कुछ मुहूर्त हमेशा शुभ होते हैं
जानिए स्वयं सिद्ध मुहूर्त
हम यूँ तो किसी भी काम को करने से पहले मुहूर्त देखते हैं लेकिन कुछ मुहूर्त ऐसे होते हैं जो हमेशा शुभ ही होते हैं। नीचे दिए गए मुहूर्त स्वयं सिद्ध माने गए हैं जिनमें पंचांग की शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है-
1 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
2 वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया)
3 आश्विन शुक्ल दशमी (विजय दशमी)
4 दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग।
भारत वर्ष में इनके अतिरिक्त लोकचार और देशाचार के अनुसार निम्नलिखित तिथियों को भी स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना जाता है-
1 भड्डली नवमी (आषाढ़ शुक्ल नवमी)
2 देवप्रबोधनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी)
3 बसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी)
4 फुलेरा दूज (फाल्गुन शुक्ल द्वितीया)
इनमें किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है। परंतु विवाह इत्यादि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्तों को ही स्वीकार करना श्रेयस्कर रहता है।
पहचानिए अभिजित मुहूर्त और चौघड़िया
अभिजित मुहूर्त किसे कहते है?
एक वर्ष का महत्व विद्यार्थी से पूछो जो परीक्षा में फेल हो गया। एक महीने का महत्व उस माँ से पूछो, जिसके एक महीने पहले बच्चा पैदा हो गया। एक सप्ताह का महत्व पूछो उससे जो पिटी हुई फिल्म का निर्देशक हो। एक दिन का महत्व रोज मेहनत कर पेट पालने वाले, उस मजदूर से पूछो जिसे दिन भर कोई कार्य नहीं मिला। एक मिनट का महत्व पूछो उससे जो दुर्घटना से बाल-बाल बच गया। एक सेकेंड के दसवें भाग का महत्व पूछो उससे जो ओलम्पिक खेलों में गोल्ड मेडल न पा सका।
समय की इसी महत्ता को और अधिक शुभता प्रदान करने के लिए कुछ सर्वसिद्ध मुहूर्त होते हैं, आइए जानते हैं :
प्रत्येक दिन का मध्य-भाग (अनुमानत 12 बजे) अभिजित मुहूर्त कहलाता है जो मध्य से पहले और बाद में 2 घड़ी अर्थात् 48 मिनट का होता है। दिनमान के आधे समय को स्थानीय सूर्योदय के समय में जोड़ दें तो मध्य काल स्पष्ट हो जाता है। जिसमें 24 मिनट घटाने और 24 मिनट जोड़ने पर अभिजित् का प्रारंभ काल और समाप्ति काल निकट आता है।
इस अभिजित् काल में लगभग सभी दोषों के निवारण करने की अद्भुत शक्ति है। जब मुंडन आदि शुभ कार्यों के लिए शुभ लगन न मिल रहा हो तो अभिजित् मुहूर्त काल में शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
क्या है चौघड़िया मुहूर्त-
प्रत्येक वार सूर्योदय से प्रारंभ होकर अगले सूर्योदय तक रहता है और सूर्योदय से सूर्यास्त तक का मान उस वार का दिनमान एवं सूर्यास्त से अगले सूर्योदय तक मान उस वार का रात्रिमान कहलाता है। 24 घंटे में दिनमान घटाने से रात्रिमान आ जाता है।
अब आपको जिस दिन यात्रा करनी है उस दिन का दिनमान देख लें। इसमें आठ से भाग देकर जो बचे उसे घंटा-मिनट में बनाकर, उस दिन की आठों चौघड़िया मुहूर्त समय ज्ञात कर लें। अब इन आठों चौघड़ियों में से कौन-सी ग्राहय और कौन सी त्याज्य है यह दिन की चौघड़िया के चक्र में उस दिन के वार के सामने के खाने से देखकर जानिए।
इसी प्रकार जिस दिन रात्रि में यात्रा करनी हो तो उस दिन के रात्रिमान के आठवें भाग को घंटा-मिनट में बनाकर उस दिन के सूर्यास्त में जोड़कर रात की आठों चौघड़िया मुहूर्त निकाल लें और इनका शुभ-अशुभ फल रात की चौघड़िया चक्र पंचांग से उस दिन के वार से खाने में देख लें।
ग्राह्य एवं उत्तम समय- शुभ, चर, अमृत और लाभ की चौघड़ियों का है।
अशुभ समय- उद्वेग, रोग और काल का है इन्हें त्याग देना चाहिए।
हम यूँ तो किसी भी काम को करने से पहले मुहूर्त देखते हैं लेकिन कुछ मुहूर्त ऐसे होते हैं जो हमेशा शुभ ही होते हैं। नीचे दिए गए मुहूर्त स्वयं सिद्ध माने गए हैं जिनमें पंचांग की शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है-
1 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
2 वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया)
3 आश्विन शुक्ल दशमी (विजय दशमी)
4 दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग।
भारत वर्ष में इनके अतिरिक्त लोकचार और देशाचार के अनुसार निम्नलिखित तिथियों को भी स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना जाता है-
1 भड्डली नवमी (आषाढ़ शुक्ल नवमी)
2 देवप्रबोधनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी)
3 बसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी)
4 फुलेरा दूज (फाल्गुन शुक्ल द्वितीया)
इनमें किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है। परंतु विवाह इत्यादि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्तों को ही स्वीकार करना श्रेयस्कर रहता है।
पहचानिए अभिजित मुहूर्त और चौघड़िया
अभिजित मुहूर्त किसे कहते है?
एक वर्ष का महत्व विद्यार्थी से पूछो जो परीक्षा में फेल हो गया। एक महीने का महत्व उस माँ से पूछो, जिसके एक महीने पहले बच्चा पैदा हो गया। एक सप्ताह का महत्व पूछो उससे जो पिटी हुई फिल्म का निर्देशक हो। एक दिन का महत्व रोज मेहनत कर पेट पालने वाले, उस मजदूर से पूछो जिसे दिन भर कोई कार्य नहीं मिला। एक मिनट का महत्व पूछो उससे जो दुर्घटना से बाल-बाल बच गया। एक सेकेंड के दसवें भाग का महत्व पूछो उससे जो ओलम्पिक खेलों में गोल्ड मेडल न पा सका।
समय की इसी महत्ता को और अधिक शुभता प्रदान करने के लिए कुछ सर्वसिद्ध मुहूर्त होते हैं, आइए जानते हैं :
प्रत्येक दिन का मध्य-भाग (अनुमानत 12 बजे) अभिजित मुहूर्त कहलाता है जो मध्य से पहले और बाद में 2 घड़ी अर्थात् 48 मिनट का होता है। दिनमान के आधे समय को स्थानीय सूर्योदय के समय में जोड़ दें तो मध्य काल स्पष्ट हो जाता है। जिसमें 24 मिनट घटाने और 24 मिनट जोड़ने पर अभिजित् का प्रारंभ काल और समाप्ति काल निकट आता है।
इस अभिजित् काल में लगभग सभी दोषों के निवारण करने की अद्भुत शक्ति है। जब मुंडन आदि शुभ कार्यों के लिए शुभ लगन न मिल रहा हो तो अभिजित् मुहूर्त काल में शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
क्या है चौघड़िया मुहूर्त-
प्रत्येक वार सूर्योदय से प्रारंभ होकर अगले सूर्योदय तक रहता है और सूर्योदय से सूर्यास्त तक का मान उस वार का दिनमान एवं सूर्यास्त से अगले सूर्योदय तक मान उस वार का रात्रिमान कहलाता है। 24 घंटे में दिनमान घटाने से रात्रिमान आ जाता है।
अब आपको जिस दिन यात्रा करनी है उस दिन का दिनमान देख लें। इसमें आठ से भाग देकर जो बचे उसे घंटा-मिनट में बनाकर, उस दिन की आठों चौघड़िया मुहूर्त समय ज्ञात कर लें। अब इन आठों चौघड़ियों में से कौन-सी ग्राहय और कौन सी त्याज्य है यह दिन की चौघड़िया के चक्र में उस दिन के वार के सामने के खाने से देखकर जानिए।
इसी प्रकार जिस दिन रात्रि में यात्रा करनी हो तो उस दिन के रात्रिमान के आठवें भाग को घंटा-मिनट में बनाकर उस दिन के सूर्यास्त में जोड़कर रात की आठों चौघड़िया मुहूर्त निकाल लें और इनका शुभ-अशुभ फल रात की चौघड़िया चक्र पंचांग से उस दिन के वार से खाने में देख लें।
ग्राह्य एवं उत्तम समय- शुभ, चर, अमृत और लाभ की चौघड़ियों का है।
अशुभ समय- उद्वेग, रोग और काल का है इन्हें त्याग देना चाहिए।
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