शनिदेव के मंत्र :
ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ॥
ॐ शं शनैश्चराय नमः॥
ॐ शन्नोदेवीरभिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये।
शंयोरभिस्रवन्तु नः॥
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः॥
शनिदेव के दस नाम :
कोणस्थः पिंगलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः।सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्लादेन संस्तुतः॥
एतानि दशनामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत। शनैश्चर कृता पीड़ा न कदाचिद् भविष्यति॥
अर्थात् कोणस्थ, पिगंल, बभ्र, कृष्ण, रौद्र, अंतक, यम, सौरि, शनैश्चर, मंद इन दस नामों से शनिदेव पिप्पलाद द्वारा स्तुत हुए। इन दस नामों को सुबह उठ कर जो कोई भी पढ़ता है उसे कभी भी शनिदेव पीड़ा नहीं देते।
शनि-पत्नी नामाष्टक :
ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिया। कंटकी कलही चाऽथ तुरंगी महिषी अजा॥
नामानि शनिभार्यायाः, नित्यं जपति यः पुमान्। तस्य दुःखा: विनश्यन्ति, सुख सौभाग्यं वर्द्धते॥
इस शनि पत्नी नामाष्टक के नित्य पाठ से दुःखों का विनाश होता है और सुख सौभाग्य बढ़ता है।
यदि शनिवार को श्रीकृष्णजी, शिवजी, हनुमानजी, भैरवजी और माता महाकालीजी की श्रद्धापूर्वक आराधना की जाय तो भी शनिदेव प्रसन्न हो जाते हैं और उनके द्वारा उत्पन्न पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है।
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