माथे पर तिलक लगाने का क्या महत्व है?
इसके पीछे आध्यात्मिक महत्व है। दरअसल, हमारे शरीर में सात सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं, जो अपार शक्ति के भंडार हैं। इन्हें चक्र कहा जाता है। माथे के बीच में जहां तिलक लगाते हैं, वहां आज्ञाचक्र होता है।
यह चक्र हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, जहां शरीर की प्रमुख तीन नाडि़यां इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं, इसलिए इसे त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है। यह गुरु स्थान कहलाता है। यहीं से पूरे शरीर का संचालन होता है। यही हमारी चेतना का मुख्य स्थान भी है। इसी को मन का घर भी कहा जाता है।
इसी कारण यह स्थान शरीर में सबसे ज्यादा पूजनीय है। योग में ध्यान के समय इसी स्थान पर मन को एकाग्र किया जाता है जिससे मन अमन हो जाता है। आध्यात्मिक गुरु साधक को इसी जगह तिलक करके शिष्य के अंदर आध्यात्मिक शक्ति ट्रांसफर करते हैं और इसी चक्र को जगा देते हैं।
इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए हमारे ऋषियों ने टीका, बिंदी, तिलक को इस जगह लगाने का विधान बनाया और इसे धर्म के साथ जोड़ दिया। अगर किसी के पास गुरु नहीं हैं तो वह इसे सूक्ष्मता से अनुभव नहीं कर पाएगा, लेकिन स्थूलता से भी पूरे भाव के साथ बिंदी या तिलक लगाकर अशांत मन को शांत किया जा सकता है।
इस बात को आप भी महसूस कर सकते हैं। जब मन बहुत परेशान हो या तनाव में हो, तो आंखें बंदकर इस जगह पर मन को ले आएं। मन के यहां आते ही वह शांत व एकाग्र हो जाएगा। सिर्फ टीका लगाने से मन शांत नहीं होगा, बल्कि मन को आज्ञाचक्र पर लाने से वह एकाग्र होगा। तिलक तो माध्यम है मन को आज्ञाचक्र पर लीन करने का। तिलक पर फोकस न करो, बस मन को आज्ञाचक्र में लीन करते जाओ, लीनता बढ़ती जाएगी।
यह चक्र हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, जहां शरीर की प्रमुख तीन नाडि़यां इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं, इसलिए इसे त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है। यह गुरु स्थान कहलाता है। यहीं से पूरे शरीर का संचालन होता है। यही हमारी चेतना का मुख्य स्थान भी है। इसी को मन का घर भी कहा जाता है।
इसी कारण यह स्थान शरीर में सबसे ज्यादा पूजनीय है। योग में ध्यान के समय इसी स्थान पर मन को एकाग्र किया जाता है जिससे मन अमन हो जाता है। आध्यात्मिक गुरु साधक को इसी जगह तिलक करके शिष्य के अंदर आध्यात्मिक शक्ति ट्रांसफर करते हैं और इसी चक्र को जगा देते हैं।
इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए हमारे ऋषियों ने टीका, बिंदी, तिलक को इस जगह लगाने का विधान बनाया और इसे धर्म के साथ जोड़ दिया। अगर किसी के पास गुरु नहीं हैं तो वह इसे सूक्ष्मता से अनुभव नहीं कर पाएगा, लेकिन स्थूलता से भी पूरे भाव के साथ बिंदी या तिलक लगाकर अशांत मन को शांत किया जा सकता है।
इस बात को आप भी महसूस कर सकते हैं। जब मन बहुत परेशान हो या तनाव में हो, तो आंखें बंदकर इस जगह पर मन को ले आएं। मन के यहां आते ही वह शांत व एकाग्र हो जाएगा। सिर्फ टीका लगाने से मन शांत नहीं होगा, बल्कि मन को आज्ञाचक्र पर लाने से वह एकाग्र होगा। तिलक तो माध्यम है मन को आज्ञाचक्र पर लीन करने का। तिलक पर फोकस न करो, बस मन को आज्ञाचक्र में लीन करते जाओ, लीनता बढ़ती जाएगी।
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