ध्यान रहे कि जिनकी जिंदगी में ऐसा दुःख नहीं होता वो इस बात के मर्म को नहीं समझ सकते हैं किंतु जो वाकई इससे पीड़ित हैं, उन्हें इसका चमत्कार बहुत शीघ्र देखने को मिलता है। परंतु इससे पूर्व संतान हीनता से पीड़ित हर जातक को ये तथ्य भली-भांति समझ लेनी होगी कि किसी भी मंत्र-तंत्र-यंत्र सहित रत्न तक आस्था-श्रद्धा-विश्वास व अटूट निष्ठा की मांग करते हैं। यानि इन प्रयोगों को अपनाने के लिए आपको इतना संकल्पकृत होना ही होगा कि मध्य राह में चाहे जितनी बाधाएं आएं किंतु आप अपने कदम डिगने नहीं देंगे।
इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए हमने गत आलेख में ये स्पष्ट किया था कि डेस्टिनी चेंज हो सकती है बशर्ते आप ग्रहों की चालाकियां समझ लें तथा अपने विवेक को इस्तेमाल करते हुए सही ढंग से उपाय करें।
तो आइए अब हम संतानहीन योगों के बावज़ूद संतान प्राप्ति के उपायों की बात आरंभ करते हैं:
यदि पति व पत्नी, दोनों की कुण्डलियों में पूर्ण संतानहीनता की स्थिति हो तो उन्हें संतान बाधा मुक्ति के लिए निम्न उपाय अविलंब आरंभ करना चाहिए। इसका परिणाम हमेशा सुखद रहा है............
मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः
जप विधि: तुलसी की माला से प्रतिदिन 5 माला प्रातः काल जप करना श्रेयस्कर रहेगा।
भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर के सामने बैठकर कातर भाव से जप करने के पश्चात लड्डू का भोग (प्रसाद) अवश्य चढ़ाएं।
पुत्रेष्टि यज्ञ: यह एक विशद यज्ञ विधान है, जिसे आचार्यों की सहायता के बिना करना संभव नहीं। इस महान यज्ञ का अनुष्ठान संतानहीनता की स्थिति से मुक्त कर देता है। वस्तुतः यह याज्ञिक विधान वैदिक रीति से संपन्न किया जाता है जिसमें भारी व्यय होता है। इसलिए आम आदमी को ये सलाह दी जाती है कि वह इस यज्ञ के स्थान पर गोपाल संतान मंत्र व यंत्र की सहायता ले ताकि बिना किसी व्यय के उसका कार्य पूर्ण हो जाए।
बाधक ग्रहों की क्रूर व पापी ग्रहों की किरण रश्मियों को पंचम भाव, पंचमेश तथा संतान कारक गुरु से हटाने के लिए रत्नों का विकल्प बेहद प्रभावी रहता है। इस बात को समझने के लिए विशेषज्ञ आचार्य की अनिवार्यता होती है ताकि वह निर्धारित कर सके कि किन ग्रहों के कारण संतान प्राप्ति में बाधा आ रही है तथा किन ग्रहों की किरण रश्मियों को प्रतिकर्षित करने के लिए कैसे रत्नों का प्रयोग किया जाए।
संतानहीनता के लिए नवमांश की स्थिति की समीक्षा किया जाना बेहद आवश्यक है। यदि नवमांश चक्र में भी पूर्णरूपेण संतानहीनता की स्थिति बन रही है तो ऐसे में उपरोक्त वर्णित प्रथम उपाय के साथ तृतीय उपाय एक साथ करना लाभकारी होता है।
ध्यान रहे कि इन सभी प्रयोगों का फल पूर्ण निष्ठा से करने पर ही प्राप्त होता है। जिनके मन में इन उपायों को करते रहने के दौरान संशय व्याप्त रहता है, उन्हें इसका फल अपेक्षानुसार नहीं प्राप्त हो पाता है।
इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए हमने गत आलेख में ये स्पष्ट किया था कि डेस्टिनी चेंज हो सकती है बशर्ते आप ग्रहों की चालाकियां समझ लें तथा अपने विवेक को इस्तेमाल करते हुए सही ढंग से उपाय करें।
तो आइए अब हम संतानहीन योगों के बावज़ूद संतान प्राप्ति के उपायों की बात आरंभ करते हैं:
यदि पति व पत्नी, दोनों की कुण्डलियों में पूर्ण संतानहीनता की स्थिति हो तो उन्हें संतान बाधा मुक्ति के लिए निम्न उपाय अविलंब आरंभ करना चाहिए। इसका परिणाम हमेशा सुखद रहा है............
मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः
जप विधि: तुलसी की माला से प्रतिदिन 5 माला प्रातः काल जप करना श्रेयस्कर रहेगा।
भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर के सामने बैठकर कातर भाव से जप करने के पश्चात लड्डू का भोग (प्रसाद) अवश्य चढ़ाएं।
पुत्रेष्टि यज्ञ: यह एक विशद यज्ञ विधान है, जिसे आचार्यों की सहायता के बिना करना संभव नहीं। इस महान यज्ञ का अनुष्ठान संतानहीनता की स्थिति से मुक्त कर देता है। वस्तुतः यह याज्ञिक विधान वैदिक रीति से संपन्न किया जाता है जिसमें भारी व्यय होता है। इसलिए आम आदमी को ये सलाह दी जाती है कि वह इस यज्ञ के स्थान पर गोपाल संतान मंत्र व यंत्र की सहायता ले ताकि बिना किसी व्यय के उसका कार्य पूर्ण हो जाए।
बाधक ग्रहों की क्रूर व पापी ग्रहों की किरण रश्मियों को पंचम भाव, पंचमेश तथा संतान कारक गुरु से हटाने के लिए रत्नों का विकल्प बेहद प्रभावी रहता है। इस बात को समझने के लिए विशेषज्ञ आचार्य की अनिवार्यता होती है ताकि वह निर्धारित कर सके कि किन ग्रहों के कारण संतान प्राप्ति में बाधा आ रही है तथा किन ग्रहों की किरण रश्मियों को प्रतिकर्षित करने के लिए कैसे रत्नों का प्रयोग किया जाए।
संतानहीनता के लिए नवमांश की स्थिति की समीक्षा किया जाना बेहद आवश्यक है। यदि नवमांश चक्र में भी पूर्णरूपेण संतानहीनता की स्थिति बन रही है तो ऐसे में उपरोक्त वर्णित प्रथम उपाय के साथ तृतीय उपाय एक साथ करना लाभकारी होता है।
ध्यान रहे कि इन सभी प्रयोगों का फल पूर्ण निष्ठा से करने पर ही प्राप्त होता है। जिनके मन में इन उपायों को करते रहने के दौरान संशय व्याप्त रहता है, उन्हें इसका फल अपेक्षानुसार नहीं प्राप्त हो पाता है।
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