विष स्तम्भन
॥ मंत्र ॥
॥ मंत्र ॥
थाला पड़ी धुल पड़ि।
धां धीं वलिये।
अमुकेर अंगेर विष पाला उड़िए।
थाला पड़ि धूल पड़ि।
धां धीं स्वाहा।
अमुकेर अंगे विष लागे तलगै थारूगा।
कार आज्ञा कंसासुर न्र पितर आज्ञा।
धनपति स्वाहा।
विधि: पहले १०८ बार जप कर के मंत्र को सिद्ध कर लें . अब एक कांसे कि थाली में स्वछ जल लेकर ९ बार मंत्र जप कर के फूंक मारे और फिर सर्प के कांटे हुए आदमी कि पीठ पर थाली लगा दें। थाली चिपक जायेगी , और जैसे ही जहर ख़तम होगा थाली छूट जायेगी।
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