें सर्वाधिक उपाय दान दक्षिणा पिंडदान तथा श्राद्ध कर्म आदि बताए गए हैं।
सर्वाधिक प्रसिद्ध इस प्रेत कल्प के अतिरिक्त इस पुराण में आत्मज्ञान के महतव का भी प्रतिपदान किया गया है। परमात्मा का ध्या नही आत्मज्ञान का सबसे सरल उपाय है। उसके लिए अपने मन और इंद्रियों पर संयम रखना परम आवश्यक है। इस प्रकार कर्मकांड पर सर्वाधिक बल देने के उपरांत गरुड़ पुराण में ज्ञानी और सत्यव्रती व्यक्ति को बिना कर्मकांड किए भी सद्गति प्राप्त कर परलोक में उच्च स्थान प्राप्त करने की विधि बताई गई है।
कहां से आक्रमण करते हैं – भूत-प्रेत और मायावी शक्तियां
भूत-प्रेतों का निवास नीचे दिए गए कुछ वृक्षों एवं स्थानों पर माना गया है। इन वृक्षों के नीचे एवं स्थानों पर किसी प्रकार की तेज खुशबू का प्रयोग एवं गंदगी नहीं करनी चाहिए, नहीं तो भूत-प्रेत का असर हो जाने की संभावना रहती है।
कहां से आक्रमण करते हैं – भूत-प्रेत और मायावी शक्तियां
भूत-प्रेतों का निवास नीचे दिए गए कुछ वृक्षों एवं स्थानों पर माना गया है। इन वृक्षों के नीचे एवं स्थानों पर किसी प्रकार की तेज खुशबू का प्रयोग एवं गंदगी नहीं करनी चाहिए, नहीं तो भूत-प्रेत का असर हो जाने की संभावना रहती है।
पीपल वृक्ष:- शास्त्रों में इस वृक्ष पर देवताओं एवं भूत-प्रेतों, दोनों का निवास माना गया है। अतः कभी भी पीपल के पेड़ नहीं काटने चाहिए। इसी कारण हर प्रकार के कष्ट एवं दुख को दूर करने हेतु इसकी पूजा अर्चना करने का विधान है।
मौलसिरी:- इस वृक्ष पर भी भूत-प्रेतों का निवास माना गया है।
कीकर वृक्ष:- इस वृक्ष पर भी भूत-प्रेत रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास ने इस वृक्ष में रोज पानी डालकर इस वृक्ष पर रहने वाले प्रेत को प्रसन्न कर उसकी मदद से हनुमान जी के दर्शन प्राप्त कर प्रभु श्री राम से मिलने का सूत्र पाया था। यह भूत प्राणियों को लाभ पहुंचाने वाली श्रेणी का था।
श्मशान या कब्रिस्तान:- इन स्थानों पर भी भूत-प्रेत निवास करते है।
मौलसिरी:- इस वृक्ष पर भी भूत-प्रेतों का निवास माना गया है।
कीकर वृक्ष:- इस वृक्ष पर भी भूत-प्रेत रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास ने इस वृक्ष में रोज पानी डालकर इस वृक्ष पर रहने वाले प्रेत को प्रसन्न कर उसकी मदद से हनुमान जी के दर्शन प्राप्त कर प्रभु श्री राम से मिलने का सूत्र पाया था। यह भूत प्राणियों को लाभ पहुंचाने वाली श्रेणी का था।
श्मशान या कब्रिस्तान:- इन स्थानों पर भी भूत-प्रेत निवास करते है।
भूत-प्रेतों से सावधानी
जल में भूत-प्रेतों का निवास होता है। इसलिए किसी भी स्त्री-पुरुष को नदी-तालाब में, चाहे वह कितने ही निर्जन स्थान में क्यों न हों, निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिए क्योंकि भूत-प्रेत गंदगी से रुष्ट होकर मनुष्यों को नुकसान पहुंचाते हैं। कुएं में भी किसी प्रकार की गंदगी नहीं डालनी चाहिए क्योंकि कुंए में भी विशेष प्रकार के जिन्न रहते हैं जो कि रुष्ट होने पर व्यक्ति को बहुत कष्ट देते हैं।
जल में भूत-प्रेतों का निवास होता है। इसलिए किसी भी स्त्री-पुरुष को नदी-तालाब में, चाहे वह कितने ही निर्जन स्थान में क्यों न हों, निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिए क्योंकि भूत-प्रेत गंदगी से रुष्ट होकर मनुष्यों को नुकसान पहुंचाते हैं। कुएं में भी किसी प्रकार की गंदगी नहीं डालनी चाहिए क्योंकि कुंए में भी विशेष प्रकार के जिन्न रहते हैं जो कि रुष्ट होने पर व्यक्ति को बहुत कष्ट देते हैं।
श्मशान या कब्रिस्तान में भी कभी कुछ नहीं खाना चाहिए और न ही वहां पर कोई मिठाई, सफेद व्यंजन, शक्कर या बूरा लेकर जाना चाहिए क्योंकि इनसे भी भूत-प्रेत बहुत जल्दी आकर्षित होते हैं। ऐसे स्थानों में रात में कोई तीव्र खुशबू लेकर भी नहीं जाना चाहिए तथा मलमूल त्याग भी नहीं करना चाहिए। किसी भी अनजान व्यक्ति से विशेष रूप से दी गई इलायची, सेब, केला, लौंग आदि नहीं खानी चाहिए, क्योंकि यह भूत-प्रेत से प्रभावित करने के विशेष साधन माने गए हैं।
भूत-प्रेत से बचाव
यदि अनुभव हो कि भूत प्रेत का असर है तो घर में नियमित रूप से सुन्दरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करें तथा सूर्य देव को जल चढ़ाएं।
1. यदि किसी मनुष्य पर भूत-प्रेत का असर अनुभव हो, तो उसकी चारपाई के नीचे नीम की सूखी पत्ती जलाएं।
2. मंगल या शनिवार को एक समूचा नींबू लेकर भूत-प्रेत ग्रसित व्यक्ति के सिर से पैर तक 7 बार उतारकर घर से बाहर आकर उसके चार टुकड़े कर चारों दिशाओं में फेंक दें। यह ध्यान रहे कि जिस चाकू से नींबू काटा है उसे भी फेंक देना चाहिए।
यदि अनुभव हो कि भूत प्रेत का असर है तो घर में नियमित रूप से सुन्दरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करें तथा सूर्य देव को जल चढ़ाएं।
1. यदि किसी मनुष्य पर भूत-प्रेत का असर अनुभव हो, तो उसकी चारपाई के नीचे नीम की सूखी पत्ती जलाएं।
2. मंगल या शनिवार को एक समूचा नींबू लेकर भूत-प्रेत ग्रसित व्यक्ति के सिर से पैर तक 7 बार उतारकर घर से बाहर आकर उसके चार टुकड़े कर चारों दिशाओं में फेंक दें। यह ध्यान रहे कि जिस चाकू से नींबू काटा है उसे भी फेंक देना चाहिए।
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