लाभदायक 10 चमत्कारिक पौधे, जानिए कौन से..
सिद्धि देने वाली जड़ी-बूटी : गुलतुरा (दिव्यता के लिए), तापसद्रुम (भूतादि ग्रह निवारक), शल (दरिद्रता नाशक), भोजपत्र (ग्रह बाधाएं निवारक), विष्णुकांता (शस्त्रु नाशक), मंगल्य (तांत्रिक क्रिया नाशक), गुल्बास (दिव्यता प्रदानकर्ता), जिवक (ऐश्वर्यदायिनी), गोरोचन (वशीकरण), गुग्गल (चामंडु सिद्धि), अगस्त (पितृदोष नाशक), अपमार्ग (बाजीकरण)।
बांदा (चुम्बकीय शक्ति प्रदाता), श्वेत और काली गुंजा (भूत पिशाच नाशक), उटकटारी (राजयोग दाता), मयूर शिका (दुष्टात्मा नाशक) और काली हल्दी (तांत्रिक प्रयोग हेतु) आदि ऐसी अनेक जड़ी-बूटियां हैं, जो व्यक्ति के सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन को साधने में महत्वपूर्ण मानी गई हैं।
कीड़ा घास : कीड़े जैसी दिखने के कारण उत्तराखंड के लोग इसे कीड़ा घास कहते हैं। तिब्बती भाषा में इसको 'यारसाद्-गुम-बु' कहा जाता है जिसका अर्थ होता है ग्रीष्म ऋतु में घास और शीत ऋतु में जंतु। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार यर्सी गंबा हिमालयी क्षेत्र की विशेष प्रकार एवं यहां पाए जाने वाले एक कीड़े के जीवनचक्र के अद्भुत संयोग का परिणाम है।
कहते हैं कि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ एवं चमोली जिले के 3,500 मीटर की ऊंचाई के एल्पाइन बुग्यालों में यह घास पाई जाती है। तिब्बती साहित्य के अनुसार यहां के चरवाहों ने देखा कि जंगलों में चरने वाले उनके पशु एक विशेष प्रकार की घास, जो कीड़े के समान दिखाई देती है, को खाकर हृष्ट-पुष्ट एवं बलवान हो जाते हैं। धीरे-धीरे यह घास एक चमत्कारी औषधि के रूप में अनेक बीमारियों के इलाज के लिए प्रयोग होने लगी।
यह नारंगी रंग की एक पतली जड़ की तरह दिखाई देती है जिसका भीतरी भाग सफेद होता है। इसका ऊपरी भाग एक स्प्रिंग की भांति घुमावदार होता है जिस पर झुर्रियां होती हैं। इन झुर्रियों के कारण ही यह इल्लड़ जैसी लगती है। इन झुर्रियों की मुख्य रचना में 7-8 आकृतियां झुंड के रूप में मिलती हैं। इनमें बीच की रचनाएं बड़ी एवं महत्वपूर्ण होती हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार ये झुंड वस्तुत: कार्डिसेप्स नामक फफूंद के सूखे हुए अवशेष होते हैं। उनके अनुसार इस घास में एस्पार्टिक एसिड, ग्लूटेमिक एसिड, ग्लाईसीन जैसे महत्वपूर्ण एमीनो एसिड तथा कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम जैसे अनेक प्रकार के तत्व, अनेक प्रकार के विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसको एकत्रित करने के लिए अप्रैल से लेकर जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है। अगस्त के महीने से धीरे-धीरे प्राकृतिक रूप से इसका क्षय होने लगता है और शरद ऋतु के आने तक यह पूर्णतया विलुप्त हो जाती है।
यह औषधि हृदय, यकृत तथा गुर्दे संबंधी व्याधियों में उपयोगी सिद्ध हुई है। शरीर के जोड़ों में होने वाली सूजन एवं पीड़ा तथा जीर्ण रोगों जैसे अस्थमा एवं फेफड़े के रोगों में इसका प्रयोग लाभकारी होता है। इसका प्रयोग शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। उम्र के साथ-साथ बढ़ने वाली हृदय एवं मस्तिष्क की रक्त वाहिनियों की कठोरता को भी यह कम करता है। कुल मिलाकर यह आपकी बढ़ती आयु को रोकने में सक्षम है।
भूख-प्यास को रोके जड़ी : वेदादि ग्रंथों के अलावा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में जड़ी-बूटी, दूध आदि से निर्मित ऐसे आहार का विवरण है जिसके सेवन के बाद पूरे महीने भोजन की जरूरत नहीं पड़ती।
कहते हैं कि आंधीझाड़ा से अत्यधिक भूख लगने (भस्मक रोग) और अत्यधिक प्यास लगने का रोग समाप्त किया जा सकता है। अर्थात जो लोग ज्यादा खाने के शौकीन हैं और मोटापे से ग्रस्त हैं वे इस जड़ी का उपयोग कर भूख को समाप्त कर सकते हैं।
इसे संस्कृत में अपामार्ग, हिन्दी में चिरचिटा, लटजीरा और आंधीझाड़ा कहते हैं। अंग्रेजी में इसे रफ चेफ ट्री नाम से जाना जाता है। यह पौधा 1 से 3 फुट ऊंचा होता है और भारत में सब जगह घास के साथ अन्य पौधों की तरह पैदा होता है। खेतों की बागड़ के पास, रास्तों के किनारे, झाड़ियों में इसे सरलता से पाया जा सकता है।
ब्राह्मी : ब्राह्मी को बुद्धि और उम्र को बढ़ाने वाला माना गया है। ब्राह्मी तराई वाले स्थानों पर उगती है।
यह बुखार, स्मृतिदोष, सफेद दाग, पीलिया, प्रमेह और खून की खराबी को दूर करती है। खांसी, पित्त और सूजन में भी लाभदायक है। ब्राह्मी का उपयोग दिल और दिमाग को संतुलित करने के लिए लिए भी किया जाता है।
कहा जाता है कि इसका सही मात्रा के अनुसार सेवन करने से निर्बुद्ध, त्रिकालदर्शी यानी भूत, भविष्य और वर्तमान सब दिखाई देने लगता है।
ब्राह्मी : जटामासी, शंखपुष्पी, जपा, अखरोट की तरह ब्राह्मी भी दिमाग और नेत्र के लिए बहुत ही उपयोगी है। ब्राह्मी नाम से कई तरह के टॉनिक बनते हैं। ब्राह्मी दरअसल एक जड़ी है, जो दिमाग के लिए बहुत ही उपयोगी है। यह दिमाग को शांत कर स्थिरता प्रदान करती है, साथ ही यह याददाश्त बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
योग और आयुर्वेद के अनुसार बाह्मी से हमारे चक्र भी सक्रिय होते हैं। माना जाता है कि इससे दिमाग के बाएं और दाएं हेमिस्फियर संतुलित रहते हैं। ब्राह्मी में एंटी ऑक्सीडेंट तत्व होते हैं जिससे दिमाग की शक्ति बढ़ने लगती है।
सेवन : आधे चम्मच ब्राह्मी के पावडर को गरम पानी में मिला लें और स्वाद के लिए इसमें शहद मिला लें और मेडिटेशन से पहले इसे पीएं तो लाभ होगा। इसके 7 पत्ते चबाकर खाने से भी वही लाभ मिलता है।
सिद्धि देने वाली जड़ी-बूटी : गुलतुरा (दिव्यता के लिए), तापसद्रुम (भूतादि ग्रह निवारक), शल (दरिद्रता नाशक), भोजपत्र (ग्रह बाधाएं निवारक), विष्णुकांता (शस्त्रु नाशक), मंगल्य (तांत्रिक क्रिया नाशक), गुल्बास (दिव्यता प्रदानकर्ता), जिवक (ऐश्वर्यदायिनी), गोरोचन (वशीकरण), गुग्गल (चामंडु सिद्धि), अगस्त (पितृदोष नाशक), अपमार्ग (बाजीकरण)।
बांदा (चुम्बकीय शक्ति प्रदाता), श्वेत और काली गुंजा (भूत पिशाच नाशक), उटकटारी (राजयोग दाता), मयूर शिका (दुष्टात्मा नाशक) और काली हल्दी (तांत्रिक प्रयोग हेतु) आदि ऐसी अनेक जड़ी-बूटियां हैं, जो व्यक्ति के सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन को साधने में महत्वपूर्ण मानी गई हैं।
कीड़ा घास : कीड़े जैसी दिखने के कारण उत्तराखंड के लोग इसे कीड़ा घास कहते हैं। तिब्बती भाषा में इसको 'यारसाद्-गुम-बु' कहा जाता है जिसका अर्थ होता है ग्रीष्म ऋतु में घास और शीत ऋतु में जंतु। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार यर्सी गंबा हिमालयी क्षेत्र की विशेष प्रकार एवं यहां पाए जाने वाले एक कीड़े के जीवनचक्र के अद्भुत संयोग का परिणाम है।
कहते हैं कि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ एवं चमोली जिले के 3,500 मीटर की ऊंचाई के एल्पाइन बुग्यालों में यह घास पाई जाती है। तिब्बती साहित्य के अनुसार यहां के चरवाहों ने देखा कि जंगलों में चरने वाले उनके पशु एक विशेष प्रकार की घास, जो कीड़े के समान दिखाई देती है, को खाकर हृष्ट-पुष्ट एवं बलवान हो जाते हैं। धीरे-धीरे यह घास एक चमत्कारी औषधि के रूप में अनेक बीमारियों के इलाज के लिए प्रयोग होने लगी।
यह नारंगी रंग की एक पतली जड़ की तरह दिखाई देती है जिसका भीतरी भाग सफेद होता है। इसका ऊपरी भाग एक स्प्रिंग की भांति घुमावदार होता है जिस पर झुर्रियां होती हैं। इन झुर्रियों के कारण ही यह इल्लड़ जैसी लगती है। इन झुर्रियों की मुख्य रचना में 7-8 आकृतियां झुंड के रूप में मिलती हैं। इनमें बीच की रचनाएं बड़ी एवं महत्वपूर्ण होती हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार ये झुंड वस्तुत: कार्डिसेप्स नामक फफूंद के सूखे हुए अवशेष होते हैं। उनके अनुसार इस घास में एस्पार्टिक एसिड, ग्लूटेमिक एसिड, ग्लाईसीन जैसे महत्वपूर्ण एमीनो एसिड तथा कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम जैसे अनेक प्रकार के तत्व, अनेक प्रकार के विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसको एकत्रित करने के लिए अप्रैल से लेकर जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है। अगस्त के महीने से धीरे-धीरे प्राकृतिक रूप से इसका क्षय होने लगता है और शरद ऋतु के आने तक यह पूर्णतया विलुप्त हो जाती है।
यह औषधि हृदय, यकृत तथा गुर्दे संबंधी व्याधियों में उपयोगी सिद्ध हुई है। शरीर के जोड़ों में होने वाली सूजन एवं पीड़ा तथा जीर्ण रोगों जैसे अस्थमा एवं फेफड़े के रोगों में इसका प्रयोग लाभकारी होता है। इसका प्रयोग शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। उम्र के साथ-साथ बढ़ने वाली हृदय एवं मस्तिष्क की रक्त वाहिनियों की कठोरता को भी यह कम करता है। कुल मिलाकर यह आपकी बढ़ती आयु को रोकने में सक्षम है।
भूख-प्यास को रोके जड़ी : वेदादि ग्रंथों के अलावा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में जड़ी-बूटी, दूध आदि से निर्मित ऐसे आहार का विवरण है जिसके सेवन के बाद पूरे महीने भोजन की जरूरत नहीं पड़ती।
कहते हैं कि आंधीझाड़ा से अत्यधिक भूख लगने (भस्मक रोग) और अत्यधिक प्यास लगने का रोग समाप्त किया जा सकता है। अर्थात जो लोग ज्यादा खाने के शौकीन हैं और मोटापे से ग्रस्त हैं वे इस जड़ी का उपयोग कर भूख को समाप्त कर सकते हैं।
इसे संस्कृत में अपामार्ग, हिन्दी में चिरचिटा, लटजीरा और आंधीझाड़ा कहते हैं। अंग्रेजी में इसे रफ चेफ ट्री नाम से जाना जाता है। यह पौधा 1 से 3 फुट ऊंचा होता है और भारत में सब जगह घास के साथ अन्य पौधों की तरह पैदा होता है। खेतों की बागड़ के पास, रास्तों के किनारे, झाड़ियों में इसे सरलता से पाया जा सकता है।
ब्राह्मी : ब्राह्मी को बुद्धि और उम्र को बढ़ाने वाला माना गया है। ब्राह्मी तराई वाले स्थानों पर उगती है।
यह बुखार, स्मृतिदोष, सफेद दाग, पीलिया, प्रमेह और खून की खराबी को दूर करती है। खांसी, पित्त और सूजन में भी लाभदायक है। ब्राह्मी का उपयोग दिल और दिमाग को संतुलित करने के लिए लिए भी किया जाता है।
कहा जाता है कि इसका सही मात्रा के अनुसार सेवन करने से निर्बुद्ध, त्रिकालदर्शी यानी भूत, भविष्य और वर्तमान सब दिखाई देने लगता है।
ब्राह्मी : जटामासी, शंखपुष्पी, जपा, अखरोट की तरह ब्राह्मी भी दिमाग और नेत्र के लिए बहुत ही उपयोगी है। ब्राह्मी नाम से कई तरह के टॉनिक बनते हैं। ब्राह्मी दरअसल एक जड़ी है, जो दिमाग के लिए बहुत ही उपयोगी है। यह दिमाग को शांत कर स्थिरता प्रदान करती है, साथ ही यह याददाश्त बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
योग और आयुर्वेद के अनुसार बाह्मी से हमारे चक्र भी सक्रिय होते हैं। माना जाता है कि इससे दिमाग के बाएं और दाएं हेमिस्फियर संतुलित रहते हैं। ब्राह्मी में एंटी ऑक्सीडेंट तत्व होते हैं जिससे दिमाग की शक्ति बढ़ने लगती है।
सेवन : आधे चम्मच ब्राह्मी के पावडर को गरम पानी में मिला लें और स्वाद के लिए इसमें शहद मिला लें और मेडिटेशन से पहले इसे पीएं तो लाभ होगा। इसके 7 पत्ते चबाकर खाने से भी वही लाभ मिलता है।
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