ध्यान मुलं गुरुर मूर्ति ,पूजा मुलं गुरु पदम् !
मन्त्र मुलं गुरुर वाक्यं, मोक्ष मुलं गुरुर
कृपा !!
गुरु देव की कृपा से ही वह ज्ञान उपलब्ध
होता है जो मुक्ति से
भी बड़ी भक्ति की राह दिखाता है !
यद्यपि शास्त्र और सभी धर्म ग्रन्थ गुरु हैं
फिर भी गुरु की आवश्यकता है। गुरु
की आवश्यकता सभी पूर्व के
महापुरुषों द्वारा कही गयी है ! भगवान्
शिव, श्रीकृष्ण एवं भगवान राम तक के
समय में भी गुरु परम्परा है ! यद्यपि राम
स्वयं परब्रह्म परमात्मा है तथापि मानव
देह में मनुष्यों को धर्म शिक्षण हेतु
वो भी गुरु परंपरा अपनाते है
ताकि सामान्य मानव को गुरु
परम्परा का महत्व समझ में आ सके !
अभिप्राय यहाँ पर केवल इतना है
कि बिन गुरु ज्ञान नही है और
बिना ज्ञान कुछ भी नही !
बिना ज्ञान तो मानव को मानव
भी नही कहा जा सकता है !
कहा भी गया है :-
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वर
गुरुर साक्षात् प्रर्ब्रह्म तस्मे श्री गुरवे
नमः
तो गुरु महान है सदेव एवेम सर्वदा !
यदि ईश्वर प्राप्ति की और अग्रसर
होना चाहते हो तो गुरु केवल एक शब्द भर
नहीं है, गुरु सार है ! बिन गुरु कृपा के ईश्वर
कृपा नही होती है ऐसा शास्त्र
भी कहते हैं और शास्त्र वचन का खंडन
धर्म द्रोही का लक्षण है ! वस्तुत: एक
साधक के लिए आवश्यक है कि वह गुरु
चरणों और गुरु वचनों में निष्ठा रखे।
जितनी निष्ठा परिपक्व
होती जाएगी उतना ही आत्म कल्याण
का मार्ग नजदीक आता जायेगा !
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