भूत-प्रेत बाधा निवारक श्री हनुमानजी का मन्त्र इस प्रकार हैं :-
नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत पिशाच-शाकिनी-डाकिनी यक्षणी-पूतना-मारी-महामारी, यक्ष राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकम क्षणेन हन हन भंजय भंजय मारय मारय शिक्षय शिक्ष्य महामारेश्रवर रूद्रावतार हुं फट स्वाहा।
उक्त मंत्र को श्रद्वा, विश्वास के साथ जप कर मन्त्र से अभिमनित्रत जल पीडि़त जातक या जातिका को पिलाने या छींटे मारने से इस प्रकार की बाधा से मुकित मिलती है।
भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियाँ होती हैं और उन्हें भूत, प्रेस, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुडै़ल, गंधर्व आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है।
ज्योतिष के अनुसार राहु की महादशा में चन्द्र की अंतर्दशा हो और चन्द्र दशापति राहु से भाव 6, 8 या 12 में बलहीन हो, तो व्यकित पिशाच द्वेष से ग्रस्त होता है। वास्तुशस्त्र में भी उल्लेख है कि पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ज्येष्ठा, अनुराधा, स्वाति या भरणी नक्षत्र में शनि के सिथत होने पर शनिवार को गृह-निर्माण आरंभ नहीं करना चाहिए, अन्यथा वह घर राक्षसों, भूतों और पिशाचों से ग्रस्त हो जायेगा।
भूतादि से पीडि़त व्यकित की पहचान उसके स्वभाव एवं क्रिया में आये बदलाव से की जा सकती है। इन विभिन्न आसुरी शकितयों से पीडि़त होने पर लोगों के स्वभाव एवं कार्यकलापों में आये बदलावों का संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है।
भूत पीड़ा :भूत से पीडि़त व्यकित किसी विश्यवास की तरह बात करता है। मूर्ख होने पर भी उसकी बांतो से लगता है कि वह कोर्इ ज्ञानी पुरूष हो। उसमें गजब की शकित आ जाती है। क्रुद्ध होने पर वह कर्इ व्यकितयों को एक साथ पछाड़ सकता है। उसकी आखें लाल हो जाती है और देह में कंपन होता है।
यक्ष पीड़ा :यक्ष प्रभावित व्यकित लाल वस्त्र में रूचि लेने लगता है। उसकी आवाज धीमी और चाल तेज हो जाती है इसकी आंखें ताबें जैसी दिखने लगती हैं। वह ज्यादातर आंखों से इशारा करता है।
पिशाच पीड़ा :पिशाच प्रभाविश व्यकित नग्न होते से भी हिचकता नहीं है। वह कमजोर हो जाता है और कटु शब्दों का प्रयोग करता है वह गंदा रहता है और उसकी देह से दुर्गन्ध आती है उसे भूख बहुत लगती है। वह एकान्त चाहता है और कभी-कभी रोने भी लगता है।
शाकिन पीड़ा :शाकिनी से सामान्यत: महिलायें पीडि़त होती हैं। शाकिनी से प्रभावित स्त्री को सारी देह दर्द रहता है। उसकी आँखों में भी पीड़ा होती है। वह अक्सर बेहोश भी हो जाया करती है। वह रोती और चिल्लाती रहती है, वह कांपती रहती है।
प्रेत पीड़ा :प्रेत से पीडि़त व्यकित चीखता-चिल्लाता है, रोता है और इधर-उधर भागता रहता है। वह किसी का कहा नहीं सुनता। उसकी वाणी कटु हो जाती है। वह खाता पीता नहीं है और तीव्र स्वर के साथ सांसे लेता है।
चूडैल :चूडैल प्रभावित व्यकित की देह पुष्ट हो जाती है। वह हमेंशा मुस्कराता रहता है और मांस खाना चाहता है।
इस तरह भूत-प्रेतादि प्रभावित व्यकितयों की पहचान भिन्न-भिन्न होती है। इन आसुरी शकितयों को वश में कर चुके लोगों की नजर अन्य लोगों को भी लग सकती है। इन शकितयों की पीड़ा से मुकित हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिये।
यदि बच्चा बाहर से खेलकर, पढ़कर, घूमकर आये और थका घबराया परेशान सा लगे तो उसे नजर या हाय लगने की पहचान है। ऐसे में उसके सर से 7 लाल मिर्च और एक चम्मच रार्इ के दाने 7 बार घुमकारकर उतारा कर लें और फिर आग में जला दें।
यदि बेवजह डर लगता हो, डरावने सपने आते हों, तो हनुमान चालिसा और गजेन्द्र मोक्ष का पाठ करें और हनुमान मंदिर में हनुमान जी का श्रंगार करें व चोला चढ़ायें।
व्यकित की बीमार होने की सिथति में दवा काम नहीं कर रही हो, तो सिरहाने कुछ सिक्के रखें और सबेरे उन सिक्कों को शमशन में डाल आयें।
व्यवसाय बाधित हो, वांछित उन्नति नहीं हो रही हो तो 7 शनिवार को सिंदूर, चादी का वर्क, मोती चूर के पांच लडडू, चमेली का तेल, मीठा पान, सूखा नारियल और लौंक हनुमान जी को अर्पित करें।
किसी काम में मन न लगता हो, उचाट सा रहता हो तो रविवार को प्रात: भैरव मदिरा अर्पित करें और खाली बोतल को सात बार अपने सरसे उतारकर पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। शनिवार को नारियल और बादाम जल में प्रवाहित करें।
अशोक वृक्ष के सात पत्ते मंदिर में रखकर पूजा करें। उनके सूखने पर नये पत्ते पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। यह क्रिया नियमित रूप से करें, घर भूत-प्रेस बाधा, नजर दोष आदि से मुक्त रहेगा।
एक कटोरी चावल दान करें और गणेश भगवान को एक पूरी सुपारी रोज चढ़ायें। यह क्रिया एक वर्ष तक करें, नजर दोष व भूत-प्रेस बाधा आदि के कारण बाधित कार्य पूरे होेंगे।
इस तरह से कुछ सरल और प्रभावशाली टोटके हैं, जिनका कोर्इ प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता। ध्यान रहे, नजर दोष, भूत-प्रेत बाधा आदि से मुक्त हेतु टोटके या उाय ही करवाने चाहिए टोना नहीं।
ऐसे पहचानें :-
जब कोर्इ व्यकित दूध पीकर या कोर्इ सफेद मिठार्इ खाकर किसी चौराहे पर जाता है, तब ऊपरी हवाएँ उस पर अपना प्रभाव डालती हैं। गंदी जगहों पर इन हवाओं का वास होता है। इसलिए ऐसी जगहों पर आने वाले लोगों को ये हवायें अपने प्रभाव में ले लेती हैं। इन हवाओं का प्रभाव रजस्वला सित्रयों पर भी पड़ता है। कुँए, बावड़ी आदि पर भी इनका वास होता है। विवाह व अन्य मांगलिक कार्य के अवसर पर ये हवाएँ सक्रिय होती हैं। इसके अतिरिक्त रात और दिन के 12:00 बजे दरवाजे की चौखट पर इनका प्रभाव होता है।
दूध व सफेद मिठार्इ चन्द्र के धोतक हैं। चौराहा राहु का धोतक है, चन्द्र राहु का शत्रु है। अत: जब कोर्इ व्यकित उक्त चीजों का सेवन कर चौराहे पर जाता है, तो उस पर ऊपरी हवाओं के प्रभाव की सम्भावना रहती है।
कोर्इ स्त्री जब राजस्वला होती है, तब उसका चन्द्र व मंगल दोनो दुर्बल हो जाते हैं। ये दोनो राहुल व शनि के शत्रु हैं। रजस्वलावस्था में स्त्री अशुद्ध होती है और शुद्धता राहु की धोतक है। ऐसे में उस स्त्री पर ऊपरी हवाओं के प्रकोप की सम्भावना रहती है।
कुएँ एवं बावड़ी का अर्थ होता है कि जल स्थान और चन्द्र जल स्थान का कारक है। चन्द्र राहु का शत्रु है, इसलिए ऐसे स्थानों पर ऊपरी हवाओं का प्रभाव होता है।
नजर दोष से पीडि़त व्यकित का शरीर कंपकपाता रहता है। वह अक्सर ज्वर, मिरगी आदि से ग्रस्त रहता है।
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