Sunday, June 28, 2015

तिलक क्यूँ लगाया जाता है

तिलक क्यूँ लगाया जाता है

हमारे भारतीय संस्कृति में तिलक लगाने की परंपरा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है.. ऐसी मान्यता है कि माथे पर तिलक लगाने से व्यक्ति का गौरव बढ़ता है और समाज में मस्तिष्क हमेशा गर्व से ऊंचा रहता है... गौरतलब है कि तिलक हमारे हिंदू संस्कृति में एक प्रकार से पहचान चिन्ह का भी काम करता है... हिन्दू आध्यात्म की असली पहचान तिलक से ही होती है.. हिंदू परिवारों में किसी भी शुभ कार्य में "तिलक या टीका" लगाने का विधान हैं.. यह तिलक कई वस्तुओ और पदार्थों से लगाया जाता हैं.. इनमें हल्दी, सिन्दूर, केशर, भस्म और चंदन आदि प्रमुख हैं|
आपको बता दें कि हिंदु धर्म में माथे पर तिलक लगाना न केवल धार्मिक मान्यता है बल्कि इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी हैं.. माथे पर तिलक लगाने के कई तरीके हैं... हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके अपने अलग-अलग तिलक होते हैं.. हमारे सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं..
शैव परंपरा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है तो शाक्त परंपरा में सिंदूर का तिलक लगाया जाता हैं क्योंकि सिंदूर उग्रता का प्रतीक है और यह साधक की शक्ति या तेज बढ़ाने में सहायक माना जाता है.. वहीं वैष्णव परंपरा में चौंसठ प्रकार के तिलक बताए गए हैं.. इनमें प्रमुख- लालश्री तिलक है इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुंकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनी होती है.. वहीं विष्णुस्वामी तिलक- इसमें तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है.. यह तिलक संकरा होते हुए भोहों के बीच तक आता है.. रामानंद तिलक- विष्णुस्वामी तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है.. श्यामश्री तिलक- इसे कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं.. इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है.. अन्य तिलक- गाणपत्य, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं.. कई साधु व संन्यासी भस्म का तिलक लगाते हैं..
तिलक के बारे में पुराणों में वर्णित है कि संगम तट पर गंगा स्नान के बाद तिलक लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.. यही कारण है की स्नान करने के बाद पंडों द्वारा विशेष तिलक अपने भक्तों को लगाया जाता है..
आपको मालुम हो कि हमारे शरीर में सात सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं, जो अपार शक्ति के भंडार हैं.. इन्हें चक्र कहा जाता है, माथे के बीच में जहां तिलक लगाते हैं, वहीं आज्ञाचक्र होता है.. यह चक्र हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, जहां शरीर की प्रमुख तीन नाड़िया- इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं इसलिए इसे त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है..
यह स्थान गुरु का स्थान कहलाता है.. यहीं से पूरे शरीर का संचालन होता है.. यहीं हमारी चेतना का मुख्य स्थान भी है, इसी को मन का घर भी कहा जाता है.. इसी कारण यह स्थान शरीर में सबसे ज्यादा पूजनीय भी है.. योग में ध्यान के समय इसी स्थान पर मन को एकाग्र किया जाता है..
तिलक लगाने से एक तो स्वभाव में सुधार आता हैं व देखने वाले पर सात्विक प्रभाव भी पड़ता हैं.. इतना ही नहीं तिलक जिस भी पदार्थ का लगाया जाता हैं उस पदार्थ की ज़रूरत अगर शरीर को होती हैं तो वह भी पूर्ण हो जाती हैं.. तिलक किसी खास प्रयोजन के लिए भी लगाये जाते हैं जैसे यदि मोक्षप्राप्ती करनी हो तो तिलक अंगूठे से, शत्रु नाश करना हो तो तर्जनी से, धनप्राप्ति हेतु मध्यमा से तथा शान्ति प्राप्ति हेतु अनामिका से लगाया जाता हैं.. आमतौर पर तिलक अनामिका द्वारा लगाया जाता हैं और उसमे भी केवल चंदन ही लगाया जाता हैं.. तिलक के साथ चावल लगाने से मां लक्ष्मी आकर्षित होती है तथा ठंडक एवं सात्विकता मिलता हैं.. अतः प्रत्येक व्यक्ति को तिलक ज़रूर लगाना चाहिए.


कुछ फैशन और कुछ ,आज कल के कुमकुम चन्दन में हुई मिलावट की वजह से और हमारी संस्कृति में और अन्य संस्कृतियों के समावेश से तिलक लगाने की परम्परा में कमी आने लगी है, किन्तु आज भी हरेक अछे कार्यो की शुरुवात हम हिन्दू ,.. तिलक से ही करते हैं .. पर सब नही जानते की इस तिलक का लगाना क्यों आवश्यक है या इसके क्या मायने हैं ... सो दोस्तों आज तिलक के बारे में हम कुछ जानेंगे पर ये ब्लॉग मैंने खुद से नही लिखा . कही मैंने पढ़ा और जानने योग्य लगा सो आप सबके साथ सेर कर रही हूँ ...

------पूजा और भक्ति का एक प्रमुख अंग तिलक है। भारतीय संस्कृति में पूजा-अर्चना, संस्कार विधि, मंगल कार्य, यात्रा गमन, शुभ कार्यों के प्रारंभ में माथे पर तिलक लगाकर उसे अक्षत से विभूषित किया जाता है।

उत्तर भारत में आज भी तिलक-आरती के साथ आदर सत्कार-स्वागत कर तिलक लगाया जाता है।

तिलक मस्तक पर दोनों भौंहों के बीच नासिका के ऊपर प्रारंभिक स्थल पर लगाए जाते हैं जो हमारे चिंतन-मनन का स्थान है- यह चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है, इसे आज्ञा-चक्र भी कहते हैं।

इसी चक्र के एक ओर दाईं ओर अजिमा नाड़ी होती है तथा दूसरी ओर वर्णा नाड़ी है।

इन दोनों के संगम बिंदु पर स्थित चक्र को निर्मल, विवेकशील, ऊर्जावान, जागृत रखने के साथ ही तनावमुक्त रहने हेतु ही तिलक लगाया जाता है।

इस बिंदु पर यदि सौभाग्यसूचक द्रव्य जैसे चंदन, केशर, कुमकुम आदि का तिलक लगाने से सात्विक एवं तेजपूर्ण होकर आत्मविश्वास में अभूतपूर्ण वृद्धि होती है, मन में निर्मलता, शांति एवं संयम में वृद्धि होती है।
‘तिलक क्यों लगाया जाता है?’ इस विषय पर आपने बहुत अच्छी जानकारी हमसे शेयर की है. मैं मानता हूँ कि मेरी तरह ही अन्य अनेक पाठकों को भी इस बारे में अधिक जानकारी नहीं है. आपका बहुत बहुत धन्यवाद, पुष्पा सोनी जी.

तिलक लगाने का ज़िक्र आते ही मुझे निम्नलिखित दोहा याद आ गया:

‘चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर।
तुलसी दास चंदन घिसें, तिलक देत रघुबीर’।

और साथ ही गोस्वामी तुलसीदास के जीवन का निम्नलिखित प्रसंग ध्यान में आ गया.

तुलसी दास भगवान की भक्ति में लीन होकर लोगों को राम कथा सुनाया करते थे। एक बार काशी में रामकथा सुनाते समय इनकी भेंट एक प्रेत से हुई। प्रेत ने इन्हें हनुमान जी से मिलने का उपाय बताया। तुलसी दास जी हनुमान जी को ढूंढते हुए उनके पास पहुंच गए और प्रार्थना करने लगे कि राम के दर्शन करवा दें।

हनुमान जी ने तुलसी दास जी को बहलाने की बहुत कोशिश की लेकिन जब तुलसी दास नहीं माने तो हनुमान जी ने कहा कि राम के दर्शन चित्रकूट में होंगे। तुलसी दास जी ने चित्रकूट के रामघाट पर अपना डेरा जमा लिया।

एक दिन मार्ग में उन्हें दो सुंदर युवक घोड़े पर बैठे नजर आए, इन्हें देखकर तुलसी दास जी सुध-बुध खो बैठे। जब युवक इनके सामने से चले गए तब हनुमान जी प्रकट हुए और बताया कि ये राम और लक्ष्मण जी थे। तुलसी दास जी पछताने लगे कि वह अपने प्रभु को पहचान नहीं पाए। तुलसी दास जी को दुखी देखकर हनुमान जी ने सांत्वना दी कि कल सुबह आपको फिर राम-लक्ष्मण के दर्शन होंगे।

प्रात:काल स्नान-ध्यान करने के बाद तुलसी दास जी जब घाट पर लोगों को चंदन लगा रहे थे तभी बालक के रूप में भगवान राम इनके पास आए और कहने लगे कि बाबा हमें चंदन नहीं दोगे।

हनुमान जी को लगा कि तुलसी दास जी इस बार भी भूल न कर बैठें इसलिए तोते का रूप धारण कर गाने लगे

‘चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर।
तुलसी दास चंदन घिसें, तिलक देत रघुबीर’।

तुलसी दास जी बालक बने श्री राम को निहारते रहे।




~~~~ इति ~~~~

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