कब और किन परिसिथतियों में डालती हैं ऊपरी हवाएँ किसी व्यकित पर अपना प्रभाव ?
जब कोर्इ व्यकित दूध पीकर या कोर्इ सफेद मिठार्इ खाकर किसी चौराहे पर जाता है, तब ऊपरी हवाएँ उस पर अपना प्रभाव डालती हैं। गंदी जगहों पर इन हवाओं का वास होता है, इसीलिए ऐसी जगहों पर हाने वाले लोगों को ये हवाएँ अपने प्रभाव में ले लेती हैं। इन हवाओं का प्रभाव रजस्वला सित्रयों पर भी पड़ता है। कुएँ, बावड़ी आदि पर भी इनका वास होता है। विवाह व अन्य मांगलिक कार्यों के अवसर पर ये हवाएँ सक्रिय होती हैं। इसके अतिरिक्त रात और दिन के 12 बजे दरवाजे की चौखट पर इनका प्रभाव होता है।
दूध व सफेद मिठार्इ चन्द्र के धोतक हैं। चौराहा राहु का धोतक है। चन्द्र राहु का शत्रु है। अत: जब कोर्इ व्यकित उक्त चीजों का सेवन कर चौराहे पर जाता है तो उस पर ऊपरी हवाओं के प्रभाव की संभावना रहती है।
कोर्इ स्त्री जब राजस्वला होती है, तब उसका चन्द्र व मंगल दोनो दुर्बल हो जाते हैं। ये दोनो राहु व शनि के शत्रु हैं।
राजस्व में स्त्री अशुद्ध होती है और अशुद्धता राहु का धोतक हैै। ऐसे में उस स्त्री पर हवाओं के प्रकोप की सम्भावना रहती है।
कुएँ एवं बावड़ी का अर्थ होता है कि जल स्थान और चन्द्र जल स्थान का कारक है। चन्द्र राहु का शत्रु है, इसीलिए ऐसे स्थानों पर ऊपरी हवाओं का प्रभाव होता है।
जब किसी व्यकित की कुण्डली में किसी भाव विशेष पर सूर्य, गुरू, चन्द्र व मंगल का प्रभाव होता है, तब उसके घर विवाह व मांगलिक कार्य के अवसर हाते हैं, ये सभी ग्रह शनि व राहु के शत्रु हैं, अत: मांगलिक अवसरों पर ऊपरी हवाएँ व्यकित को परेशान कर सकती हैं।
दिन व रात के 12:00 बजे सूर्य व चन्द्र अपने पूर्ण बल की अवस्था में होते हैं, शनिव राहुल इनके शत्रु हैं, अत: इन्हें प्रभावित करते हैं। दरवाजे की चौखट राहु की धोतक हैं। अत: राहु क्षेत्र में चन्द्र या सूर्य को बल मिलता है, तो ऊपरी हवा सक्रिय होने की संभावना प्रबल होती है।
मनुष्य की दायीं आँख पर सूर्य की और बांयी पर चन्द्र का नियंत्रण होता है। इसीलिये ऊपरी हवाओं का प्रभाव सबसे पहले आँखों पर ही पड़ता है।
आइये जानते है ज्योतिष के माध्यम से …
पहला योगः कुण्डली में पहले भाव में चन्द्र के साथ राहु हो और पांचवे और नौवे भाव में क्रूर ग्रह सिथत हों। इस योग के होने पर जातक या जातिका पर भूत-प्रेत, पिशाच या गन्दी आत्माओं का प्रकोप शीघ्र होता है। यदि गोचर में भी यही सिथति हो तो अवश्य ऊपरी बाधाएँ तंग करती हैं।
दूध व सफेद मिठार्इ चन्द्र के धोतक हैं। चौराहा राहु का धोतक है। चन्द्र राहु का शत्रु है। अत: जब कोर्इ व्यकित उक्त चीजों का सेवन कर चौराहे पर जाता है तो उस पर ऊपरी हवाओं के प्रभाव की संभावना रहती है।
कोर्इ स्त्री जब राजस्वला होती है, तब उसका चन्द्र व मंगल दोनो दुर्बल हो जाते हैं। ये दोनो राहु व शनि के शत्रु हैं।
राजस्व में स्त्री अशुद्ध होती है और अशुद्धता राहु का धोतक हैै। ऐसे में उस स्त्री पर हवाओं के प्रकोप की सम्भावना रहती है।
कुएँ एवं बावड़ी का अर्थ होता है कि जल स्थान और चन्द्र जल स्थान का कारक है। चन्द्र राहु का शत्रु है, इसीलिए ऐसे स्थानों पर ऊपरी हवाओं का प्रभाव होता है।
जब किसी व्यकित की कुण्डली में किसी भाव विशेष पर सूर्य, गुरू, चन्द्र व मंगल का प्रभाव होता है, तब उसके घर विवाह व मांगलिक कार्य के अवसर हाते हैं, ये सभी ग्रह शनि व राहु के शत्रु हैं, अत: मांगलिक अवसरों पर ऊपरी हवाएँ व्यकित को परेशान कर सकती हैं।
दिन व रात के 12:00 बजे सूर्य व चन्द्र अपने पूर्ण बल की अवस्था में होते हैं, शनिव राहुल इनके शत्रु हैं, अत: इन्हें प्रभावित करते हैं। दरवाजे की चौखट राहु की धोतक हैं। अत: राहु क्षेत्र में चन्द्र या सूर्य को बल मिलता है, तो ऊपरी हवा सक्रिय होने की संभावना प्रबल होती है।
मनुष्य की दायीं आँख पर सूर्य की और बांयी पर चन्द्र का नियंत्रण होता है। इसीलिये ऊपरी हवाओं का प्रभाव सबसे पहले आँखों पर ही पड़ता है।
आइये जानते है ज्योतिष के माध्यम से …
पहला योगः कुण्डली में पहले भाव में चन्द्र के साथ राहु हो और पांचवे और नौवे भाव में क्रूर ग्रह सिथत हों। इस योग के होने पर जातक या जातिका पर भूत-प्रेत, पिशाच या गन्दी आत्माओं का प्रकोप शीघ्र होता है। यदि गोचर में भी यही सिथति हो तो अवश्य ऊपरी बाधाएँ तंग करती हैं।
दूसरा योग :यदि किसी कुण्डली में शनि, राहु, केतु या मंगल में से कर्इ भी ग्रहस सप्तम भाव में हो तो ऐसे लोग भी भूत-प्रेस बाधा या पिशाच या ऊपरी हवा आदि से परेशान रहते हैं।
तीसरा योग :यदि किसी की कुण्डली में शनि-मंगल-राहु की युति हो तो उसे भी ऊपरी बाधा, प्रेत पिशाच या भूत बाधा तंग करती है। उक्त योगों में दशा-अन्र्तदशा में भी ये ग्रह आते हों और गोचर में इन योगों की उपसिथति हो तो समझ लें कि जातक या जातिका इस कष्ट से अवश्य परेशान है।
यदि कुण्डली में इस प्रकार के योग हों तो इनसे बचने के लिए योगकारक ग्रहों के उपाय अथवा यहां एक प्रयोग बता रहे हैं उसे कर सकते हैं।
इस उपाय को किसी भी शुक्लपक्ष के मंगलवार से प्रारम्भ कर सकते हैं, हनुमान जी की मूर्ति के आगे बैठ कर बजरंग बाण का पाठ और इस मंत्र का 108 बार 45 दिनों तक नित्य जाप करें और रोगी के ऊपर जल छिडके ..
इस उपाय को किसी भी शुक्लपक्ष के मंगलवार से प्रारम्भ कर सकते हैं, हनुमान जी की मूर्ति के आगे बैठ कर बजरंग बाण का पाठ और इस मंत्र का 108 बार 45 दिनों तक नित्य जाप करें और रोगी के ऊपर जल छिडके ..
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