Friday, November 6, 2015

ऊपरी हवा – पहचान एवं निदान

ऊपरी हवा – पहचान एवं निदान
प्राय: सभी धर्मग्रन्थों में ऊपरी हवाओं, नजर दोषों आदि का उल्लेख है। कुछ ग्रंथों में इन्हें बुरी आत्महा कहा गया है तो कुछ अन्य में भूत-प्रेत और जिन्न।
यहाँ ज्योतिष के आधार पर नजर दोष का विश्लेषण प्रस्तुत है।
ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार गुरू पितृदोष, शनि यमदोष, चन्द्र व शुक्र चल देवी दोष, राहु सर्प व प्रेत दोष, मंगल शाकिनी दोष, सूर्य देव दोष एवं बुध कुल देवता दोष का कारक होता है। राहु, शनि व केतु ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह हैं। जब किसी व्यकित के लग्न (शरीर), गुरू (ज्ञान) त्रिकोण (धर्म भाव) तथा द्विस्वभाव राशियों पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, तो उस पर ऊपरी हवा की सम्भावना होती है।
लक्षण :-नजर दोष से पीडि़त व्यकित का शरीर कंपकंपाता रहता है। वह अक्सर मिरगी आदि से ग्रस्त रहता है।
यही ऊपरी हवाओं से सम्बद्ध ग्रहों, भावों आदि का विश्लेषण प्रस्तुत है।
राहु-केतु :जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, शनिवत राहु ऊपरी हवाओं का कारक है। यह प्रेत बाधा का सबसे पमुख करक है। इस ग्रह का प्रभाव जब भी मन, शरीर, ज्ञान, धर्म आत्मा आदि के भावों पर होता है, तो ऊपरी हवायें सक्रिय होती है।
शनि :इसे भी राहु के समान माना गया है। यह भी उक्त भावों से सम्बन्ध बनाकर भूत-प्रेत पीड़ा देता है।
चन्द्र :मन पर जब पाप ग्रहों राहु और शनि का दूषित प्रभाव होता है अशुभ भाव सिथत चन्द्र बलहीन होता है, तब व्यकित भूत-प्रेत पीड़ा से ग्रस्त होता है।
गुरू :गुरू सातिवक ग्रह है। शनि, राहु या केतु से सम्बन्ध होने पर यह दुर्बल हो जाता है। इसकी दुर्बल सिथति में ऊपरी हवाएँ जातक पर अपना प्रभाव डालती हैं।
लग्न :
यह जातक के शरीर का प्रतिनिधित्व करता है। इसका सम्बन्ध ऊपरी हवाओं के कारक राहु, शनि या केतु से हो या इस पर मंगल का पाप प्रभाव प्रबल हो, तो व्यकित के ऊपरी हवाओं से ग्रस्त होने की सम्भावना बनती है।
पंचम :पंचम भाव से पूर्व जन्म के संचित कर्मों का विचार किया जाता है। इस भाव पर जब ऊपरी हवाओं के कारक पाप ग्रहों का प्रभाव पड़ता है, तो इसका अर्थ यह है कि व्यकित से पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों में कमी है। अच्छे कर्म अल्प हों, तो प्रेत बाधा योग बनता है।
अष्टम :इस भाव को गूढ़ विधाओं व आयु तथा मृत्यु का भाव भी कहते हैं। इसमें चन्द्र और पाप ग्रह या ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह का सम्बन्ध प्रेत बाधा को जन्म देता है।
नवम :यह धर्म भाव है। पूर्व जन्म में पुण्य कर्मों में कमी रही हो, तो यह भाव दुर्बल होता है।
राशियाँ :जन्म कुण्डली में द्विस्वभाव राशियों मिथुन, कन्या और मीन पर वायु तत्व ग्रहों का प्रभाव हो, तो प्रेत बाधा होती है।
वार :शनिवार, मंगलवार, रविवार को प्रेत बाधा की सम्भावनाएँ प्रबल होती हैं।
तिथि :रिक्त तिथि एवं अमावस्या प्रेत बाधा को जन्म देती है।
नक्षत्र :वायु संज्ञक नक्षत्र प्रेत बाधा के कारक होते हैं।
योग :विष्कुंभ, व्याधात, ऐन्द्र, व्यतिपात, शूल आदि योग प्रेत बाधा को जन्म देते हैं।
कारण :विषिट, किस्तुन और नाग करणों के कारण व्यकित प्रेस बाधा से ग्रस्त होता है।
दशाएँ :मुख्यत: शनि, राहु, अष्टमेश व राहु तथा केतु से पूर्णत: प्रभावित ग्रहों की दशान्तर्दशा में व्यकित के भूत-प्रेत बाधाओं से ग्रस्त होने की सम्भावना रहती है।
युति :किसी स्त्री के सप्तम भाव में शनि, मंगल और राहु या केतु की युति हो, तो उसके पिशाच पीड़ा से ग्रस्त होने की सम्भावना रहती है।
गुरू नीच राशि अथवा नीच राशि के नवांश में हो, या राहु से युत हो और उस पर पाप गहों की दृषिट हो, तो जातक की चांडाल प्रवृत्ति होती है।
पंचम भाव में शनि का सम्बन्ध बने तो व्यकित प्रेस एवं क्षुद्र देवियों की भकित करता है।

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