श्री गुरु गोरखनाथ का शाबर मंत्र
विधि - सात कुओ या किसी नदी से सात बार जल लाकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए रोगी को स्नान करवाए तो उसके ऊपर से सभी प्रकार का किया-कराया उतर जाता है.
मंत्र
ॐ वज्र में कोठा, वज्र में ताला, वज्र में बंध्या दस्ते द्वारा, तहां वज्र का लग्या किवाड़ा, वज्र में चौखट, वज्र में कील, जहां से आय, तहां ही जावे, जाने भेजा, जांकू खाए, हमको फेर न सूरत दिखाए, हाथ कूँ, नाक कूँ, सिर कूँ, पीठ कूँ, कमर कूँ, छाती कूँ जो जोखो पहुंचाए, तो गुरु गोरखनाथ की आज्ञा फुरे, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति, फुरो मंत्र इश्वरोवाचा.
मन्त्रः-
“ॐ गों गोरक्षनाथ महासिद्धः, सर्व-व्याधि विनाशकः ।
विस्फोटकं भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबल ।। १।।
यत्र त्वं तिष्ठते देव, लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः ।
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वातपित्त कफोद्भवाः ।। २।।
तत्र राजभयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपाः क्षयम् ।
शाकिनी भूत वैताला, राक्षसा प्रभवन्ति न ।। ३।।
नाऽकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दश्यते ।
अग्नि चौर भयं नास्ति, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गों ।। ४।।
ॐ घण्टाकर्णो नमोऽस्तु ते ॐ ठः ठः ठः स्वाहा ।।”
विधिः- यह मंत्र तैंतीस हजार या छत्तीस हजार जाप कर सिद्ध करें । इस मंत्र के प्रयोग के लिए इच्छुक उपासकों को पहले गुरु-पुष्य, रवि-पुष्य, अमृत-सिद्धि-योग, सर्वार्त-सिद्धि-योग या दिपावली की रात्रि से आरम्भ कर तैंतीस या छत्तीस हजार का अनुष्ठान करें । बाद में कार्य साधना के लिये प्रयोग में लाने से ही पूर्णफल की प्राप्ति होना सुलभ होता है ।
विभिन्न प्रयोगः- इस को सिद्ध करने पर केवल इक्कीस बार जपने से राज्य भय, अग्नि भय, सर्प, चोर आदि का भय दूर हो जाता है । भूत-प्रेत बाधा शान्त होती है । मोर-पंख से झाड़ा देने पर वात, पित्त, कफ-सम्बन्धी व्याधियों का उपचार होता है ।
१॰ मकान, गोदाम, दुकान घर में भूत आदि का उपद्रव हो तो दस हजार जप तथा दस हजार गुग्गुल की गोलियों से हवन किया जाये, तो भूत-प्रेत का भय मिट जाता है । राक्षस उपद्रव हो, तो ग्यारह हजार जप व गुग्गुल से हवन करें ।
२॰ अष्टगन्ध से मंत्र को लिखकर गेरुआ रंग के नौ तंतुओं का डोरा बनाकर नवमी के दिन नौ गांठ लगाकर इक्कीस बार मंत्रित कर हाथ के बाँधने से चौरासी प्रकार के वायु उपद्रव नष्ट हो जाते हैं ।
३॰ इस मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करने से चोर, बैरी व सारे उपद्रव नाश हो जाते हैं तथा अकाल मृत्यु नहीं होती तथा उपासक पूर्णायु को प्राप्त होता है ।
४॰ आग लगने पर इक्कीस बार पानी को अभिमंत्रित कर छींटने से आग शान्त होती है ।
५॰ मोर-पंख से इस मंत्र द्वारा झाड़े तो शारीरिक नाड़ी रोग व श्वेत कोढ़ दूर हो जाता है ।
६॰ कुंवारी कन्या के हाथ से कता सूत के सात तंतु लेकर इक्कीस बार अभिमंत्रित करके धूप देकर गले या हाथ में बाँधने पर ज्वर, एकान्तरा, तिजारी आदि चले जाते हैं ।
७॰ सात बार जल अभिमंत्रित कर पिलाने से पेट की पीड़ा शान्त होती है ।
८॰ पशुओं के रोग हो जाने पर मंत्र को कान में पढ़ने पर या अभिमंत्रित जल पिलाने से रोग दूर हो जाता है । यदि घंटी अभिमंत्रित कर पशु के गले में बाँध दी जाए, तो प्राणि उस घंटी की नाद सुनता है तथा निरोग रहता है ।
९॰ गर्भ पीड़ा के समय जल अभिमंत्रित कर गर्भवती को पिलावे, तो पीड़ा दूर होकर बच्चा आराम से होता है, मंत्र से १०८ बार मंत्रित करे ।
१०॰ सर्प का उपद्रव मकान आदि में हो, तो पानी को १०८ बार मंत्रित कर मकानादि में छिड़कने से भय दूर होता है । सर्प काटने पर जल को ३१ बार मंत्रित कर पिलावे तो विष दूर हो ।
पहला और दूसरा मन्त्र गलत हे सही कर के डालो
ReplyDeleteआप सही कर दो प्रभु
Deleteआपसे बात कैसी हो सकती है महाराज जी??? मेरा नंबर है 9890135264
ReplyDelete9829026579
Deleteॐ शिव गुरु गोरखनाथाय नमः ये गुरु गोरखनाथ का स्वयं सिद्ध मंत्र है पर इसका जाप आेेैर प्रयोग केैसे किया जाता है।
ReplyDeleteप्रभु स्वयंम सिद्ध मंत्र को पुणे श्रद्धा से जपा जाता है शंका नही की जाती आप अपने गुरुदेव से आशीर्वाद लेकर या अनुमति लेकर शुरु कर सकते है संकल्प लेकर ओर अगर गुरु नही है तो गुरुगोरखनाथ जी को इष्ट मानकर शुरुआत कर दिजिये सफलता आप के साथ होगी
Deleteगुरु जी "ॐ शिव गुरु गोरखनाथाय नमः " इसे कितना जपना है और इसकी प्रयोग विधि क्या है ।
ReplyDeleteलाभ , जप विधि , कृपया इत्यादि जनकारी बताए ।
प्रभु ॐ शिवगोरखनाथाय नमः आपकी इच्छा हो उतना जपे क्या फर्क पड़ता है ओर ये मंत्र जैसे ॐ नमः शिवाय है वैसा ही है बाकी इस पोस्ट मे विधी ओर मंत्र दोनो दिये गये है.. आप अच्छी तरह से देखे ये केवल बाबा के नाम का मंत्र नही ये पुणे विधी विधान मंत्र है
Deleteओर ये श्री गुरु गोरखनाथ जी का मंत्र है इन दोनो मंंत्रो तेतीस ओर छतीस हजार बार जप करना है फिर सात कुओ या सात नदी के पानी को इन मंत्रो से अभिमंत्रित करना है फिर विधी अनुसार जिस रोग का निधान करना है करे
Deleteयह मंत्र घंटाकर्ण महावीर का है, जो जैन धर्म मे पुजे जाते है, यह मंत्र में मिलावट करने की क्या जरूरत है, यह मंत्र खुद जैन साधु द्वारा बनाया गया सबसे प्रभावी मंत्र है। इसके जाप से देवता खुद सहायक करते है। इसको शाबर मंत्र डालने की जरूरत नही।
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