मित्रो जैसा हमने हमारे पिछले पाँच भागो मे बताया की शाबर का बेसिक ग्यान यानि भूमिका परिचय क्या है, क्योंकि जब तक आप उनका परिचय नही पा लेते तब तक आप अधूरे हो शाबर अपना महत्व गुरू सानीध्ये या गुरू क्रिया से ही दिखा पाता है बिना गुरू के वो अपना पुणे असर दिखा नही पाता, क्योंकि उसका उल्टा असर भी पड सकता है यही सत्य है मित्रो, हमारे आदि , महाॠषि, संतो ने सन्यासीओ ने ओर नाथ, नाग, गिरि कई प्रकार के संतो ने मंत्रो की रचना करने से पहले उनके ध्वनि, प्रभाव या क्रिया पर वर्षा तक अनुसंधान ओर शोध किया था, उन्होने उनका कई बार परीक्षण करने के बाद आशवस्थ होकर ही भिन्न भिन्न या अपने अनेको प्रकार के उदेश्यो की पूर्ति के लिये अनेको प्रकार कि क्रिया परीक्षण से गुजरने के बाद ही उन मंत्रो को सृजन किया ओर जनहित या लोकहित के लिए उनकी क्रम विधी आम जन या अपनी शिष्य परम्पराओं मे शामिल किया, पर कोई भी मंत्र हो मित्रो प्रायः मृत ही रहते है उनका जागृति संस्कार करना बेहद जरूरी होता है, नादान बालक की कलम से आज बस इतना बाकी फिर कभी, मित्रो वैसे तो मंत्र कई प्रकार के होते है ओर उनमे हर मंत्रो मे किसी ना किसी रुप मे इष्ट देवता की स्तुति ओर कामना निहित रहती है, ओर मित्रो ऐसे मंत्रो की जानकारी साधको होना जरूरी है या तो गुरू ही पथ प्रर्दशन कर सकता है ऐसे मंत्रो कोई मंत्र तंत्र साधना हो साधक का शिक्षित होना जरूरी है अशिक्षित होने से मंत्रो के उच्चारण ओर ध्वनि बदल जाती है इससे क्रिया की उल्टी प्रतिक्रिया हो जाती है क्योंकि मंत्र कोई भी हो वो अपना असर छोडता ही छोडता है ,मित्रो कुछ छोटे छोटे मंत्र या किसी स्तुति या स्त्रोत सरल ओर सुगम होते कि वो याद हो जाते है किंतु अधिकतम मंत्रो का जाप अशिक्षित व्यक्ति या साधक कर नही पाता तो वो अपनी छोटी सी दुनिया मे सिमट कर रह जाता है, जबकि कोई भी मंत्र साधना हो उनका जप साधना उच्चारण की शुद्धता ओर स्वर संतुलन पर ही निर्भर होता है, अशुद्ध उच्चारण अथवा असंतुलित ध्वनि स्वर मंत्र का मूल प्रभाव नष्ट ओर चेंज कर देते है इससे साधक का परिश्रम जप तप व्यर्थ ही नष्ट हो जाते है, किंतु शाबर मंत्रो मे ऐसी कोई प्रतिबद्धता नही है ना अर्थ का ना स्वरध्वनि का ओर ना व्याकरण सम्पति की, आजकल के लोकदेवता या लोककथाओ की तरह ही शाबर मंत्र या शाबारी तंत्र चिर आदि कालो से चला आ रहा है, पहले अय्यारो ,या अय्यारी भी शाबर तंत्र का एक हिस्सा था शायद अब गिने चूने या या सिद्धि लुप्त हो चूकी है या कगार पर है, परकाया प्रवेश, काया पलट, बाबा आदिनाथ, बाबा दादा गुरू गुरूमत्यस्यन्दे ,या मछेन्द्र नाथ जी या गुरू योगी गोरखनाथ जी आदि ने कई बार शाबर विधा के बार मे प्रमाण दिये है पर, आजकल सोशल मीडिया ने जैसे गुरू
प्रथा या गुरूसत्ता को बिल्कुल भूला दिया है,, पन्द्रह से बीस साल के लडके तो अघोरी तांत्रिक बन के घुम रहे है क्या हिन्दू क्या मुस्लिम, ओर पहले बरसो बीत जाते तब भी कोई सिद्धि नही पर आजकल तो तीन दिन मे एक साथ कईयो को सिद्ध बनाया जाता है इसलिए भी शाबर ,वैदिक ,तंत्र मंत्र ओर हिन्दू सनातन धर्म अपना मौलिक स्वरुप खो रहे है, पर शाबर मंत्र अपनी स्वरुप की विविधता लिये हुये आज भी है उनकी विचित्र रचना ओर वो विविध इसलिए कि एक मंत्र मे अनेक शैलियाँ ओर देवी देवता का सोमवेश मिल जाता है, तथा वो विचित्र इस कारण भी है कि शुद्ध बीज मंत्रो के ठेठ ग्रामीण भाषा की शब्दावली वाक्यगत रुप मे मिल जायेगी, पर मित्रो कुछ शाबर मंत्र रचना बडी अटपटी सी लगती सी लगती है उनकी शब्दावली को बोलते हुये ऐसा अनुभव होता है कि जैसे किसी छोटे बच्चों को प्रसन्न करने के लिए कहाँ जा रहा है, जैसे, एक सिरदर्द का मंत्र है, हजार घर घाले एक घर खाय, आगे चलो तो पीछे जाय, फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा, इस मंत्र को पढकर साधक रोगी के सिर पर हाथ रखकर फुक मारता है तो रोगी का सिरदर्द गायब हो जाता है, है ना मित्रो बडे अजीब ध्वनि शब्द ओर शब्दावली मित्रो शब्दो पर ना जाकर उनका मूल को समझने का प्रयास करे क्योंकि शब्द अटपटे हो सकते है कुछ विचलित भी कर सकते है पर आपके मन मे गुरू के प्रति पुणे श्रद्धा ओर मंत्रो के प्रति पुणे आस्था ही आपको पुणे सफलता दिला सकती है ,
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश,,
प्रथा या गुरूसत्ता को बिल्कुल भूला दिया है,, पन्द्रह से बीस साल के लडके तो अघोरी तांत्रिक बन के घुम रहे है क्या हिन्दू क्या मुस्लिम, ओर पहले बरसो बीत जाते तब भी कोई सिद्धि नही पर आजकल तो तीन दिन मे एक साथ कईयो को सिद्ध बनाया जाता है इसलिए भी शाबर ,वैदिक ,तंत्र मंत्र ओर हिन्दू सनातन धर्म अपना मौलिक स्वरुप खो रहे है, पर शाबर मंत्र अपनी स्वरुप की विविधता लिये हुये आज भी है उनकी विचित्र रचना ओर वो विविध इसलिए कि एक मंत्र मे अनेक शैलियाँ ओर देवी देवता का सोमवेश मिल जाता है, तथा वो विचित्र इस कारण भी है कि शुद्ध बीज मंत्रो के ठेठ ग्रामीण भाषा की शब्दावली वाक्यगत रुप मे मिल जायेगी, पर मित्रो कुछ शाबर मंत्र रचना बडी अटपटी सी लगती सी लगती है उनकी शब्दावली को बोलते हुये ऐसा अनुभव होता है कि जैसे किसी छोटे बच्चों को प्रसन्न करने के लिए कहाँ जा रहा है, जैसे, एक सिरदर्द का मंत्र है, हजार घर घाले एक घर खाय, आगे चलो तो पीछे जाय, फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा, इस मंत्र को पढकर साधक रोगी के सिर पर हाथ रखकर फुक मारता है तो रोगी का सिरदर्द गायब हो जाता है, है ना मित्रो बडे अजीब ध्वनि शब्द ओर शब्दावली मित्रो शब्दो पर ना जाकर उनका मूल को समझने का प्रयास करे क्योंकि शब्द अटपटे हो सकते है कुछ विचलित भी कर सकते है पर आपके मन मे गुरू के प्रति पुणे श्रद्धा ओर मंत्रो के प्रति पुणे आस्था ही आपको पुणे सफलता दिला सकती है ,
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश,,
जय माँ
ReplyDeleteजय महाकाल
प्रभु आपसे अच्छा ज्ञान प्राप्त हो रहा है।और आपका ये ज्ञान कई लोगो को जो साधना मार्ग में आगे बढ़ना चाहते है उनके लिए पथदर्शक होंगा।