श्री तारा महाविद्या प्रयोग
बड़े से बड़े दुखों का होगा नाश
सृष्टि के सर्वोच्च ज्ञान की होगी प्राप्ति
भोग और मोक्ष होंगे मुट्ठी में
जीवन के हर क्षत्र में मिलेगी अपार सफलता
दैहिक दैविक भौतिक तापों से तारेगी
"सिद्धविद्या महातारा"
सृष्टि की उत्तपत्ति से पहले घोर अन्धकार था, तब न तो कोई तत्व था न ही कोई शक्ति थी, केवल एक अन्धकार का साम्राज्य था, इस परलायाकाल के अन्धकार की देवी थी काली, उसी महाअधकार से एक प्रकाश का बिन्दु प्रकट हुआ जिसे तारा कहा गया, यही तारा अक्षोभ्य नाम के ऋषि पुरुष की शक्ति है, ब्रहमांड में जितने धधकते पिंड हैं सभी की स्वामिनी उत्तपत्तिकर्त्री तारा ही हैं, जो सूर्य में प्रखर प्रकाश है उसे नीलग्रीव कहा जाता है, यही नील ग्रीवा माँ तारा हैं, सृष्टि उत्तपत्ति के समय प्रकाश के रूप में प्राकट्य हुआ इस लिए तारा नाम से विख्यात हुई किन्तु देवी तारा को महानीला या नील तारा कहा जाता है क्योंकि उनका रंग नीला है, जिसके सम्बन्ध में कथा आती है कि जब सागर मंथन हुआ तो सागर से हलाहल विष निकला, जो तीनों लोकों को नष्ट करने लगा, तब समस्त राक्षसों देवताओं ऋषि मुनिओं नें भगवान शिव से रक्षा की गुहार लगाई, भूत बावन शिव भोले नें सागर म,अन्थान से निकले कालकूट नामक विष को पी लिया, विष पीते ही विष के प्रभाव से महादेव मूर्छित होने लगे, उनहोंने विष को कंठ में रोक लिया किन्तु विष के प्रभाव से उनका कंठ भी नीला हो गया, जब देवी नें भगवान् को मूर्छित होते देख तो देवी नासिका से भगवान शिव के भीतर चली गयी और विष को अपने दूध से प्रभावहीन कर दिया, किन्तु हलाहल विष से देवी का शरीर नीला पड़ गया, तब भगवान शिव नें देवी को महानीला कह कर संबोधित किया, इस प्रकार सृष्टि उत्तपत्ति के बाद पहली बार देवी साकार रूप में प्रकट हुई, दस्माहविद्याओं में देवी तारा की साधना पूजा ही सबसे जटिल है, देवी के तीन प्रमुख रूप हैं १)उग्रतारा २)एकाजटा और ३)नील सरस्वती..........देवी सकल ब्रह्म अर्थात परमेश्वर की शक्ति है, देवी की प्रमुख सात कलाएं हैं जिनसे देवी ब्रहमांड सहित जीवों तथा देवताओं की रक्षा भी करती है ये सात शक्तियां हैं १)परा २)परात्परा ३)अतीता ४)चित्परा ५)तत्परा ६)तदतीता ७)सर्वातीता, इन कलाओं सहित देवी का धन करने या स्मरण करने से उपासक को अनेकों विद्याओं का ज्ञान सहज ही प्राप्त होने लगता है, देवी तारा के भक्त के बुद्धिबल का मुकाबला तीनों लोकों मन कोई नहीं कर सकता, भोग और मोक्ष एक साथ देने में समर्थ होने के कारण इनको सिद्धविद्या कहा गया है
देवी तारा ही अनेकों सरस्वतियों की जननी है इस लिए उनको नील सरस्वती कहा जाता है
देवी का भक्त प्रखरतम बुद्धिमान हो जाता है जिस कारण वो संसार और सृष्टि को समझ जाता है
अक्षर के भीतर का ज्ञान ही तारा विद्या है
भवसागर से तारने वाली होने के कारण भी देवी को तारा कहा जाता है
देवी बाघम्बर के वस्त्र धारण करती है और नागों का हार एवं कंकन धरे हुये है
देवी का स्वयं का रंग नीला है और नीले रंग को प्रधान रख कर ही देवी की पूजा होती है
देवी तारा के तीन रूपों में से किसी भी रूप की साधना बना सकती है समृद्ध, महाबलशाली और ज्ञानवान
सृष्टि की उतपाती एवं प्रकाशित शक्ति के रूप में देवी को त्रिलोकी पूजती है
ये सारी सृष्टि देवी की कृपा से ही अनेक सूर्यों का प्रकाश प्राप्त कर रही है
शास्त्रों में देवी को ही सवित्राग्नी कहा गया है
देवी की स्तुति से देवी की कृपा प्राप्त होती है
स्तुति
प्रत्यालीढ़ पदार्पिताग्ध्रीशवहृद घोराटटहासा परा
खड़गेन्दीवरकर्त्री खर्परभुजा हुंकार बीजोद्भवा,
खर्वा नीलविशालपिंगलजटाजूटैकनागैर्युता
जाड्यन्न्यस्य कपालिके त्रिजगताम हन्त्युग्रतारा स्वयं,
देवी की कृपा से साधक प्राण ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त करता है
गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में साधना पूजा करनी चाहिए
देवी अज्ञान रुपी शव पर विराजती हैं और ज्ञान की खडग से अज्ञान रुपी शत्रुओं का नाश करती हैं
लाल व नीले फूल और नारियल चौमुखा दीपक चढाने से देवी होतीं हैं प्रसन्न
देवी के भक्त को ज्ञान व बुद्धि विवेक में तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पता
देवी की मूर्ती पर रुद्राक्ष चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है
महाविद्या तारा के मन्त्रों से होता है बड़े से बड़े दुखों का नाश
देवी माँ का स्वत: सिद्ध महामंत्र है-
श्री सिद्ध तारा महाविद्या महामंत्र
ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट
इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं जैसे
1. बिल्व पत्र, भोज पत्र और घी से हवन करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है
2.मधु. शर्करा और खीर से होम करने पर वशीकरण होता है
3.घृत तथा शर्करा युक्त हवन सामग्री से होम करने पर आकर्षण होता है।
4. काले तिल व खीर से हवन करने पर शत्रुओं का स्तम्भन होता है।
देवी के तीन प्रमुख रूपों के तीन महा मंत्र
महाअंक-देवी द्वारा उतपन्न गणित का अंक जिसे स्वयं तारा ही कहा जाता है वो देवी का महाअंक है -"1"
विशेष पूजा सामग्रियां-पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है
सफेद या नीला कमल का फूल चढ़ाना
रुद्राक्ष से बने कानों के कुंडल चढ़ाना
अनार के दाने प्रसाद रूप में चढ़ाना
सूर्य शंख को देवी पूजा में रखना
भोजपत्र पर ह्रीं लिख करा चढ़ाना
दूर्वा,अक्षत,रक्तचंदन,पंचगव्य,पञ्चमेवा व पंचामृत चढ़ाएं
पूजा में उर्द की ड़ाल व लौंग काली मिर्च का चढ़ावे के रूप प्रयोग करें
सभी चढ़ावे चढाते हुये देवी का ये मंत्र पढ़ें-ॐ क्रोद्धरात्री स्वरूपिन्ये नम:
१)देवी तारा मंत्र-ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट
२)देवी एक्जता मंत्र-ह्रीं त्री हुं फट
३)नील सरस्वती मंत्र-ह्रीं त्री हुं
सभी मन्त्रों के जाप से पहले अक्षोभ्य ऋषि का नाम लेना चाहिए तथा उनका ध्यान करना चाहिए
सबसे महत्पूरण होता है देवी का महायंत्र जिसके बिना साधना कभी पूरण नहीं होती इसलिए देवी के यन्त्र को जरूर स्थापित करे व पूजन करें
यन्त्र के पूजन की रीति है-
पंचोपचार पूजन करें-धूप,दीप,फल,पुष्प,जल आदि चढ़ाएं
ॐ अक्षोभ्य ऋषये नम: मम यंत्रोद्दारय-द्दारय
कहते हुये पानी के 21 बार छीटे दें व पुष्प धूप अर्पित करें
देवी को प्रसन्न करने के लिए सह्त्रनाम त्रिलोक्य कवच आदि का पाठ शुभ माना गया है
यदि आप बिधिवत पूजा पात नहीं कर सकते तो मूल मंत्र के साथ साथ नामावली का गायन करें
तारा शतनाम का गायन करने से भी देवी की कृपा आप प्राप्त कर सकते हैं
तारा शतनाम को इस रीति से गाना चाहिए-
तारणी तरला तन्वी तारातरुण बल्लरी,
तीररूपातरी श्यामा तनुक्षीन पयोधरा,
तुरीया तरला तीब्रगमना नीलवाहिनी,
उग्रतारा जया चंडी श्रीमदेकजटाशिरा,
देवी को अति शीघ्र प्रसन्न करने के लिए अंग न्यास व आवरण हवन तर्पण व मार्जन सहित पूजा करें
अब देवी के कुछ इच्छा पूरक मंत्र
1) देवी तारा का भय नाशक मंत्र
ॐ त्रीम ह्रीं हुं
नीले रंग के वस्त्र और पुष्प देवी को अर्पित करें
पुष्पमाला,अक्षत,धूप दीप से पूजन करें
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें
मंदिर में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
नीले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
पूर्व दिशा की ओर मुख रखें
आम का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
2) शत्रु नाशक मंत्र
ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: हुं उग्रतारे फट
नारियल वस्त्र में लपेट कर देवी को अर्पित करें
गुड से हवन करें
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
एकांत कक्ष में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
काले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
उत्तर दिशा की ओर मुख रखें
पपीता का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
3) जादू टोना नाशक मंत्र
ॐ हुं ह्रीं क्लीं सौ: हुं फट
देसी घी ड़ाल कर चौमुखा दीया जलाएं
कपूर से देवी की आरती करें
रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें
4) लम्बी आयु का मंत्र
ॐ हुं ह्रीं क्लीं हसौ: हुं फट
रोज सुबह पौधों को पानी दें
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
शिवलिंग के निकट बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
भूरे रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
पूर्व दिशा की ओर मुख रखें
सेब का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
5) सुरक्षा कवच का मंत्र
ॐ हुं ह्रीं हुं ह्रीं फट
देवी को पान व पञ्च मेवा अर्पित करें
रुद्राक्ष की माला से 3 माला का मंत्र जप करें
मंत्र जाप के समय उत्तर की ओर मुख रखें
किसी खुले स्थान में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
काले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
उत्तर दिशा की ओर मुख रखें
केले व अमरुद का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
6)नील सरस्वती तारा साधना
इस विद्या के तीन रूप माने गये हैं :-
नील सरस्वती.
एक जटा.
उग्रतारा.
तारा के नील सरस्वती स्वरूप की साधना विद्या प्राप्ति तथा ज्ञान की पूर्णता के लिये सर्वश्रेष्ठ है. इस साधना की पूर्णता साधक को जहां ज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय बनाती है वहीं साधक को स्वयं में कवित्व शक्ति भी प्रदान कर देती है, अर्थात वह कविता या लेखन की क्षमता भी प्राप्त कर लेता है.
नील सरस्वती साधना की एक गोपनीय विधि मुझे स्वामी आदित्यानंदजी से प्राप्त हुयी थी जो कि अत्यंत ही प्रभावशाली है. इस साधना से निश्चित रूप से मानसिक क्षमता का विकास होता ही है. यदि इसे नियमित रूप से किया जाये तो विद्यार्थियों के लिये अत्यंत लाभप्रद होता है.
नील सरस्वती बीज मंत्रः-
॥ ऐं ॥
यह बीज मंत्र छोटा है इसलिये करने में आसान होता है. जिस प्रकार एक छोटा सा बीज अपने आप में संपूर्ण वृक्ष समेटे हुये होता है ठीक उसी प्रकार यह छोटा सा बीज मंत्र तारा के पूरे स्वरूप को समेटे हुए है.
साधना विधिः-
इस मंत्र का जाप अमावस्या से प्रारंभ करके पूर्णिमा तक या नवरात्रि में करना सर्वश्रेष्ठ होता है. अपनी सामर्थ्य के अनुसार १०८ बार कम से कम तथा अधिकतम तीन घंटे तक नित्य करें.
कांसे की थाली में केसर से उपरोक्त बीजमंत्र को लिखें, अब इस मंत्र के चारों ओर चार चावल के आटे से बने दीपक घी से जलाकर रखें. चारों दीयों की लौ ऐं बीज की तरफ होनी चाहिये. कुंकुम या केसर से चारों दीपकों तथा बीज मंत्र को घेरते हुये एक गोला थाली के अंदर बना लें. यह लिखा हुआ साधना के आखिरी दिन तक काम आयेगा. दीपक रोज नया बनाकर लगाना होगा.
सर्वप्रथम हाथ जोडकर ध्यान करें :-
नील वर्णाम त्रिनयनाम ब्रह्म शक्ति समन्विताम
कवित्व बुद्धि प्रदायिनीम नील सरस्वतीं प्रणमाम्यहम.
हाथ मे जल लेकर संकल्प करें कि मां आपको बुद्धि प्रदान करें.
ऐं बीज को देखते हुये जाप करें. पूरा जाप हो जाने के बाद त्रुटियों के लिये क्षमा मांगें.
7)स्तुति . . .
प्रत्यालीढ़ पदार्पिताग्ध्रीशवहृद घोराटटहासा पराखड़गेन्दीवरकर्त्री खर्परभुजा हुंकार बीजोद्भवा,खर्वानीलविशालपिंगलजटाजूटैकनागैर्युताजाड्यन्न्यस्य कपालिके त्रिजगताम हन्त्युग्रतारा स्वयं
देवी की कृपा से साधक प्राण ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त करता हैगृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्यरूप में साधना पूजा करनी चाहिएदेवी अज्ञान रुपी शव पर विराजती हैं और ज्ञान की खडग से अज्ञान रुपी शत्रुओं का नाश करती हैंलाल वनीले फूल और नारियल चौमुखा दीपक चढाने से देवी होतीं हैं प्रसन्नदेवी के भक्त को ज्ञान व बुद्धि विवेक में तीनो लोकों में कोई नहीं हरापतादेवी की मूर्ती पर रुद्राक्ष चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती हैमहाविद्या तारा के मन्त्रों से होता है बड़े से बड़े दुखों का नाश |
देवी माँ का स्वत: सिद्ध महामंत्र है. . .
श्री सिद्ध तारा महाविद्या महामंत्र
" ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट "
इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं जैसे
1. बिल्व पत्र, भोज पत्र और घी से हवन करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है
2.मधु. शर्करा और खीर से होम करने पर वशीकरण होता है
3.घृत तथा शर्करा युक्त हवन सामग्री से होम करने पर आकर्षण होता है।
4. काले तिल व खीर से हवन करने पर शत्रुओं का स्तम्भन होता है।
देवी के तीन प्रमुख रूपों के तीन महा मंत्रमहाअंक-देवी द्वारा उतपन्न गणित का अंक जिसे स्वयं तारा ही कहा जाता है वो देवी कामहाअंक है -"1"विशेष पूजा सामग्रियां-पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती हैसफेद या नीला कमल का फूलचढ़ानारुद्राक्ष से बने कानों के कुंडल चढ़ानाअनार के दाने प्रसाद रूप में चढ़ानासूर्य शंख को देवी पूजा में रखनाभोजपत्र पर ह्रीं लिख कराचढ़ानादूर्वा,अक्षत,रक्तचंदन,पंचगव्य,पञ्चमेवा व पंचामृत चढ़ाएंपूजा में उर्द की ड़ाल व लौंग काली मिर्च का चढ़ावे के रूप प्रयोग करेंसभीचढ़ावे चढाते हुये देवी का ये मंत्र पढ़ें-
" ॐ क्रोद्धरात्री स्वरूपिन्ये नम: "
१) देवी तारा मंत्र - ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट
२) देवी एक्जता मंत्र - ह्रीं त्री हुं फट
३) नील सरस्वती मंत्र - ह्रीं त्री हुं
सभी मन्त्रों के जाप से पहले अक्षोभ्य ऋषि का नाम लेना चाहिए तथा उनका ध्यान करना चाहिएसबसे महत्पूरण होता है देवी का महायंत्रजिसके बिना साधना कभी पूरण नहीं होती इसलिए देवी के यन्त्र को जरूर स्थापित करे व पूजन करेंयन्त्र के पूजन की रीति है-पंचोपचारपूजन करें-धूप,दीप,फल,पुष्प,जल आदि चढ़ाएं, " ॐ अक्षोभ्य ऋषये नम: मम यंत्रोद्दारय-द्दारय" कहते हुये पानी के 21 बार छीटे दें वपुष्प धूप अर्पित करेंदेवी को प्रसन्न करने के लिए सह्त्रनाम त्रिलोक्य कवच आदि का पाठ शुभ माना गया हैयदि आप बिधिवत पूजा पातनहीं कर सकते तो मूल मंत्र के साथ साथ नामावली का गायन करेंतारा शतनाम का गायन करने से भी देवी की कृपा आप प्राप्त कर सकतेहैंतारा शतनाम को इस रीति से गाना चाहिए-
"तारणी तरला तन्वी तारातरुण बल्लरी,तीररूपातरी श्यामा तनुक्षीन पयोधरा,तुरीया तरला तीब्रगमना नीलवाहिनी,उग्रतारा जया चंडीश्रीमदेकजटाशिरा"
देवी को अति शीघ्र प्रसन्न करने के लिए अंग न्यास व आवरण हवन तर्पण व मार्जन सहित पूजा करेंअब देवी के कुछ इच्छा पूरक मंत्र
1) देवी तारा का भय नाशक मंत्र "ॐ त्रीम ह्रीं हुं" नीले रंग के वस्त्र और पुष्प देवी को अर्पित करेंपुष्पमाला,अक्षत,धूप दीप से पूजनकरेंरुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करेंमंदिर में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता हैनीले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें याउनी कम्बल का आसन रखेंपूर्व दिशा की ओर मुख रखेंआम का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
2) शत्रु नाशक मंत्र "ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: हुं उग्रतारे फट" नारियल वस्त्र में लपेट कर देवी को अर्पित करेंगुड से हवन करेंरुद्राक्ष की माला से 5माला का मंत्र जप करेंएकांत कक्ष में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता हैकाले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल काआसन रखेंउत्तर दिशा की ओर मुख रखेंपपीता का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
3) जादू टोना नाशक मंत्र "ॐ हुं ह्रीं क्लीं सौ: हुं फट" देसी घी ड़ाल कर चौमुखा दीया जलाएंकपूर से देवी की आरती करेंरुद्राक्ष की माला से 7माला का मंत्र जप करें
4) लम्बी आयु का मंत्र "ॐ हुं ह्रीं क्लीं हसौ: हुं फट" रोज सुबह पौधों को पानी देंरुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करेंशिवलिंग केनिकट बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता हैभूरे रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखेंपूर्व दिशा की ओरमुख रखेंसेब का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
5) सुरक्षा कवच का मंत्र "ॐ हुं ह्रीं हुं ह्रीं फट" देवी को पान व पञ्च मेवा अर्पित करेंरुद्राक्ष की माला से 3 माला का मंत्र जप करेंमंत्र जाप केसमय उत्तर की ओर मुख रखेंकिसी खुले स्थान में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता हैकाले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनीकम्बल का आसन रखेंउत्तर दिशा की ओर मुख रखेंकेले व अमरुद का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएंदे
देवी की पूजा में सावधानियां व निषेध-
बिना "अक्षोभ ऋषि" की पूजा के तारा महाविद्या की साधना न करें
किसी स्त्री की निंदा किसी सूरत में न करें
साधना के दौरान अपने भोजन आदि में लौंग व इलाइची का प्रयोग नकारें
देवी भक्त किसी भी कीमत पर भांग के पौधे को स्वयं न उखाड़ें
टूटा हुआ आइना पूजा के दौरान आसपास न रखें
विशेष गुरु दीक्षा-
तारा महाविद्या की अनुकम्पा पाने के लिए अपने गुरु से आप दीक्षा जरूर लें आप कोई एक दीक्षा ले सकते हैं
महातारा दीक्षा
नीलतारा दीक्षा
उग्र तारा दीक्षा
एकजटा दीक्षा
ब्रह्माण्ड दीक्षा
सिद्धाश्रम प्राप्ति दीक्षा
हिमालय गमन दीक्षा
महानीला दीक्षा
कोष दीक्षा
अपरा दीक्षा.................आदि में से कोई एक
पंडित जी प्रणाम। पंडित जी माँ तारा का अगर सिर्फ बीज मंत्र या महामंत्र का 108 बार 5 मालायें किया जा सकता है क्या।
ReplyDeleteऔर मंत्र जाप रात्रि को करे या सुबह। हमे मंत्र सिद्ध करना है तो कोनसा मन्त्र उचित होगा जिससे हमारी सफलता पाने की मनोकामनाये प्राप्त हो सके और देवी माँ का स्नेह सदैव साथ भी रहे। कृपया मार्गदर्शन करे। बहुत परेशान हु।
जी प्रभु बिल्कुल जितनी माला कर सकते है करे ओर रात्रि के एक बजे से साडे तीन बजे तक सिद्ध विधा या माँ बाबा के किसी भी रुप के लिये जप हो सकते है यही उतम समय है
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