Saturday, June 27, 2015

सोलह शृंगार

सोलह शृंगार

भारतीय साहित्य में सोलह शृंगारी (षोडश शृंगार) की यह प्राचीन परंपरा रही हैं। आदि काल से ही स्त्री और पुरुष दोनों प्रसाधन करते आए हैं और इस कला का यहाँ इतना व्यापक प्रचार था कि प्रसाधक और प्रसाधिकाओं का एक अलग वर्ग ही बन गया था। इनमें से प्राय: सभी शृंगारों के दृश्य हमें रेलिंग या द्वारस्तंभों पर अंकित (उभारे हुए) मिलते हैं।

अंगशुची, मंजन, वसन, माँग, महावर, केश।
तिलक भाल, तिल चिबुक में, भूषण मेंहदी वेश।।
मिस्सी काजल अरगजा, वीरी और सुगंध।
अर्थात् अंगों में उबटन लगाना, स्नान करना, स्वच्छ वस्त्र धारण करना, माँग भरना, महावर लगाना, बाल सँवारना, तिलक लगाना, ठोढी़ पर तिल बनाना, आभूषण धारण करना, मेंहदी रचाना, दाँतों में मिस्सी, आँखों में काजल लगाना, सुगांधित द्रव्यों का प्रयोग, पान खाना, माला पहनना, नीला कमल धारण करना।

स्नान के पहले उबटन का बहुत प्रचार था। इसका दूसरा नाम अंगराग है। अनेक प्रकार के चंदन, कालीयक, अगरु और सुगंध मिलाकर इसे बनाते थे। जाड़े और गर्मी में प्रयोग के हेतु यह अलग अलग प्रकार का बनाया जाता था। सुगंध और शीतलता के लिए स्त्री पुरुष दोनों ही इसका प्रयोग करते थे।

स्नान के अनेक प्रकार काव्यों में वर्णित मिलते हैं पर इनमें सबसे अधिक लोकप्रिय जलविहार या जलक्रीड़ा था। अधिकांशत: स्नान के जल को पुष्पों से सुरभित कर लिया जाता था जैसे आजकल "बाथसाल्ट" का प्रयत्न किया जाता है। एक प्रकार के साबुन का भी प्रयोग होता था जो "फेनक" कहलाता था और जिसमें से झाग भी निकलते थे।

वसन वे स्वच्छ वस्त्र थे जो नहाने के बाद नर नारी धारण करते थे। पुरुष एक उत्तरीय और अधोवस्त्र पहनते थे और स्त्रियाँ चोली और घाघरा। यद्यपि वस्त्र रंगीन भी पहने जाते थे तथापि प्राचीन नर-नारी श्वेत उज्जवल वस्त्र अधिक पसंद करते थे। इनपर सोने, चाँदी और रत्नों के काम कर और भी सुंदर बनाने की अनेक विधियाँ थीं।

स्नान के उपरांत सभी सुहागवती स्त्रिययाँ सिंदूर से माँग भरती थीं। वस्तुत: वारवनिताओं को छोड़कर अधिकतर विवाहित स्त्रियों के शृंगार प्रसाधनों का उल्लेख मिलता है, कन्याओं का नहीं। सिंदूर के स्थान पर कभी कभी फूलों और मोतियों से भी माँग सजाने की प्रथा थी।

बाल सँवारने के तो तरीके हर समय के अपने थे। स्नान के बाद केशों से जल निचोड़ लिया जाता था। ऐसे अनेक दृश्य पत्थर पर उत्कीर्ण मिलते हैं। सूखे बालों को धूप और चंदन के धुँए से सुगंधित कर अपने समय के अनुसार अनेक प्रकार की वेणियों, अलकों और जूड़ों से सजाया जाता था। बालों में मोती और फूल गूँथने का आम रिवाज था। विरहिणियाँ और परित्यक्ता वधुएँ सूखे अलकों वाली ही काव्यों में वर्णित की गई हैं; वे प्रसाधन नहीं करती थीं।

महावर लगाने की रीति तो आज भी प्रचलित है, विशेषकर त्यौहारों या मांगलिक अवसरों पर। इनसे नाखून और पैर के तलवे तो रचाए ही जाते थे, साथ ही इसे होठों पर लगाकर आधुनिक "लिपिस्टिक" का काम भी लिया जाता था। होठों पर महावर लगाकर लोध्रचूर्ण छिड़क देने से अत्यंत मनमोहक पांडुता का आभास मिलता था।

मुँह का प्रसाधन तो नारियों को विशेष रूप से प्रिय था। इसके "पत्ररचना", विशेषक, पत्रलेखन और भक्ति आदि अनेक नाम थे। लाल और श्वेत चंदन के लेप से गालों, मस्तक और भवों के आस पास अनेक प्रकार के फूल पत्ते और छोटी बड़ी बिंदियाँ बनाई जाती थीं। इसमें गीली या सूखी केसर या कुमकुम का भी प्रयोग होता था। बाद में इसका स्थान बिंदी ने ले लिया जो आज भी इस देश की स्त्रियों का प्रिय प्रसाधन है। कभी केवल काजल की अकेली बिंदी भी लगाने की रीति थी। आजकल की भाँति ही बीच ठोढ़ी पर दो छोटे छोटे काजल के तिल लगाकर सौंदर्य को आकर्षक बनाने का चलन था।

आजकल की तरह प्राचीन भारत में भी हथेली और नाखूनों को मेहँदी से लाल करने का आम रिवाज था।

आभूषणों की तो अनंत परंपरा थी जिसे नर नारी दोनों ही धारण करते थे। मध्यकाल में तो आभूषणों का प्रयोग इतना बढ़ा कि शरीर का शायद ही कोई भाग बचा हो जहाँ गहने न पहने जाते हों।

आँखों में काजल या अंजन का प्रयोग व्यापक रूप से होता था। मूर्तिकला में बहुधा शलाका से अंजन लगाती हुई नारी का चित्रण हुआ है।

अरगजा एक प्रकार का लेप है जिसे केसर, चंदन, कपूर आदि मिलाकर बनाते थे। आधुनिक इत्र या सेंट की तरह शरीर को सुगंधित करने के लिए इसका अधिकतर प्रयोग किया जाता था।

मुँह को सुगंधित करने के लिए स्त्री और पुरुष दोनों ही तांबूल या पान खाते थे। राजाओं की परिचारिकाओं में तांबूलवाहिनी का अपना विशेष स्थान था।

भारतीय नारी को अपने प्रसाधन में फूलों के प्रति विशेष मोह है। जूड़े में, वेणियों में, कानों, हाथों, बाहों कलाइयों और कटिप्रदेश में कमल, कुंद, मंदार, शिरीष, केसर आदि के फूल और गजरों का प्रयोग करती थीं।

स्त्रियां घर की मान-प्रतिष्ठा की प्रतीक
पुराने समय से ही स्त्रियों को घर-परिवार की मान-प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है और इसी कारण इनके रूप-सौंदर्य को बनाए रखने के लिए कई प्रकार की परंपराएं प्रचलित हैं। इन्हीं परंपराओं में से एक है कि विवाहित स्त्री प्रतिदिन सोलह श्रृंगार का उपयोग करें। वैसे आज के समय में बहुत ही कम स्त्रियां इन चीजों का उपयोग करती हैं, सिर्फ विशेष अवसर जैसे किसी की शादी, कोई त्यौहार या कोई अन्य शुभ अवसर पर ही पूरे सोलह श्रृंगार किए जाते हैं।
यहां जानिए ये सोलह श्रृंगार कौन-कौन से हैं और इन चीजों से स्त्रियों को कौन-कौन से लाभ प्राप्त होते हैं...


1,बिंदी: स्त्री या कन्या विवाहित हो या अविवाहित, दोनों के लिए ही बिंदी लगाना अनिवार्य परंपरा है। शास्त्रों के अनुसार बिंदी को घर-परिवार की सुख-समृध्दि का प्रतीक माना जाता है।

2,सिन्दूर: विवाहित स्त्रियों के लिए सिंदूर को सुहाग की निशानी माना जाता है। ऐसा माना जाता कि सिंदूर लगाने से पति की आयु में वृद्धि होती है।

3,काजल: आंखों की सुंदरता बढ़ाने के लिए काजल लगाया जाता है। काजल लगाने से स्त्री पर किसी की बुरी नजर का कुप्रभाव भी नहीं पड़ता है। साथ ही, काजल से आंखों से संबंधित कई रोगों से बचाव भी हो जाता है।

4,,मेहंदी: किसी भी स्त्री के लिए मेहंदी अनिवार्य श्रृंगार माना जाता है। इसके बिना स्त्री का श्रृंगार अधूरा ही माना जाता है। किसी भी मांगलिक कार्यक्रम के दौरान स्त्रियां अपने हाथों और पैरों में मेहंदी रचाती हैं। ऐसा माना जाता है कि विवाह के बाद नववधू के हाथों में मेहंदी जितनी अच्छी रचती है, उसका पति उतना ही ज्यादा प्यार करने वाला होता है।

5,शादी का विशेष परिधान: कन्या विवाह के समय जो खास परिधान पहनती है वह भी अनिवार्य श्रृंगार में शामिल है। ये परिधान लाल रंग का होता है और इसमें ओढ़नी, चोली और घाघरा पहनाया जाता है।


6,गजरा: फूलों का गजरा भी अनिवार्य श्रृंगार माना जाता है। इसे बालों में लगाया जाता है।




7,,नथ: स्त्रियों के लिए नथ भी अनिवार्य श्रृंगार माना गया है। इसे नाक में धारण किया जाता है। नथ धारण करने पर कन्या की सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं।

8,कानों के कुण्डल: कानों में पहने जाने वाले कुण्डल भी श्रृंगार का अनिवार्य अंग है। यह भी सोने या चांदी की धातु के हो सकते हैं।

9,.मंगल सूत्र और हार: स्त्रियां गले में हार पहनती हैं। विवाह के बाद मंगल सूत्र भी अनिवार्य रूप से पहनने की परंपरा है। मंगल सूत्र के काले मोतियों से स्त्री पर बुरी नजर का कुप्रभाव नहीं पड़ता है।


10,,बाजूबंद: सोने या चांदी के कड़े स्त्रियां बाहों में धारण करती हैं, इन्हें बाजूबंद कहा जाता है।




11,,चूड़ियां या कंगन: किसी भी स्त्री के लिए चूडिय़ां पहनना अनिवार्य परंपरा है। विवाह के बाद चूडिय़ां सुहाग की निशानी मानी जाती हैं। चूडिय़ां कलाइयों में पहनी जाती हैं ये कांच की, सोने या चांदी या अन्य किसी धातु की हो सकती हैं। सोने या चांदी की चूडिय़ां पहनने से, लगातार त्वचा के संपर्क में रहने से स्त्रियों को स्वर्ण और चांदी के गुण प्राप्त होते हैं जो कि स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं।


12,अंगूठी: उंगलियों में अंगूठी पहनने की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। इसे भी सोलह श्रृंगार में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।


13,,कमरबंद: कमर में धारण किया जाने वाला आभूषण है कमरबंद। पुराने समय कमरबंद को विवाह के बाद स्त्रियां अनिवार्य रूप से धारण करती थीं।


14,,पायल: पायल किसी भी कन्या या स्त्री के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण आभूषण है। इसके घुंघरुओं की आवाज से घर में सकारात्मक वातावरण निर्मित होता है।

15,टीका: विवाहित स्त्रियां मस्तक पर मांग के बीच में जो आभूषण लगाती हैं, उसे ही टीका कहा जाता है। यह आभूषण सोने या चांदी का हो सकता है।

16,Bichwa  ,shadi ke baad pero ki ungliyo m pahene jane wali ring,

शास्त्रों के अनुसार जो स्त्रियां इन सोलह श्रृंगार को धारण करती हैं, उनके घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं रहती। ऐसी स्त्रियों पर स्वयं महालक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। सोलह श्रृंगार करने वाली स्त्री का परिवार सदैव सुखी रहता है।

भारतीय साहित्य में सोलह श्रृंगारी (षोडश श्रृंगार) की प्राचीन परंपरा रही हैं. आदि काल से ही स्त्री और पुरुष दोनों प्रसाधन करते आए हैं और इस कला का यहाँ इतना व्यापक प्रचार था कि प्रसाधक और प्रसाधिकाओं का एक अलग वर्ग ही बन गया था. इनमें से प्राय: सभी श्रृंगारों के दृश्य हमें प्राचीन वास्तु की रेलिंग या द्वार स्तंभों पर अंकित मिलते हैं.

अंगशुची, मंजन, वसन, माँग, महावर, केश.

तिलक भाल, तिल चिबुक में, भूषण मेंहदी वेश..

मिस्सी काजल अरगजा, वीरी और सुगंध.

अर्थात् अंगों में उबटन लगाना, स्नान करना, स्वच्छ वस्त्र धारण करना, माँग भरना, महावर लगाना, बाल सँवारना, तिलक लगाना, ठोढी़ पर तिल बनाना, आभूषण धारण करना, मेंहदी रचाना, दाँतों में मिस्सी, आँखों में काजल लगाना, सुगांधित द्रव्यों का प्रयोग, पान खाना, माला पहनना, नीला कमल धारण करना.

प्राचीन संस्कृत साहित्य में षोडश श्रृंगार की गणना अज्ञात प्रतीत होती है. अनुमानतः यह गणना वल्लभदेव की सुभाषितावली (15वीं शती या 12वीं शती) में प्रथम बार आती है. उनके अनुसार वे इस प्रकार हैं—

आदौ मज्जनचीरहारतिलकं नेत्राञ्जनं कुडले,

नासामौक्तिककेशपाशरचना सत्कंचुकं नूपुरौ .

सौगन्ध्य करकङ्कणं चरणयो रागो रणन्मेखला,

ताम्बूलं करदर्पण चतुरता श्रृंगारका षोडण . .

अर्थात् (1) मज्जन, (2) चीर, (3) हार, (4) तिलक, (5) अंजन, (6) कुंडल, (7) नासामुक्ता, (8) केशविन्यास, (9) चोली (कंचुक), (10) नूपुर, (11) अंगराग (सुगंध), (12) कंकण, (13) चरणराग, (14) करधनी, (15) तांबूल तथा (16) करदर्पण (आरसो नामक अंगूठी).

आधुनिक युग के प्रचलित 16 श्रृंगार

1) बिन्दी - सुहागिन स्त्रियां कुमकुम या सिन्दुर से अपने ललाट पर लाल बिन्दी

जरूर लगाती है और इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है.

2) सिंदूर - सिंदूर को स्त्रियों का सुहाग चिन्ह माना जाता है.

3) नथ - विवाह के अवसर पर पवित्र अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेने के बाद में देवी पार्वती के सम्मान में नववधू को नथ पहनाई जाती है.

4) कर्ण फूल - कान में जाने वाला यह आभूषण कई तरह की सुन्दर आकृतियों में होता है, जिसे चेन के सहारे जूडे़ में बांधा जाता है.

5) हार - गले में पहना जाने वाला सोने या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन स्त्री के वचनबद्धता का प्रतीक माना जाता है.

6) बाजूबन्द - कड़े के समान आकृति वाला यह आभूषण सोने या चान्दी का होता है. यह बांहो में पूरी तरह कसा रहता है, इसी कारण इसे बाजूबन्द कहा जाता है.

7) कंगण और चूडिय़ाँ - हिन्दू परिवारों में सदियों से यह परम्परा चली आ रही है कि सास अपनी बडी़ बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुखी और सौभाग्यवती बने रहने के आशीर्वाद के साथ वही कंगण देती है, जो पहली बार ससुराल आने पर उसकी सास ने दिए थे. पारम्परिक रूप से ऐसा माना जाता है कि सुहागिन स्त्रियों की कलाइयां चूडिय़ों से भरी रहनी चाहिए.

8) अंगूठी - शादी के पहले सगाई की रस्म में वर-वधू द्वारा एक-दूसरे को अंगूठी पहनाने की परम्परा बहुत पुरानी है. अंगूठी को सदियों से पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है.

9) कमरबन्द - कमरबन्द कमर में पहना जाने वाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद पहनती है. इससे उनकी छरहरी काया और भी आकर्षक दिखाई देती है. कमरबन्द इस बात का प्रतीक कि नववधू अब अपने नए घर की स्वामिनी है. कमरबन्द में प्राय: औरतें चाबियों का गुच्छा लटका कर रखती है.

10) बिछुआ - पैरें के अंगूठे में रिंग की तरह पहने जाने वाले इस आभूषण को अरसी या अंगूठा कहा जाता है. पारम्परिक रूप से पहने जाने वाले इस आभूषण के अलावा स्त्रियां कनिष्ठिका को

छोडकर तीनों उंगलियों में बिछुआ पहनती है.

11) पायल- पैरों में पहने जाने वाले इस आभूषण के घुंघरूओं की सुमधुर ध्वनि से घर के हर सदस्य को नववधू की आहट का संकेत मिलता है.

12) मांग टीका- सुंदरता में चार चांद लगाता है मांग में टीका.

13) मंगल सूत्र- वधू के गले में वर द्वारा मंगलसूत्र से उसके विवाहित होने का संकेत मिलता है.

14) जूड़ा बंद - कमरबन्द और बाजूबंद की तरह जूड़ाबंद भी सोलह श्रृंगार के अंतर्गत आता है.

15) काजल - काजल आंखों को और गहरा और काला बनाने के लिए लगाया जाता है.

16) उबटन - स्नान के पहले उबटन का बहुत प्रचार था. इसका दूसरा नाम अंगराग है. अनेक प्रकार के चंदन, कालीयक, अगरु और सुगंध मिलाकर इसे बनाते थे. जाड़े और गर्मी में प्रयोग के हेतु यह अलग अलग प्रकार का बनाया जाता था. सुगंध और शीतलता के लिए स्त्री पुरुष दोनों ही इसका प्रयोग करते थे.

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