Sunday, June 28, 2015

ये हैं रामायण की वो रोचक बातें,

ये हैं रामायण की वो रोचक बातें,
जो न कभी बताई गर्इं न दिखाई गईं :......
धर्म ग्रंथों के अनुसार त्रेता युग में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में जन्म लिया था। इसलिए हिंदू धर्मावलंबी इस दिन भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव श्रीराम नवमी के रूप में मनाते हैं। इस बार श्रीराम नवमी का पर्व कल यानी 8 अप्रैल, मंगलवार को है। इस दिन प्रमुख राम मंदिरों में विशेष साज-सज्जा की जाती है व धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भगवान श्रीराम का जीवन हमारे लिए आदर्श है।

भगवान श्रीराम व उनके छोटे भाई लक्ष्मण, पत्नी सीता और राक्षसराज रावण के जीवन का वर्णन यूं तो कई ग्रंथों में मिलता है, लेकिन इन सभी में वाल्मीकि रामायण में लिखे गए तथ्यों को ही सबसे सटीक माना गया है। वाल्मीकि रामायण में कुछ ऐसी रोचक बातें बताई गई हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम हमको कुछ ऐसी ही बातें बता रहे हैं, जो शायद अब तक आप नहीं जानते थे :....

जानिए कौन सी हैं वो बातें-


1- रामायण महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की है। इस महाकाव्य में 24 हजार श्लोक, पांच सौ उपखंड तथा उत्तर सहित सात कांड हैं। जिस समय राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था, उस समय उनकी आयु लगभग 60 हजार वर्ष थी


2- रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।

3- जब लक्ष्मण को श्रीराम को वनवास दिए जाने का समाचार मिला तो वे बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने पिता दशरथ से ही युद्ध करने की ठान ली, तब श्रीराम द्वारा समझाने पर ही वह शांत हो पाए :
4- वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को, पुनर्वसु नक्षत्र में कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ गुरु विराजमान थे।

भरत का जन्म पुष्य नक्षत्र तथा मीन लग्न में हुआ था, जबकि लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म अश्लेषा नक्षत्र व कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य अपने उच्च स्थान में विराजमान थे :.

5- गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है।

रामायण के अनुसार जब भगवान श्रीराम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे तो विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे
6- श्रीरामचरित मानस के अनुसार सीता स्वयंवर में जब श्रीराम ने शिव धनुष तोड़ दिया, तो क्रोधित होकर भगवान परशुराम वहां आए थे, जबकि रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम पुन: अयोध्या लौट रहे थे, तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम द्वारा बाण चढ़ा देने पर परशुराम वहां से चले गए थे।

7- जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ
8- राजा दशरथ ने जब श्रीराम को वनवास जाने को कहा तब उन्होंने धन-दौलत, ऐश्वर्य का सामान, रथ आदि भी श्रीराम को देना चाहा ताकि उन्हें वनवास में किसी प्रकार की तकलीफ न हो, लेकिन कैकयी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया।

9- अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का आभास भरत को पहले ही एक स्वप्न के माध्यम से हो गया था। सपने में भरत ने राजा दशरथ को काले वस्त्र पहने हुए देखा था। उनके ऊपर पीले रंग की स्त्रियां प्रहार कर रही थीं। सपने में राजा दशरथ लाल रंग के फूलों की माला पहने और लाल चंदन लगाए गधे जुते हुए रथ पर बैठकर तेजी से दक्षिण(यम की दिशा) की ओर जा रहे थे :.........
10- हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है, जबकि रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं। उसके अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं।

11- सीताहरण करते समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का प्रयास किया था। रामायण के अनुसार जटायु के पिता अरुण बताए गए हैं। ये अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं
12- जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।

13- जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उस समय कबंध नामक राक्षस का राम-लक्ष्मण ने वध कर दिया था। वास्तव में कबंध एक श्राप के कारण ऐसा हो गया था। जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि के हवाले किया तो वह श्राप से मुक्त हो गया। कबंध ने ही श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था :.........

14- श्रीरामचरितमानस के अनुसार समुद्र ने जब लंका जाने के लिए रास्ता नहीं दिया तो लक्ष्मण बहुत क्रोधित हो गए थे, जबकि रामायण में वर्णन है कि लक्ष्मण नहीं बल्कि भगवान श्रीराम समुद्र पर क्रोधित हुए थे और उन्होंने समुद्र को सुखा देने वाले बाण भी छोड़ दिए थे। तब लक्ष्मण व अन्य लोगों ने भगवान श्रीराम को समझाया था।

15- सभी जानते हैं कि समुद्र पर पुल का निर्माण नल नामक वानर ने किया था क्योंकि उसे श्राप मिला था कि उसके द्वारा पानी में फैंकी गई वस्तु पानी में डूबेगी नहीं जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार नल देवताओं के शिल्पी (इंजीनियर) विश्वकर्मा के पुत्र थे और वह स्वयं भी शिल्पकला में निपुण थे। अपनी इसी कला से उन्होंने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था :.........
16- रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)

17- एक बार रावण जब भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा :.........

18- रामायण के अनुसार जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत उठा लिया, तब माता पार्वती भयभीत हो गई थीं और उन्होंने रावण को श्राप दिया था कि तेरी मृत्यु किसी स्त्री के कारण ही होगी।

19- जिस समय राम-रावण का अंतिम युद्ध चल रहा था, उस समय देवराज इंद्र ने अपना दिव्य रथ श्रीराम के लिए भेजा था। उस रथ में बैठकर ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था :.........

20- जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा, तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्यह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।

21- रामायण के अनुसार रावण जिस सोने की लंका में रहता था, वह लंका पहले रावण के भाई कुबेर की थी। जब रावण विश्व विजय पर निकला, तो उसने अपने भाई कुबेर को हराकर सोने की लंका तथा पुष्पक विमान पर अपना कब्जा कर लिया :.

22- रावण जब विश्व विजय पर निकला तो वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां यमराज और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने रावण के प्राण लेने के लिए कालदण्ड का प्रयोग करना चाहा, लेकिन ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।

23- रावण के पुत्र मेघनाद ने जब युद्ध में इंद्र को बंदी बना लिया तो ब्रह्माजी ने देवराज इंद्र को छोडऩे को कहा। इंद्र पर विजय प्राप्त करने के कारण ही मेघनाद इंद्रजीत के नाम से विख्यात हुआ :.........


24- ये बात सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था।

वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा :.....
25- रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था, तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसका नाम वेदवती था। वह भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा।

उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी। उसी स्त्री दूसरे जन्म में सीता के रूप में जन्म लिया :..

सीता ने राम को दिया एक अजीब तर्क-

26- दृष्य कुछ ऐसा है, राम को 14 वर्ष का वनवास हो गया था, सीता साथ जाने की जिद पर अड़ी थीं। राम सीता को अयोध्या में ही रोकने के लिए अपने तर्क दे रहे थे, सीता अपनी बात पर अड़ी थीं। जब सीता को लगा कि राम नहीं मानेंगे और उन्हें अयोध्या में ही छोड़कर अकेले जंगल चले जाएंगे तो सीता ने राम से कहा कि मैंने कई रामकथाएं सुनी हैं, सभी रामकथाओं में सीता राम के ही साथ वनवास पर जाती हैं तो आप मुझे यहां क्यों छोड़कर जा रहे हैं। राम मान गए और सीता उनके साथ वनवास पर चल दीं।

ये कोई नई रामकथा या रामलीला नहीं है, आज तक जितनी रामकथाएं लिखी गई हैं उनमें से ही एक है। 13वीं-14वीं सदी के बीच लिखी गई अध्यात्म रामायण और उदारराघव इन दो ग्रंथों में ऐसे संवाद का उल्लेख मिलता है। ये संवाद अजीब है लेकिन ये दर्शाता है कि रामकथा इतनी बार लिखी जा चुकी है कि लेखक के पास राम सीता के बीच हुए इस संवाद में कोई नया तर्क ही नहीं रह गया था।

जनमानस में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस सबसे ज्यादा प्रचलित है और रामकथा के रूप में घर-घर में वही पूजी भी जाती है लेकिन मूल रामकथा महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण को ही माना जाता है। रामचरितमानस सहित सारी रामकथाएं वाल्मीकि रामायण से ही प्रेरित मानी जाती हैं। इसके अलावा 300 और ऐसी रामकथाएं हैं जो दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में प्रचलित हैं :.........
वाल्मीकि रामायण पहली रामकथा नहीं -

27 - साधारणतः ये माना जाता है कि राम के जीवन पर सबसे पहला ग्रंथ महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण है। कुछ हद तक यह सच भी है लेकिन ऐसा नहीं है कि राम का पहली बार उल्लेख वाल्मीकि ने अपने ग्रंथ में किया था। वेदों में राम का नाम एक-दो स्थानों पर मिलता है। ऋग्वेद में एक स्थान पर राम के नाम का उल्लेख मिलता है, ये तो स्पष्ट नहीं है कि ये रामायण वाले ही राम हैं लेकिन ऋग्वेद में राम नाम के एक प्रतापी और धर्मात्मा राजा का उल्लेख है।

रामकथा का सबसे पहला बीज दशरथ जातक कथा में मिलता है। जो संभवतः ईसा से 400 साल पहले लिखी गई थी। इसके बाद ईसा से 300 साल पूर्व का काल वाल्मीकि रामायण का मिलता है। वाल्मीकि रामायण को सबसे ज्यादा प्रमाणिक इसलिए भी माना जाता है क्योंकि वाल्मीकि भगवान राम के समकालीन ही थे और सीता ने उनके आश्रम में ही लव-कुश को जन्म दिया था। लव-कुश ने ही राम को दरबार में वाल्मीकि की लिखी रामायण सुनाई थी :....
सीता को माना है कृषि की देवी -

28 - ऋग्वेद में अकेले राम नहीं सीता का भी उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद ने सीता को कृषि की देवी माना है। बेहतर कृषि उत्पादन और भूमि के लिए दोहन के लिए सीता की स्तुतियां भी मिलती हैं। ऋग्वेद के 10वें मंडल में ये सूक्त मिलता है जो कृषि के देवताओं की प्रार्थना के लिए लिखा गया है। वायु, इंद्र आदि के साथ सीता की भी स्तुति की गई है। काठक ग्राह्यसूत्र में भी उत्तम कृषि के लिए यज्ञ विधि दी गई है उसमें सीता के नाम का उल्लेख मिलता है तथा विधान बताया गया है कि खस आदि सुगंधित घास से सीता देवी की मूर्ति यज्ञ के लिए बनाई जाती है।

रामकथा ही एकमात्र ऐसी कहानी है जिस पर ना जाने कितने ग्रंथ लिखे गए हैं। दुनियाभर में 400 से ज्यादा रामकथाएं प्रचलित हैं ऐसा कई शोधों में उल्लेख मिलता है। हर भाषा और हर वर्ग में एक राम कथा लिखी गई है। लाखों शोध पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं :.......
लंका दहन
– सीता ने हनुमान को कंगन बेच कर फल खरीदने के लिए कहा था :

29 - हनुमान का लंका में जाकर सीता से मिलना, अशोक वाटिका उजाड़ना और लंका को जलाने वाला प्रसंग तो लगभग सभी को पता है। लेकिन कुछ रामकथाओं में इसमें भी बहुत अंतर मिलता है। जैसे 14वी शताब्दी में लिखी गई आनंद रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब सीता से अशोकवाटिका में मिलने के बाद हनुमान को भूख लगी तो सीता ने अपने हाथ के कंगन उतारकर हनुमान को दिए और कहा कि लंका की दुकानों में ये कंगन बेचकर फल खरीद लो और अपनी भूख मिटा लो। सीता के पास दो आम रखे थे सीता ने वो भी हनुमान को दे दिए। हनुमान के पूछने पर सीता ने बताया कि ये फल इसी अशोक वाटिका के हैं, तब हनुमान ने सीता से कहा कि वे इसी वाटिका से फल लेकर खाएंगे :.........
रावण की माता ने बचाए थे लक्ष्मण जी के प्राण :

30 - राम रावण युद्ध के समय जब लक्ष्मण जी मूर्छित थे तो हनुमान जी संजीवनी के रूप में पर्वत ही लेकर आ गए। संजीवनी आगमन के उपरांत राज वैध श्री सुषैण ने कहा कि इस संजीवनी को खरल में रगडऩे के लिए दो चार बूंदे आंसूओं की चाहिए और वो आंसू उस व्यक्ति के होने चाहिए जो आपने जीवन काल में कभी रोया न हो। गंभीर समस्या खड़ी हो गई। आखिर वैध सुषेण जी ने ही उपाय सुझाया कि," रावण की माता कैकशी अपने जीवन काल में कभी नहीं रोई, अगर उसके आंसू मिल जाए तो शीघ्र ही लक्ष्मण जी की मूर्छा को दूर किया जा सकता है।"

हनुमान जी इस कार्य के लिए लंका में रावण की माता के राजभवन में गए। हनुमान जी ने पहले तो रावण की माता को जाकर प्रेमपूर्वक बोला," माता जी! आपको रोना पड़ेगा। आप शीघ्र रोएं, हमें आपके आंसूओं की दो-चार बूंदे अभी चाहिए।"

रावण की माता क्रोधित होते हुए हनुमान जी से बोली,"चले जाओ यहां से हम क्यों रोएंगे? हम किसी किम्मत पर नहीं रोएंगे। एक तो तुम दुश्मन हो ऊपर से तुम्हारा इतना साहस हमें रोने को कह रहे हो।"

हनुमान जी ने बहुत विनय की मगर कैकशी ने एक न मानी। तब हनुमान जी ने अपने साथ लाई हुई दो बड़ी हरी र्मिच रावण की माता की बड़ी बड़ी राक्षसी आंखों में घुसेड़ दी तो वो एकदम चिल्लाकर ऊंचे स्वर में रोने लगी। उसकी आंखों से टपटप आंसूओं की छड़ी लग गई। हनुमान जी बहुत प्रसन्न हुए उनका काम जो बन गया था। उन्होंने झटपट कुछ आंसुओं की बूंदे संचित की और अपनी पवन गति से मूर्छा स्थल पर आ गए। वैध ने संजीवनी में आंसू की बूंदे मिश्रित कर खरल किया और उसके सूघंने से लक्ष्मण जी को जीवन दान मिला :.........
विभीषण के लिए बनाई थी नई लंका :

31 - सेरीराम रामायण सहित कुछ रामायणों में एक प्रसंग मिलता है कि रावण ने विभीषण को समुद्र में फेंकवा दिया था। वह एक मगर की पीठ पर चढ़ गया, बाद में हनुमान ने उसे बचाया और राम से मिलवाया। विभीषण के साथ रावण का एक भाई इंद्रजीत भी था और एक बेटा चैत्रकुमार भी राम की शरण में आ गया था। राम ने विभीषण को युद्ध के पहले ही लंका का अगला राजा घोषित कर दिया था।

रंगनाथ रामायण में उल्लेख मिलता है कि विभीषण के राज्याभिषेक के लिए हनुमान ने एक बालूरेत की लंका बनाई थी। जिसे हनुमत्लंका (सिकतोद्भव लंका) के नाम से जाना गया। कुछ ग्रंथों में ये भी उल्लेख मिलता है कि अशोक वाटिका में सीता की पहरेदारी करने वाली राक्षसी त्रिजटा विभीषण की ही बेटी थी। हनुमान ने राम को बताया था कि विभीषण से हमें मित्रता कर लेनी चाहिए क्योंकि उसकी बेटी त्रिजटा सीता के प्रति मातृवत यानी माता के समान भाव रखती है :.........

32 - अभी तक लिखी गई रामकथाओं में सबसे ज्यादा प्रचलित ये कथाएं हैं :

संस्कृत - वाल्मीकि रामायण - वाल्मीकि, योगवासिष्ठ या 'वशिष्ठ रामायण' - वशिष्ठ, अध्यात्म रामायण - वेद व्यास, आनन्द रामायण, अगस्त्य रामायण, अद्भुत रामायण, रघुवंशम् - कालिदास।

हिन्दी - रामचरितमानस - हिन्दी (अवधी), राधेश्याम रामायण-हिन्दी, पद्मचरित (जैन रामायण) -अपभ्रंश (विमलसूरि कृत)।

ओड़िसी भाषा - जगमोहन रामायण या दाण्डि रामायण या ओड़िआ रामायण - बलराम दास, बिशि रामायण - बिश्वनाथ खुण्टिआ, सुचित्र रामायण - हरिहर, कृष्ण रामायण - कृष्ण चरण पट्टनायक, केशब रामायण - केशब पट्टनायक, रामचन्द्र बिहार - चिन्तामणी, रघुनाथ बिलास - धनञ्जय भञ्ज, बैदेहीशबिलास - उपेन्द्र भञ्ज, नृसिंह पुराण - पीताम्बर दास, रामरसामृत सिन्धु - काह्नु दास, रामरसामृत - राम दास, रामलीला - पीताम्बर राजेन्द्र, बाल रामायण - बलराम दास, बिलंका रामायण - भक्त कवि शारलादास।

तेलुगु - भास्कर रामायण, रंगनाथ रामायण, रघुनाथ रामायणम्, भोल्ल रामायण।

कन्नड़ - कुमुदेन्दु रामायण, तोरवे रामायण, रामचन्द्र चरित पुराण, बत्तलेश्वर रामायण :.......

33 - अन्य भाषाओं में राम कथा :

कथा रामायण – असमिया
कृत्तिवास रामायण – बांग्ला
भावार्थ रामायण - मराठी
राम बालकिया – गुजराती
रामावतार या गोबिन्द रामायण - पंजाबी ( गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा रचित)
रामावतार चरित – कश्मीरी
रामचरितम् – मलयालम
रामावतारम् या कंबरामायण - तमिल
मन्त्र रामायण-
गिरिधर रामायण
चम्पू रामायण
आर्ष रामायण या आर्प रामायण
अनामक जातक - बौद्ध परंपरा
दशरथ जातक - बौद्ध परंपरा
दशरथ कथानक - बौद्ध परंपरा
रामायण - मैथिली (चन्दा झा)

विदेशों में रामायण :

नेपाली - भानुभक्तकृत रामायण, सुन्दरानन्द रामायण, आदर्श राघव।
कंबोडिया – रामकर
तिब्बत - तिब्बती रामायण
पूर्वी तुर्किस्तान - खोतानी रामायण
इंडोनेशिया – ककबिनरामायण
जावा - सेरतराम, सैरीराम, रामकेलिंग, पातानी रामकथा।
इण्डोचायना - रामकेर्ति (रामकीर्ति), खमैर रामायण
बर्मा (म्यांम्मार) - यूतोकी रामयागन
थाईलैंड - रामकियेन :.......

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